Shadow

संस्कृति और अध्यात्म

वासन्ती आभा एवं सरस्वती की आराधना का पर्व वसन्त पंचमी

वासन्ती आभा एवं सरस्वती की आराधना का पर्व वसन्त पंचमी

addtop, EXCLUSIVE NEWS, संस्कृति और अध्यात्म
सम्पूर्ण प्रकृति को सौन्दर्य,मादकता तथा वाचा से महकाने वाला यह त्यौहार हमारे सनातन धर्म को ऊर्जा और वाणी से गुंजायमान करता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसन्त पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है। ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर मानव की रचना की। रचना करने के बाद उन्हें अपनी सृष्टि में कुछ कमी का आभास हुआ क्योंकि मानव को वाचा नहीं थी अतः सर्वत्र सूनापन था। ब्रह्माजी ने विष्णु जी की आज्ञा लेकर अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल का छिड़काव किया। ऐसा करने से एक कम्पन के साथ एक देवी का प्रादुर्भाव हुआ। यह वाणी प्रदाता विद्या की देवी माँ सरस्वती ही थी। ब्रह्मा ने उनसे वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की झंकार के साथ ही सम्पूर्ण सृष्टि में स्वर गुंजायमान हो गया। जगतीतल में वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। सभी प्राणी बोलने लग गये। मानव में बुद्धि का संचार हुआ। पशु-पक्षी चहचहाने लगे। चारों ओर मधुर गुंजायम...
‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग

‘‘शिवपुराण’’ में श्रीराम से निषादराज के भेंट का शिवजी द्वारा शिवरात्री को दिये गये आशीर्वाद का कथा प्रसंग

EXCLUSIVE NEWS, संस्कृति और अध्यात्म
शिवपुराण में कोटिरूद्र संहिता के अध्याय 40(गीताप्रेस,गोरखपुर) में गुरूद्रुह नामक भील की कथा वर्णित है। इस कथा में उसे भगवान शिव ने श्रृंगवेरपुर की राजधानी में वंश वृद्धि तथा श्रीराम के एक दिन घर पधारने और मित्रता का आशीर्वाद भी दिया है। सूतजी ने ऋषियों को एक निषाद का प्राचीन इतिहास सुनाया। उनके अनुसार किसी एक वन में एक भील रहता था। उसका नाम गुरूद्रुह था। वह अपने कुटुम्ब का पेट मृगों को मारकर तथा नानाप्रकार की चोरियाँ कर भरता था। एक दिन शिवरात्रि आयी तथा उसे उस व्रत का कोई ज्ञान न था। उस दिन उसके माता-पिता एवं पत्नी ने भूख से पीड़ित होकर उससे खाने का माँगा। वह धनुष लेकर वन में शिकार करने चल पड़ा। दिनभर में उसे उस दिन कुछ भी हाथ न लगा। अतः वह सूर्यास्त के समय एक जलाशय के निकट पहुँच गया। क्योंकि उसे ज्ञात था कि रात्रि में यहाँ जल पीने कोई न कोई जीव अवश्य आयेगा। ऐसा मन में निश्चय कर वह बेल (ब...
ब्रजवासियों के साथ धोखा क्यों?

ब्रजवासियों के साथ धोखा क्यों?

TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
जब से 'ब्रजतीर्थ विकास परिषद्’ का गठन हुआ है, ये एक भी काम ब्रज में नहीं कर पाई है। जिन दो अधिकारियों को योगी आदित्यनाथ जी ने इतने महत्वूपर्ण ब्रजमंडल को सजाने की जि मेदारी सौंपी हैं, उन्हें इस काम का कोई अनुभव नहीं है। इससे पहले उनमें से एक की भूमिका मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष के नाते तमाम अवैध निर्माण करवाकर ब्रज का विनाश करने में रही है। दूसरा सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी है, जिसने आजतक ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण पर कोई काम नहीं किया। इन दोनों को ही इस महत्वपूर्ण, कलात्मक और ऐतिहासिक काम की कोई समझ नहीं है। इसलिए इन्होंने अपने इर्द-गिर्द फर्जी आर्किटैक्टों, भ्रष्ट जूनियर अधिकारियों और सड़कछाप ठेकेदारों का जमावाड़ा कर लिया है। सब मिलकर नाकारा, निरर्थक और धन बिगाड़ू योजनाऐं बना रहे हैं। जिससे न तो ब्रज का सौंदर्य सुधरेगा, न ब्रजवासियों को लाभ होगा और न ही संतों और तीर्थयात्र...
सनातन परंपराओं से छेड़छाड़ ठीक नहीं

सनातन परंपराओं से छेड़छाड़ ठीक नहीं

Today News, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
सबरी मलाई मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से हम सभी हिंदू उद्वेलित हैं। इसी हफ्ते एक व्याख्यान में सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा का कहना था कि जहां संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का पंरपराओं से टकराव होगा, वहां अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। उन्होंने सती प्रथा का उदाहरण देकर अपनी बात का समर्थन किया। किंतु पूजा पद्धति और उससे जुड़े कर्मकांड को बदलने का अधिकार अदालत का नहीं होना चाहिए। जैसे- जन जातीय समाजों में जो कानून की व्यवस्था है, उसमें भारत सरकार हस्तक्षेप नहीं करती। अंग्रेज हुकुमत ने भी नहीं किया। अण्डमान के पास सेंटीनल द्वीप में वनवासियों द्वारा तीर-कमान से मारे गऐ, ‘अमरीकी मिशनरी युवा’ के मामले में सरकार कोई कानूनी कार्यवाही नहीं कर रही। क्योंकि गत 60 हजार सालों से यह प्रजाति शेष दुनिया से अलग-थलग रहकर जीवन यापन कर र...
मृत्यु को महोत्सव बनाने का विलक्षण उपक्रम है संथारा

मृत्यु को महोत्सव बनाने का विलक्षण उपक्रम है संथारा

addtop, EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म
जैन धर्म में संथारा अर्थात संलेखना- ’संन्यास मरण’ या ’वीर मरण’ कहलाता है। यह आत्महत्या नहीं है और यह किसी प्रकार का अपराध भी नहीं है बल्कि यह आत्मशुद्धि का एक धार्मिक कृत्य एवं आत्म समाधि की मिसाल है और मृत्यु को महोत्सव बनाने का अद्भुत एवं विलक्षण उपक्रम है। तेरापंथ धर्मसंघ के वरिष्ठ सन्त ‘शासनश्री’ मुनिश्री सुमेरमलजी ‘सुदर्शन’ ने इसी मृत्यु की कला को स्वीकार करके संथारे के 10वें दिन चैविहार संथारे में दिनांक 4 अगस्त 2018 को सुबह 05.50 बजे देवलोकगमन किया। मुनिश्री ने गत दिनांक 26 अगस्त को सायं 07.43 पर तिविहार संथारे का प्रत्याख्यान किया था। उनको 3 मिनट का चैविहार संथारा आया। मुनिश्री की पार्थिव देह अंतिम दर्शनों हेतु अणुव्रत भवन, 210, दीनदयाल उपाध्याय मार्ग में रखा गया, जहां से उनकी समाधि यात्रा दरियागंज, लालकिला होते हुए निगम बोध घाट पहुंची। हजारों श्रद्धालुजनों सहित अनेक राजनेताओं, साह...
मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में  मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

मर्यादा महोत्सव के अवसर पर 22,23 एवं 24 जनवरी, 2018 के उपलक्ष्य में मर्यादाओं का एक अनूठा पर्व

संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
ललित गर्ग  आज धर्म एवं धर्मगुरु जिस तरह मर्यादाहीन होते जा रहे हैं, वह एक गंभीर स्थिति है। जबकि किसी भी धर्मगुरु, संगठन, संस्था या संघ की मजबूती का प्रमुख आधार है-मर्यादा। यह उसकी दीर्घजीविता एवं विश्वसनीयता का मूल रहस्य है। विश्व क्षितिज पर अनेक संघ, संप्रदाय, संस्थान उदय में आते हैं और काल की परतों तले दब जाते हैं। वही संगठन अपनी तेजस्विता निखार पाते हैं, जिनमें कुछ प्राणवत्ता हो, समाज के लिए कुछ कर पाने की क्षमता हो। बिना मर्यादा और अनुशासन के प्राणवत्ता टिक नहीं पाती, क्षमताएं चुक जाती हैं। मर्यादा धर्म संगठनों का त्राण है, प्राण है, जीवन रस है। अंधियारी निशा में उज्ज्वल दीपशिखा है। समंदर के अथाह प्रवाह में बहते जहाज के लिए रोशनी की मीनार है। मैंने देखा है कि तेरापंथ धर्मसंघ एक प्राणवान संगठन है और उसमें मर्यादाओं का सर्वाधिक महत्व है। इसके आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु ने तत्कालीन सम...
सौहार्द का संदेश पहुंचाने के लिए हुआ ‘कन्सर्ट फॉर हारमनी’ का आयोजन…

सौहार्द का संदेश पहुंचाने के लिए हुआ ‘कन्सर्ट फॉर हारमनी’ का आयोजन…

संस्कृति और अध्यात्म
नई दिल्ली, 23 दिसम्बर 2017; संगीत के माध्यम से शांति और सौहार्द का संदेश जन-जन तक पहुंचाने के लिए लगभग एक दशक से प्रयास करती आ रही नाद फाउंडेशन द्वारा शुरू की गयी ‘कन्सर्ट फॉर हारमनी’ श्रृंखला का समापन कन्सर्ट आज नई दिल्ली स्थित श्री सत्य सांई ऑडीटोरियम में किया गया। जहां युवा प्रतिभा तुहीन चक्रवर्ती व गु्रप, प्रसिद्ध ठुमरी गायिका डॉ. रीता देव एवम् संतूर वादक पद्मश्री पं. भजन सोपोरी ने अपने प्रस्तुतिकरण से उपस्थित मेहमानों एवम् अन्य को मंत्र-मुग्ध किया। ‘कन्सर्ट फॉर हारमनी’ शीर्षक से आयोजित इस श्रृंखला की शुरूआत दिल्ली में 15 अप्रैल, 2017 को हुई थी, जिसके बाद देश के विभिन्न भागों; शिमला, बैंगलोर, मुंबई, कोलकाता सहित कई अन्य शहरों में सफलतापूर्वक आयोजित कन्सर्ट के बाद आज दिल्ली में ही सम्पन्न हुई। कार्यक्रम की शुरूआत मुख्यातिथि श्री विजय जौली, श्रीमति ऋचा वशिष्ठ, अवध कुम...
गुरु पूर्णिमा गुरु-पूजन का अनूठा पर्व

गुरु पूर्णिमा गुरु-पूजन का अनूठा पर्व

संस्कृति और अध्यात्म
-ललित गर्ग- पर्वों, त्यौहारों और संस्कारों की भारतभूमि में गुरु का स्थान सर्वोपरि माना गया है। पश्चिमी देशों में गुरु का कोई महत्व नहीं है, वहां विज्ञान और विज्ञापन का महत्व है परन्तु भारत में सदियों से गुरु का महत्व रहा है। गुरु-पूर्णिमा गुरु-पूजन का पर्व है। सन्मार्ग एवं सत-मार्ग पर ले जाने वाले महापुरुषों के पूजन का पर्व, जिन्होंने अपने त्याग, तपस्या, ज्ञान एवं साधना से न केवल व्यक्ति को बल्कि समाज, देश और दुनिया को भवसागर से पार उतारने की राह प्रदान की है। जीवन विकास के लिए भारतीय संस्कृति में गुरु की महत्वपूर्ण भूमिका मानी गई है। गुरु की सन्निधि, प्रवचन, आशीर्वाद और अनुग्रह जिसे भी भाग्य से मिल जाए उसका तो जीवन कृतार्थता से भर उठता है। क्योंकि गुरु बिना न आत्म-दर्शन होता और न परमात्म-दर्शन। गुरु भवसागर पार पाने में नाविक का दायित्व निभाते हैं। वे हितचिंतक, मार्गदर्शक, विकास प...
भाषा का महत्व

भाषा का महत्व

संस्कृति और अध्यात्म
इतिहास के प्रकांड पंडित डॉ. रघुबीर प्राय: फ्रांस जाया करते थे। वे सदा फ्रांस के राजवंश के एक परिवार के यहाँ ठहरा करते थे। उस परिवार में एक ग्यारह साल की सुंदर लड़की भी थी। वह भी डॉ. रघुबीर की खूब सेवा करती थी। अंकल-अंकल बोला करती थी। एक बार डॉ. रघुबीर को भारत से एक लिफाफा प्राप्त हुआ। बच्ची को उत्सुकता हुई। देखें तो भारत की भाषा की लिपि कैसी है। उसने कहा अंकल लिफाफा खोलकर पत्र दिखाएँ। डॉ. रघुबीर ने टालना चाहा। पर बच्ची जिद पर अड़ गई। डॉ. रघुबीर को पत्र दिखाना पड़ा। पत्र देखते ही बच्ची का मुँह लटक गया अरे यह तो अँगरेजी में लिखा हुआ है। आपके देश की कोई भाषा नहीं है? डॉ. रघुबीर से कुछ कहते नहीं बना। बच्ची उदास होकर चली गई। माँ को सारी बात बताई। दोपहर में हमेशा की तरह सबने साथ साथ खाना तो खाया, पर पहले दिनों की तरह उत्साह चहक महक नहीं थी। गृहस्वामिनी बोली डॉ. रघुबीर, आगे से आप किसी और जग...
बाहुबली का ‘दक्षिण दोष’

बाहुबली का ‘दक्षिण दोष’

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
जावेद अनीस बाहुबली भारतीय सिने इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई है. यह देसी फैंटेसी से भरपूर एक भव्य फिल्म है जो अपने प्रस्तुतिकरण,बेहतरीन टेक्नोलॉजी, विजुअल इफेक्ट्स और सिनेमाई कल्पनाशीलता से दर्शकों को विस्मित करती है। एस.एस. राजामौली के निर्देशन में बनी यह फिल्म भारत की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म बन चुकी है। बाहुबली के दूसरे हिस्से के कमाई का आंकड़ा 1,000 करोड़ रुपये के पार पहुंच चूका है। बाहुबली एक ऐसी अखिल भारतीय फिल्म बन गयी है जिसको लेकर पूरे भारत में एकसमान दीवानगी देखी गयी लेकिन इसी के साथ ही बाहुबली को हिंदुत्व को पर्दे पर जिंदा करने करने वाली एक ऐसी फिल्म के तौर पर भी पेश किया जा रहा है जिसने प्राचीन भारत के गौरव को दुनिया के सामने रखा है। एक ऐसे समय में जब भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली को इस खास समय का बाइप्रोडक्ट बताया जा रहा है। ...