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उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

उत्तराखंड: महिला टीचर उत्तरा पंत पर क्यों क्रूर हुआ सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार?

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उत्तरा पंत बहुगुणा और त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का जनता दरबार, जहां आम लोग अपनी परेशानियां बता सकते हैं. 28 जून को हुए जनता दरबार में माइक उत्तरकाशी में 20 से ज़्यादा सालों से टीचर उत्तरा पंत बहुगुणा के हाथ में आता है. वो कहना शुरू करती हैं, ''मेरी समस्या ये है कि मेरी पति की मौत हो चुकी है. मेरे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं है. घर पर मैं अकेली हूं, अपने बच्चों का सहारा. मैं अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ सकती और नौकरी भी नहीं छोड़ सकती. आपको मेरे साथ न्याय करना होगा.'' न्याय की इस फरियाद को सुनकर रावत उत्तरा से सवाल पूछते हैं, ''जब नौकरी की थी तो क्या लिखकर दिया था?'' उत्तरा जवाब देती हैं, ''लिखकर दिया था सर. ये नहीं बोला था कि मैं वनवास भोगूंगी ज़िंदगीभर. ये आपका है 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ.' और ये नहीं कि वनवास के लिए भेज रहे हैं हम...
Why vote bank politics even in announcing dating system in text books  in Tamil Nadu ?

Why vote bank politics even in announcing dating system in text books  in Tamil Nadu ?

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A few days after introducing Before Common Era ( B.C.E) and Common Era (C.E.) as the dating system in text books, Tamil Nadu government has reversed the decision and said that it would revert to the system of using Before Christ ( BC) and Anno Domini ( AD). What is surprising is that after announcing the reversion of the decision, the Education Minister in Tamil Nadu has claimed that such decision has been taken " to protect the interest of minorities" What is the minority issue involved in this and how minority interests will be affected by changing the dating system in text books? Obviously, Tamil Nadu government is playing vote bank politics , which amounts to minority appeasement in this case. So called secularism and minority interests are subjects now taken to ridiculous level. Is...
कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है?

कर्नाटक का जनमत किसके पक्ष में है?

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चुनावों के दौरान चलने वाला सस्पेन्स आम तौर पर परिणाम आने के बाद खत्म हो जाता है लेकिन कर्नाटक के चुनावी नतीजों ने सस्पेन्स की इस स्थिति को और लम्बा खींच दिया है। राज्य में जो नतीजे आए हैं और इसके परिणामस्वरूप जो स्थिति निर्मित हुई है और उससे जो बातें स्पष्ट हुई हैं आइए जरा उस पर गौर करें। 1.भाजपा जिसके पास पिछली विधानसभा में 40 सीटें थीं वो आज राज्य में 105 सीटों पर विजयी होकर सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में उभर कर आती है। 2.कांग्रेस जो कि 122 सीटों के साथ सत्ता में थी,आज 78 सीटों तक सिमट कर रह जाती है। 3.उसके 10 निवर्तमान मंत्री चुनाव हार जाते हैं। 4. उसके निवर्तमान मुख्यमंत्री  दो जगहों से चुनाव लड़ते हैं। जिसमें वे मात्र 1696 वोटों से अपनी बादामी सीट बचाने में कामयाब रहते हैं। लेकिन अपनी दूसरी चामुंडेश्वरी सीट पर उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ता है। 6. यहाँ यह जानना भी महत...
योगी सरकार का एक साल :  भाजपाराज स्थापित, योगीराज का इंतज़ार 

योगी सरकार का एक साल : भाजपाराज स्थापित, योगीराज का इंतज़ार 

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  उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का एक साल पूरा हो गया है। इस एक साल में उत्तर प्रदेश में परिवर्तन की बयार बह निकली है। व्यवस्था के ढीले पड़े पेंच कसावट महसूस कर रहे हैं। ईमानदार एवं सख्त योगी की नीयत साफ है किन्तु उनके हाथ बंधे हुये हैं। कार्यकर्ताओं की अनदेखी एवं दिल्ली के अनावश्यक हस्तक्षेप से उत्तर प्रदेश में 'भाजपाराज’ तो स्थापित हुआ है, 'योगीराज’ नहीं। योगी आदित्यनाथ को करीब से जानने वाले समझते हैं कि अपनों से घिरे योगी बहुत दिनों तक जकडऩ में रहने वाले नेता नहीं हैं। या तो दिल्ली उनकी जकडऩ कम कर देगी या योगी स्वयं इस जकडऩ से बाहर आना जानते हैं। उत्तर प्रदेश में सरकार के एक साल पर ग्राउंड ज़ीरो से अमित त्यागी का एक विश्लेषण।   खिरकार, एक बरस बीत गया। उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज की समीक्षा का यह पहला पड़ाव है। सरकार की समीक्षा दो तरह से की जानी चाहिए। एक प्रशासनिक स्तर पर ए...

Rajasthan Government troubles

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प्रदेश भाजपा सरकार के लिये चुनौती बनता 'बेरोजगारÓ रामस्वरूप रावतसरे कसभा उपचुनावों को देखते हुए चार साल से अटकी भर्तियों की रुकावटें भाजपा सरकार जल्द से जल्द दूर करने की तैयारी में है। सरकार की लेटलतीफ ी के चलते बेरोजगार संघ ने उपचुनावों में कांग्रेस को समर्थन देने का ऐलान करने पर तथा कांग्रेस द्वारा भी उप चुनावों में राजस्थान में बेरोजगारी को ही मुद्दा बनाकर चलने के कारण भाजपा को उप चुनावों की वैतरणी पार करने के लिये इस ओर ध्यान देना पड़ रहा बताया जा रहा है । यही नहीं जनता का रूख भी बदला सा होने के कारण भाजपा सरकार लोकसभा उपचुनाव की चिंता में चार साल से अटकी भर्तियों की रुकावटें जल्द से जल्द दूर करने की पुरजोर कोशिश बताई जा रही है । राजस्थान बेरोजगारों का प्रदेश बनता जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है, प्रदेश में 77,413 पदों की भर्तियां विभिन्न कारणों ...

Uttrakhand Government

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उत्तराखंड सरकार में तनातनी रफी खान उत्तराखंड प्रदेश में तिर्वेंद्र सिंह सरकार बने अभी एक साल भी पूरा नहीं हो पाया है और पार्टी विरोधी गुट लगातार तिर्वेंद्र सिंह नामी किले को ढहाने में और उनको सत्ताच्युत करने में कोई कोरकसर नहीं छोड़ रहा हे,यह अलग बात हे की अभी तक विरोधी गुट उनके किले में दरार तक नहीं बना पाया है पर असन्तुष्टो की बढ़ती फेहरिश्त कही न कही दिल्ली हाईकमान के माथे पर बल जरूर उत्पन्न कर रही हे ! देवभूमि के इस प्रदेश की यह बिडम्बना हैकी 17 सालो में राजनीती के पंडित नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर एक भी मुख्यमंत्री चाहे कांग्रेस का रहा हो या बीजेपी का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है ! दोनों ही पार्टी के बड़े नेता सूबे के बजूद में आने से लेकर तिर्वेंद्र सरकार के पूर्व तक मुख्यमंत्री बदलने की बड़ी रस्म को अमलीजामा पहनाते रहे हैं, इसमें जहाँ पार्टियों के असंतु...

Elections in Delhi necessary

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दल्ली में चुनावी दंगल अब जरूरी आम आदमी पार्टी कितनी भी सफाई पेश करे, कितने भी तर्क प्रस्तुत करे, दुराशय के कितने भी आरोप लगाए, यह तो तय है कि बीसों विधायकों की सदस्यता समाप्त होकर ही रहेगी। चुनाव आयोग ने तो अपना फैसला दे ही दिया है, उच्च न्यायालय और राष्ट्रपति का फैसला भी शीघ्र ही आ जाएगा। ये तीनों भी यदि 'आपÓ के 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाने के फैसले को ठीक कह दें तो क्या वह ठीक हो जाएगा? देश के लगभग आधा दर्जन राज्यों में संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर अदालती दंगल चल रहा है। इन नियुक्तियों का जो भी औचित्य बताया जाए, इनके रद्द होने पर सरकार की छवि बिगड़ती है। जब दिल्ली में 20 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया, मैं तब ही सोच रहा था कि दिल्ली की इस एक छोटी-सी सरकार को चलाने के लिए इतने दबे-ढके मंत्रियों को पिछवाड़े से लाने की क्या जरुरत है कुल 65-70 विधायकों की विधानसभ...

Arvind Kejriwal’s AAP

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भस्मासुर केजरीवाल केजरीवाल ने अपनी संभावनाओं को खुद डकार लिया जावेद अनीस स देश की राजनीति में बदलाव चाहने वालों के लिये आम आदमी पार्टी का सफर निराश करने वाला है हालांकि इसका एक दूसरा पक्ष यह हो सकता है कि अन्ना, अरविन्द और आप मंडली के सहारे बदलाव की उम्मीद लगाये लोग जरूरत से ज्यादा मासूम रहे हों. बहरहाल आम आदमी पार्टी उम्मीदों को तोडऩे के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुये एक बार फिर सुर्खियों में है. पार्टी ने राज्यसभा के लिए अपने तीन उम्मीदवारों का ऐलान करते हुए शीर्ष नेता के प्रति वफादारी,धनबल और राजनीति में जाति की महत्ता का भरपूर ध्यान रखा है . आम आदमी पार्टी के गठन को पांच साल बीत चुके हैं और इस दौरान पार्टी के नेतृत्व ने बहुत ही तेजी से पुरानी पार्टियों के राजनीतिक कार्यशैली और पैतरेबाजियों को सीख लिया है. दरअसल आम आदमी पार्टी बाकी सियासी दलों से अलग होने औ...

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गरमाता राजनैतिक पारा अमित त्यागी और एस.पी. सिंह धारात्मक परिवर्तन एक समय चक्र में पूर्ण होता है। बदलाव धीरे धीरे दिखाई देता है। उत्तर प्रदेश सरकार एक साल पूरा होने की तरफ बढ़ रही है। सरकार के द्वारा नीतिगत फैसलों से जनता में अच्छा संदेश जा रहा है। कानून व्यवस्था में सुधार ऊपरी स्तर पर भी दिख रहा है और अंदरूनी स्तर पर भी एंकाउंटर द्वारा सफाई अभियान जारी है। ऐसे ही एंकाउंटर राजनैतिक दलों द्वारा अपने अपने भीतर भी किए जा रहे हैं। भाजपा को समझ आ चुका है कि संघटन में बाहरी नेताओं से नुकसान होता है। वह अब अपने पुराने नेताओं को संगठन में वरीयता देने जा रही है। बूथ लेवेल पर मजबूती की तैयारी की जा रही है। हर माह मण्डल स्तरीय बैठकों में बूथ टोली को मतदाताओं से करीब रिश्ता बनाने का कहा गया है। मण्डल स्तर भाजपा में ब्लॉक स्तर की इकाई होता है। भाजपा में संगठनात्मक रूप से कुल 1471 मण्डल हैं। भाजपा ...

Modi Yogi and FDI

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क्या मोदी-योगी ने विदेशो में पढ़े नितिज्ञों के आगे घुटने टेक दिए हैं? मोदी और योगी जैसे भारतीयता का चिंतन रखने वालों के सत्ता में आने के बाद भी व्यवस्था में परिवर्तन नजर क्यों नहीं आता ? कृषि प्रधान देश में कृषि, कृषक एवं अन्नदाता की सबसे ज्यादा दुर्दशा है। इसका एक मात्र कारण वो नीतिज्ञ है जो विदेशो में पढे हैं। वह ऐसी नीतियाँ ही बनाते हैं जिनसे विदेशियों को भारत से ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सकें। सरकार कोई भी आये। कमोवेश, नीतियां वही रहती है। क्योंकि नीतियां बनाने बाले इस तंत्र में बैठाये गये हैं। ये लोग हावर्ड और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से शिक्षा लेकर आये हैं। उदाहरण के तौर पर वर्तमान नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र से डी फिल किये हुये हैं तो वह कैसे भारत और भारत की आत्मा के अनुरूप नीतियां बना सकते हैं। नीति आयोग के पहले उपाध्यक्ष अरविन्द पानगढयि़ा...