
नई संसद : सबसे बड़ा लोकतंत्र होना सार्थक हो
बीते कल भले ही देश का सबसे बड़ा लोकतंत्र का मंदिर संसद भवन संविधान भवन बन गया हो, लेकिन यह भवन भारतीय संविधान की रचना से लेकर लोकतंत्र के उदय व परिपक्व हो जाने का साक्षी है। पांच दिवसीय विशेष संसद सत्र का पहला दिन इसी संसद भवन की संसदीय कार्यवाही का आखिरी दिन बना। संसद भवन में पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह तक के कार्यकाल को याद किया गया। वहीं पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद से लेकर मौजूदा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू तक के संबोधन का स्मरण किया गया।
निस्संदेह, इस भवन को देश के पंद्रह प्रधानमंत्रियों का नेतृत्व मिला। सदन ने संवाद के जरिये देश की दशा सुधारने और नई दिशा देने का गुरुतर दायित्व निभाया। एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में पिछले साढ़े सात दशक में सामूहिकता के निर्णय इसकी जीवंतता को ही दर्शाते हैं। इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र...