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शोर प्रदूषण आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है।

शोर प्रदूषण आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है।

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शोर प्रदूषण आज के समय की एक बहुत बड़ी समस्या है। और आजकल हमारे देश के बड़े शहरों में बहुत अधिक शोर प्रदूषण हो रहा है। यहां यह जानना जरूरी है कि आखिर शोर प्रदूषण है क्या ? और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं ? वास्तव में, शोर प्रदूषण अनुपयोगी ध्वनि होती है जिससे मानव तो मानव यहां तक कि जीव-जंतुओं तक को भी परेशानी होती है। वास्तव में,जब शोर की तीव्रता पर्यावरण में अत्यधिक हो जाती है तब उसे ध्वनि प्रदूषण कहते हैं। आज हमारे देश की लगातार जनसंख्या बढ़ रही है और जनसंख्या वृद्धि के साथ ही यातायात के साधनों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। विकास के साथ ही विभिन्न औधोगिक कल-कारखानों में भी अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है और यही कारण भी है कि शोर(ध्वनि) प्रदूषण में भी इजाफा हुआ है। ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌इसके अलावा बिजली कड़कना, बिजली गिरना आदि जैसी कई प्राकृतिक घटनाएं, जो शोर उत्पन्न करतीं हैं, भी म...
चीन, भारत का सिरदर्द

चीन, भारत का सिरदर्द

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हमारे बुजुर्गो द्वारा अपने अनुभवों के आधार पर कहीं बातों ने कहावतों का रूप ले लिया, जो आज भी प्रासांगिक है, यथा - हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और, मुँह में राम, बगल में छुरी आदि। इसी प्रकार वर्ष 1962 में भारत-चीनी, भाई-भाई का नारा लगाते-लगाते चीन ने हमारी जमीन पर शक्ति के बल पर कब्जा कर लिया। चीन के द्वारा तिब्बत पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया गया, परन्तु यह तो उसकी महत्वाकांक्षा का एक छोटा सा ही उदाहरण था। अब उसका लक्ष्य हमारा अरुणाचंल प्रदेश एवं अन्य स्थानों को कब्जाने का प्रयास निरन्तर चल रहा है। चीन के साथ गलवान घाटी में हुए युद्ध की घटना, जिसमें हमारे अनेकों जवानों को बलिदान देना पड़ा था, हमारी स्मृति से अभी विस्मृत भी नहीं हो पायी थी कि चीन के द्वारा अनेको छोटी-छोटी झड़पे अन्य स्थानों पर होनी प्रारम्भ हो गईं। गलवान में टकराव के पश्चात 18 बार चीन व भारत के मध्य कमाण्डर स्तर की ...
आतंकवाद के अंधेरे को मिटाना होगा ! (21 मई एंटी टेरेरिज्म-डे विशेष)

आतंकवाद के अंधेरे को मिटाना होगा ! (21 मई एंटी टेरेरिज्म-डे विशेष)

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किसी ने क्या खूब लिखा है- 'आतंकवाद से धरा दूषित हैं, इसे शुद्ध हो जाने दो। हाथ खोल दो वीरो के अब महायुद्ध हो जाने दो।' आतंकवाद नासूर है, यह एक दंश है, जिसमें जहर ही जहर भरा है, इसे आज समूल नाश करने की आवश्यकता है, क्यों कि आतंकवाद मानवता का दुश्मन है।आज के समय में आतंकवाद का खतरा गंभीर और वास्तविक है और आज के समय में भारत ढ़ेर सारी चुनौतियों का सामना कर रहा है जैसे गरीबी, जनसंख्या वृद्धि, निरक्षरता, असमानता आदि लेकिन आतंकवाद इनमें सबसे ज्यादा खतरनाक है जो आज पूरी मानव जाति को प्रभावित कर रहा है। वास्तव में, अपने कुछ राजनीतिक, धार्मिक या व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये आतंकवाद द्वारा हिंसात्मक तरीकों का प्रयोग ही आतंकवाद है। आतंकवाद के बारे में भयानक बात ये है कि अंततः ये उन्हें नष्ट कर देता है जो इसका अभ्यास करते हैं। आतंकवाद किसी भी देश के राष्ट्रीय सद्भाव...
छोटी छोटी बचतों से अर्थव्यवस्था को मिलता है बल

छोटी छोटी बचतों से अर्थव्यवस्था को मिलता है बल

BREAKING NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, विश्लेषण
यह सनातनी संस्कार ही हैं जो भारत के नागरिकों को छोटी छोटी बचतें करना सिखाते हैं। भारतीय परम्पराओं के अनुसार हमारे बुजुर्ग हममें बचत की प्रवृत्ति बचपन में ही यह कहकर विकसित करते हैं कि भविष्य में आड़े अथवा बुरे वक्त के दौर में, पुराने समय में की गई बचत का बहुत बड़ा सहारा मिलता है। भारतीय परिवारों में तो गृहणियां घर खर्च के लिए उन्हें प्रदान की गई राशि में से भी बहुत छोटी राशि की बचतें करने का गणित जानती हैं एवं वक्त आने पर अपने परिवार के सदस्यों को उक्त बचत की राशि सौंप कर संतोष का भाव जागृत करती हैं। आजकल के आर्थिक दौर में केवल धन का अर्जन करना ही काफी नहीं है बल्कि अर्जित किए गए इस धन का कुछ भाग, बचत के रूप में सही स्थान पर सुरक्षित निवेश करना भी जरूरी है। यदि कमाए गए धन को बचत के रूप में निवेश नहीं किया जाता है तो उस राशि का बाजार में मूल्य, मुद्रा स्फीति के चलते, कम होते होते भव...
बागेश्वर बाबा का जादू

बागेश्वर बाबा का जादू

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
एक पच्चीस वर्ष का युवा कथावाचक बिहार जैसे राज्य में आता है और दूसरे ही दिन आठ से दस लाख की भीड़ उमड़ पड़ती है, तो यह सिद्ध होता कि अब भी इस देश की सबसे बड़ी शक्ति उसका धर्म है। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ कि इसी बिहारभूमि पर किसी बड़े राजनेता की रैली में 50 हजार की भीड़ जुटाने के लिए द्वार द्वार पर गाड़ी भेजते और पैसे बांटते हम सब ने देखा है। वैसे समय में कहीं दूर से आये किसी युवक को देखने के लिए पूरा राज्य दौड़ पड़े, तो आश्चर्य होता है। मेरे लिए यही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सबसे बड़ा चमत्कार है।वह दस लाख की भीड़ किसी एक जाति की भीड़ नहीं है, उसमें सभी हैं। बाभन-भुइंहार हैं, तो कोइरी कुर्मी भी... राजपूत हैं तो बनिया भी, यादव भी, हरिजन भी... यह वही बिहार है जहां हर वस्तु को जाति के चश्मे से देखने की ही परम्परा सी बन गयी है। उस टूटे हुए बिहार को एक युवक पहली बार में इतना बांध देता है, ...
भारत में डिजिटल क्रांति अन्य देशों के लिए बन रही है उदाहरण

भारत में डिजिटल क्रांति अन्य देशों के लिए बन रही है उदाहरण

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भारत को जी-20 समूह की अध्यक्षता मिलना एक वरदान की तरह साबित होता दिखाई दे रहा है। भारत ने हाल ही के वर्षों में कई क्षेत्रों में जो अतुलनीय प्रगति की है, इसे देखकर जी-20 समूह के सदस्य देश आश्चर्यचकित हो रहे हैं। भारत चूंकि जी-20 समूह के सदस्य देशों की विभिन्न बैठकें देश के लगभग समस्त राज्यों के अलग अलग नगरों में आयोजित कर रहा है, इससे देश के समस्त राज्य न केवल इन बैठकों के लिए विशेष तैयारियां कर रहे हैं बल्कि विभिन्न देशों से आने वाले प्रतिनिधि भी इन शहरों में भारत की आर्थिक प्रगति की झलक देख पा रहे हैं। जी-20 समूह का महत्व इस जानकारी से बहुत स्पष्ट तौर पर झलकता है कि पूरे विश्व के सकल घरेलू उत्पाद में जी-20 समूह के सदस्य देशों की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत की है। विश्व के 193 देशों का कुल सकल घरेलू उत्पाद 95 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक है। इसमें, जी-20 समूह के सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था...
सशक्त देश के निर्माण में परिवार अभूतपूर्व संस्था (15 मई विशेष

सशक्त देश के निर्माण में परिवार अभूतपूर्व संस्था (15 मई विशेष

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प्रत्येक वर्ष 15 मई को इंटरनेशनल फैमिली डे यानी कि 'विश्व परिवार दिवस' के रूप में मनाया जाता है। देखा जाए तो यह संपूर्ण धरती ही एक परिवार है और दुनिया के हरेक देश में परिवार है। वास्तव में, परिवार के साथ हमें बड़ों ,अपने बुजुर्गों की छांव मिलती है, प्रेम , सहानुभूति परवरिश, देखभाल, परम्परा, संस्कृति से जुड़ाव के साथ-साथ अकेलेपन से दूर रखने में अहम भूमिका परिवार ही निभाता है।संस्कृत में 'वसुधैव कुटुम्बकम'( संपूर्ण धरती ही परिवार है) की कल्पना यूं ही नहीं की गई है। यहाँ हम यह बात कह सकते हैं कि परिवार का प्राथमिक कार्य बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करना है, जैसे-भोजन, आश्रय, शिक्षा, स्वास्थ्य और भावनात्मक समर्थन आदि लेकिन एक परिवार की भूमिका केवल इन कार्यों तक सीमित नहीं है, वास्तव में, यह नागरिकता का पहला स्कूल भी है। परिवार से ही समाज बनता है और समाज से ही देश। परिवार है तो सबकुछ है, परिवा...
कर्नाटक पराजय: एक समीक्षा

कर्नाटक पराजय: एक समीक्षा

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आपको याद होगा कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के नेता प्रवीण नेतारू की हत्या पर कर्नाटक में कितनी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई थी। आशंका रही है कि हत्या के षड़यंत्र में प्रतिबंधित पीएफआई संगठन का हाथ था। कर्नाटक सरकार के सेकुलरी रवैये से भाजपा से त्यागपत्रों की झड़ी लग गयी थी। संभवतः एक किसी बजरंग दल के कार्यकर्ता की भी हत्या हुई थी। यदि ऐसी ही घटना यूपी में हुई होती तो योगी जी की पुलिस हत्यारे संगठन को मिट्टी में मिला चुकी होती। लेकिन राज्य कर्नाटक था जहां टीपू सुल्तान के भक्तों का राज रहा था। वहां हिंदुत्व अभी जमीन पकड़ रहा था और भाजपा की राज्य सरकार कभी हिंदुत्व व कभी सेकुलरवाद के झूले में झूल रही थी। नेतारू की हत्या ने यह असलियत उजागर कर दी। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर सरकार की लीपापोती ने कर्नाटक में हिंदुत्व की उठ रही संभावनाओं पर पानी डाल दिया। कर्नाटक में सांस्कृतिक शक्तियों के अभियान ...
बदलते मौसम के अनुसार नई नीति ज़रूरी

बदलते मौसम के अनुसार नई नीति ज़रूरी

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मौसम के मिजाज में आये अप्रत्याशित बदलाव ने नागरिकों के साथ मौसम विज्ञानियों को चौंकाया है। सामान्य लोग भले ही कहते रहे हैं कि मई में फरवरी-मार्च का अहसास हुआ है, क्या मई में गर्मी आयेगी?और गर्मी आ गई। यह सामान्य बात नहीं है। इस परिवर्तन के गहरे निहितार्थ हैं और हमारे मौसम चक्र के लिये यह शुभ संकेत कदापि नहीं है। मौसम के बदलावों से हमारी वनस्पति, फसलों व फलों के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और उनका स्वाभाविक विकास भी बाधक होता है। यह असामान्य मौसम आज के दौर का नया सामान्य है। पिछले मार्च में अचानक गर्मी का बढ़ जाना और मई में तापमान का सामान्य से कम हो जाना अच्छा संकेत नहीं है मार्च में गेहूं की फसल के पकने के समय बढ़ी गर्मी से इसके उत्पादन में कमी आने की बात सामने आई थी। चौंकाने वाली बात यह भी है कि मई माह में हिमालय पर्वत शृंखलाओं की ऊंची चोटियों पर हिमपात हुआ। इस मौसम में ज...
भाजपा का पराजय: कर्नाटक

भाजपा का पराजय: कर्नाटक

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कर्नाटक भाजपा के 5 साल के शासनकाल में चार चार मुख्य मंत्रियों ने शपथ ली। लेकिन जब चुनावी लड़ाई की बात आई तो पूरी की पूरी जिम्मेवारी नरेंद्र मोदी ने अपने माथे उठा ली। कर्नाटक भाजपा की चुनावी लड़ाई में नरेंद्र मोदी भाजपा परिवार के एक ऐसे अभिभावक की भूमिका में आते हैं, जो हारी हुई लड़ाई को न केवल अपनी पूरी हिस्सेदारी से लड़ता है, बल्कि अपने सभी आश्रितों के हिस्से से भी अंतिम सांस तक लड़ता है, ठीक भीष्म पितामह की तरह। नरेंद्र मोदी वाली भाजपा कभी भी उस तरह की सरकार चलाने में विश्वास नहीं रखती, जैसा कि कर्नाटक में पिछले 5 बरस हुआ। '14 के बाद वाली भाजपा स्थाई, स्थिर और मजबूत सरकार के लिए जानी जाती है। 2018 के असेंबली चुनाव में केवल बहुमत से 9 सीट कम होने व क्षत्रिय फैक्टर आदि के कारण, कर्नाटक भाजपा ने सीएम के चार-चार दावेदारों को ढोया। 2023 की चुनावी तैयारी भाजपा ने उस हिसाब से की थी, जिस...