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यूक्रेन: भारत ने मुँह खोला

यूक्रेन: भारत ने मुँह खोला

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यूक्रेन: भारत ने मुँह खोला* *डॉ. वेदप्रताप वैदिक* संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में हमारे प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति ने कल यूक्रेन के बारे में जो बयान दिया है, वह विश्व राजनीति में भारत की छवि को तो बेहतर बनाएगा ही, वह रूस को भी अपनी पशुता से बाज आने के लिए शायद प्रेरित कर दे ।तिरुमूर्ति ने यूक्रेन के शहर बूचा में हुए नर-संहार की दो-टूक शब्दों में भर्त्सना की है। उन्होंने मांग की है कि इस नरसंहार की जांच की जानी चाहिए और इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। उन्होंने नरसंहार करनेवाले रूस का नाम नहीं लिया। यह सावधानी उन्होंने जरुर बरती लेकिन यह स्पष्ट है कि उन्होंने रूसी फौज के अत्याचार की उतनी ही सख्त आलोचना की है, जितनी अमेरिका और यूरोपीय देश कर रहे हैं। भारत की इस आलोचना का शायद रूस पर कोई असर न पड़े लेकिन भारत की तटस्थता को अब दुनिया के राष्ट्र भारत का गूंगापन नहीं समझेंगे। भारत ने हालांकि कई अ...
यूक्रेन संकट के बीच भारत की सामरिक स्वतंत्रता

यूक्रेन संकट के बीच भारत की सामरिक स्वतंत्रता

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यूक्रेन संकट के बीच भारत की सामरिक स्वतंत्रता -सत्यवान 'सौरभ' यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों ने भारत को असहज स्थिति में छोड़ दिया है क्योंकि यह मास्को और पश्चिम दोनों के साथ अपने हितों को संतुलित करने का प्रयास करता है। चीन और पाकिस्तान के साथ अपने ही पड़ोस में अपने अनुभवों को देखते हुए, भारत एक देश की दूसरे के साथ साझा की जाने वाली सीमाओं को बदलने के एकतरफा प्रयास की निंदा नहीं करने के निहितार्थों से भी सावधान है। क्वाड सदस्यों के साथ रियायतें और समझ में भारत ने तटस्थता बनाए रखना उचित समझा और भारत ने यूएनएससी या संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूसी आक्रमण के खिलाफ मतदान नहीं किया है और इस प्रकार तटस्थता बनाए रखी है। रूसी तेल खरीद कर अपने कच्चे तेल को सस्ते में बेचने की रूसी पेशकश का लाभ उठाते हुए, भारत 2022 में स्वीकृत राष्ट्र से लगभग 1.5 मिलियन बैरल कच्चे तेल का आयात कर सकता है। इसके ...
कोरोना को संक्रामक बनाने वाली आणविक संरचना का खुलासा

कोरोना को संक्रामक बनाने वाली आणविक संरचना का खुलासा

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नई दिल्ली, 05 अप्रैल (इंडिया साइंस वायर): भारतीय शोधकर्ताओं को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार कोरोना वायरस के सक्रिय प्रोटीन क्षेत्र की आणविक संरचना दर्शाने में सफलता मिली है। शोधकर्ताओं ने एक महत्वपूर्ण स्पाइक प्रोटीन के एक अनुभाग की संरचना का अध्ययन किया है, जो कोरोना वायरस को संक्रामक बनाता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आधार पर स्पाइक प्रोटीन के विशिष्ट हिस्से को लक्ष्य बनाने वाली दवाओं की खोज का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के प्रमुख शोधकर्ता डॉ रजनीश गिरी बताते हैं कि “एंडोडोमेन, स्पाइक प्रोटीन का वायरस के अंदर वाला हिस्सा होता है। हमने पाया कि इसकी आणविक संरचना कठोर नहीं होती, बल्कि एंडोडोमेन बेहद लचीला होता है। किसी संरचना के अभाव में यह वायरस के डार्क प्राटीयोम का हिस...
10 reasons why Russia had to invade Ukraine.

10 reasons why Russia had to invade Ukraine.

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10 reasons why Russia had to invade Ukraine. 1. Crimea Most of Russia's ports are iced over for about 6 months in a year and hence not useful for global trade by sea. The port at Sevastopol on Crimean peninsular is one of the few ports that operate all year long and through which much of Russian imports and exports flow. Crimea is an existential requirement for Russia and its forceful occupation in 2014, Russia wants to formalise its annexation. 2. Ports on the Black Sea and Sea of Azov There are many other ports that are currently in Ukraine and on the Black Sea, such as Odessa which is essential for both Ukraine and Russia. Russia covets this coastline and to convert Ukraine into a landlocked country so that NATO will not be able to misuse the Black Sea ports to supply Ukraine wi...
जब हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को जीवन रक्षक दवाएं मिलेंगी तभी एड्स उन्मूलन सम्भव है

जब हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को जीवन रक्षक दवाएं मिलेंगी तभी एड्स उन्मूलन सम्भव है

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जब हर एचआईवी पॉजिटिव व्यक्ति को जीवन रक्षक दवाएं मिलेंगी तभी एड्स उन्मूलन सम्भव है शोभा शुक्ला - हर एचआईवी पॉजिटिव इंसान को सही जांच से यह पता होना चाहिए कि वह एचआईवी पॉजिटिव है, सबको जीवन रक्षक एंटीरेट्रोवायरल दवाएं मिलें, और सभी का वायरल लोड नगण्य रहे, तब ही एड्स उन्मूलन सम्भव है। न सिर्फ़ सभी एचआईवी के साथ जीवित लोग पूर्ण ज़िंदगी जी सकेंगे बल्कि एचआईवी के फैलाव पर भी रोकथाम लगेगा। एक ओर जहां नए एचआईवी सम्बंधित शोध को तेज करने की ज़रूरत है जिससे कि अधिक प्रभावकारी जांच, इलाज और बचाव साधन हम सब को मिलें, वहीं यह भी सच है कि हर एक को जाँच, एंटीरेट्रोवायरल दवा और वायरल लोड नियंत्रित करने की सेवा देना आज मुमकिन है - जिससे कि एड्स उन्मूलन की दिशा में तेजी से कदम बढ़ें। यह कहना है डॉ ईश्वर गिलाडा का जो एड्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के १३ वें राष्ट्रीय अधिवेशन के अध्यक्ष हैं, और इंटर्नैशनल ए...
डॉ अर्चना शर्मा की शहादत से सबक

डॉ अर्चना शर्मा की शहादत से सबक

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डॉ अर्चना शर्मा की शहादत से सबक ॰विनीत नारायण दौसा ;राजस्थानद्ध की युवा डाक्टर अर्चना शर्मा की ख़ुदकुशी के लिए कौन ज़िम्मेदार हैघ् महिला रोग विशेषज्ञए स्वर्ण पदक विजेताए मेधावी और अपने कार्य में कुशल डॉ अर्चना शर्मा इतना क्यों डर गई कि उन्होंने मासूम बच्चों और डाक्टर पति के भविष्य का भी विचार नहीं किया और एक अख़बार की खबर पढ़ कर आत्महत्या कर ली। पत्रकार होने के नाते डॉ शर्मा की इस दुखद मृत्यु के लिए मैं उस संवाददाता को सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार मानता हूँ जिसने पुलिस की एफ़आईआर को ही आधार बनाकर अपनी खबर इस तरह छापी कि उसके कुछ घण्टों के भीतर ही डॉ अर्चना शर्मा फाँसी के फंदे पर लटक गई। लगता है कि इस संवाददाता ने खबर लिखने से पहले डॉ अर्चना से उनका पक्ष जानने की कोई कोशिश नहीं की। आज मीडिया में ये प्रवृत्ति लगातार बढ़ती जा रही है जब संवाददाता एकतरफ़ा खबर छाप कर सनसनी पैदा करते हैंए किसी प्रति...
भारत की तटीय रेखा का एक तिहाई भाग अपरदन का शिकार

भारत की तटीय रेखा का एक तिहाई भाग अपरदन का शिकार

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भारत की तटीय रेखा का एक तिहाई भाग अपरदन का शिकार नई दिल्ली, 01 अप्रैल (इंडिया साइंस वायर): देश के नौ तटीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की 33.6 प्रतिशत तटरेखा में अलग-अलग स्तर का कटाव हो रहा है। इन राज्यों में छह हजार किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा का विश्लेषण करने के बाद ये तथ्य उभरकर आये हैं। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय से संबद्ध राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (एनसीसीआर) वर्ष 1990 से रिमोट सेंसिंग डेटा तथा जीआईस मैपिंग तकनीकों का प्रयोग करते हुए तटरेखा में होने वाले कटाव की निगरानी कर रहा है। वर्ष 1990 से 2018 के दौरान भारतीय मुख्यभूमि की कुल 6,632 किलोमीटर लंबी तटरेखा का विश्वलेषण किया गया है, जिसमें से 2156 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा में कटाव होने का खुलासा हुआ है। पश्चिम बंगाल की 534 किलोमीटर तटरेखा के सबसे अधिक 60 प्रतिशत हिस्से में कटाव हो रहा है। वहीं, 139.64 किलोमीटर लंबी ...
स्वस्थ दुनिया के लिए मोटे अनाजों को महत्व देना जरूरी

स्वस्थ दुनिया के लिए मोटे अनाजों को महत्व देना जरूरी

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स्वस्थ दुनिया के लिए मोटे अनाजों को महत्व देना जरूरी ( मोटे अनाज) के महत्त्व को पहचान कर भारत सरकार ने 2018 में यह प्रस्ताव दिया था कि 2023 को मिलेट ईयर के रूप में मनाया जाए. ताकि मोटे अनाज के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जा सके. अभी हाल ही में हरियाणा सरकार के कृषि एवं पशुपालन मंत्री जयप्रकाश दलाल ने मोटे अपने राज्य में मोटे अनाज की पैदावार को बढ़ावा देने के लिए हरियाणा कृषि विश्विद्यालय के तहत भिवानी के गाँव गोकुलपुरा में एक रिसर्च सेंटर खोलने की शुरुवात की है जो इस अनाज को एक अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाकर बाजरा उत्पादक किसानों की माल हालात को सुधार करने की दिशा में काम करेगा.) ---सत्यवान 'सौरभ' बाजरा को अक्सर सुपरफूड के रूप में जाना जाता है और इसके उत्पादन को स्थायी कृषि और स्वस्थ दुनिया के लिए मोटे अनाजों के महत्व को समझा है, इसलिए किसानों के लिए इसे उगा...
सार्वजनिक धन के कुशल उपयोग के लिए कई सुधारों की आवश्यकता

सार्वजनिक धन के कुशल उपयोग के लिए कई सुधारों की आवश्यकता

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सार्वजनिक धन के कुशल उपयोग के लिए कई सुधारों की आवश्यकता -सत्यवान 'सौरभ' उचित रूप से प्रबंधित लेखा प्रणाली धन पर उचित नियंत्रण सुनिश्चित करने में मदद करती है। लेखांकन नीतियों और प्रक्रियाओं को वित्तीय नियंत्रण को नियंत्रित करने वाली कानूनी/प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को पूरा करने वाले खातों को संकलित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। खाते गतिविधियों के वित्तीय प्रबंधन का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। खातों के आधार पर, सरकार अपनी वित्तीय और राजकोषीय नीतियों के आकार को नियंत्रित करती है। वर्तमान समाज की जरूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग के लिए सार्वजनिक धन का कुशल उपयोग इस तरह से आवश्यक है कि यह भविष्य की पीढ़ियों के समाजों की अपनी जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता न करे। भारत में सार्वजनिक धन के प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी और ...
संसदीय लोकतंत्र और वैश्वीकरण

संसदीय लोकतंत्र और वैश्वीकरण

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संसदीय लोकतंत्र और वैश्वीकरण  संसद सरकार के कामकाज के लिए एक केंद्रीय आधारभूत संस्था है। दुनिया भर के देशों ने संसदीय संस्थाओं को इस तरह विकसित किया है जो स्थानीय जरूरतों के लिए सबसे उपयुक्त है। सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं के बावजूद, एक सामान्य बात यह है कि विभिन्न देशों की संसदें लोगों का प्रतिनिधित्व करती हैं और उनकी जरूरतों, आशाओं और आकांक्षाओं की पूर्ति करती हैं; संसद लोगों के प्रतिनिधियों को स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करने और सरकारी गतिविधियों की जांच करने के लिए एक मंच प्रदान करती है। इस मंच पर ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर विस्तार से चर्चा की जाती है और शासन के विभिन्न कानूनों, नीतियों और कार्यक्रमों को आकार दिया जाता है। संसद की संस्था एक जीवित इकाई है। इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उभरती जरूरतों और लगातार बदलते परिदृश्य के साथ खुद...