New Delhi Book Fair 2018
नई दिल्ली पुस्तक मेला-2018
मुखर हुआ राष्टï्रवादी विमर्श
द्य सोनाली मिश्रा
हते हैं रंग बदलता है, किताबों का, मेलों का और रंग बदलता है हवाओं का, विमर्शों का। क्योंकि हर रंग सत्ता को समेटे होता है। वह रंग कुछ भी हो सकता है, वह धारा कोई भी हो सकती है, कभी इधर के चेहरे चमक सकते हैं, तो कभी उधर के। नई दिल्ली में जनवरी में जब पुस्तकों का सबसे बड़ा बाजार सजा, तो राष्ट्रवादी स्वरों की थोड़ी फुसफुसाहट थी। दरअसल यह फुसफुसाहट पिछले वर्ष के पुस्तक मेले में सफलतापूर्वक आयोजित किए गए विमर्शों के आधार पर हो रही फुसफुसाहट थी। इस सरकार के आने के बाद से ही ऐसे विमर्शों के तेज होने की अपेक्षा थी, पर ऐसा न होने से लोग निराश हो रहे थे। पर जनवरी 2018 में आयोजित पुस्तक मेला राष्ट्रवादी वैचारिक मंथन के प्रेमियों के लिए सुखद आश्चर्य के साथ आया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने इस वर्ष पुस्तक मेले में...