
वैश्विक स्तर पर भारतीय अर्थव्यवस्था पुनः वैभवकाल की ओर अग्रसर
यदि भारत के प्राचीन अर्थतंत्र के बारे में अध्ययन किया जाय तो ध्यान में आता है कि प्राचीन भारत की अर्थव्यस्था अत्यधिक समृद्ध थी। विश्व के कई भागों में सभ्यता के उदय से कई सहस्त्राब्दी पूर्व, भारत में उन्नत व्यवसाय, उत्पादन, वाणिज्य, समुद्र पार विदेश व्यापार, जल, थल एवं वायुमार्ग से बिक्री हेतु वस्तुओं के परिवहन एवं तत्संबंधी आज जैसी उन्नत नियमावलियां, व्यवसाय के नियमन एवं करारोपण के सिद्धांतों का अत्यंत विस्तृत विवेचन भारत के प्राचीन वेद ग्रंथों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। प्राचीन भारत में उन्नत व्यावसायिक प्रशासन व प्रबंधन युक्त अर्थतंत्र के होने के भी प्रमाण मिलते हैं। प्राचीन भारत में कुटीर उद्योग बहुत फल फूल रहा था इससे सभी नागरिकों को रोजगार उपलब्ध रहता था एवं हर वस्तु का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता था। ग्रामीण स्तर पर भी समस्त प्रकार के आवश्यक उत्पाद पर्याप्त मात्रा में उप...