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फिर यह दृष्टिभ्रम क्यों मोदी जी?

फिर यह दृष्टिभ्रम क्यों मोदी जी?

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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधानसभा चुनावों की सुनामी के बाद भाजपा और मोदी जी की बांछे खिल गयी हैं। मोदी जी के समर्थक इसे सरकार के विमुद्रिकरण (विरोधियों द्वारा नसबंदी की तर्ज पर इसे नोटबंदी कहा गया) के कदम पर जनता की मुहर बता रहे हैं। मगर सच्चाई यही है कि इन दोनों प्रदेशों में हिंदुओं की उपेक्षा, उनसे भेदभाव और कट्टर इस्लाम को बढ़ावा देने की कांग्रेस, बसपा और सपा सरकारों की बदनीयती एवं बिगड़ती कानून व्यवस्था के खिलाफ हिंदुओं का एकजुट विरोध और प्रतिक्रिया है। नतीजों के बाद हिन्दुओं द्वारा जिस विनम्रता और शांति का परिचय दिया गया यह मुसलमानों को दिया गया स्पष्ट सन्देश है कि हम शांतिपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास रखने वाले लोग हैं और आप लोग भी अपने संप्रदाय से कट्टरपंथी और अराजक तत्वों को छांट कर अलग कर दो। हठयोगी के खिलाफ ठगयोगियों के महागठबंधन की तैयारी सुना है कि उत्तर प्रदेश में चेन स्...
योगी आदित्यनाथ बनाम विपक्ष

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अभी शपथ ग्रहण भी नहीं हुआ और आप हुआ-हुआ करने लगे। यदि हुआ-हुआ ही करना था तो भाजपा को इतने भारी बहुमत से जिताया क्यों? यदि आपको यह लगता है कि भारी बहुमत ईवीएम की करामात है तो उतरिए सड़क पर और बचाइए लोकतंत्र को, खाइए लाठियां, जाइए जेल, करिए अपना सीना पुलिस की बंदूक से निकलने वाली गोली के सामने। फेसबुक व वॉट्सएप से दुनिया नहीं चलती है। आप एक समय की रोटी नहीं कमा सकते फेसबुक व वॉट्सएप में मैसेजों को कॉपी, फारवर्ड करके, और दुनिया बदलने का ख्वाब देखते हैं।   कुछ बातें बिलकुल चुस्ती के साथ गांठ में बांध कर समझ लीजिए। या तो यह स्वीकारिए कि संघ व भाजपा के कार्यकर्ता जमीन से लेकर सोशल मीडिया में हर स्तर पर आपसे बेहतर हैं। वोट फेसबुक व वॉट्सएप की लफ्फाजी से नहीं मिलता। वोट जमीन पर उतर कर अपने नेता के लिए मेहनत करने से मिलता है। वोट जब रोड-शो करने से नहीं मिलता तो फेसबुक व वॉट्सएप में...
आखिर क्यों न कहा जाए आपको देशद्रोही?

आखिर क्यों न कहा जाए आपको देशद्रोही?

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कहते हैं राजनीति और साहित्य का विरोध और प्रतिरोध का संबंध होता है, जितना अधिक वह सत्ता का प्रतिरोधी होगा, साहित्य जनता की आवाज़ बनेगा। साहित्य और सत्ता परस्पर दो ध्रुव हैं, जिनका विपरीत होना ही दोनों के हित में है। अन्यथा समाज में अराजकता फैलने का भय होता है। प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति से आगे की मशाल कहा था। रामचंद्र शुक्ल ने कविता को लोक से जोड़ा। कहीं न कहीं यह एक मत से स्वीकार किया गया कि जहां लोक हैं, जन है वहीं साहित्य है। साहित्य को जन के सुख दु:ख से ही संबद्ध कर दिया गया। यदि देखा जाए तो रासो या रासो साहित्य छोड़कर अधिकतर साहित्य सत्ता के विरोध में ही लिखा गया है और आधुनिक काल में तो साहित्य का अर्थ सत्ता का विरोध ही मान लिया गया, या कहें प्रतिरोध का साहित्य रचा गया। यह साहित्य व्यवस्था के विरुद्ध था, यह साहित्य व्यवस्था की खामियों के विरोध में था। संस्थागत कमियों के विरोध में थ...
गुजरात चुनाव एक बड़ी चुनौती है

गुजरात चुनाव एक बड़ी चुनौती है

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पांच राज्यों के विधानसभाओं में भारतीय जनता पार्टी की प्रभावी, ऐतिहासिक एवं शानदार जीत के बाद अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य निशाना गुजरात है। यही कारण है कि चुनाव प्रचार खत्म होते ही वे गुजरात के सोमनाथ मन्दिर पहुंचकर पूजा-अर्चना की। इस दौरान बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह एवं मंदिर के ट्रस्टी केशुभाई पटेल भी मौजूद रहे। इसके बाद से भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह चुनावी मोड में आ गई है। क्योंकि उसके लिये वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है गुजरात के विधानसभा चुनाव। यह सर्वविदित है कि प्रभावी नेतृत्व के अभाव में गुजरात में भाजपा का धरातल कमजोर हुआ है। वहां पर सभी दलों की दौड़ ‘येन-केन-प्रकारेण’ भाजपा को हराना एवं सत्ता हासिल करना है। यह मोदी के लिये एक बड़ी चुनौती बन चुका है और नाक का सवाल भी है। आगामी विधानसभा चुनाव जहां भारतीय जनता पार्टी के लिए एक चुनौती बनते जा रहे हैं वहीं ...
कभी इन असली जंगलियों से भी मिलिए

कभी इन असली जंगलियों से भी मिलिए

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विश्व वानिकी दिवस हर वर्ष आता है। वह हर वर्ष जंगल बचाने और बढ़ाने का संदेश दे जाता है। इस संदेश को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सरकारी-गैरसरकारी स्तर पर पूरी दुनिया में सेमिनार, रैली तथा वृक्षारोपण के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। किंतु कुछ समुदाय और लोग ऐसे होते हैं, जो विश्व वानिकी दिवस की प्रतीक्षा किए बगैर साल के बारह महीने... हर दिन सिर्फ जंगल ही बचाने, बढ़ाने की चिंता, चिंतन और करतब में मगन रहते हैं। समुदाय के तौर पर जंगल बचाने में सबसे प्रथम हमारे आदिवासी समुदाय हैं, तो व्यक्ति के तौर पर एम एस यूनिवर्सिटी, वड़ोदरा के सहायक प्रोफेसर - ट्रीमैन बालकृष्ण शाह, गुड़गांव के ट्रीमैन दीपक गौड़, अलवर के ट्रीमैन प्रदीप, लखनऊ के ट्रीमैन तिवारी और एक करोड़ पेड़ लगाने वाले ट्रीमैन दरीपल्ली रमैया समेत कई भारतीय हैं, जिनमें हरेक काम को हमें जानना चाहिए। जोधपुर में खेजड़ी के दरख्तों की रक्षा की खातिर उनसे चिपककर अ...
Challenge to Unconstitutional Provisions of Anti-Rape Law

Challenge to Unconstitutional Provisions of Anti-Rape Law

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I reproduce below the full text of a writ petition I filed in public interest in the Delhi High Court along with two others on 17 March 2017. Kapil Sibal, among the most eminent lawyers of India, is arguing this case.  We invoked Article 226 of the Constitution of India  for challenging the validity of some of the provisions of the Criminal Law Amendment Act, 2013 which have made the anti-rape law draconian and easy-to-abuse. The High Court has issued notice to the Central Government and set July 5, 2017 as the next date of hearing. ​ Kapil​ has taken on this case pro bono because he saw merit in the arguments I put forth in the petition,  which I drafted personally in consultation with and with inputs from lawyer friends. ​ ​ Kapil is an old friend ​.​ We often ...
बड़े बदलावों की नई सुबह

बड़े बदलावों की नई सुबह

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विधानसभा चुनावों में आयी भगवा सूनामी ने नकारात्मक राजनीति के कचरे को बेतरह बहा दिया है और अब देश में सकारात्मक वातावरण में राष्ट्रवादी और भारतपरक राजनीति का उदय हो गया है। हालांकि यह उदय तो मई 2014 में मोदी सरकार आने पर ही हो गया था किंतु देश के सेकुलर-वामपंथी खेमे की कलुषित मानसिकता, स्वार्थ की राजनीति एवं सरकार के हर कदम व कार्य की अबाध आलोचना और खिल्ली उड़ाने की घटिया हरकतों व किसानों, जवानों व जातीय-धार्मिक समूहों को भड़काने की राजनीति से चारों ओर भ्रम व अविश्वास का घना कोहरा छा गया था। मात्र विरोध के लिए विरोध करने वाले दलों कांग्रेस पार्टी, सपा, बसपा और आआपा को जनता ने आत्मकेंद्रित राजनीति की बहुत बड़ी सजा दी है और एक प्रकार से सेकुलर राजनीति की जड़ें ही हिला दी। यह चुनाव देश की जनता के लिए अमृत वर्षा की तरह है, क्योंकि या तो सेकुलर खेमा समाप्त होता जायेगा अथवा उसको राष्ट्रवादी सांचे...
कांग्रेसविहीन भारत बनाते राहुल गांधी

कांग्रेसविहीन भारत बनाते राहुल गांधी

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बहुत सी दुर्बलताओं के उपरांत भी कांग्रेस का गौरवपूर्ण इतिहास है। इसके गौरवपूर्ण पक्ष पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, लालबहादुर शास्त्री और इन जैसी अनेकों प्रतिभाएं अपना डेरा डाले बैठी हैं, जिनको पढ़े बिना कांग्रेस का इतिहास किसी भी जिज्ञासु विद्यार्थी की समझ आ नहीं सकता। जिन लोगों ने कांग्रेस को केवल एक परिवार की जागीर के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया, राष्ट्र के साथ छल तो किया ही स्वयं इस सबसे पुराने राजनीतिक संगठन के साथ भी छल किया। उस छल का ही परिणाम है कि हर कांग्रेसी अपने आप में ठगा सा बैठा है। वह चाहता है कुछ बोला जाए, पर बोल नहीं पा रहा है। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक ही परिवार की चाटुकारिता करते रहने वाले लोग कैसे समाप्त कर देते हैं या उसका हनन कर लेते हैं, कांग्रेसियों की यह चुप्पी इसी बात की प्रमाण है। जिन कांग्रेसियों ने सोनिया गांधी के हाथों सीत...
HAS STRIKE BECOME A HABIT FOR GOVERNMENT EMPLOYEES IN INDIA ?

HAS STRIKE BECOME A HABIT FOR GOVERNMENT EMPLOYEES IN INDIA ?

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On 16th March,2017, employees belonging to government of India including  postal department  went on All India strike, with public losing counts as to how many times the government employees have gone on strike on various pretext in the last few years. In any case, when the government employees went on strike on 16th March, most segment of Indian population who face the brunt of the problems caused due to the strike,  do not know as to what is the purpose of this latest strike. While strike by government employees  no more make news in India as it has become too routine, in the case of the strike on 16th March, most segment of the public were shocked , since the government of India  revised the salaries and perks of the government employees steeply only recently , by accepti...
Who are Those Who Have No Trust in The Nation

Who are Those Who Have No Trust in The Nation

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A new class of people who are never satisfied has emerged on the national scene. The one point agenda of this class is to get all benefit from the country and then campaign and act against the nation. This class loses faith in the Supreme Court when Yakub Memon, accused in Mimbai serial blast is sentenced to death. They had no faith in the President of India Pranab Mukherjee who rejected the clemency petition of the accused Yakub. The lose faith in the nation and in the Army after the successful surgical strike when they demand proof of the operation. Now when this class lost in the just concluded assembly elections in Uttar Pradesh they have lost faith in the EVM machines, This class now says the voting machines were tampered with. This so called secular and progressive forces get their...