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संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारा

संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारा

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संभल -हरिहर मंदिर के सत्य को दबाने के लिए असत्य की राजनीति का सहारामुस्लिम तुष्टिकरण का नया पर्यटन केंद्र बना संभलमृत्युंजय दीक्षितउत्तर प्रदेश का संभल जिला आजकल चर्चा में है। यहाँ की शाही जामा मस्जिद के पूर्व में प्रसिद्ध हरिहर मंदिर होने के प्रमाण हैं जिसके कारण यह पुरातात्विक महत्व का स्थल है। हिंदू पक्षकार ने इस स्थल को भगवान श्री हरिहर का मंदिर मानते हुए प्रमाणों के साथ स्थानीय अदालत में इसके सर्वेक्षण की याचिका याचिका लगाई थी जिसे स्वीकार करते हुए स्थानीय न्यायलय ने सर्वे कराने का आदेश जारी किया था। प्रथम चरण का सर्वे हो जाने के बाद कोर्ट कमिश्नर ने न्यायालय से दोबारा सर्वे कराने की अनुमति मांगी थी और वह सहमति भी न्यायलय ने दी किंतु सर्वे टीम के वहां पहुँचने पर अराजक तत्वों की उग्र भीड़ ने उस पर हमला कर दिया। इस हमले के साथ बाद भड़की हिंसा में 5 लोगों की मौत हो गई तथा कई लोग घायल हुए।...
बंग्लादेश की दुर्दशा

बंग्लादेश की दुर्दशा

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आज भारत देश को यह सत्य स्वीकार करना होगा कि बंग्लादेश भारत की मित्रता की परिधि से बाहर आ चुका है और आज वह अपने शत्रु देश पाकिस्तान के कट्टरपंथियों व उग्रवादियो के अधिकार क्षेत्र में पहुँच चुका है। वहाँ की न्यायपालिका, पुलिस, शासन, प्रशासन, चुनाव आयोग, विश्वविद्यालयों के कुलपति, सेना आदि सभी प्रमुख विभागों में जमात-ए-इस्लामी संगठन के कार्यकर्ताओं की नियुक्ति हो चुकी है और यह संगठन भारत का विरोधी तथा पाकिस्तान व अमेरिका का सहयोगी रहा है।बंग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के विरुद्ध वहाँ के छात्रों ने आन्दोलन इसलिए किया था, क्योंकि वे पूर्णतया भ्रष्टाचार में लिप्त हो चुकी थी। उन्होंने सभी स्तर पर शासन, प्रशासन, व संवैधानिक संस्थाओं में अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति कर दी थी। वहाँ का सम्पूर्ण हिन्दु समुदाय शेख हसीना की पार्टी, आवामी लीग का समर्थक था। उसके कार्यकाल में वहाँ के हिन्द...
क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?

क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?

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क्या इस देश को अदालतें चला रही हैं?*रजनीश कपूरहमारे देश में जब-जब सरकारी तंत्र फेल होता है तो उसके ख़िलाफ़ कोई न कोई अदालत का रुख़ कर लेता है। इस उम्मीद सेकि संविधान की रक्षा और नागरिकों के अधिकारों के हित में यदि कोई फ़ैसला कर सकता है तो वह न्यायपालिका ही है।परंतु क्या कभी किसी ने यह सोचा है कि जहां देश भर की अदालतों में करोड़ों मुक़दमें लंबित पड़े हैं, वहाँ सरकारी तंत्र केकाम न करने के कारण अदालतों पर अतिरिक्त मुक़दमों का ढेर लगता जा रहा है। ऐसा क्यों है कि सरकारी तंत्र अपनीज़िम्मेदारी पूरी तरह से नहीं निभा रहा जिस कारण नागरिकों को कोर्ट का रुख़ करने को मजबूर होना पड़ता है?जब भी किन्हीं दो पक्षों में कोई विवाद होता है तो उनका आख़िरी वाक्य होता है कि “आई विल सी यू इन कोर्ट”। यानी जबभी किसी को किसी दूसरे से आहत पहुँचती है वह इस उम्मीद में अदालत जाता है कि उसके साथ न्याय होगा। परंतु हमारेद...
प्रदूषण से बढ़ती मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?

प्रदूषण से बढ़ती मौतों के लिये कौन जिम्मेदार?

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-ललित गर्ग- राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस हर साल 2 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद, प्रदूषण नियंत्रण तकनीकों, नीतियों, और प्रदूषण को कम करने के महत्व पर ध्यान आकर्षित करना है। यह दिन भोपाल गैस त्रासदी में अपनी जान गंवाने वाले लोगों की याद में मनाया जाता है। यह त्रासदी 2-3 दिसंबर, 1984 की रात को हुई थी। इस त्रासदी में ज़हरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) के कारण सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी। कहते हैं जान है तो जहान है, लेकिन भारत में बढ़ते प्रदूषण के कारण जान और जहान दोनों ही खतरे में हैं। देश एवं दुनिया की हवा में घुलते प्रदूषण का ‘जहर’ अनेक बार खतरनाक स्थिति में पहुंच जाना चिन्ता का बड़ा कारण हैं। प्रदूषण की अनेक बंदिशों एवं हिदायतों के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण की बात खोखली साबित...
दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

दिव्यांगों की उपेक्षा मानवता पर कलंक

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अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस, 3 दिसंबर, 2024 पर विशेष-ललित गर्ग:-हर वर्ष 3 दिसंबर का दिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विकलांग व्यक्तियों को समर्पित है। वर्ष 1976 में संयुक्त राष्ट्र आम सभा के द्वारा “विकलांगजनों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष” के रूप में मनाया गया और वर्ष 1981 से अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाने की विधिवत शुरुआत हुई। साल 2024 में विकलांग दिवस का विषय है, “एक समावेशी और टिकाऊ भविष्य के लिए विकलांग व्यक्तियों के नेतृत्व को बढ़ावा देना”। यह विषय विकलांग व्यक्तियों की भूमिका को मान्यता देता है, जो सभी के लिए एक समावेशी और टिकाऊ दुनिया बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। साथ ही, यह निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में विकलांग व्यक्तियों की भागीदारी पर भी ज़ोर देता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विकलांगता के मुद्दों की समझ को बढ़ावा देना और विकलांग व्यक्तियों की गरिमा, अधिकारों और कल्याण के लिए समर...
पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं

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पर्यावरण बचाने की दिशा में ठोस काम नहीं* कितनी विचित्र बात है विकसित देश अपने आर्थिक लक्ष्य हासिल करने के बाद विकासशील देशों को पर्यावरण सुरक्षा का पाठ जबरन पढ़ा रहे हैं।सर्व विदित है कि आज ग्लोबल वार्मिंग संकट दुनिया के तमाम देशों के दरवाजे पर दस्तक देकर रौद्र रूप दिखा रहा है। ऐसे में बाकू में संपन्न कॉप-29 सम्मेलन में दुनिया की आबोहवा बचाने की दिशा में ठोस निर्णय न हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण ही है। दरअसल, विकसित देश विगत में की गई अपनी घोषणाओं से पीछे हट रहे हैं। वे गरीब मुल्कों को ग्लोबल वार्मिंग संकट से निपटने के लिये आर्थिक मदद देने को तैयार नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि दुनिया पर जलवायु संकट के गंभीर परिणामों से विकसित देश वाकिफ नहीं हैं। अमेरिका से लेकर स्पेन तक मौसम के चरम का त्रास झेल रहे हैं, लेकिन इसके घातक प्रभावों को देखते हुए भी सभी देश समाधान निकालने को लेकर सहमति क्यों नही...
राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे

राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे

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राहुल गांधी को राजनीति के कुछ सबक सीखने होंगे- ललित गर्ग - कांग्रेस की उलटी गिनती का क्रम रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं। महाराष्ट्र के नतीजे इसी बात को रेखांकित कर रहे हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस न तो भारतीय जनता पार्टी को टक्कर दे पा रही है और न ही देशहित के प्रभावी मुद्दे उठा पा रही है। देश में कॉर्पाेरेट विरोधी जो एकसूत्री एजेंडा राहुल ने अपनाया है, या संविधान-रक्षा एवं धर्म-निरपेक्षता के नाम पर एक सम्प्रदाय-विशेष की जो राजनीति वह कर रहे हैं, उसके सकारात्मक परिणाम नहीं आ रहे हैं, उनके इन मुद्दों के पक्ष में वोट नहीं मिले हैं।   निश्चित ही राष्ट्रीय राजनीति में अगर कोई एक चीज है, जो नहीं बदली है, तो वह है भाजपा को मात देने में कांग्रेस की अक्षमता। भाजपा से सीधी टक्कर में कांग्रेस की हार का औसत प्रतिशत बढ़ता ही जा रहे हैं। अब तो कांग्रेस के मुद्दों से इंडिया गठबंधन के...
उड़ता भारत

उड़ता भारत

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उड़ता भारत विनीत नारायणकुछ वर्ष पहले एक फ़िल्म आई थी ‘उड़ता पंजाब’, जिसमें दिखाया गया था कि प्रदेश सरकार की लापरवाही से पंजाबके घर-घर में मादक दवाओं का प्रयोग फैल गया है। जिसके चलते पंजाब कि पूरी युवा पीढ़ी तबाह हो रही है। जिनमेंहर वर्ग के युवा शामिल हैं। ग़रीब-अमीर का कोई भेद नहीं। उस वक्त पंजाब में अकाली दल की सरकार थी, तो आमआदमी पार्टी ने सरकार को इस तबाही के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर अपना चुनाव अभियान चलाया। इधर पिछले दसवर्षों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर क्या ये सरकार दावे से कह सकती है कि दिल्ली में मादकपदार्थों की बिक्री सारे आम नहीं हो रही? कुछ महीने पहले हरियाणा के सोनीपत में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारीस्थानीय डिग्री कॉलेज के छात्रों को नशीली दवाओं के सेवन के विरुद्ध भाषण दे रहे थे। तभी एक छात्र ने उनसे पूछाकि हमारे कॉलेज के बाहर पान की दुकान पर नशीली दवाएँ रात-दिन बि...
प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं

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*प्रदूषण : जिम्मेदारी सरकारों की भी हैं* दिल्ली की दुर्दशा पर एक सरकारी बयान पढ़ने में आया, सरकार फ़रमाती है ‘हवा और पानी तो ऐसे हैं, जिन्हें रोका या बांधा नहीं जा सकता।“सरकार के पास बयानबाज़ी के अलावा विकल्प भी क्या है? जिस समय सर्वोच्च अदालत के ‘कोर्ट रूम’ में प्रदूषण पर सुनवाई चल रही थी, उस समय वहां का वायु गुणवत्ता सूचकांक 994 था। वह ‘बेहद गंभीर’ श्रेणी का प्रदूषण था। दिल्ली के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता 978 भी दर्ज की गई। ऐसे प्रदूषण में जीना भी ‘राष्ट्रीय शर्मिन्दगी’ है। सर्वोच्च अदालत का वह विशेष और संवेदनशील कक्ष होता है, जहां की हवा ‘गैस चैंबर’ के हालात को भी लांघ गई थी। यह शर्मनाक स्थिति नहीं है, तो और क्या है? राजधानी दिल्ली की ‘प्रदूषित हवा’ का औसत सूचकांक 500 को पार कर चुका है। अब एक दिन ऐसा भी आएगा, जब सडक़ों पर ‘मास्कधारी आबादी’ ही दिखाई देगी, लिहाजा अब सर्वोच्च ...
वायु प्रदूषण: सही कारण का हल ही करेगा नियंत्रण

वायु प्रदूषण: सही कारण का हल ही करेगा नियंत्रण

Today News, विश्लेषण
*रजनीश कपूरदीपावली के आस-पास हर साल दिल्ली में वायु प्रदूषण के आँकड़े बढ़ने लग जाते हैं। इस समस्या को हम कई सालों से सुनतेआ रहे हैं। एक से एक सनसनीखेज वैज्ञानिक रिपोर्टो की बातों को हमें भूलना नहीं चाहिए। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिएकि दिल्ली से निकलने वाले गंदे कचरे, कूड़ा करकट को ठिकाने लगाने का पुख्ता इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया। सरकारयही सोचने में लगी है कि यह पूरा का पूरा कूड़ा कहां फिंकवाया जाए या इस कूड़े का निस्तार यानी ठोस कचरा प्रबंधन कैसेकिया जाए? जाहिर है इस गुत्थी को सुलझाए बगैर जलाए जाने लायक कूड़े को चोरी छुपे जलाने के अलावा और क्या चाराबचता होगा? इस गैरकानूनी हरकत से उपजे धुंए और जहरीली गैसों की मात्रा कितनी है जिसका कोई हिसाब किसी भीस्तर पर नहीं लगाया जा रहा है। इन सबके चलते आम नागरिकों पर सरकार द्वारा लगाए जा रहे प्रतिबंधों से असुविधा होरही है। परंतु सरकार या उसकी प्रदूषण ...