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विश्लेषण

WHY APEX COURT IN INDIA WASTING TIME ON SAME SEX MARRIAGE ?

WHY APEX COURT IN INDIA WASTING TIME ON SAME SEX MARRIAGE ?

EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण, सामाजिक
N.S.Venkataraman  Thousands of litigations and cases are pending in lower , middle and apex courts in India for several years. Some of the cases have been pending for over ten years without judgement being delivered.   The ground reality is that after completion of hearing , judges take a long time to deliver the judgement. Apart from  this , stay orders are  frequently  given by the higher court over the judgement delivered by the lower courts .  Further,  several  hearings   are  delayed due to adjournment ,  etc. Apart from such issues  , one frequently heard complaint is that  the  cases are  entertained by the courts with regard to issues , which normally should be handled and disposed of  ...
एचआईवी सेल्फ-टेस्ट बिना विलंब एड्स कार्यक्रम में शामिल हो

एचआईवी सेल्फ-टेस्ट बिना विलंब एड्स कार्यक्रम में शामिल हो

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
शोभा शुक्ला, बॉबी रमाकांत – सीएनएस गर्भावस्था, डायबिटीज, कोविड-19 आदि के सेल्फ़-टेस्ट (आत्म-परीक्षण) भारत में उपलब्ध हैं और जन स्वास्थ्य और विकास के प्रति सकारात्मक योगदान दे रहे हैं। एचआईवी सेल्फ-टेस्ट को भी उपलब्ध करवाना चाहिए जिससे कि जन स्वास्थ्य के लिए अपेक्षित लाभ मिल सके। एचआईवी सेवाएँ मिलने के लिए जो ‘प्रवेश द्वार’ है वह एचआईवी टेस्ट है। भारत में हर 4 में से 1 एचआईवी के साथ जीवित व्यक्ति को यह पता ही नहीं है कि उसको एचआईवी संक्रमण है। एचआईवी सेल्फ-टेस्ट (आत्म-परीक्षण) - जिसे 98 देशों में एड्स कार्यक्रम में शामिल किया गया है और 52 देशों में उसको नियमित उपयोग किया जाता है - यदि इसको भारत में भी उपलब्ध करवाया जाये तो एचआईवी परीक्षण दर बढ़ सकती है, यह कहना है डॉ ईश्वर गिलाडा का, जो दिल्ली में आयोजित एचआईव...
काश प.पू. डाक्टर जी के जंगल सत्याग्रह के निष्कर्ष सर्वमान्य रूप से स्वातंत्र्योत्तर भारत में लागू होते-रमेश कुमार शर्मा

काश प.पू. डाक्टर जी के जंगल सत्याग्रह के निष्कर्ष सर्वमान्य रूप से स्वातंत्र्योत्तर भारत में लागू होते-रमेश कुमार शर्मा

EXCLUSIVE NEWS, राज्य, विश्लेषण, सामाजिक
आजकल देश के पर्वतीय क्षेत्रों में, उदाहरणार्थ उत्तराखंड के जोशीमठ एवं चमोली में, पर्यावरण प्रतिकूल परिस्थितियाँ बन रही हैं और पर्वतों के दरकने या धँसने से क्षतिग्रस्त मकानों से लोगों को निकालकर स्थानान्तरित किया जा रहा है। ये परिस्थितियाँ अनायास संयोगवश नहीं बनी हैं, अपितु पर्वतीय वनक्षेत्र की दीर्घकाल से अनदेखी का यह परिणाम है। भारतवर्ष वनजीवियों एवं पशुपालकों का देश है, उन्नीसवीं शताब्दी तक हमारे देश के संबंध में ऐसी वैश्विक मान्यता बनी रही। वनों की सघनता और जैव-वैविध्य (भाँति-भाँति के पशु-पक्षियों एवं वृक्षों-वनस्पतियों की उपस्थिति) के लिए भारत जाना जाता था। औषधीय जड़ी-बूटियों के संरक्षण की ललक और पर्यावरण या जीवमंडल के समग्र विकास में तादात्म्य या भाव प्रवणता मनुष्य मात्र में देखी जाती थी। प्राचीन युग में लोपामुद्रा- अगस्त्य, अरून्धती -वसिष्ठ, रेणुका -जमदाग्नि जैसे ऋषि-युगलों ने न...
आर्थिक परिदृश्य और बचत के नए स्रोत

आर्थिक परिदृश्य और बचत के नए स्रोत

BREAKING NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, विश्लेषण
भारत के नागरिकों का पिछले कुछ वर्षों से निवेश को लेकर बैंकिंग क्षेत्र मुख्य आकर्षण का केंद्र नहीं रहा है, इसके बावजूद भारतीयों की घरेलू बचत लगातार बढ़ रही है। आर्थिक निवेश के कई दूसरे स्रोत लोगों की प्राथमिकता में शामिल हो रहे हैं। कोरोना दुष्काल के दौरान बीमा की तरफ आकर्षण तेजी से बढ़ा। भारत में जीवन बीमा आर्थिक निवेश का सदैव प्रमुख स्रोत रहा है। प्रत्येक भारतीय को जीवन बीमा में आर्थिक निवेश का विचार पारिवारिक सोच के रूप में प्राप्त होता है। जब आर्थिक बचत की बात होती है, तो व्यक्ति के दिमाग में दो प्रश्न एक साथ उठते हैं। पहला, शायद प्रति व्यक्ति खर्चा कम हो रहा है, इसलिए आर्थिक बचत बढ़ रही है। दूसरा, प्रति व्यक्ति वित्तीय आय बढ़ रही है, जिससे आर्थिक बचत भी बढ़ रही है। ये दोनों प्रश्न परस्पर विरोधाभासी हैं। पहला प्रश्न नकारात्मक रुख लिए है, तो दूसरा सकारात्मक सोच का है। इन सबके बीच एक ...
नेमप्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया

नेमप्लेट से क्यों दूर है अबतक आधी दुनिया

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
आर.के. सिन्हा पिछली 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया। महिलाओं को घर और घर से बाहर, उनके जायज हक देने को लेकर तमाम वादे किए गए और अनेकों बातें भी हुईं। यह तो हर साल ही 8 मार्च को होता है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। यह सब आगे भी होता ही रहेगा। पर अफसोस कि घरों के बाहर लगी नेमप्लेट में मां, बेटी और बहू के लिए अबतक कोई जगह नहीं है। हालांकि अब घर बनाने के लिए आमतौर पर पति-पत्नी मिलकर ही मेहनत करते हैं और फिर होम लोन भी मिलकर ही लेने लगे हैं। कहने को भले ही कहा जाता रहे कि हर सफल इंसान के पीछे किसी महिला की प्रेरणा होती है। यह बात अपने आप में सौ फीसद सही भी है। इस बारे में कोई बहस या विवाद नहीं हो सकता। सफल इंसान को जीवन में सफलता दिलाने में मां, बहन, पत्नी वगैरह किसी न किसी मातृशक्ति का रोल रहता है। पर, उन्हें घरों के बाहर लगी नेम...
प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ भारत की लड़ाई

प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ भारत की लड़ाई

TOP STORIES, विश्लेषण
एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जी20 देशों में प्लास्टिक की खपत 2050 तक लगभग दोगुनी होने की उम्मीद है। इसलिए खतरे को भांपते हुए कॉटन, खादी बैग और बायो-डिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे विकल्पों को बढ़ावा देकर पर्यावरण के अनुकूल और उद्देश्य के अनुकूल विकल्पों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करें जो अधिक नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। समर्थन में कर छूट, अनुसंधान और विकास निधि, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, और उन परियोजनाओं का समर्थन शामिल हो सकता है जो एकल-उपयोग की वस्तुओं को रीसायकल करते हैं और कचरे को एक संसाधन में बदल देते हैं जिसे फिर से उपयोग किया जा सकता है। । उपभोक्ताओं के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे घरों से निकलने वाले सभी प्लास्टिक कचरे को अलग किया जाए और खाद्य अपशिष्ट से दूषित न हो। -प्रियंका सौरभ भारत ने हाल ही में नैरोबी मे...
उल्टा पड़ा दुष्प्रचार अभियान हृदयनारायण दीक्षित

उल्टा पड़ा दुष्प्रचार अभियान हृदयनारायण दीक्षित

घोटाला, विश्लेषण, सामाजिक
भारत का मन क्षुब्ध और आहत है। निहित स्वार्थी कुछ विदेशी मीडिया घराने देश के विधि निर्वाचित प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के विरुद्ध लगातार झूठ फैला रहे हैं। उन्हें भारत की लगातार बढ़ती विश्व प्रतिष्ठा से चिढ है। अभियान में देश के कथित वामपंथी उदारवादी भी शामिल हैं। वे प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विकसित आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी भारत की प्रतिष्ठा गिराने में संलग्न हैं। अमेरिकी अखबार दि न्यूयॉर्क टाइम्स, वाशिंगटन पोस्ट, खाड़ी देश कतर के अल जजीरा आदि मीडिया घराने भारत और प्रधानमंत्री के विरुद्ध सक्रिय हैं। हाल ही में दि न्यूयॉर्क टाइम्स में छपे एक लेख में पत्रकारों को पुलिस द्वारा परेशान करने, कश्मीर को सूचना शून्य बनाने, आतंकवाद और अलगाववाद जैसे आरोपों की धमकी देने के आरोप लगाए गए हैं। सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बीते शुक्रवार को कहा कि ‘‘दि न्यूयॉर्क टाइम्स ने प्रध...
मोटा अनाज और खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग

मोटा अनाज और खाद्य-प्रसंस्करण उद्योग

EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण, सामाजिक
राकेश दुबे 1960 के दशक तक ज्वार, बाजरा और रागी का अंश भारतीयों के भोजन में लगभग एक-चौथाई हुआ करता था, लेकिन हरित क्रांति में धान और गेहूं  की फसल को मिली तरजीह के बाद इनका अंश कम होता चला गया। जब से मोटे अनाज का उत्पादन और खपत कम होनी शुरू हुई तब से अब तक हमारी भोजन और खुराक संबंधी आदतें पूरी तरह बदल चुकी हैं। पिछले कुछ दशकों से हम निर्णायक रूप से महीन, प्रसंस्करित, पैकेट बंद और रेडी-टू-कुक भोजन की ओर मुड़ गए हैं।अब केंद्र सरकार वापिस मोटे अनाज पर लौटने की बात कह रही है। तथ्य है कि सदियों से मोटा अनाज भारतीय भोजन का हिस्सा और खुराक रहे हैं।  अब संयुक्त राष्ट्र और भारत की केंद्रीय सरकार द्वारा साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किए जाने के बाद सरकारी एजेंसियों की पुरज़ोर कोशिश रशुरू हो गई है  कि भारत को मोटा अनाज उत्पादन और निर्यात की मुख्य धुरी  बनाय...
तपती धरती, संकट में अस्तित्व

तपती धरती, संकट में अस्तित्व

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
भारत में, 10 सबसे गर्म वर्षों में से नौ पिछले 10 वर्षों में दर्ज किए गए हैं, और सभी 2005 के बाद से दर्ज किए गए हैं। पिछला साल रिकॉर्ड पर पांचवां सबसे गर्म वर्ष था। गर्मी की लहरों के कारण प्रेरित तनाव श्वसन और मृत्यु दर को बढ़ाता है, प्रजनन क्षमता को कम करता है, पशु व्यवहार को संशोधित करता है, और प्रतिरक्षा और अंतःस्रावी तंत्र को दबा देता है, जिससे कुछ बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है। 1992 के बाद से, भारत में लू से संबंधित 34,000 से अधिक मौतें हुई हैं। गर्मी की लहरें पशुओं को गर्मी के तनाव का अनुभव करने की संभावना भी बढ़ जाती हैं, खासकर जब रात के समय तापमान अधिक रहता है और जानवर ठंडा नहीं हो पाते हैं। गर्मी से तनावग्रस्त मवेशी दूध उत्पादन में गिरावट, धीमी वृद्धि और कम गर्भाधान दर का अनुभव कर सकते हैं। गर्मी की लहरें सूखे और जंगल की आग को बढ़ा सकती हैं, जिससे कृषि क्षेत्र पर नकारात्मक ...
भारतीय विकसित देशों की नागरिकता क्यों ले रहे हैं

भारतीय विकसित देशों की नागरिकता क्यों ले रहे हैं

BREAKING NEWS, Current Affaires, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
केंद्र सरकार ने दिनांक 9 दिसम्बर 2022 को भारतीय संसद को सूचित किया कि वर्ष 2011 से 31 अक्टोबर 2022 तक 16 लाख भारतीयों ने अन्य देशों, विशेष रूप से विकसित देशों, की नागरिकता प्राप्त कर ली है। वर्ष 2022 में 225,000 भारतीयों द्वारा अन्य देशों की नागरिकता ली गई है। इसी प्रकार, मोर्गन स्टैन्ली द्वारा वर्ष 2018 में इकोनोमिक टाइम्ज में प्रकाशित एक प्रतिवेदन में बताया है कि वर्ष 2014 से वर्ष 2018 के बीच भारत से डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 23,000 भारतीयों ने अन्य देशों में नागरिकता प्राप्त की।  डॉलर मिलिनायर उस व्यक्ति को कहा जाता है जिसकी सम्पत्ति 10 लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक रहती है। साथ ही, ग्लोबल वेल्थ मायग्रेशन रिव्यू आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में डॉलर मिलिनायर की श्रेणी के 7,000 भारतीयों ने अन्य देशों की नागरिकता प्राप्त की है।  उक्त संख्या भारत में डॉलर मिलिनायर की कुल संख्या का 2.1 प्रतिशत ...