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संस्कृति और अध्यात्म

खुशियों और सौगातों का त्योहार है दीपावली

खुशियों और सौगातों का त्योहार है दीपावली

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खुशियों और सौगातों का त्योहार है दीपावली बाकी सारे त्योहारों का धार्मिक महत्व है पर दीपावली का एक व्यावसायिक महत्व है। सोना और चांदी की बिक्री भी इसी सीजन में सबसे ज्यादा होती है और कपड़ों की भी। इस मौके पर उपहार और भेंटें देने के कारण भी तमाम सारे गिफ्ट आइटमों की बिक्री भी बढ़ जाती है। यानी अकेले दीपावली का बाजार अपने देश में करीब अरबों का है। भारतीय उपभोक्ता का असली बाजार दरअसल दीपावली है। ऐसा त्योहार क्यों न हर एक के लिए खुशियां और सौगात लेकर आए। दीपावली की यह रौनक और यह उत्साह बना रहना चाहिए। -प्रियंका सौरभ देश में "रोशनी का त्योहार" दिवाली के रूप में जाना जाता है। दीवाली, जिसे कभी-कभी दिवाली के रूप में लिखा जाता है, एक हिंदू, सिख और जैन धार्मिक उत्सव है जो अंधेरे के 13 वें दिन शुरू होता है। चन्द्रमा का आधा चक्र अश्विना और चन्द्र मास कार्तिक की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को ...
भारतीय सांस्कृतिक

भारतीय सांस्कृतिक

संस्कृति और अध्यात्म
ह्रदय नारायण दीक्षित श्रद्धा और सत्य का प्रणय संस्कृति है। संस्कृति इस राष्ट्र का प्राण है। भारत सांस्कृतिक राष्ट्र है। यहां की संस्कृति अति प्राचीन है। विश्व विराट संरचना है। भारतीय सांस्कृतिक दृष्टि में यह परिवार है। पृथ्वी भौतिक इकाई है, सांस्कृतिक दृष्टि से यह माता हैं। आकाश भौतिक दृष्टि में खगोलीय संरचना हैं, सांस्कृतिक दृष्टि में आकाश पिता हैं। सूर्य ऊर्जा का विराट केन्द्र हैं, सांस्कृतिक दृष्टि में वे उपास्य सविता देव हैं। नदियां प्रवाहमान जल हैं, सांस्कृतिक दृष्टि से वे जलमाताएं हैं। हिन्दी संस्कृत सहित देश की सभी भाषाओं में यहां विपुल साहित्य रचा गया है। संगीत, नृत्य, मूर्तिकला, चित्रकारी आदि कलाओं से समृद्ध संस्कृति विश्व प्रतिष्ठ है। यहां धर्म भी संस्कृति का प्रेरक रहा है। यहां प्राचीन काल से सांस्कृतिक केन्द्रों के दर्शन तीर्थाटन, पर्व और उत्सव की परंपरा रही है। ...
शरद पूर्णिमा और रत्नाकर से महर्षि बनने की यात्रा करने वाले महापुरूष वाल्मीकि-

शरद पूर्णिमा और रत्नाकर से महर्षि बनने की यात्रा करने वाले महापुरूष वाल्मीकि-

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शरद पूर्णिमा ( इस वर्ष 9 अक्टूबर 2022) पर विशेष शरद पूर्णिमा और रत्नाकर से महर्षि बनने की यात्रा करने वाले महापुरूष वाल्मीकि- शरद पूर्णिमा- आश्विन मास की पूर्णिमा का दिन शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ज्योतिष के अनुसार पूरे साल केवल इसी दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिंदू धर्म में लोग इस पर्व को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था और यह भी मान्यता प्रचलित है कि इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। इसी कारण से उत्तर भारत में इस दिन खीर बनाकर रात भर चांदनी में रखने का विधान है। महात्म्य- मान्यता है कि इस दिन कोई व्यक्ति यदि कोई अनुष्ठान करता है तो उसका अनुष्ठान अवश्य सफल होता है। इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उत्तम फल मिलते हैं। आश्विन मास की पूर्णिमा को आर...
रामलीलाओं की सशक्त वापसी की वजह

रामलीलाओं की सशक्त वापसी की वजह

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रामलीलाओं की सशक्त वापसी की वजह आर.के. सिन्हा कोरोना के कारण लगभग दो वर्षों के घोर निराशा भरे समय के बाद जीवन फिर से लगभग पटरी पा आ सा गया है। चारों तरफ उत्सव और उत्साह का वातावरण है। सकारात्मकता ने हताशा के दौर को पीछे छोड़ दिया सा लगता है। शारदीय नवरात्रि के श्रीगणेश होते ही जगह-जगह रामलीला, दुर्गापूजा और गरबा के आयोजन हो रहे हैं। रामलीलाओं में इस बार जनमानस की भी भारी उपस्थिति दर्ज हो रही है। सारे देश में रामलीला के आयोजन हो रहे हैं। इनमें राम- लक्ष्मण, राम-रावण, राम हनुमान आदि संवाद सुनने के लिए भारी संख्या में दर्शक पहुंच रहे हैं। हरेक रामलीला के साथ एक मेला भी लगा हुआ है। यह स्थिति दुर्गा पूजा की भी है। दुर्गा पूजा के पंडालों में भी भारी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। रामलीला और दुर्गा पूजा में जनता की अप्रत्याशित भागेदारी को देखकर समझा जा सकता है कि कोरोना के कारण कि...
अंधेरों में उजाले एवं सत्य की स्थापना के प्रेरक

अंधेरों में उजाले एवं सत्य की स्थापना के प्रेरक

संस्कृति और अध्यात्म
आचार्य विनोबा भावेअंधेरों में उजाले एवं सत्य की स्थापना के प्रेरक-ललित गर्ग-जब-जब मानवता विनाश की ओर बढ़ती चली जाती है, नैतिक मूल्य अपनी पहचान खोते जाते हैं, समाज में पारस्परिक संघर्ष की स्थितियां बनती हैं, समस्याओं से मानव मन कराह उठता है, तब-तब कोई न कोई महापुरुष अपने दिव्य कर्तव्य, मानवतावादी सोच, चिन्मयी पुरुषार्थ और तेजोमय शौर्य से मानव-मानव की चेतना को झंकृत कर जन-जागरण का कार्य करता है। समय-समय पर ऐसे अनेक महापुरुषों ने अपने क्रांत चिंतन के द्वारा समाज का समुचित पथदर्शन किया। महापुरुषों की इसी महिमामंडित शृंखला का एक गौरवपूर्ण नाम है आचार्य विनोबा भावे। वे हमारे लिये एक प्रकाश स्तंभ हैं, जिनकी जन्म जयन्ती 11 सितम्बर को मनाई जाती है। वे राष्ट्रीयता, नैतिकता एवं अहिंसक जीवन, पीड़ितों एवं अभावों में जी रहे लोगों के लिये आशा एवं उम्मीद की एक मीनार थे, रोशनी उनके साथ चलती थी। दिव्य कर्तव्य...
सनातन हिंदू धर्म के अनुयायियों को भी मिलें समान अधिकार

सनातन हिंदू धर्म के अनुयायियों को भी मिलें समान अधिकार

संस्कृति और अध्यात्म
सनातन हिंदू धर्म के अनुयायियों को भी मिलें समान अधिकार भारत में आज भी अरब के आक्रांता इसलिए याद किए जाते हैं कि उन्होंने बहुत बड़ी मात्रा में हिंदू मंदिरों को तोड़ा और या तो तोड़े गए इन मंदिरों की जगह मस्जिदें बना दीं अथवा इन मंदिर को तोड़कर छोड़ दिया गया। न केवल हिंदुओं के आस्था स्थलों को ध्वस्त किया गया बल्कि बहुत बड़ी संख्या में हिंदुओं का जबरन धर्म परिवर्तन भी करवाया गया और जिन हिंदुओं ने धर्म परिवर्तन नहीं किया उन्हें मार दिया गया। अरब के आक्रांताओं के बाद अंग्रेजों ने भी अपने शासनकाल में हिंदू धर्मावलंबियों पर कई प्रकार के अत्याचार किए। अंग्रेजों ने तो बाकायदा यह समझ लिया था कि भारत में सनातन धर्म को नष्ट किए बिना इस देश पर राज नहीं किया जा सकता। अतः उन्होंने सनातन संस्कृति को खत्म करने की पूरी कोशिश की। इसी तर्ज पर मैकाले सिद्धांत भारत में लागू किया गया जिसके अंतर्गत भारत की ...
भारतीय दर्शन की आज पूरे विश्व को आवश्यकता है

भारतीय दर्शन की आज पूरे विश्व को आवश्यकता है

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भारतीय दर्शन की आज पूरे विश्व को आवश्यकता है भारत वर्ष 2047 में, लगभग 1000 वर्ष के लम्बे संघर्ष में बाद, परतंत्रता की बेढ़ियां काटने में सफल हुआ है। इस बीच भारत के सनातन हिंदू संस्कृति पर बहुत आघात किए गए और अरब आक्रांताओं एवं अंग्रेजों द्वारा इसे समाप्त करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई थी। परंतु, भारतीय जनमानस की हिंदू धर्म के प्रति अगाध श्रद्धा एवं महान भारतीय संस्कृति के संस्कारों ने मिलकर ऐसा कुछ होने नहीं दिया। भारत में अनेक राज्य थे एवं अनेक राजा थे परंतु राष्ट्र फिर भी एक था। भारतीयों का एकात्मता में विश्वास ही इनकी विशेषता है। आध्यात्म ने हर भारतीय को एक किया हुआ है चाहे वह देश के किसी भी कोने में निवास करता हो और किसी भी राज्य में रहता हो। आध्यात्म आधारित दृष्टिकोण है इसलिए हम सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आध्यात्मवाद ने ही भारत के नागरिकों की रचना की है और आपस में जो...
गुजराती एवं कश्मीरी रामायणों में श्रीराम-सीताजी की अद्भुत नरलीलाएँ

गुजराती एवं कश्मीरी रामायणों में श्रीराम-सीताजी की अद्भुत नरलीलाएँ

संस्कृति और अध्यात्म
गुजराती एवं कश्मीरी रामायणों में श्रीराम-सीताजी की अद्भुत नरलीलाएँ भारत में पुरातनकाल से रामायण के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा और भक्ति रही है। यह ग्रन्थ मानव के जीवन में सुख, शान्ति, कर्त्तव्यपरायणता, सन्तोष और प्रेरणा के स्त्रोत के रूप में प्रसिद्ध है। रामायण का प्रभाव भारत में ही नहीं अपितु विदेश में भी उदाहरणस्वरूप इण्डोनेशिया, जावा आदि देशों में भी देखा जा सकता है। गुजरात में श्री गिरधर रामायण का अपना एक विशिष्ट स्थान है। गुजराती भाषा की रामायण के रचयिता महाकवि गिरधरदासजी का जन्म गुजरात के बड़ौदा (वड़ोदरा) राज्य के अन्तर्गत 'मासरÓ गाँव में ई. १७८५ (सं. १८४३) में लाड़-वैश्य परिवार में हुआ था। ये बीस वर्ष की अवस्था में बड़ौदा में जाकर रहने लगे। यहाँ आकर विद्वानों एवं साधुओं की संगति से प्रभावित होकर रामायण, महाभारत, पुराण आदि का गहन अध्ययन किया। इनके पिता का नाम श्री गरबड़दासजी था तथा वे प...
Payushan, the festival of illuminating the soul

Payushan, the festival of illuminating the soul

संस्कृति और अध्यात्म
आत्मा को ज्योतिर्मय करने का पर्व पयुर्षण  - ललित गर्ग - पयुर्षण पर्व जैन समाज का आठ दिनों का एक ऐसा महापर्व है जिसे खुली आंखों से देखते ही नहीं, जागते मन से जीते हैं। यह ऐसा मौसम है जो माहौल ही नहीं, मन को पवित्रता में भी बदल देता है। आधि, व्याधि, उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंचा देता है, जो प्रतिवर्ष सारी दुनिया में मनाया जाता है। जैनधर्म की त्याग प्रधान संस्कृति में इस पर्व का अपना अपूर्व महत्व है। इसको पर्व ही नहीं, महापर्व माना जाता है। क्योंकि यह पर्व आध्यात्मिक पर्व है, और एकमात्र आत्मशुद्धि का प्रेरक पर्व है। इसीलिए यह पर्व ही नहीं, महापर्व है। जैन लोगों का सर्वमान्य विशिष्टतम पर्व है। चारों ओर से इन्द्रिय विषयों एवं कषाय से सिमटकर, स्वभाव में, आत्मा में निवास करना, ठहरना, रहना ही पर्युषण का वास्तविक अर्थ और उद्देश्य है। जिसका भावार्थ एवं फलितार्थ होता है-कषायादि का उपशमन, इन्...
समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता

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समाज के विभिन्न वर्गों के लिए सुन्दरकाण्ड की उपयोगिता सम्पूर्ण राम-साहित्य हमारी सनातन संस्कृति का पोषक है। उसका प्रत्येक क्रियाकलाप तथा घटनाक्रम श्रीराम भक्त का मार्गदर्शन करते हैं। जीवन के नकारात्मक विचारों को नष्ट कर सकारात्मक सोच की ओर अग्रसर करते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजीकृत श्रीरामचरितमानस का पंचम काण्ड सुन्दरकाण्ड हमारा पग-पग पर मार्गदर्शन करता है। समाज के कतिपय प्रमुख वर्ग के लिए सुन्दरकाण्ड कितना उपयोगी है इस विषय पर हम अपने विचार व्यक्त करने का प्रयत्न करेंगे- विद्यार्थी वर्ग - बालक के जीवन की सुदृढ़ नींव उसकी बाल्यावस्था में ही रखी जाती है। उस समय उसमें जिन आदतों का बीजारोपण कर दिया जाता है, वहीं से उसके जीवन का विकासक्रम प्रारंभ हो जाता है। श्रीराम की बाल्यावस्था पर दृष्टिपात करें तो हमें बालकाण्ड पढ़ना होगा- 'प्रात:काल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा।। आयसु मागि कर...