वासन्ती आभा एवं सरस्वती की आराधना का पर्व वसन्त पंचमी
सम्पूर्ण प्रकृति को सौन्दर्य,मादकता तथा वाचा से महकाने वाला यह त्यौहार हमारे सनातन धर्म को ऊर्जा और वाणी से गुंजायमान करता है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसन्त पंचमी या श्रीपंचमी के नाम से जाना जाता है।
ब्रह्मा जी ने पृथ्वी पर मानव की रचना की। रचना करने के बाद उन्हें अपनी सृष्टि में कुछ कमी का आभास हुआ क्योंकि मानव को वाचा नहीं थी अतः सर्वत्र सूनापन था। ब्रह्माजी ने विष्णु जी की आज्ञा लेकर अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल का छिड़काव किया। ऐसा करने से एक कम्पन के साथ एक देवी का प्रादुर्भाव हुआ। यह वाणी प्रदाता विद्या की देवी माँ सरस्वती ही थी। ब्रह्मा ने उनसे वीणा बजाने का आग्रह किया। वीणा की झंकार के साथ ही सम्पूर्ण सृष्टि में स्वर गुंजायमान हो गया। जगतीतल में वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। सभी प्राणी बोलने लग गये। मानव में बुद्धि का संचार हुआ। पशु-पक्षी चहचहाने लगे। चारों ओर मधुर गुंजायम...