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लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे

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लुभावने चुनावी वादे, महज वोट बटोरने के इरादे खाली चुनावी वादों के दूरगामी प्रभाव होंगे। जो विचार सामने आया वह यह था कि चुनाव प्रहरी मूकदर्शक नहीं रह सकता और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के संचालन पर कुछ वादों के अवांछनीय प्रभाव को नजरअंदाज कर सकता है। चुनाव आयोग ने कहा कि एक निर्धारित प्रारूप में वादों का खुलासा सूचना की प्रकृति में मानकीकरण लाएगा और मतदाताओं को तुलना करने और एक सूचित निर्णय लेने में मदद करेगा। यह सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए समान अवसर बनाए रखने में मदद करेगा। इन कदमों को अनिवार्य बनाने के लिए, चुनाव आयोग की योजना आदर्श आचार संहिता में संबंधित धाराओं में संशोधन की जरूरत है। -डॉ सत्यवान सौरभ देश में चुनाव के दौरान हमने अक्सर अलग अलग राजनीतिक दलों की तरफ से बड़े बड़े वादों की भरमार देखते है।  जैसे फ्री लैपटॉप, स्कूटी, फ्री हवाई यात्रा, मुफ्त टीवी, मुफ...
रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना

रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना

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रक्त तांडव पुस्तक समीक्षा द्वारा भूपेंद्रसिंह रैना कश्मीर में आतंकवाद के दंश ने कश्मीरी जनमानस में जिस पीड़ा और विषाक्तता का संचारकिया है,उससे उपजी ह्रदय-विदारक वेदना तथा उसकी व्यथा-कथा को साहित्य में ढालने के सफलप्रयास पिछले लगभग तीन दशकों के बीच हुए हैं। कई कविता-संग्रह, कहानी-संकलन,औपन्यासिककृतियां आदि सामने आए हैं, जो कश्मीर में हुई आतंकी बर्बरता और उससे जनित कश्मीरीपंडितों/हिन्दुओं के विस्थापन की विवशताओं को बड़े ही मर्मस्पर्शी अंदाज में व्याख्यायित करतेहैं।कश्मीर के इन निर्वासित किन्तु जुझारू रचनाकारों में सर्वश्री शशिशेखरतोषखानी,चन्द्रकान्ता,क्षमा कौल, रतनलाल शांत,अग्निशेखर,महाराजकृष्ण संतोषी,प्यारेहताश,अवतार कृष्ण राज़दान, ब्रजनाथ ‘बेताब’ , महाराज शाह, अशोक हांडू आदि उल्लेखनीय हैं।इसी श्रृंखला में पिछले दिनों एक नाम और जुड़ गया और वह नाम है कश्मीर के चर्चित कविश्री भूपेन्द्रसिंह ...
हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं

हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं

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हिज़ाब मजहबी सवाल है ही नहीं* *डॉ. वेदप्रताप वैदिक* हिज़ाब को लेकर आजकल सर्वोच्च न्यायालय में जमकर बहस चल रही है। हिज़ाब पर जिन दो न्यायाधीशों ने अपनी राय जाहिर की है, उन्होंने एक-दूसरे के विपरीत बातें कही हैं। अब इस मामले पर कोई बड़ी जज-मंडली विचार करेगी। एक जज ने हिज़ाब के पक्ष में फैसला सुनाया है और दूसरे ने जमकर हिज़ाब के विरोध में तर्क दिए हैं। हिज़ाब को सही बतानेवाला जज कोई मुसलमान नहीं है। वह भी हिंदू ही है। हिज़ाब के मसले पर भारत के हिंदू और मुसलमान संगठनों ने लाठियां बजानी शुरु कर रखी हैं। दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं। असल में यह विवाद शुरु हुआ कर्नाटक से! इसी साल फरवरी में कर्नाटक के कुछ स्कूलों ने अपनी छात्राओं को हिज़ाब पहनकर कक्षा में बैठने पर प्रतिबंध लगा दिया था। सारा मामला वहां के उच्च न्यायालय में गया। उसने फैसला दे दिया कि स्कूलों द्वारा बनाई गई पो...
कौन हैं ‘अर्बन नक्सल्स’ और क्या चाहता है ये तंत्र ?

कौन हैं ‘अर्बन नक्सल्स’ और क्या चाहता है ये तंत्र ?

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कौन हैं 'अर्बन नक्सल्स' और क्या चाहता है ये तंत्र ? कम्युनिस्ट उग्रवाद - माओवाद ! दरअसल 'अर्बन नक्सल्स' (टर्म) सामान्य तौर पर उन कथित कम्युनिस्ट बुद्धिजीवियों वर्ग के लोगों के समूह के लिए प्रयोग किया जाता है जो देश भर में लोकतंत्र को हटाकर तानाशाही कम्युनिस्ट व्यवस्था स्थापित करने के षड्यंत्र में लगे हुए हैं, इस क्रम में इन अर्बन नक्सलियों द्वारा देश भर में अनेकों गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ), मानवाधिकार समुहों, सामाजिक समुहों, मजदूर संगठनों, किसान संगठनों एवं छात्र संगठनों का गठन किया गया है जिनके माध्यम से देश विरोधी गतिविधियों को संचालित करना इनका मुख्य उद्देश्य है। इस तंत्र में बाहर से साफ सुथरी छवि वाले वरिष्ठ मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, नागरिक समूहों का नेतृत्व करने वाले लोग, छात्र नेता, किसान नेता, मजदूर संगठनों के नेता, बड़े शहरों के विश्वविद्यालयों में पढ़ाने वाले प्रोफेसरों...
14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन

14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन

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14 अक्टूबर 1999 सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का गुमनामी में निधन अंग्रेजो की आँखों के सामने से भगतसिंह और राजगुरू को निकाला, गवर्नर हैली को गोली मारी थी --रमेश शर्मा सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी दुर्गा भाभी का नाम भारत में सबकी जुबान पर होगा पर उनका नाम इतिहास की पुस्तकों में शून्य के आसपास। वे स्वतंत्रता के बाद लगभग भी आधी शताब्दी जीवन जिया पर गुमनामी के अंधकार में।यह वही दुर्गा भाभी हैं, जो साण्डर्स वध के बाद सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी भगतसिंह और राजगुरू को अंग्रेजो की आँखों के सामने से कोलकत्ता ले गयी थीं । वे सभी क्रांतिकारियों का मानों एक संपर्क सूत्र थीं। क्राँतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में जिस माउजर पिस्तौल से अंग्रेजों से मुकाबला किया था, वह माउजर दुर्गा भाभी ने ही उनको दिया था.दुर्गा भाभी का जन्म 7 अक्टूबर 1907 को कौशांबी जिले के ग्राम शहजादपुर में हु...
चुनाव के समय खंडित न हो भाईचारे का भाव

चुनाव के समय खंडित न हो भाईचारे का भाव

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चुनाव के समय खंडित न हो भाईचारे का भाव  चुनाव में कुछ लोगों द्वारा इसे आपसी साख का प्रश्न बना लिया जाता है जो धीरे-धीरे जहर का रूप ले लेता है। बढ़ती प्रतिद्धंद्विता रिश्तों का क़त्ल करने लगती है। अगर कोई ऐसे समय साथ न दे तो मित्र भी दुश्मन लगने लग जाते है। मगर यह हमारी भूल है। कोई भी चुनाव आखरी नहीं होता है। और रिश्तों से बढ़कर तो कतई नहीं। हम पद पाने की होड़ में ये भूल जाते है कि हमसे पहले भी चुनाव हुए है और आगे भी होंगे। इसलिए कुछ वोटों के लिए परिवार के लोगों, मित्रों, सगे-सम्बन्धियों, पड़ोसियों और अन्य से दुश्मनी के भाव से पेश आना सही नहीं है। क्योंकि चुनाव की रात ढलते ही हमें अपने आगे के दिन इन्ही लोगों के साथ व्यतीत करने है। -प्रियंका सौरभ 'एकता' और 'भाईचारा' किसी प्रगतिशील समाज की मूलभूत ज़रूरत है। लेकिन सामाज विभिन्न जातियों और समुदायों में बंटा हुआ है, कई बार ये वजहे...
एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’

एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’

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एक कमरे के मंदिर से शुरू हुआ था दुबई का ‘हिंदू टेंपल’ *रजनीश कपूर कहते हैं कि एक बड़ी उपलब्धि कि शुरुआत छोटी सी पहल से ही होती है। दुबई का जेबेल अली इलाक़ा हाल ही में सुर्ख़ियों में था। दुनिया भर के हिंदुओं के लिए यह एक गर्व की बात है कि मुस्लिम बाहुल्य संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी दुबई में राम नवमी के दिन एक विशाल हिंदू मंदिर का लोकार्पण हुआ। इस विशाल हिंदू टेंपल की शुरुआत एक छोटे से कमरे से हुई थी। आज वही छोटा से कमरे वाला मंदिर 70 हज़ार वर्ग फ़ीट का एक विशाल मंदिर बन गया है। इस मंदिर को शांति, सद्भाव और सहिष्णुता के एक मजबूत संदेश के तौर पर भी देखा जा रहा है। 1958 में बने इस एक कमरे के मंदिर को गुरु दरबार सिंधी मंदिर के नाम से जाना जाता था। इस मंदिर की स्थापना रामचन्द्रन सवलानी और विक्योमल श्रॉफ़ ने की थी। ज्यों-ज्यों दुबई में बसे हिंदुओं को इस मंदिर के बारे में पता चला तब से वे ब...
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने देश में राष्ट्रीयता का भाव जगाया

राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने देश में राष्ट्रीयता का भाव जगाया

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12 अक्टोबर 2022 - राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जन्मदिवस पर विशेष लेख    राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने देश में राष्ट्रीयता का भाव जगाया    राष्ट्र भक्ति के जज्बे एवं आध्यात्म में रची बसी राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने राजघराने की आराम भरी जिंदगी को न अपनाकर समाजसेवा की कठिन राह को अपना जीवन जीने के लिए चुना था। इस दृष्टि से आप इंदौर की महारानी अहिल्यादेवी होलकर के समकक्ष मानी जाती हैं। वैसे भी, भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए अपनी राज्य सत्ता को जनता के हित में सफलतापूर्वक चलाने के सिलसिले में भारत का इतिहास कई सफल नेत्रियों एवं महारानियों से भरा पड़ा है। इसी कड़ी में ग्वालियर राजघराने की राजमाता विजयाराजे सिंधिया का नाम भी बहुत गर्व के साथ लिया जाता है। देश के खंडकाल एवं परिस्थितियों के अंतर्गत आपको ग्वालियर राज्य पर सीधे सीधे महारानी के रूप में राज करने का अवसर तो प्राप्त नहीं हुआ परं...
पहचानिये,अपने मोबाईल की आइएमइआइ संख्या*

पहचानिये,अपने मोबाईल की आइएमइआइ संख्या*

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पहचानिये,अपने मोबाईल की आइएमइआइ संख्या* अब भारत में ५ जी की सेवा शुरू हो गई है |इन्टरनेट के अन्य उपयोग के साथ मोबाईल उपभोक्ताओं की संख्या भी बढ़ेगी | अन्य उपकरणों की तुलना में आज मोबाइल फोन हमारी बड़ी जरूरत बन चुका है| सामान्य संवाद से लेकर पैसे के लेन-देन तथा व्यक्तिगत सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए हम जिस चीज का इस्तेमाल करते हैं, वो मोबाईल फोन ही होता है,लेकिन फोन चोरी होना, उसकी मूल पहचान संख्या का फर्जी होना, फोन के साथ छेड़छाड़ होना, मोबाइल की कालाबाजारी आदि कुछ ऐसी समस्याएं हैं, जिनसे आम उपभोक्ता भी पीड़ित है तथा इनसे मोबाइल उद्योग के विकास में भी बाधा आ रही है| हाल ही में इनके समाधान के लिए केंद्र सरकार ने नये दिशानिर्देश जारी किये हैं| अब देश में निर्मित और विदेशों से आयातित हर फोन की मूल पहचान संख्या (आइएमइआइ) को नकली डिवाइस रोकने के लिए बने पोर्टल पर पंजीकृत करना अनिवार्य हो ग...
आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले – लोकनायक जयप्रकाश नारायण

आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले – लोकनायक जयप्रकाश नारायण

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11 अक्टूबर (जन्म जयंती ) पर विशेष - आपातकाल के खिलाफ बिगुल फूंकने वाले - लोकनायक जयप्रकाश नारायण मृत्युंजय दीक्षित भारतीय लोकतंत्र के महानायक जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 अक्टूबर 1902 को बिहार के सारन जिले के सिताबदियारा गांव में हुआ था। उनका जन्म ऐसे समय में हुआ था जब देश विदेशी सत्ता के आधीन था और स्वतंत्रता के लिए छटपटा रहा था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा सारन और पटना जिले में हुई थी । वे विद्यार्थी जीवन से ही स्वतंत्रता के प्रेमी थे जब पटना में उन्होने बिहार विद्यापीठ में उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश लिया तभी से वे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगे थे। तत्कालीन बिहार विद्यापीठ की स्थापना डा. राजेंद्र प्रसाद द्वारा की गयी थी। वे 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गये। जहां उन्होंने 1922 से 1929 तक कैलिफोर्निया तथा विसकांसन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। वहां पर अपने खर्चे को पूरा व नियं...