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भारत में कैंसर के बढ़ते मामले, समाज के स्वास्थ्य पर बोझ

भारत में कैंसर के बढ़ते मामले, समाज के स्वास्थ्य पर बोझ

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22 सितंबर - रोज डे (कैंसर रोगियों का कल्याण) भारत में कैंसर के बढ़ते मामले, समाज के स्वास्थ्य पर बोझ लोगों को अपने खान-पान के प्रति सचेत रहना चाहिए और किसी न किसी प्रकार का व्यायाम नियमित रूप से करना चाहिए। इसमें योग अहम भूमिका निभाता है। मरीजों को लक्षणों पर ध्यान देना चाहिए और नियमित जांच करानी चाहिए। प्रदूषण नियंत्रण तंत्र का तत्काल आधार पर पालन किया जाना चाहिए। कैंसर को रोकने के लिए सक्रिय कदम उठाना महत्वपूर्ण है। सरकार को कैंसर की दवाओं की कीमतों को सीमित करना चाहिए क्योंकि ये बहुत महंगी हैं। अंत में, आहार में परिवर्तन कैंसर की रोकथाम में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। सामुदायिक भागीदारी के साथ कारणों और लक्षणों के बारे में जागरूकता समय की आवश्यकता है। -डॉ सत्यवान सौरभ कैंसर के बढ़ते मामले हमारे समाज के स्वास्थ्य को खराब कर रहे हैं क्योंकि यह भारत में मृत्यु के प्रमुख कारणों मे...
शिक्षा के क्षेत्र की शर्मनाक और दुखद घटना

शिक्षा के क्षेत्र की शर्मनाक और दुखद घटना

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शिक्षा के क्षेत्र की शर्मनाक और दुखद घटना  ललित गर्ग पंजाब के मोहाली में चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में कथित अश्लील वीडियो लीक मामले ने समूचे राष्ट्र को हिला कर रख दिया। कई छात्राओं का आपत्तिजनक वीडियो बनाने और उसे अन्य लोगों को भेजने की जो यह शर्मनाक एवं चिन्ताजनक घटना सामने आई है, वह कई स्तर पर दुखी और हैरान करने के साथ-साथ ऊच्च शिक्षण संस्थानों की अराजक एवं असुरक्षित होती स्थितियांे का खुलासा करती है। यह खौफनाक हरकत पीड़ित लड़कियों के सम्मान और उनकी जिंदगी से भी खिलवाड़ है। इन शिक्षा के मन्दिरों में संस्कार, ज्ञान एवं आदर्शों की जगह आज की युवा पीढ़ी का मस्तिष्क किस हद तक प्रदूषित हो गया है, अश्लील वीडियो प्रकरण उसकी भयावह प्रस्तुति है। यह एक गंभीर मसला है जिस पर मंथन किया जाना अपेक्षित है।अब तक जैसी खबरें आई हैं, उस संदर्भ में यह समझना मुश्किल है कि वहां पढ़ने वाली एक लड़क...
एम्स को एम्स ही रहने दो

एम्स को एम्स ही रहने दो

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एम्स को एम्स ही रहने दो  आर.के. सिन्हा अंग्रेजी के महान नाटककार विलियम शेक्सपियर भले ही कह गए हों कि नाम में क्या रखा है, पर कुछ नामों की तो बात ही अलग होती है। वे नाम सम्मान और आदर के लायक होते हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भी इसी तरह का एक स्थापित नाम है। एम्स यानी देश भर के मरीजों का भरोसा और विश्वास। यहां पर देशभर से हर रोज सैकड़ों रोगी और उनके संबंधी इस विश्वास के साथ आते हैं कि वे यहां से सेहतमंद होकर ही घर लौटेंगे। एम्स भी उनके भरोसे पर खरा उतरने की हरचंद कोशिश करता है। यहां के डॉक्टर, नर्स और बाकी स्टाफ हरेक रोगी को स्वस्थ करने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। अब एम्स का नाम बदलने की कवायद शुरू हो गई है। सन 1956 में स्थापित एम्स के नाम को बदलने की वैसे तो कोई जरूरत तो नहीं है। एम्स के डॉक्टरों का भी मानना है कि ऐसा नहीं होना चाहिए। एम्स के डॉक्टरों का कहना है जब दुनि...
हमें सॉफ्ट पुलिसिंग की आवश्यकता क्यों है?

हमें सॉफ्ट पुलिसिंग की आवश्यकता क्यों है?

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हमें सॉफ्ट पुलिसिंग की आवश्यकता क्यों है? समाज की सेवा व सुरक्षा के लिए व्यवस्थित की गई पुलिस हर जगह अपनी भद्द पिटाती रहती है। इसका मुख्य कारण यही रहा है कि समाज के लोगों, विशेषत: गांवों, कस्बों व शहरों में जाकर पुलिस ने अपनी स्थिति, लाचारी, कानूनी जिम्मेदारियों इत्यादि से जनता को कभी भी अवगत नहीं करवाया।  समस्या समाधान का दृष्टिकोण यानी गांधी जी के नैतिक सिद्धांतों का पालन करते हुए, "पाप से घृणा करो पापी से नहीं" का आदर्श व्यवहार में अपनाना। पुलिस कर्मियों के लिए, सेवा भाव (कर्तव्य की भावना) प्रेरक शक्ति होनी चाहिए न कि सत्ता का अहंकार। पुलिस को आम जनमानस को अपने साथ ले आने की आवश्यकता है तभी  बिना वर्दी के सतर्क नागरिक पुलिस की ढाल बन कर उनके सच्चे हमसफर, हमदर्द व हमराज बनकर पुलिस के चाल, चरित्र व चेहरे में निखार लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। -डॉ सत्यवान सौरभ सॉफ्...
कमजोर पड़ते विपक्ष से भारतीय लोकतंत्र खतरे में

कमजोर पड़ते विपक्ष से भारतीय लोकतंत्र खतरे में

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(15 सितंबर: अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस) कमजोर पड़ते विपक्ष से भारतीय लोकतंत्र खतरे में सरकार को आलोचना को सिरे से खारिज करने के बजाय सुनना चाहिए। लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करने के सुझावों पर एक विचारशील और सम्मानजनक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।  प्रेस और न्यायपालिका जिन्हें लोकतंत्र के स्तंभ के रूप में माना जाता है, को किसी भी कार्यकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र होने की आवश्यकता है।  मजबूत लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष की जरूरत होती है। वैकल्पिक विकल्प के बिना, मनमानी शक्ति पर रोक लगाने के चुनाव का उद्देश्य ही विफल हो जाता है। लोकतांत्रिक मूल्य और सिद्धांत भारत की पहचान के मूल हैं। हमें अपने लोकतंत्र के स्तंभों - विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया को मजबूत करके उसकी रक्षा करने की आवश्यकता है। -डॉ सत्यवान सौरभ प्रेस पर बढ़ते हमले और न्यायिक स्वायत्तता के क्षरण से लोकतंत्र...
कांग्रेस को बेनकाब करती उसकी भारत जोड़ो यात्रा

कांग्रेस को बेनकाब करती उसकी भारत जोड़ो यात्रा

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कांग्रेस को बेनकाब करती उसकी भारत जोड़ो यात्रा मृत्युंजय दीक्षित स्वयं को पुर्नजीवित करने के लिए कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी के नेतृत्व में कश्मीर से कन्याकुमारी तक 145 दिन की यात्रा पर निकली है और इसे नाम दिया है, भारत जोड़ो यात्रा । विडम्बना यहीं से प्रारंभ होती है – उद्देश्य है दिन प्रतिदिन बिखरती कांग्रेस को कुछ संजीवनी देना और इसी बहाने एक बार फिर राहुल को लांच करना और नाम है भारत जोड़ो जबकि होना चाहिए था कांग्रेस जोड़ो। “कांग्रेस को भारत से जोड़ो” नारा होता तो भी बात बन जाती । कांग्रेस पार्टी की यह यात्रा कहाँ, क्या और कितना जोड़ पाएगी यह तो समय बतायेगा लेकिन पिछले पांच दिनों में इस यात्रा ने कांग्रेस का असली चरित्र अवश्य बेनकाब किया है। राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पूरी तरह एक हिंदू और सनातन संस्कृति विरोधी पार्टी बन चुकी है इसमें टुकड़े- टुकड़े गैंग तथा हम लेकर रहेंगे आजादी क...
भारत-चीनः शुरुआत अच्छी

भारत-चीनः शुरुआत अच्छी

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*भारत-चीनः शुरुआत अच्छी* *डॉ वेदप्रताप वैदिक* पिछले ढाई-तीन साल से भारत और चीन के संबंधों में जो तनाव पैदा हो गया था, वह अब कुछ घटता नजर आ रहा है। पूर्वी लद्दाख के गोगरा हॉट स्प्रिंग क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हटने लगी हैं। दोनों देशों के फौजियों के बीच दर्जनों बार घंटों चली बातचीत का यह असर तो है ही लेकिन ऐसा लगता है कि इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारे विदेश मंत्री जयशंकर की रही है। जयशंकर चीनी विदेश मंत्री से कई बार बात कर चुके हैं। वे चीन में हमारे राजदूत रह चुके हैं। इसके अलावा अब अगले सप्ताह समरकंद में होनेवाली शांघाई सहयोग संगठन की बैठक में हमारे प्रधानमंत्री और चीनी नेता शी चिन फिंग भी शीघ्र ही भाग लेनेवाले हैं। हो सकता है कि वहां दोनों की आपसी मुलाकात और बातचीत हो। वहां कोई अप्रियता पैदा नहीं हो, इस दृष्टि से भी दोनों फौजों की यह वापसी प्रासंगिक है। मोदी और शी के...
आजादी की मज़ेदार नौटंकी

आजादी की मज़ेदार नौटंकी

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*आजादी की मज़ेदार नौटंकी* *डॉ वेदप्रताप वैदिक* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सेंट्रल विस्टा’ का उद्घाटन करते समय सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया कि वे देश की गुलाम मानसिकता को खत्म करने का काम कर रहे हैं। इसमें शक नहीं कि जॉर्ज पंचम की जगह सुभाष बाबू का शानदार पुतला खड़ा करना अत्यंत सराहनीय कदम है और पूरे ‘इंडिया गेट’ इलाके का नक्शा बदलना भी अपने आप में बड़ा काम है। इस क्षेत्र में बने नए भवनों से सरकारी दफ्तर बेहतर ढ़ग से चलेंगे और नई सड़कें भी लोगों के लिए अधिक सुविधाजनक रहेंगी। इस सुधार के लिए नरेंद्र मोदी को आनेवाली कई पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। लेकिन राजपथ का नाम ‘कर्तव्यपथ’ कर देने को मानसिक गुलामी के विरुद्ध संग्राम कह देना कहां तक ठीक है? पहली बात तो यह कि राजपथ शब्द हिंदी का ही है। दूसरा, यह सरल भी है, कर्तव्य पथ के मुकाबले। यदि प्रधानमंत्री ने पहली बार शपथ लेते हुए खुद को देश का ‘प...
कोर्ट परीक्षण में केजरी गिरोह की सारी हेकड़ी टूटेगी

कोर्ट परीक्षण में केजरी गिरोह की सारी हेकड़ी टूटेगी

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राष्ट्र-चिंतन* *उपराज्यपाल की कानूनी नोटिस को संजय सिंह द्वारा फाड़ने की करतूत* *कोर्ट परीक्षण में केजरी गिरोह की सारी हेकड़ी टूटेगी* *आचार्य श्री विष्णुगुप्त* ==================== अरविंद केजरीवाल गिरोह उसी तरह से उछल-कूद कर रहा है जिस तरह से उछल-कूद कभी संजय राउत करते थे, कभी नवाब मलिक करते थे। संजय राउत बात-बात पर केन्द्रीय सरकार को धमकी देते थे और ललकारते थे कि ईडी, सीबीआई और अन्य केन्द्रीय एजेंसियों की शक्ति है तो मुझे हाथ लगा कर देख ले, गिरफ्तार कर देख लें, महाराष्ट में आग लग जायेगी, केन्द्रीय सरकार की चूलें हिल जायेगी, जनता बगावत पर उतर आयेगी। कहावत है कि जिसके घर शीशे के होते हैं वह दूसरे के घरों में पत्थर नहीं फेकते हैं। जिनके हाथ पूरे तरह से भ्रष्टचार में रंगे हुए हैं, जिनके खिलाफ गबन के प्रमाणिक आरोप है, जिनके खिलाफ जांच एजेंसियां सबूत जुटा चुकी हैं अगर वैसे व्यक्ति न केव...
क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी?

क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी?

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क्या संविधान ‘प्रस्तावना’ की विकृति सुधरेगी? ------------------------------------------------ 1950 ई. में बने भारतीय संविधान की “प्रस्तावना” ने भारत को ‘लोकतांत्रिक गणराज्य’ कहा था। उस में छब्बीस वर्ष बाद दो भारी राजनीतिक शब्द जोड़ दिये गये – ‘सेक्यूलर’ और ‘सोशलिस्ट’ । तब से भारत को ‘लोकतांत्रिक समाजवादी सेक्यूलर गणराज्य’ कर डाला गया। अब सुप्रीम कोर्ट डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका पर सुनवाई करने वाली है, कि इसे पूर्ववत् किया जाए क्योंकि इस ने पूरे संविधान को ही बिगाड़ा है। स्मरणीय है कि यह परिवर्तन 1975-76 ई. की कुख्यात ‘इमरजेंसी’ के दौरान किया गया था, जब केंद्रीय मंत्रिमंडल के निर्णय केंद्रीय मंत्रियों को भी रेडियो से मालूम होते थे! जब विपक्ष जेल-बंद था, और प्रेस पर सेंसरशिप थी। अर्थात वह संशोधन बिना विचार-विमर्श, जबरन हुआ था। वह संविधान की आमूल विकृति थी। यहाँ चार तथ्यों पर विचा...