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फ्रीबीज बनाम जनकल्याणकारी योजनाएं !

फ्रीबीज बनाम जनकल्याणकारी योजनाएं !

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आज राजनीति का स्तर लगातार गिरता चला जा रहा है। राजनीति का मतलब आज सेवा नहीं अपितु मेवा खाना हो गया है। देश में आजकल रेवड़ी कल्चर खूब प्रचलन में है।यह तथ्य आज किसी से भी छिपा हुआ नहीं कि रेवडिय़ां बांटने की राजनीतिक संस्कृति ने न जाने कितने देशों को तबाह किया है। आज राजनीति का मतलब है रेवड़ी कल्चर।आम आदमी को रेवड़ियां बांटकर वोट हथियाना शायद आज की राजनीति का प्रमुख हथियार हो गया है।एक समय था,जब लोग राजनीति में समाज सेवा,देश सेवा, सामाजिक सरोकारों के लिए आते थे। राजनीति का असली धर्म भी सेवा ही तो है लेकिन आज इसके उलट देखने को मिल रहा है और राजनीति आज तुच्छ राजनीति हो चली है, यहां स्वार्थ और लालच की नदियां बहती है, देश व समाज चाहे भाड़ में जाए,किसी को देश व समाज से कोई लेना देना अथवा कोई सरोकार नहीं रह गया है। सच तो यह है कि रेवड़ी कल्चर आज के राजनीतिक गलियारों का प्रमुख शब्द हो गया है,...
<strong>गीता प्रेस रूपी उजालों पर राजनीति क्यों?</strong>

गीता प्रेस रूपी उजालों पर राजनीति क्यों?

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-ः ललित गर्ग:- आजादी के अमृतकाल में स्व-संस्कृति, स्व-पहचान एवं स्व-धरातल को सुदृढ़ता देने के अनेक अनूठे उपक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार में हो रहे हैं, उन्हीं में एक है भारत सरकार द्वारा एक करोड़ का गांधी शांति पुरस्कार सौ साल से सनातन संस्कृति की संवाहक रही गीता प्रेस, गोरखपुर देने की घोषणा। 1800 पुस्तकों की अब तक 92 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित करने वाले गीता प्रेस को इस पुरस्कार के लिये चुना जाना एक सराहनीय एवं सूझबूझभरा उपक्रम है। यह सम्मान मानवता के सामूहिक उत्थान, धर्म-संस्कृति के प्रचार-प्रसार, अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है। लेकिन विडम्बना है कि ऐसे मानवतावादी उपक्रमों को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से राजनीतिक दलों और नेताओं को कितना फायदा या ...
योग ही है अमृतकाल को अमृतमय बनाने का आधार

योग ही है अमृतकाल को अमृतमय बनाने का आधार

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- ललित गर्ग - अनादिकाल से भारत योग भूमि के रूप में विख्यात इसलिये रही कि इसने शरीर से ही नहीं बल्कि मन से स्वस्थ रहना सिखाया। भारतीय योग तन और मन को स्वस्थ, सहज एवं संतुलित रखने का दर्शन है। सर्व भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया का पाठ पठाने वाले देश का कण-कण, अणु-अणु न जाने कितने योगियों की योग-साधना से आप्लावित हुआ है। इसी भूमि पर कभी वैदिक ऋषियों एवं महर्षियों की तपस्या साकार हुई थी तो कभी भगवान महावीर, बुद्ध एवं आद्य शंकराचार्य की साधना ने इस माटी को कृत्कृत्य किया था। साक्षी है यही धरा रामकृष्ण परमहंस की परमहंसी साधना की, साक्षी है यहां का कण-कण विवेकानंद की विवेक-साधना का, साक्षी है क्रांत योगी से बने अध्यात्म योगी श्री अरविन्द की ज्ञान साधना का और साक्षी है महात्मा गांधी की कर्मयोग-साधना का। योग साधना की यह मंदाकिनी न कभी यहां अवरुद्ध हुई है और न ही कभी अवरुद्ध होगी। इसी योग मंद...
पंजाब केसरी समूह के अख़बार नवोदय टाइम्स में कोचिंग उद्योग पर मेरा साक्षात्कार

पंजाब केसरी समूह के अख़बार नवोदय टाइम्स में कोचिंग उद्योग पर मेरा साक्षात्कार

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पंजाब केसरी समूह के अख़बार नवोदय टाइम्स में कोचिंग उद्योग पर मेरा साक्षात्कार आज प्रकाशित हुआ है। जगह की कमी के कारण कुछ अंश संपादित किए गए हैं। पाठको की रुचि के लिए मूल साक्षात्कार भी साथ में दे रहा हूँ। देश के प्रमुख कोचिंग संस्थान करियर प्लस के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक एवं डायलॉग इंडिया पत्रिका के संपादक अनुज अग्रवाल से नवोदय टाइम्स के बरिष्ठ संवाददाता अनिल सागर की कोचिंग उद्योग की दशा -दिशा पर गहन बातचीत - सरकार द्वारा कोचिंग संस्थानो पर नियंत्रण न होना आश्चर्यजनक - अनुज अग्रवाल प्रश्न : दिल्ली के मुखर्जी नगर के कोचिंग संस्थान में हालिया हुए अग्निकांड के बारे में आप क्या कहेंगे? उत्तर: देश में कोचिंग के सबसे बड़े हब दिल्ली के मुखर्जी नगर में एक कोचिंग संस्थान में शार्ट सर्किट से लगी आग से बड़ा हादसा हो गया। दर्जनों छात्र घायल हो गए और अनेक ग़ायब हैं जिनके बारे में पुल...
सरकारी सर्वर की फुलप्रूफ सुरक्षा ज़रूरी

सरकारी सर्वर की फुलप्रूफ सुरक्षा ज़रूरी

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यह अच्छी बात नहीं है,कोविड़ दुष्काल के बाद टीकाकरण के लिये बनाये गये सिस्टम ‘कोविन’ के डाटा में सेंधमारी और उसके बाद आरोप- प्रत्यारोप सनसनी फैला हुए है । चिंता की बड़ी बात यह है इसमें करोड़ों लोगों का निजी डाटा जमा है , जिसमें आम के साथ सुरक्षा की दृष्टि से तमाम खास लोग भी शामिल है । हालांकि, केंद्र सरकार ने तीव्रता से साफ किया कि कोविन का कोई डाटा चोरी नहीं हुआ। फिर भी इस मुद्दे पर विपक्ष ने केंद्र को निशाने पर ले रखा है ।वैसे भारत की सरलता से टीकाकरण की व्यवस्था को अंजाम देने के लिये देश-विदेश में कोविन सिस्टम की सराहना की गई थी।ऐसे कई मामले हैं, गाहे-बगाहे ऐसी खबरें आती ही रहती हैं कि साइबर अपराधियों ने लोगों का निजी डाटा चुरा लिया है। दरअसल, ऑनलाइन सिस्टम से जितनी सुविधा हुई व समय की बचत हुई, उसकी सुरक्षा के लिये खतरा उतना ही ज्यादा बड़ा हो गया है। निजी डाटा में सेंधमारी की चर्चा न...
छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई

छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई

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मृत्युंजय दीक्षितबालपन से ही वीरता की प्रतिमूर्ति - मां जीजाबाई, बचपन से ही शस्त्र सञ्चालन सीखना चाहती थीं औरउनके पिता लखूजी जाधवराव ने जो अपनी कन्या से अत्यंत स्नेह करते थे उनकी इस इच्छा को पूरा करने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी । शस्त्र कौशल में निपुण जीजा को उनके भाई रणचंडिका कहते थे । समय आने पर पिता जाधवराव वीर पुत्री जीजाबाई के लिए शूरवीर वर खोजा । वीर बालिका जीजा ही शाह जी की पत्नी और छत्रपति शिवाजी की मां के रूप में विख्यात हुईं।जिस समय जीजाबाई अपने भाईयों के साथ शस्त्र चलाना सीख रही थीं उस समय भारत पर मुगल आक्रमण हो रहा था। मुगल आक्रमणकारी भयानक रूप से हिंसा, मारकाट और लूट पाट कर रहे थे। मुगलों के सैनिक सामान्य हिन्दू जनता पर तरह- तरह के अत्याचार कर रहे थे। चारों ओर से मार काट, महिलाओं के अपहरण तथा शीलभंग, मंदिरों के ध्वंस, लूटपाट व आगजनी की ही सूचनाएं आ रही थीं । मुगलों के अमानवीय ...
प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम ही हैं प्राकृतिक आपदाएं !

प्रकृति से खिलवाड़ का परिणाम ही हैं प्राकृतिक आपदाएं !

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इन दिनों बिपरजॉय को लेकर देश में काफी चर्चा है। यह एक चक्रवात है। वैसे तो बिपरजॉय का अर्थ होता है 'बहुत खुशी'। लेकिन यह खुशी लेकर नहीं आया है और इन दिनों यह एक बहुत बड़ी मुसीबत बनकर भारत के कई समुद्री इलाकों पर मंडरा रहा है। विशेषकर बिपरजॉय का असर भारत के गुजरात, महाराष्ट्र समेत बहुत से समुद्री इलाकों में देखने को मिल रहा है। इन दिनों मुंबई के मरीन ड्राइव पर समुद्र में रह-रहकर ऊंची -ऊंची लहरें देखने को मिल रही है। यह सब इस चक्रवात के कारण हो रहा है गुजरात में तो चक्रवात को लेकर अलर्ट जारी किया गया है। वास्तव में बिपरजॉय है क्या ? यहां यह हमें जानने और समझने की जरूरत है। दरअसल, कुछ समय पहले ही दक्षिण-पूर्व अरब सागर के ऊपर एक डीप-डिप्रेशन बना था, जो अब भयंकर तूफान में तब्दील हो गया है। इसी चक्रवाती तूफान को बिपरजॉय तूफान नाम दिया गया है और यह नाम बांग्लादेश द्वारा सुझाया गया है। मीडिया रिपो...
राहुल विदेशों में बढ़ती साख कोे बट्टा लगा रहे हैं

राहुल विदेशों में बढ़ती साख कोे बट्टा लगा रहे हैं

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 - ललित गर्ग -कांग्रेस नेता राहुल गांधी भारत में मोदी-विरोध में कुछ भी बोले, यह राजनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वे विदेश की धरती पर मोदी विरोध के चलते जिस तरह के गलत बयान देते रहे हैं, वह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है। आखिर कब राहुल एक जिम्मेदार एवं विवेकवान नेता बनेंगे? विदेश में कांग्रेस की यात्राओं के माध्यम से वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विश्वस्तरीय नेता की छवि को धुंधला कर स्वयं को उस स्तर का नेता साबित करने में जुटे हैं। जबकि मोदी की छवि एवं हस्ति, प्रसिद्धि एवं सर्वस्वीकार्यता विश्व के किसी भी नेता की तुलना में ज्यादा है। अन्य देशों की बात दूर, वे अभी भारत में भी जिम्मेदार नेेता नहीं बन पाये हैं। उनकी कार्यशैली एवं बयानबाजी में अभी भी बचकानापन एवं गैरजिम्मेदाराना भाव ही झलकता है। एक प्रांत में क्या जीत हासिल कर ली, अहंकार के शिखर पर चढ़ बैठे, निश्चित ही राहुल क...
सब जीते तो हारा कौन ? – अनुज अग्रवाल

सब जीते तो हारा कौन ? – अनुज अग्रवाल

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भाजपा के असंख्य आरोपों, कोशिशों, जाँच एजेंसियो के छापो और चुनावी माहौल के भगवाकरण करने के बाद भी देश से निपटती व सिमटती जा रही कांग्रेस पार्टी ने बड़े आराम से प्रभावशाली बहुमत के साथ हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक में न केवल जीत प्राप्त की वरन् सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच चल रहे शक्ति संघर्ष को भी निबटाकर अपनी सरकार का गठन भी कर लिया। गांधी परिवार तो इस जीत पर फूला न समा रहा और लोकसभा का दावा ठोंक रहा है। तो उधर बीजेपी के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी विपक्ष की अनगिनत आलोचनाओ, आरोपों, व्यवधानों क़ानूनी रूकावटो व बहिष्कार के उपरांत भी संसद के नए दिव्य, भव्य व भारतीयता से ओतप्रोत भवन को समय से न केवल पूरा करवाया वरन् उसका उद्घाटन भी कर दिया। अपने नौ साल के कार्यकाल को सफलतापूर्वक पूरा करने का रिकॉर्ड बनाने के साथ ही मोदी जी वि भाजपा ने उन हजारो कामों को गिनाया जो पिछले नौ सा...
नये संसद भवन के साथ इतिहास का निर्माण

नये संसद भवन के साथ इतिहास का निर्माण

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अवधेश कुमारनए संसद भवन के उद्घाटन के समय लगभग राजनीतिक परिदृश्य वही था जो हमने इसके शिलान्यास- भूमि पूजन और योजना के संदर्भ में देखी। विपक्षी दलों के बड़े समूह ने इसका बहिष्कार किया। क्या करीब 100 वर्ष पहले अंग्रेजों द्वारा अपने शासन की मानसिकता से बनाया गया संसद भवन और उसके आसपास की पूरी रचना अनंतकाल तक रहनी चाहिए थी? आजादी के समय न हमारे पास इतना समय था और न संसाधन कि उसका परित्याग कर नए भवन में संविधान सभा चले या निर्वाचित सांसद संसदीय गतिविधियों में हिस्सा ले सकें। कहा जा रहा है कि इसी भवन में हमारी आजादी की घोषणा हुई , संविधान सभा वहीं बैठी आदि आदि। क्या इसके आधार पर उसी संसद भवन को बनाए रखा जाएगा? इसमें लगातार फेरबदल और निर्माण होते भी रहे हैं।1956 में और मंजिलें जोड़ीं गईं थो 1975 में संसद एनेक्सी का निर्माण हुआ। 2002 में अपग्रेडेशन हुआ, पुस्तकालय भवन बना जिसमें कमिटी कक्ष के अलावा...