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वर्षा ऋतु – वरदान या अभिशाप

वर्षा ऋतु – वरदान या अभिशाप

TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक, साहित्य संवाद
भारत विभिन्न संस्कृतियों की भांति विभिन्न ऋतुओं से सम्पन्न देश है। यहाँ पर - वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर तथा वसंत (6) प्रमुख ऋतुएं हैं। प्रत्येक ऋतु के आगमन पर जनमानस के हृदय में एक अलग ही आनंद व उत्साह का भाव देखने को मिलता है। ग्रीष्म ऋतु के पश्चात, वर्षा ऋतु के आगमन पर मनुष्य, पेड़-पौधे, पशु -पक्षी, जानवर आदि सभी अत्यधिक उत्साह तथा व्यग्रता से इंतजार करते हैं। वर्षा की जब प्रथम फुहार धरती पर पड़ती है तो, सम्पूर्ण भूमण्डल आनन्द विभोर हो उठता है। नई कोपलों का प्रस्फुटन होता है, खेतों में फसले लहलहाती है, मोर आनन्द के वशीभूत होकर नृत्य करने लगते हैं, प्रेमिका अपने प्रवासी प्रेमी के इंतजार में व्यग्र हो जाती है, वातावरण सुगन्धित हो जाता है। अर्थात् वर्षा ऋतु समस्त प्राणियों के लिए ईश्वर प्रदत्त अनुपम भेंट है।अतीत में ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रकृति, एक अनुपम वरदान स्वरूप थी, परन्तु ...
नई शिक्षा नीति के तीन वर्ष और उच्च शिक्षा : न्यू नार्मल में एब्नार्मल

नई शिक्षा नीति के तीन वर्ष और उच्च शिक्षा : न्यू नार्मल में एब्नार्मल

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- अनुज अग्रवाल अभी हाल ही में मैं अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी के बारे में अपने परिचित से जानकारी ले रहा था जो वहाँ पढ़ रहा है।अमेरिका की टॉप 20 यूनिवर्सिटी में शामिल लगभग छ: हज़ार एकड़ में फैली इस यूनिवर्सिटी में तीन सौ से अधिक रिसर्च सेंटर व संस्थान हैं जिनमे 67 हज़ार से भी अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। फ़ीस के अतिरिक्त यूनिवर्सिटी के पास इतने प्रोजेक्ट कारपोरेट सेक्टर व सरकारों से आ जाते हैं कि वह पूर्णत: आत्मनिर्भर है। यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले एक छात्र के अनुसार " Great school with good professors, world class infrastructure , library & labs, fun social life, and lots of school spirit, excellent achievements of our people and for their contributions to society in the pursuit of education, research, and health care.Admission strictly on merit basis. Placement is good and The avera...
28 जुलाई 1891 : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन

28 जुलाई 1891 : सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर का निधन

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भारतीय शिक्षण परंपरा और नारी सम्मान का अद्भुत अभियान चलाया --रमेश शर्मा उन्नीसवीं शताब्दी का आरंभ अंग्रेजों द्वारा भारतीय शिक्षा, संस्कृति, परंपरा और समाज के मानसिक दमन के अभियान का समय था । गुरुकुल नष्ट कर दिये गये थे, चर्च और वायबिल आधारित शिक्षा आरंभ करदी थी । ऐसे किसी ऐसे व्यक्तित्व की आवश्यकता थी । जो भारतीय समाज में आत्मविश्वास जगाकर अपने स्वत्व से जोड़ने का अभियान छेड़े। यही काम सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, समाजसेवी ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने किया ।अंग्रेजों ने भारत की मूल संस्कृति, शिक्षा, समाज व्यवस्था और आर्थिक आत्मनिर्भरता को नष्ट करने में हीशअपनी सत्ता का सुरक्षित भविष्य समझा और इसकी तैयारी 1757 में प्लासी का युद्ध जीतने के साथ ही तैयारी आरंभ कर दी थी और 1773 के बाद चर्च ने भारत के सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और मानसिक दमन के लिये बाकायदा सर्वे किया और 1806 में दिल्ली पर अधिकार कर...
और बेहतर होते भारत -श्रीलंका संबंध !

और बेहतर होते भारत -श्रीलंका संबंध !

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विश्व के दो प्रमुख देशों अमेरिका और फ्रांस के बाद अब भारत और श्रीलंका के संबंधों में मजबूती देखने को मिल रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि आर्थिक संकटों का सामना करने के बाद पिछले दिनों ही श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे 20-21 जुलाई  2023 को दो दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर भारत आए थे। श्रीलंका के आर्थिक संकट का सामना करने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा थी। वास्तव में,श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, जिन्होंने बतौर श्रीलंका के राष्ट्रपति अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है,की भारत यात्रा से दोनों देशों के संबंध पहले से कहीं और अधिक मजबूत हुए हैं। दरअसल, दोनों देशों ने हाल ही में समग्र आर्थिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर जोर देने के साथ साथ ही अनेक मामलों पर अहम बातचीत की है। विक्रमसिंघे की यह यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण  रही है क्यों कि विक्रमसिंघे ने चीन न जाकर भा...
सौर व पवन ऊर्जा में भारत के कदम बेहतरी की ओर।

सौर व पवन ऊर्जा में भारत के कदम बेहतरी की ओर।

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आज भारत समेत संपूर्ण विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है और बढ़ती हुई जनसंख्या के बीच आज के इस आधुनिक समाज की अधिकांश गतिविधियों के लिये ऊर्जा अत्यंत आवश्यक है। इसके पीछे कारण यह है कि ऊर्जा के उपयोग या उपभोग को सामान्यतः जीवन स्तर के सूचकांक के रूप में लिया जाता है। हम ऊर्जा को जलावन की लकड़ी, जीवाश्म ईंधन, एवं विद्युत के रूप में उपयोग करते हैं जिससे हमारा जीवन आरामदायक और सुविधाजनक व सरल बनता है। ऊर्जा के दो प्रकार के स्रोत हैं जिनमें नवीकरणीय ऊर्जा और अनवीकरणीय ऊर्जा प्रमुख है। नवीकरणीय ऊर्जा के अंतर्गत क्रमशः सौर ऊर्जा, बायोमास, बायोडीजल, जलशक्ति (हाइड्रोपावर), पवन ऊर्जा, तरंग ऊर्जा (वेव एनर्जी), महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण, भूतापीय ऊर्जा तथा ईंधन कोष्ठिका तकनीक(फ्यूल सैल टेक्नोलॉजी जो हाइड्रोजन को विद्युत में बदलती है) तथा अनवीकरणीय ऊर्जा के अंतर्गत क्रमशः तेल(पेट्रोलियम)...
दबाव समूह और आंदोलन

दबाव समूह और आंदोलन

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दबाव समूह ऐसे संगठन हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। दबाव समूहों का लक्ष्य राजनीतिक सत्ता को सीधे नियंत्रित करना या साझा करना नहीं है। ये संगठन तब बनते हैं जब समान व्यवसाय, रुचि, आकांक्षाएं या राय वाले लोग एक समान उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक साथ आते हैं। जबकि आंदोलन चुनावी प्रतिस्पर्धा में सीधे भाग लेने के बजाय राजनीति को प्रभावित करने का प्रयास करता है। आंदोलनों का एक ढीला-ढाला संगठन होता है. उनकी निर्णय लेने की क्षमता अधिक अनौपचारिक और लचीली है। वे स्वतःस्फूर्त जनभागीदारी पर अधिक निर्भर हैं। काफी समय से इन समूहों पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन अब राजनीतिक प्रक्रिया में इनकी भूमिका काफी महत्वपूर्ण हो चुकी है क्योंकि लोकतांत्रिक व्यवस्था में परामर्श, समझौते एवं कुछ हद तक सौदे के आधार पर राजनीति चलती है। सरकार के लिए यह अतिआवश्यक है कि वह नीति-निर्माण एवं...
भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

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अवधेश कुमारबेंगलुरु से राजधानी दिल्ली तक विपक्ष और भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन की मोर्चाबंदी की पहली गुंज संसद के सत्र में सुनाई पड़ रही है। यह लोकसभा चुनाव के राजनीतिक युद्ध की पूर्व प्रतिध्वनियां हैं। वैसे विपक्ष द्वारा इंडिया नाम रखने के साथ यूपीए की अंत्येष्टि हो गई। पटना बैठक तक गठबंधन की कोशिशों में विपक्ष आगे दिख रहा था। इस तरह माहौल थोड़ा एकपक्षीय था। बेंगलुरु बैठक के पूर्व मीडिया की सुर्खियां यही थी कि 17 दलों का समूह बढकर 26 का हो गया। इसमें ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पीछे रह गई है। 26 के मुकाबले 38 दलों को इकट्ठा कर भाजपा ने विपक्ष के इस प्रचार का जवाब दे दिया कि उसके साथ कोई दल आना नहीं चाहता। वैसे पटना बैठक के तुरंत बाद महाराष्ट्र में राकांपा के विधायकों के बहुमत का शरद पवार से अलग होकर सरकार में शामिल होने का निर्णय ही यह बताने के लिए पर्य...
<strong>हिंदू राष्ट्रवाद के पितामह थे लोकमान्य तिलक</strong>

हिंदू राष्ट्रवाद के पितामह थे लोकमान्य तिलक

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-ः ललित गर्ग:- बाल गंगाधर तिलक प्रखर राष्ट्रवादी, हिन्दूवादी नेता एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्तित्व थे। वे समाज सुधारक, राष्ट्रीय नेता, थे जिन्हें भारतीय इतिहास, संस्कृत, हिन्दू धर्म, गणित और खगोल विज्ञान में महारथ हासिल थी। तिलक ने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई थी। स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे ले कर रहूंगा। इस नारे ने बहुत से लोगों को प्रोत्साहित किया था। आजादी के परवानों के लिए ये महज कुछ शब्द भर नहीं थे बल्कि एक जोश, एक जुनून था जिसके जरिए लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानियां देकर मां भारती को अंग्रेजों से आजादी दिलाई। इस वाक्य को पढ़ने और सुनने वाले को बाल गंगाधर तिलक की याद आ ही जाती है। लोकमान्य का अर्थ है लोगों द्वारा स्वीकृत किया गया नेता। लोकमान्य के अलावा इनको हिंदू राष्ट्रवाद का पितामह भी कहा जाता है।बाल गंगाधर तिलक भारतीय राष्ट्रीय...
बज गयी 2024 की रणभेरी

बज गयी 2024 की रणभेरी

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विनीत नारायणपक्ष और विपक्ष अपने-अपने हाथी, घोड़े, रथ और पैदल तैयार करने में जुट गये हैं। दिल्ली और बैंगलुरु में दोनोंपक्षों ने अपना अपना कुनबा जोड़ा है। जहां नए बने संगठन ‘इंडिया’ में 25 दल शामिल हुए हैं वहीं एनडीए 39दलों के साथ आने का दावा कर रहा है। अगर इन दावों की गहराई में पड़ताल करें तो बड़ी रोचक तस्वीर सामनेआती है।पिछले चुनाव में एनडीए में अब शामिल हुए इन 39 दलों को मिले वोट जोड़ें तो इस गठबंधन को देश भर में23 से 24 करोड़ के बीच वोट मिले थे। जबकि ‘इंडिया’ के मौजूदा गठबंधन को 26 करोड़ वोट मिले थे। पर येवोट इतने सारे दलों में आपसी मुक़ाबले के कारण बंट गये। जिससे इनकी हार हुई। अगर ये गठबंधन ईडी,सीबीआई व आईटी की धमकियों के बावजूद एकजुट बना रहता है और मुक़ाबला आमने-सामने का होता है तोजो परिणाम आयेंगे वो स्पष्ट हैं।दूसरा पक्ष ये है कि जहां एनडीए आज 60 करोड़ भारतीयों पर राज कर रही है वहीं ...
<strong>क्यों तड़प उठी दिल्ली में यमुना नदी</strong>

क्यों तड़प उठी दिल्ली में यमुना नदी

EXCLUSIVE NEWS, विश्लेषण, सामाजिक
आर.के. सिन्हा जब भी किसी भी नदी की धारा सूख जाती है, तो लोग उसमें अपना घर बना लेते हैं या तरह-तरह के अतिक्रमण कर लेते हैं और जब बारिश के दिनों में नदी अपने वास्तविक स्वरूप में लौटती है तो कहा जाने लगता है कि देखो,   बाढ़ आ गई। आज जब यमुना अपनी अस्तित्व तो बचाने के लिए अपने पूरे सामर्थ्य के  साथ दिल्ली के लोगों और दिल्ली की गंदगी दोनों से एक साथ लड़ रही है तो दिल्ली भर में हाहाकार मचा हुआ है। सच में, दिल्ली के द्वारा दिए गए कष्ट से ही तड़प उठी है यमुना। दिल्ली को अपनी यमुना को तो हर सूरत में बचाना ही होगा। हालत तो यह बन गई है कि जो यमुना दिल्ली की जीवन रेखा मानी जाती थी, अब उसमें तमाम शहर की गंदगी, गंदे कपड़े,   कबाड़,पॉलिथीन मरे हुए जानवरों फैक्ट्रियों कारखानों से निकलने वाले जहरीले रासायनिक तत्व मिलाए जा रहे हैं। जो यमुना नदी दिल्ली की ...