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खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति

खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति

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खेलों में भारत के बढ़ते कदम, 61 पदकों के साथ बना खेल महाशक्ति आर.के. सिन्हा यह कोई बहुत पुरानी बात नहीं हैं जब अंतरराष्ट्रीय स्तर के खेल आयोजनों में भारत की लगभग सांकेतिक उपस्थिति ही रहा करती थी। हम हॉकी में तो कभी-कभार बेहतर प्रदर्शन कर लिया करते थे, पर शेष खेलों में हमारा प्रदर्शन औसत से नीचे या खराब ही रहता था। हमारे खिलाड़ियों- अधिकरियों की टोलियां वहां पर जाकर मौज-मस्ती करके वापस आ जाया करती थी। हिन्दुस्तानी खेल प्रेमियों की निगाहें तरस जाती थीं कि एक अदद पदक को देखने के लिए। पर गुजरे दशक से स्थितियां तेजी से बदल रही हैं खासकर मोदी सरकार के आने के बाद। सबसे बड़ी बात ये है कि हम बैडमिंटन में विश्व चैंपियन बनने लगे हैं, हमारा धावक ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतता है और क्रिकेट में तो हम विश्व की सबस बड़ी शक्ति हैं ही। इस कामनवेल्थ गेम में 22 स्वर्ण पदकों सहित कुल 61 पदकों...
हर घर तिरंगा अभियान और देशभक्ति के मायने

हर घर तिरंगा अभियान और देशभक्ति के मायने

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हर घर तिरंगा अभियान और देशभक्ति के मायने नागरिकों के सुरक्षित और समृद्धशाली जीवन के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है; उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और समृद्धी का होना। इसलिए क्या आपको हर घर तिरंगा फहराने के साथ-साथ हर घर रोज़गार की आवश्यकता ज़्यादा नहीं लग रही है ? आज  आज़ादी के 75 साल बाद भी देश के नौजवान बेरोजागरी के चलते आत्महत्या करने को मजबूर है।  हम सभी देश वासी हर घर तिरंगा लहरायेंगे, लेकिन इस स्वतंत्रता दिवस पर हमें लाल किले से ये आवाज़ भी तो सुनाई दे कि देश के हर नागरिक को समान शिक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा, रोजगार गारंटी दी जाएगी। यही तो सच्चा राष्ट्रवाद है। -प्रियंका 'सौरभ' हर घर तिरंगा आज़ादी का अमृत महोत्सव के तहत एक अभियान है। यह अभियान लोगों को भारत की आजादी के 75वें वर्ष में तिरंगा घर लाने और इसे फहराने के लिए प्रोत्साहित करता है। नागरिकों और तिरंगे के बीच संबंध हमेशा से...
वृद्ध वयस्कों के बीच सामाजिक डिस्कनेक्ट

वृद्ध वयस्कों के बीच सामाजिक डिस्कनेक्ट

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वृद्ध वयस्कों के बीच सामाजिक डिस्कनेक्ट मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं। एक विकासवादी दृष्टिकोण से, हमारे प्रारंभिक अस्तित्व के लिए सामाजिक संबंध आवश्यक थे, और अभी भी बहुत कुछ हैं। वास्तव में, सामाजिक जुड़ाव मानव जीवन के सबसे बुनियादी पहलुओं में से एक है और हमारी भलाई के लिए महत्वपूर्ण है। दूसरों के लिए डिस्कनेक्ट या अनदेखा महसूस करना न केवल दर्दनाक भावनात्मक अवस्थाओं को उजागर करेगा, बल्कि एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता-संबंधितता की आवश्यकता को भी विफल कर देगा। हालाँकि, जिस तरह प्यास हमें पानी पीने के लिए एक संकेत के रूप में कार्य करती है, उसी तरह दर्दनाक भावनात्मक अवस्थाएँ हमें दूसरों के साथ अधिक संबंध बनाने के लिए एक संकेत के रूप में काम कर सकती हैं।मौजूदा साक्ष्य इंगित करते हैं कि सामाजिक जुड़ाव का स्वास्थ्य और दीर्घायु पर एक शक्तिशाली प्रभाव है। उदाहरण के लिए, जो लोग दूसरों से अधिक जुड़ाव ...
एड्स उन्मूलन कैसे होगा यदि सरकारें अमीर देशों पर निर्भर रहेंगी?

एड्स उन्मूलन कैसे होगा यदि सरकारें अमीर देशों पर निर्भर रहेंगी?

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एड्स उन्मूलन कैसे होगा यदि सरकारें अमीर देशों पर निर्भर रहेंगी? बॉबी रमाकांत - सीएनएस इस बात में कोई संशय नहीं है कि स्वास्थ्य-चिकित्सा क्षेत्र में तमाम नवीनतम तकनीकी, जैसे कि वैक्सीन, जाँच प्रणाली, दवाएँ, आदि अमीर देशों में विकसित हुए हैं। 4 दशकों से अधिक हो गए हैं जब एचआईवी से संक्रमित पहले व्यक्ति की पुष्टि हुई थी। यदि मूल्यांकन करें तो एचआईवी से प्रभावित समुदाय के निरंतर संघर्ष करने की हिम्मत, और विकासशील देशों (जैसे कि भारत) की जेनेरिक दवाएँ, टीके आदि को बनाने की क्षमता न होती, तो क्या दवाएँ सैंकड़ों गुणा सस्ती हुई होती और ग़रीब देशों तक पहुँची होतीं? आज भी, अमीर देशों में दवाएँ, भारत की तुलना में, सैंकड़ों गुणा महँगी हैं। अमीर देशों पर निर्भर रहते तो कैसे लगभग 3 करोड़ लोगों को जीवनरक्षक एंटीरेट्रोवाइरल दवाएँ मिल रही होतीं? गौर करें कि इनमें से अधिकांश लोग जो एचआईवी के साथ जीवित ह...
जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं?

जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं?

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जो लोग जलवायु आपदा का सबसे तीव्रतम प्रभाव झेलते हैं वहीं जलवायु नीति-निर्माण से क्यों ग़ायब हैं? बॉबी रमाकांत - सीएनएस पैसिफ़िक क्षेत्र के द्वीप देश, फ़िजी, की मेनका गौंदन ने कहा कि पैसिफ़िक महासागर (प्रशांत महासागर) दुनिया का सबसे विशाल सागर है परंतु भीषण जलवायु आपदाएँ भी यहीं पर व्याप्त हैं। पैसिफ़िक क्षेत्र के द्वीप देशों ने जलवायु को सबसे कम क्षति पहुँचायी है परंतु जलवायु आपदा का सबसे भीषण कुप्रभाव इन्हीं को झेलना पड़ रहा है। प्रशांत महासागर का तापमान बढ़ रहा है जिसके कारणवश जल-स्तर में बढ़ोतरी हो रही है और छोटे पैसिफ़िक द्वीप देश जैसे कि नाउरु और तुवालू पर यह ख़तरा मंडरा रहा है कि कहीं वह समुद्री जल में विलुप्त न हो जाएँ। मेनका गौंदन, फ़िजी महिला कोश की अध्यक्ष हैं और २४वें इंटरनेशनल एड्स कॉन्फ़्रेन्स में हिंदी-भाषी प्रकाशन के विमोचन सत्र को सम्बोधित कर रही थीं। यह हिंदी-भाषी प...
पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प

पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प

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पर्यावरण का संकट एवं द्रौपदी मुर्मू का संकल्प -ः ललित गर्ग :- भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप मंे देश के सर्वाेच्च पद पर, प्रथम नागरिक के आसन पर एक व्यक्ति नहीं, निष्पक्षता और नैतिकता, पर्यावरण एवं प्रकृति, जमीन एवं जनजातीयता के मूल्य आसीन हुए हैं। आजाद भारत में पैदा होकर आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में एक ऐसा व्यक्तित्व द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति के आसन पर विराजमान हुई है, जिससे पूरा देश गर्व एवं गौरव का अनुभव कर रहा है। उनके शपथ ग्रहण के साथ देश के जनजाति और वनवासी समुदाय का सिर जिस तरह गर्व से ऊंचा उठा है, वह भारतीय राष्ट्र की नई ताकत और भारतीय राजनीति के नए विस्तार की ओर इशारा करता है। निश्चित ही आदिवासी समुदाय का राष्ट्र की मूलधारा में विस्तार होगा। शपथ ग्रहण के बाद अपने पहले संबोधन में राष्ट्रपति मुर्मू ने आजादी के अमृत महोत्सव को याद किया, जिसे हम कुछ ही दिनों में मनाने वाले है...
समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

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समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता सम्पूर्ण राम-साहित्य हमारी सनातन संस्कृति का पोषक है। उसका प्रत्येक क्रियाकलाप तथा घटनाक्रम श्रीराम भक्त का मार्गदर्शन करते हैं। जीवन के नकारात्मक विचारों को नष्ट कर सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस का पंचम काण्ड सुन्दरकाण्ड हमारा पग-पग पर मार्गदर्शन करता है। समाज के कतिपय प्रमुख वर्ग के लिए सुन्दरकाण्ड कितना उपयोगी है इस विषय पर हम अपने विचार व्यक्त करने का प्रयत्न करेंगे- विद्यार्थी वर्ग - बालक के जीवन की सुदृढ़ नींव उसकी बाल्यावस्था में ही रखी जाती है। उस समय उसमें जिन आदतों का बीजारोपण कर दिया जाता है, वहीं से उसके जीवन का विकासक्रम प्रारंभ हो जाता है। श्रीराम की बाल्यावस्था पर दृष्टिपात करें तो हमें बालकाण्ड पढ़ना होगा- 'प्रात:काल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।। आयसु मागि कर...
सर्वोच्च संवैधानिक पदों का चुनाव और विकृत राजनीति

सर्वोच्च संवैधानिक पदों का चुनाव और विकृत राजनीति

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सर्वोच्च संवैधानिक पदों का चुनाव और विकृत राजनीति मृत्युंजय दीक्षित देश में नये राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चयन की प्रक्रिया जारी है और इस कड़ी में राष्ट्रपति पद के लिए मतदान संपन्न हो चुका है। राष्ट्रपति पद के लिए सत्तारूढ़ एनडीए की ओर से आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष की ओर से यशवंत सिन्हा उम्मीदवार हैं जबकि उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए की ओर से जगदीप धनखड़ और विपक्ष की ओर से राजस्थान की पूर्व राज्यपाल मार्गरेट अल्वा उम्मीदवार हैं। राष्ट्रपति पद के लिए मतदान संपन्न हो चुका है लेकिन इस बीच जिस प्रकार की राजनीति और बयानबाजी देखने को मिली है वह बेहद ही शर्मनाक और विकृत मानसिकता वाली रही है। यह भी साफ हो गया है कि वर्तमान समय में देश के सभी विरोधी दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके नेतृत्व में भाजपा को मिल रही लगातार विजय से कितने कुंठित हो गये हैं कि वह विरोध करने के लिए किसी भ...
खेतों में करंट से मरते किसान, क्या हो समाधान?

खेतों में करंट से मरते किसान, क्या हो समाधान?

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खेतों में करंट से मरते किसान, क्या हो समाधान?  कारण जो भी हो, यह बहुत दुखद है कि हमारे किसान, हमारे देश के खाद्य प्रदाता, अपनी दैनिक दिनचर्या को ईमानदारी से निभाने में मर रहे हैं। नयी योजनाओं के साथ-साथ बिजली के ढीले तार ठीक करना, हाईवोल्टेज बिजली पोल का समाधान ढूंढना, खेत में लगाई जाली से बचना, रात को पानी चलाते समय सावधानी खेतों में किसानों को असमय मौत से बचा सकती है। -प्रियंका 'सौरभ' भारत में हर साल  लगभग 11 हजार कृषि श्रमिकों की मौत बिजली के करंट से हो रही है। हर दिन औसतन 50 लोगों की मौत हो रही है। इसका कारण वायरिंग, कट और गिरी हुई ट्रांसमिशन लाइनों में मानकों का पालन न करना, उम्र बढ़ने, जंग और नम परिस्थितियों में मोटर केसिंग और कंट्रोल बॉक्स पर कंडक्टिव पथ के गठन के कारण होता है। कारण जो भी हो, यह बहुत दुखद है कि हमारे किसान, हमारे देश के खाद्य प्रदाता, अपनी...
सशक्त विपक्ष के बिना लोकतंत्र अधूरा

सशक्त विपक्ष के बिना लोकतंत्र अधूरा

राष्ट्रीय, विश्लेषण
सशक्त विपक्ष के बिना लोकतंत्र अधूरा-ः ललित गर्ग :-भारतीय लोकतंत्र के सम्मुख एक ज्वलंत प्रश्न उभर के सामने आया है कि क्या भारतीय राजनीति विपक्ष विहीन हो गई है? आज विपक्ष इतना कमजोर नजर आ रहा है कि सशक्त या ठोस राजनीतिक विकल्प की संभावनाएं समाप्त प्रायः लग रही हैं। इतना ही नहीं, विपक्ष राजनीति ही नहीं, नीति विहीन भी हो गया है? यही कारण है कि आजादी का अमृत महोत्सव के अवसर तक पहुंचते हुए राजनीतिक सफर में विपक्ष की इतनी निस्तेज, बदतर एवं विलोपपूर्ण स्थिति कभी नहीं रही। इस तरह का माहौल लोकतंत्र के लिये एक चुनौती एवं विडम्बना है। भले ही पूर्व दशकों में कांग्रेस भारी बहुमत में आया करती थी परन्तु छोटी-छोटी संख्या में आने वाले राजनीतिक दल लगातार सरकार को अपने तर्कों एवं जागरूकता से दबाव में रखते थे, अपनी जीवंत एवं प्रभावी भूमिका से सत्ता पर दबाव बनाते थे, यही लोकतंत्र की जीवंतता का प्रमाण था। लेकिन ...