Shadow

सामाजिक

तम्बाकू के ‘सादे पैकेट’ पर चित्रमय चेतावनी क्यों है अधिक प्रभावकारी? बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)

तम्बाकू के ‘सादे पैकेट’ पर चित्रमय चेतावनी क्यों है अधिक प्रभावकारी? बाबी रमाकांत, सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस)

सामाजिक
सिगरेट एवं अन्य तम्बाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के तहत तम्बाकू उत्पाद के पैकेट पर, चित्रमय चेतावनी 1 जून 2009 से भारत में लागू हो पायी. पर इतना पर्याप्त नहीं है क्योंकि तम्बाकू महामारी पर अंकुश लगाये बिना असामयिक मृत्यु दर कम हो नहीं सकता. अब भारत को जन स्वास्थ्य के लिए, एक बड़ा कदम लेने की जरुरत है जो अनेक देशों में लागू है और तम्बाकू नियंत्रण में कारगर सिद्ध हुआ है: 'प्लेन पैकेजिंग' या सादे तम्बाकू पैकेट पर अधिक प्रभावकारी और बड़ी चित्रमय चेतावनी की नीति अब भारत में भी पारित होनी चाहिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, एकाकार गाढ़े भूरे रंग के अनाकर्षक तम्बाकू पैकेट ('प्लेन पैकेजिंग' या सादे पैकेट) पर बड़ी और प्रभावकारी चित्रमय चेतावनी ज्यादा असरकारी होती है. आशा परिवार के स्वास्थ्य को वोट अभियान के समन्वयक राहुल द्विवेदी ने कहा कि 'प्लेन पैकेजिंग' या सादे पैकेट पर, कोई ब्रांड, ब्रांड सम्बंधि...
शिक्षा से जुड़े सवालों का अनुत्तरित होना

शिक्षा से जुड़े सवालों का अनुत्तरित होना

सामाजिक
ललित गर्ग- दुनिया के परिदृश्य में भारत में जिस रफ्तार से प्रगति हो रही है, चाहे वह आर्थिक हो, सांस्कृतिक हो, वैज्ञानिक हो, कृषि की हो, तकनीक की हो, उस अनुपात में देश में शिक्षा की अपेक्षित प्रगति आजादी के 70 वर्ष बाद भी हासिल न होना शोचनीय है। नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तब से एक नये युग के आरंभ की बात कही जा रही है। न जाने कितनी आशाएं, उम्मीदें और विकास की कल्पनाएं संजोयी गयी हंै और उन पर न केवल देशवासियों की बल्कि समूचे विश्व की निगाहें टिकी हुई है। लेकिन शिक्षा की धीमी गति एवं शिक्षा के प्रति सरकार की ढुलमुल नीति विडम्बनापूर्ण स्थिति को दर्शाती है। शिक्षा की उपेक्षा करके कहीं हम विकास का सही अर्थ ही न खो दे। ऐसा न हो जाये कि बस्तियां बसती रहे और आदमी उजड़ता चला जाये। इनदिनों बोर्ड परीक्षाओं के परिणाम चर्चा में हैं। सीबीएसई के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट, दोनों के परिणाम आ गए ह...
अब ग्रामोद्योग के जरिए  पांच करोड़  रोजगार की बात

अब ग्रामोद्योग के जरिए पांच करोड़ रोजगार की बात

सामाजिक
बेरोजगारी भारत की सबसे बड़ी समस्या है। करोड़ों नौजवान रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं। हर सरकार इसका हल ढूंढने के दावा करती आई है पर कर नहीं पाई। कारण स्पष्ट है जिस तरह सबका जोर भारी उद्योगों पर रहा है और जिस तरह लगातार छोटे व्यापारियों और कारखानेदारों की उपेक्षा होती आई है उससे बेरोजगारी बढी है।आज तक सब जमीनी सोच रखने वाले और अब बाबा रामदेव भी ये सही कहते हैं कि अगर रोजमर्रा के उपभोग के वस्तुओं को केवल कुटीर उद्योंगों के लिए ही सीमित कर दिया जाय तो बेरीजगारी तेजी से हल हो सकती है। पर उस मॉडल से नहीं जिस पर आगे बढकर चीन भी पछता रहा है। अंधाधुंध शहरीकरण ने पर्यावरण का नाश कर दिया। जल संकट बढ़ गया और आर्थिक प्रगति ठहर गई। इसलिए शायद अब खादी उद्योग में पांच साल में पांच करोड़ लोगों को रोजगार दिलाने की योजना बनी है। इस सूचना की विश्वसनीयता पर सोचने की ज्यादा जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि यह ...
रोज़े में गोमांस नहीं, गोरस!

रोज़े में गोमांस नहीं, गोरस!

BREAKING NEWS, सामाजिक
राष्ट्रीय मुस्लिम मंच ने इस बार एक जबर्दस्त फैसला किया है। उसके हजारों सदस्य रमजान के दिनों में जो इफ्तार करेंगे, उसमें गोमांस नहीं परोसा जाएगा। उसकी जगह रोज़ादारों का उपवास गोरस याने गाय के दूध से खोला जाएगा। क्या कमाल की बात है, यह! यह बात मैं मुस्लिम देशों के कई मौलानाओं, राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों, प्रोफेसरों और पत्रकारों से वर्षों से कहता आ रहा हूं। कुछ देशों में इसका पालन भी होने लगा है। मैं तो उनसे कहता हूं कि गाय का ही नहीं, किसी भी जानवर का गोश्त क्यों खाया जाए? रोज़ा जैसा महान पवित्र और आध्यात्मिक कार्य आप संपन्न करें और उसके बाद अपना पेट भरने के लिए किसी जानवर को मौत के घाट उतार दें, यह अल्लाह की कौनसी इबादत हुई? यह कौनसी रहमत हुई? यह कौनसी करुणा है? यह कौनसी तपस्या है? कुरान शरीफ या बाइबिल या जेन्दावस्ता में कहां लिखा है कि मुसलमान या ईसाई या यहूदी होने के लिए गोश्त खाना जर...
वैदिक मार्गदर्शन से बचेंगे  जल प्रलय से

वैदिक मार्गदर्शन से बचेंगे जल प्रलय से

सामाजिक
सूर्य नारायण अपने पूरे तेवर दिखा रहे हैैं। ये तो आगाज है 10 साल पहले ही जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञों द्वारा चेतावनी दे दी गई थी कि 2035 तक पूरी धरती के जलमग्न हो जायेगी। ये चेतावनी देने वाले दो वैज्ञानिकों को, राजेन्द्र पचौरी व भूतपूर्व अमेरिकन उप. राष्ट्रपति अलगौर को ग्लोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। इस विषय पर एक डॉ1यूमेंट्री 'द इन्कवीनियेंट टू्रथÓ को भी जनता के लिए जारी किया गया था। विश्व के 3000 भूगर्भशास्त्रियों ने एक स्वर में ये कहा कि अगर जीवाष्म ईंधन यानि कोयला, डीजल, पेट्रोल का उपभोग कम नहीं किया गया, तो वायुमंडल में कार्बनडाई ऑञ्चसाइड व ग्रीन हाऊस गैस की वायुमंडल में इतनी मोटी धुंध हो जायेगी कि सूर्य की किरणें उसमें में से प्रवेश करके धरती की सतह पर जमा हो जायेंगी और बाहर नहीं निकल पायेंगी। जिससे धरती का तापमान 2 डिग्री से बढ़कर 15 से 17 डिग्री तक जा पहुंचेगा। जिसके फलस्वरूप उîार...
Why Water Privatization Is a Bad Idea for People and the Planet

Why Water Privatization Is a Bad Idea for People and the Planet

सामाजिक
As climate change drives water scarcity, there may be more efforts to privatize water systems. By Adam Hudson / AlterNet April 18, 2017 From a years-long drought in California to poisoned water in Flint, Michigan, the issue of access to clean water is increasingly pertinent. Climate change will only exacerbate this problem as water becomes more scarce in numerous parts of the world. As water becomes more scarce and infrastructure deteriorates, there could be more efforts to privatize water systems, which does not help the situation. Climate change and water scarcity It is a fact that climate change is occurring and human activities, particularly carbon and other greenhouse gas emissions, play a large role in driving it. The 2014 Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) repo...
And Nirbhaya

And Nirbhaya

राज्य, सामाजिक
It has been a long, long wait. But finally a verdict has been delivered by the Supreme Court. Yesterday’s verdict has been welcomed by all those waiting for justice, including Nirbhaya’s parents. Everyone appears pleased and relieved that finally justice has been done to Nirbhaya. The Apex Court decided that this was a rarest of rarest criminal acts and thus endorsed the death sentence handed down by the High Court, to four accused. Two other accused escaped the verdict of death by hanging. One had earlier committed suicide while in custody, by hanging himself, possibly due to shame and remorse. Another was protected by his age, being a little short of 18 when committing the crime. The juvenile got away with the only sentence that juveniles can be handed down under India’s Juvenil...
देश को राहुल बजाज से जैसे उद्योगपतियों की जरूरत

देश को राहुल बजाज से जैसे उद्योगपतियों की जरूरत

सामाजिक
विनीत नारायण पिछले हफ्ते भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने ‘सीआईआई’ के एक भव्य समारोह में प्रसिद्ध उद्योगपति राहुल बजाज को ‘लाईफ टाइम एचीवमेंट अवाॅर्ड’ दिया। यह एक सुखद अनुभव था। क्योंकि राहुल उस पीढी के उद्योगपति हैं, जिन्होंने मूल्यों पर आधारित व्यापार किया और निज लाभ के लिए सरकारी तंत्र को भ्रष्ट बनाने की कोशिश नहीं की। जिसके बिना बहुत से औद्यौगिक घराने आज वहां न होते, जहाँं वे पहुंच गये हैं। अपने इसी नैतिक बल के आधार पर राहुल की शख्सियत में वो खुद्दारी है, कि वे सरकार की कमियों पर खुलकर बोलते हैं। अवाॅर्ड स्वीकार करते वक्त भी उन्होंने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं में तेजी से आ रही गिरावट पर दुख प्रकट किया। दरअसल वतनपरस्ती और बेबाकी उन्हें खून में मिली है। उनके दादा जमुनालाल बजाज जी महात्मा गांधी के सहयोगी और बड़े राष्ट्रभक्त थे। उनकी दादी ने भरी जवानी में गांधीजी के कहने से ...
ग्लोबलगिविंग की भारत में संभावनाभरी दस्तक

ग्लोबलगिविंग की भारत में संभावनाभरी दस्तक

सामाजिक
ललित गर्गः- दुनियाभर के दानदाताओं को भारत में दान के लिये प्रोत्साहित किये जाने की दृष्टि से क्राउडफंडिंग एक सशक्त माध्यम है। भारत के लिए क्राउडफंडिंग भले ही नया हो पर इसकी अपार संभावनाएं हैं। आने वाले समय में क्राउडफंडिंग भारत की विभिन्न जनकल्याणकारी योजनाओं, सेवा उपक्रमों एवं धार्मिक कार्यों के लिये दान की उपलब्धता का बेजोड़ माध्यम होगा। भारत के सुनहरे भविष्य के लिए क्राउडफंडिंग अहम भूमिका निभा सकती है और क्राउडफंडिंग भारत में काफी सफल भी हो सकता है क्योंकि यहां अमीर-गरीब के बीच गहरी खाई है। तकनीक एवं सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया में भारत की अलग पहचान है। यह उसे पाटने में अहम भूमिका निभा सकता है। इसके जरिए अमीर एवं सुविधा संपन्न वर्ग मिलकर गरीबों की मदद कर सकते हैं। इससे उन लोगों की जिंदगी में बदलाव आएगा, जो पैसों की कमी की वजह से बुनियादी जरूरतों से वंचित रह जाते हैं। हम अ...
बच्चों की बालसुलभ भावनाओं को समझने के लिए माता-पिता अपने अंदर धैर्य का गुण विकसित करें

बच्चों की बालसुलभ भावनाओं को समझने के लिए माता-पिता अपने अंदर धैर्य का गुण विकसित करें

सामाजिक
शान्ति पाल, लखनऊ कुछ बच्चे अपनी जिज्ञासु प्रवृत्ति के कारण कुछ न कुछ पूछते हीं रहते हैं- यह क्या है, ऐसा क्यों होता है, आदि-आदि। अगर इन प्रश्नों का सही उत्तर उन्हें मिल जाये तो उन्हें अधिक सोचने का मौका मिलता है। माता-पिता को ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके विपरीत माता-पिता झिड़की देकर अथवा डांट-डपट कर बच्चों के मनोभावों का दमन करते हैं और बाल चिकित्सकों के अनुसार बच्चे के मन को कुंठित करने का एक तरीका यह भी है कि उसकी स्वाभाविक जिज्ञासा को दबाने के लिए उसे झिड़किया दी जाएं और उसे डराया धमकाया जाए। यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि बच्चा स्वयं एक निर्देशक होता है। उसकी बुद्धि इतनी विकसित हो चुकी होती है कि वह अपने प्रश्नों को बखूबी समझता है। अतः बच्चों के प्रश्नों का उत्तर उनकी आयु समझ और ग्रहणशक्ति को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए। पर कई बार माता-पिता बच्चों की जिम्मेदारियों से विम...