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समान नागरिक संहिता का विरोध अनुचित

समान नागरिक संहिता का विरोध अनुचित

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अवधेश कुमारविधि आयोग द्वारा समान नागरिक संहिता या कॉमन सिविल कोड पर फिर से आम लोगों और धार्मिक संस्थाओं आदि का सुझाव मांगना स्पष्ट करता है कि अब इसके साकार होने का समय आ गया है। पिछले वर्ष ही गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि अब कॉमन सिविल कोड की बारी है। उसी समय लग गया था कि केंद्र सरकार इस दिशा में आगे बढ़ चुकी है। उत्तराखंड सरकार ने इसके लिए एक समिति का गठन किया था। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने भी समान नागरिक संहिता की बात की।फिर असम सरकार ने भी इसकी घोषणा की। कुल मिलाकर केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकारों की ओर से धीरे-धीरे यह संदेश दिया जाता रहा है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने भारत के लिए जिस समान नागरिक कानून का सपना देखा और संविधान में उसे शामिल किया उसको साकार करने का कार्य नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार भीऔर प्रदेश की भाजपा सरकार है करने जा रही है।...
क्या पंजाब के ‘टीचिंग फेलो’ घोटाले में बड़ी मछलियां पकड़ी जाएँगी?

क्या पंजाब के ‘टीचिंग फेलो’ घोटाले में बड़ी मछलियां पकड़ी जाएँगी?

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*रजनीश कपूरजब भी कोई बड़ा घोटाला सामने आता है तो आम जनता को इस बात का भरोसा नहीं होता कि घोटाले में लिप्तबड़ी मछलियाँ क़ानून के शिकंजे में क़ैद हो पायेंगी। इस बात के सैंकड़ों उदाहरण आपको बड़ी आसानी से मिलजाएँगे। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्राथमिक जाँच क्रेन वाले अधिकारी ही जाँच का रुख़ ग़लत दिशा में मोड़ देतेहैं। नतीजतन घोटाले में लिप्त केवल छोटों मछलियों को ही सज़ा मिलती है और बड़ी मछलियाँ निडर हो करखुलेआम घूमती हैं। ऐसा ही कुछ हुआ 2007 के पंजाब के ‘टीचिंग फेलो’ भर्ती घोटाले में।‘टीचिंग फेलो’ घोटाला पिछले कई दिनों से पंजाब में चर्चा में है। कारण है, इस घोटाले में पंजाब विजिलेंस विभागद्वारा कार्यवाही करना। विजिलेंस विभाग ने ‘टीचिंग फेलो’ घोटाले में लिप्त शिक्षा विभाग के 5 कर्मचारियों कोरिमांड पर लेने के बाद जेल भेज दिया। ग़ौरतलब है कि कि चार साल पहले शुरू हुई विजिलेंस की जांच टीम आजतक माम...
आम के बहाने पसमांदा मुसलमानों के साथ योगी

आम के बहाने पसमांदा मुसलमानों के साथ योगी

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आर.के. सिन्हा मिर्जा ग़ालिब मीठे आम के लिए जान देते थे। वे अपने दोस्तों-यारों के साथ आम खाना पसंद करते थे। उनकी आम की पार्टियाँ मशहूर हैं I वे वर्ष 1827 में दिल्ली से कोलकाता गए थे। वे दिल्ली से कोलकाता जाते वक्त कानपुर, लखनऊ, बाँदा, इलाहाबाद होते हुए बनारस पहुँचे। वे बनारस में छह महीने ठहरे थे। उन्होंने अपने सफर के दौरान उत्तर प्रदेश के मशहूर दशहरी या लंगड़ा आम का जमकर स्वाद स्वाद चखा । आम की अलग-अलग प्रजातियां सारे देश में मिलेंगी पर उत्तर प्रदेश में मिलने वाले मिश्री जैसे रसीले आमों की बात ही अलग है। अजीब सा संयोग है कि राज्य में आम की खेती और व्यापार में मुसलमानों की अच्छी-खासी भूमिका है। आपको सारे प्रदेश में आम की खेती करते हुए ज्यादातर मुसलमान ही मिलेंगे। कुछ समय पहले राज्य के कुछ इलाकों में बेमौसमी बारिश तथा ओला वृष्टि से आम किसानों के स...
कर्नाटक में कांग्रेस की नई कथा शुरू

कर्नाटक में कांग्रेस की नई कथा शुरू

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आख़िर कड़ी मशक़्क़त के बाद कांग्रेस कर्नाटक में सत्तारूढ़ हो गई। भारी बहुमत से जीत के बावजूद मुख्यमंत्री तय करने को लेकर जो गतिरोध कांग्रेस पार्टी में चल रहा था, आखिरकार उसका पटाक्षेप आर हो ही गया। राजयोग सिद्धारमैया के हिस्से में आया डी के शिवकुमार के हिस्से में तपस्या। जहां कुर्सी काँटों का ताज़ा होती है तो तपस्या फ़ौरन फलीभूत होने के उद्देश्य से की जाती है। औपचारिकताओं के निर्वहन के बाद ताजपोशी हो गई। कांग्रेस के नेता कहते रहे हैं कि लोकतांत्रिक पार्टी होने के कारण सहमति पर मंथन जारी रहा ,लेकिन आम विमर्श में यह मुद्दा हावी रहा कि विधानसभा चुनाव में 135 सीटें जीतने के बावजूद दल का नेता चुनने में इतनी देरी क्यों हुई? सब कुछ ठीक नहीं है। कर्नाटक में पार्टी की जीत का नेतृत्व करने वाले डीके शिवकुमार कहते रहे हैं कि ‘उन्होंने पांच साल पार्टी के लिये संघर्ष किया, जेल भी गये। वे वफादार ...
उत्तर प्रदेश में नाकाम हुई मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति

उत्तर प्रदेश में नाकाम हुई मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति

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मृत्युंजय दीक्षितउत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव- 2023 मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सभी छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों की राजनीति के लिए बड़ा झटका हैं। इन चुनावों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी सहित लगभग सभी दलों ने दलित और मुस्लिम समाज के मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत व संसाधन झोंक दिये थे और समीकरण भी बिठाने के प्रयास किये थे लेकिन परिणाम दिखाते हैं कि उनकी ये रणनीति बेबस रही ।उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों में समाजवादी पार्टी के बहुत सारे कद्दावर नेता, उनके परिवार के सदस्य व समर्थकों ने चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का दामन थाम लिया था जिसका असर चुनाव परिणामों में दिखाई पड़ा है।समाजवादी पार्टी के लिए सबसे बड़ी हार चाचा शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव के गढ़ में तो हुई ही है साथ ही रामपुर की स्वार विधानसभा उपचुनाव सीट पर सपा नेता आजम खां अपने बेटे अब्दुल्ला आजम का किला भी न...
यूपी में भगवा लहर का जलवा कायम

यूपी में भगवा लहर का जलवा कायम

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राष्ट्रीय फलक पर योगी जी का बढ़ेगा कदमृत्युंजय दीक्षितमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश भगवा राजनीति का गढ़ बनने की दिशा में अग्रसर प्रतीत हो रहा है। 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ पहली बार 73 सीटों पर विजय प्राप्त की थी, 2017 में भी पार्टी को प्रचंड विजय मिली और अब गोरक्षपीठ के महंत योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व में प्रदेश में जितने भी चुनाव हो रहे हैं हर चुनाव में भाजपा की लोकप्रियता का ग्राफ बढ़ रहा है, 2017 में नगर निगम चुनाव, 2019 के लोकसभा चुनाव, 2022 के विधानसभा चुनाव और अब 2023 के नगर निकाय चुनावों ने तो एक नया अध्याय लिखा है।निकाय चुनाव 2023 में मुख्यमंत्री योगी जी के नेतृत्व में भाजपा ने सभी 17 नगर निगमों औरउसके बाद नगर पंचायत और पालिका चुनावों में भी सीट व वोट प्रतिशत के हिसाब से अब तक की सबसे बड़ी जीत अर्जित कर ...
<strong>आख़िर क्यों बरकरार रहा यूपी निकाय चुनावों मेंयोगी का मैजिक</strong>

आख़िर क्यों बरकरार रहा यूपी निकाय चुनावों मेंयोगी का मैजिक

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आर.के. सिन्हा आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले हरेक विधनासभा और नगर निगम चुनावों पर सारे देश की निगाहें रहने वाली हैं। इस परिप्रेक्ष्य में कर्नाटक विधानसभा और यूपी नगर निकाय चुनावों के नतीजों को देखना होगा। कर्नाटक में बीजेपी को निराशा हाथ लगी लेकिन यूपी निकाय चुनाव परिणामों ने पार्टी को जश्न मनाने का पूरा मौका दिया है। अभी देश में सिर्फ़ और सिर्फ़ कर्नाटक चुनावों की ही चर्चा हो रही है । जबकि ,  यूपी नगर चुनाव में कर्नाटक में जितने मतदाताओं ने भाग लिया उससे कहीं ज़्यादा मतदाताओं ने यू ० पी० के चुनावों में अपने मताधिकार का उपयोग किया । अतः मैं तो आज यू ० पी० निकाय चुनावों की ही चर्चा करूँगा । भारतीय जनता पार्टी ने यू ० पी ० में अभूतपूर्व जीत हासिल करते हुए सभी 17 नगर निगमों में अपना परचम लहराया है।नगर निगमों के अतिरिक्त भी सभी अन्य निकायों में भाज...
कर्नाटक का झटका

कर्नाटक का झटका

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किसी भी चुनाव में हारना अथवा विजय प्राप्त करना मात्र एक सामान्य सी बात है, परन्तु कर्नाटक विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार, भाजपा के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। कर्नाटक प्रदेश, भारतीय जनता पार्टी के दक्षिण भारतीय अभियान का मुख्य द्वार था। इसी प्रदेश के द्वारा, भाजपा पार्टी का दक्षिण भारत का विजय अभियान होकर जाता था, परन्तु अब यदि कोई विशेष घटना घटित नहीं होती है तो, यह द्वार बंद होता प्रतीत हो रहा है। इस द्वार के बंद होने से आगामी वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में, पार्टी के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मिली हार का निष्पक्ष मंथन करना भाजपा पार्टी के लिए अत्यंत आवश्यक है। भाजपा, भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत, संस्कारवान, ईमानदार, लोकप्रिय और जनता के हित को सर्वोपरी रखने वाली एक राजनीतिक पार्टी है, जिसको राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने सीचा एवं पल्लवित किया है।कर्...
ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है -कर्नाटक के आज चुनाव के परिणाम

ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है -कर्नाटक के आज चुनाव के परिणाम

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ईश्वर जो करता है, अच्छा ही करता है -कर्नाटक के आज चुनाव के परिणामभविष्य में कुछ और ख़ुशी दे सकते हैं - यह सत्य है कर्नाटक चुनाव में भाजपा हार गई और कांग्रेस को अच्छी जीत मिली है - लेकिन हार जीत जीवन का हिस्सा है, अलबत्ता यह निश्चित है कि कांग्रेस ने जो रूप दिखाया था चुनाव से पहले, उससे जनता को भयंकर परिणाम भुगतना पड़ेगा - आज EVM को विपक्ष ने चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया अन्यथा तो आज एक बार फिर उसका “बलात्कार” हो जाता - सीट भले ही भाजपा की 64 रह गई परंतु पिछले चुनाव में मिले वोट प्रतिशत 36.2% से केवल 0.4% कम होकर 35.8% हुआ है लेकिन JDS का वोट 5% गिरा जो कांग्रेस को मिला और उसका वोट 5% बढ़ कर 43.1% हुआ और इसी 5% ने सारा खेल बदल दिया - पिछले विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा को 2019 के लोकसभा चुनाव में 52% वोट मिले थे यानी विधानसभा से 16% ज्यादा और कांग्रेस के वोट 38% से घटकर 32% रह गए थे जि...
कुर्सी की दावेदारी में गहलोत की राजनीतिक जादूगरी 

कुर्सी की दावेदारी में गहलोत की राजनीतिक जादूगरी 

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- ललित गर्ग- राजनीतिक दांवपेच में महारथ हासिल अशोक गहलोत ने धौलपुर की एक सभा में अपनी राजनीतिक जादूगरी का करिश्मा दिखाते हुए न केवल सचिन पायलेट को पटकनी दी है बल्कि वसंुधरा राजे सिंधिया की प्रशंसा करते हुए उन्हें भी चीत कर दिया है। अपने एक ही तीर से उन्होंने राजस्थान की भावी राजनीति की फिजां बदलते हुए न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलेट के राजनीति जीवन पर अंधेरा बिखेर दिया है, बल्कि राजस्थान की दूसरी कद्दावर नेता वसुंधरा के आगामी विधानसभा चुनाव में नेतृत्व को धुंधला दिया है, इस तरह करिश्माई नेता गहलोत ने आगामी विधानसभा में अपने लिये रास्ता निष्कंटक बना लिया है। कांग्रेस के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाने वाले अशोक गहलोत ने सचिन पायलट का राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने का सपना ही नहीं तोडा़ है बल्कि कांग्रेस आलकमान को उनकी पार्टी निष्ठा पर सोचने को मजबूर कर दिया है। अशोक गहलोत राजनीति क...