प्रकृति एवं मानव का शांतिपूर्ण सहअस्तित्व ख़तरे में?
राकेश दुबे
विश्व में युद्ध के कारण विभाजित होती वैश्विक शक्तियाँ और पर्यावरणीय बदलावों में तेजी-परिणाम ठीक नहीं हैं। अभूतपूर्व ग्रीष्म लहरें, बर्फानी तूफान, बाढ़,सूखा, ग्लेशियर पिघलना और ऊंची उठती समुद्र जल-सतह। हमने स्वयं ये संकट पैदा किए हैं। फिर भी राजनेता विज्ञान और तर्क की आवाज दबा रहे हैं। हमारे ग्रह के वजूद को खतरा मुंह बाए खड़ा है। लगता है आज के इंसान के एजेंडे में मनुष्य-मनुष्य के बीच और प्रकृति एवं मानव के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं है।
थोड़ा इतिहास - जब ब्रिटिश साम्राज्य का सूरज ढलने लगा और अमेरिकी-सोवियत साम्राज्य का उदय हुआ। एक ‘फौलादी दीवार’ ने यूरोप को दो हिस्सों में बांट डाला, पश्चिमी गठबंधन वाला पश्चिमी यूरोप और सोवियत संघ से जुड़ा पूर्वी यूरोप। साथ ही, दक्षिण अमेरिका मानो संयुक्त राष्ट्र अमेरिका का पिछला आंगन बन गया तो एशिया का मध्य हिस्सा स...