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क्या पुरुष उपेक्षा एवं उत्पीडन के शिकार हैं?

क्या पुरुष उपेक्षा एवं उत्पीडन के शिकार हैं?

BREAKING NEWS, EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
अन्तर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस-19 नवम्बर, 2022 पर विशेष-ललित गर्ग- दुुनिया में अब महिला दिवस की भांति पुरुष दिवस प्रभावी रूप में बनाये जाने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है। अब पुरुष भी अपने शोषण एवं उत्पीडित होने की बात उठा रहे हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुषों पर अधिक उपेक्षा, उत्पीड़न एवं अन्याय की घटनाएं पनपने की भी बात की जा रही है। महिला दिवस की तर्ज पर ही पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस भी मनाया जाने लगा है। इस दिवस की शुरुआत 1999 में त्रिनिदाद एवं टोबागो से हुई थी। तब से प्रत्येक वर्ष 19 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस दुनिया के 30 से अधिक देशों में मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इसे मान्यता देते हुए इसकी आवश्यकता को बल दिया और पुरजोर सराहना एवं सहायता दी है। आज तेजी से बदलती दुनिया में हर वर्ग के लिए परिभाषाएं भी बन एवं बदल रही हैं। एक तरफ जहां महिलाएं सशक...
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में संबोधन

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन के समापन सत्र में संबोधन

Today News, विश्लेषण
Excellencies, Friends,मैं एक बार फिर अपने मित्र राष्ट्रपति जोकोवी का अभिनन्दन करना चाहता हूँ। उन्होंने इस कठिन समय मे जी-20 को कुशल नेतृत्व दिया है। और मैं आज जी-20 समुदाय को बाली डिक्लेरेशन के अनुमोदन के लिए भी बधाई देता हूँ। भारत अपनी जी-20 अध्यक्षता के दौरान इंडोनेशिया के सराहनीय initiatives को आगे बढ़ाने का प्रयत्न करेगा। भारत के लिए यह अत्यंत शुभ संयोग है कि हम जी-20 अध्यक्षता का दायित्व इस पवित्र द्वीप बाली मे ग्रहण कर रहे हैं। भारत और बाली का बहुत ही प्राचीन रिश्ता है।Excellencies,भारत जी-20 का जिम्मा ऐसे समय ले रहा है जब विश्व geopolitical तनावों, आर्थिक मंदी, खाद्यान्न और ऊर्जा की बढ़ी हुई कीमतों, और महामारी के दीर्घकालीन दुष्प्रभावों से एक साथ जूझ रहा है। ऐसे समय, विश्व जी-20 की तरफ आशा की नजर से देख रहा है। आज मैं यह आश्वासन देना चाहता हूँ कि भारत की जी-20 अध्यक्षता inclusive, ...
चंद्रचूड़ और अमित शाहः पते की बात*

चंद्रचूड़ और अमित शाहः पते की बात*

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*डॉ. वेदप्रताप वैदिक* आज दो खबरों ने बरबस मेरा ध्यान खींचा। एक तो मुख्य न्यायाधीश धनंजय चंद्रचूड़ के बयान ने और दूसरा गृहमंत्री अमित शाह के बयान ने! दोनों ने वही बात कह दी है, जिसे मैं कई दशकों से कहता चला आ रहा हूं लेकिन देश के किसी न्यायाधीश या नेता की हिम्मत नहीं पड़ती कि भाषा के सवाल पर वे इतनी पुख्ता और तर्कसंगत बात कह दें। चंद्रचूड़ ने ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ की संगोष्ठी में बोलते हुए कह दिया कि कोई यदि अच्छी अंग्रेजी बोल सकता है तो इसे उसकी योग्यता का प्रमाण नहीं माना जा सकता और उसकी योग्यता इस बात से भी नापी नहीं जा सकती कि वह व्यक्ति कौन से नामी-गिरामी स्कूल या काॅलेज से पढ़कर निकला है। हमारे देश में इसका एकदम उल्टा ही होता है। इसका एकमात्र कारण हमारे नेताओं और नौकरशाहों की बौद्धिक गुलामी है। अंग्रेजों की लादी हुई औपनिवेशिक व्यवस्था ने भारत की शिक्षा और चिकित्सा दोनों को चौपट कर र...
पृथ्वी का संकट

पृथ्वी का संकट

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ह्रदय नारायण दीक्षित पृथ्वी का अस्तित्व संकट में है। पर्यावरण विश्व बेचैनी है। भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण चिंताजनक है। प्रातः टहलने वाले लोग प्रदूषित वायु में सांस लेने को बाध्य हैं। काफी लम्बे समय से अक्टूबर नवम्बर के महीनों में भारत के बड़े हिस्सों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है। पराली जलाने सहित इस प्रदूषण के अनेक कारण हैं। क्षिति, जल, पावक, गगन व समीर अव्यवस्थित हो रहे हंै। तुलसीदास ने रामचरितमानस में पृथ्वी संकट का उल्लेख किया है। लिखा है, ‘‘अतिशय देखि धरम कै हानी/परम सभीत धरा अकुलानी - धर्म की ग्लानि को बढ़ते देखकर पृथ्वी भयग्रस्त हुई। देवों के पास पहुंची। अपना दुःख सुनाया - निज संताप सुनाइस रोई। - पृथ्वी ने रोकर अपना कष्ट बताया। शंकर ने पार्वती को बताया कि वहां बहुत देवता थे। मैं भी उनमें एक था। तुलसी के अनुसार आकाशवाणी हुई, ‘‘हे धरती धैर्य रखो। मैं स्वयं ...
बिना बात के बतंगड़ में माहिर है कांग्रेस

बिना बात के बतंगड़ में माहिर है कांग्रेस

TOP STORIES, विश्लेषण, समाचार
-ललित गर्ग- भारतीय राजनीति में अक्सर बिना बात के बतंगड़ होते रहे हैं। ऐसे राजनेता चर्चित माने जाते हैं जो वास्तविक उपलब्धियों एवं सकारात्मक आयामों की भी आलोचना एवं छिद्रान्वेषण करने में चतुर होते हैं। बिना बात का बतंगड़ करने में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी एवं देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं है। कांग्रेस ने जी-20 सम्मेलन के लोगो में कमल को चित्रित करने पर आपत्ति जताकर बैठे-ठाले न केवल अपनी प्रतिष्ठा को बटा लगाया है बल्कि इस प्रकार उद्देश्यहीन, उच्छृंखल, विध्वंसात्मक नीति को ही प्रदर्शित किया है। आग्रह, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रह से ग्रस्त ऐसे आरोपों एवं आलोचनाओं से किसी का भी हित सधता हो, प्रतीत नहीं होता। ऐसा लगता है कि इस पार्टी एवं उसके नेताओं को मोदी सरकार के हर काम और निर्णय का विरोध करने की आदत पड़ गई है। ऐसा तभी होता है, जब कोई अंधविरोध से ग्रस्त हो जाता है।...
डाॅक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ*

डाॅक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ*

TOP STORIES, घोटाला, विश्लेषण
डाॅक्टरी को ठगी का धंधा न बनाएँ* *डॉ. वैदिक* कर्नाटक और गुजरात के मेडिकल काॅलेजों ने गज़ब कर दिया है। उन्होंने अपने छात्रों की फीस बढ़ाकर लगभग दो लाख रु. प्रति मास कर दी है। याने हर छात्र और छात्रा को डाॅक्टर बनने के लिए लगभग 25 लाख रु. हर साल जमा करवाने पड़ेंगे। यदि डाॅक्टरी की पढ़ाई पांच साल की है तो उन्हें सवा करोड़ रु. भरने पड़ेंगे। आप ही बताइए कि देश में कितने लोग ऐसे हैं, जो सवा करोड़ रु. खर्च कर सकते हैं? लेकिन चाहे जो हो, उन्हें बच्चों को डाॅक्टर तो बनाना ही है। तो वे क्या करेंगे? बैंकों, निजी संस्थाओं, सेठों और अपने रिश्तेदारों से कर्ज लेंगे, उसका ब्याज भी भरेंगे और बच्चों को किसी तरह डाॅक्टर की डिग्री दिला देंगे। फिर वे अपना कर्ज कैसे उतारेंगे? या तो वे कई गैर-कानूनी हथकंडों का सहारा लेंगे या उनका सबसे सादा तरीका यह होगा कि वे अपने डाॅक्टर बने बच्चों से कहेंगे कि तुम मरीजो...
सब के लिए एक-जैसा कानून कैसे ?*

सब के लिए एक-जैसा कानून कैसे ?*

विश्लेषण, समाचार
सब के लिए एक-जैसा कानून कैसे ?* *डॉ. वेदप्रताप वैदिक* भाजपा राज्यों की सरकारें एक के बाद एक घोषणा कर रही हैं कि वे समान आचार संहिता अपने-अपने राज्यों में लागू करनेवाली हैं। यह घोषणा उत्तराखंड, हिमाचल और गुजरात की सरकारों ने की हैं। अन्य राज्यों की भाजपा सरकारें भी ऐसी घोषणाएं कर सकती हैं लेकिन वहां अभी चुनाव नहीं हो रहे हैं। जहां-जहां चुनाव होते हैं, वहां-वहां इस तरह की घोषणाएं कर दी जाती हैं। क्यों कर दी जाती हैं? क्योंकि हिंदुओं के थोक वोट कबाड़ने में आसानी हो जाती है और मुसलमान औरतों को भी कहा जाता है कि तुम्हें डेढ़ हजार साल पुराने अरबी कानूनों से हम मुक्ति दिला देंगे। यह बात सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है और इतनी तर्कसंगत भी लगती है कि कोई पार्टी या नेता इसका विरोध नहीं कर पाता। हाँ, कुछ कट्टर धर्मध्वजी लोग इसका विरोध जरूर करते हैं, क्योंकि उनकी मान्यता है कि यह उनके धार्मिक क...
घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है।

घर पर मिली भावनात्मक और नैतिक शिक्षा बच्चों के जीवन का आधार है।

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-सत्यवान 'सौरभ' बचपन एक बच्चे के विकास में एक महत्वपूर्ण समय होता है क्योंकि यह अवधि बच्चे के जीवन भर सीखने और कल्याण की नींव रखती है। इसलिए इसे जीवन में विकास का सबसे महत्वपूर्ण चरण माना जाता है, जो वयस्कों और फलस्वरूप कल के समाज को आकार देता है। इसलिए इस अवधि में बच्चों के विकास की रक्षा करना माता-पिता, राज्यों और उन सभी व्यक्तियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो एक बेहतर दुनिया के निर्माण में योगदान देना चाहते हैं।जैसे, बच्चों के शुरुआती अनुभव उनके पूरे जीवन को आकार देते हैं। ये शुरुआती अनुभव बच्चे के मस्तिष्क की वास्तुकला की नींव रखते हैं, और बच्चे की सीखने की क्षमता, उनके स्वास्थ्य और जीवन भर उनके व्यवहार की ताकत या कमजोरी को दृढ़ता से प्रभावित करते हैं। प्रत्येक बच्चा अपने पर्यावरण से प्रभावित होता है और बच्चे का सबसे पहला वातावरण घर होता है। माता-पिता बच्चे के जीवन में सबसे प्रभा...
गरीबों के लिए आरक्षण की अस्पष्टता

गरीबों के लिए आरक्षण की अस्पष्टता

TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
गरीबों के लिए आरक्षण की अस्पष्टता भारत का संविधान ऐतिहासिक अन्याय का निवारण करता है और “समानता” की भावना के साथ उच्च शिक्षा और सार्वजनिक रोजगार के मामलों में उत्पन्न असंतुलन को संतुलित करता है। अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता और सभी के लिए कानून के समान संरक्षण की गारंटी देता है। समानता का सिद्धांत मूल संरचना की एक अनिवार्य विशेषता है। इस ‘समानता संहिता’ में हुए किसी भी परिवर्तन के विभिन्न पहलुओं को एम.नागराज मामले में निर्धारित ‘पहचान’ और ‘आयाम’ के व्यापक रूप से स्वीकृत परीक्षणों से गुजरना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए विकसित किया गया था कि जब भी आरक्षण के संबंध में कोई संशोधन किया जाता है तो कानून में समता और समानता के बीच संतुलन बना रहे। -प्रियंका सौरभ आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए विशेष उपायों और आरक्षण की शुरुआत करने वाले 103 वें संविधान संशोधन अधिनियम क...
भयावह व अनिश्चित भविष्य के बीच – अनुज अग्रवाल

भयावह व अनिश्चित भविष्य के बीच – अनुज अग्रवाल

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सभ्यताएँ जब अपने शिखर पर पहुँचती हैं तो उसके उपरांत बस पराभव की ओर ही जा सकती हैं। मानव सभ्यता क्या ऐसे ही दौर में है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी व बाजार की उपलब्धियों के इस स्वर्णिमकाल में हम सबसे ज़्यादा डरे हुए हैं और हताश व निराश हैं। यूँ तो मानव अपने उद्भव काल से ही निरंतर संघर्ष कर आगे बढ़ता आया है। हमारा उद्विकास इसका गवाह है। प्रकृति से हमारा संघर्ष और सामंजस्य हमारी जीत की कहानी है। यह उपलब्धि हमारे लिए गर्व की बात रही है किंतु इस गर्व के “अभिमान” व “अति”में बदलने के कारण हम नियंत्रण खो बैठे हैं। उपलब्धियों के अभिमान में अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं कर पाए और उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम प्रकृति का अनियंत्रित दोहन करने लगे। नतीजा ग्लोबल वार्मिंग व जलवायु परिवर्तन। भारत की ही बात करें तो वर्ष 2021 में हमारी जीडीपी वृद्धि 9% के आस पास थी ( इस बर्ष यह 6% के आसपास ही होगी)...