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साहित्य संवाद

देशों के शीर्ष नेताओं की कथनी और करनी में अंतर क्यों?

देशों के शीर्ष नेताओं की कथनी और करनी में अंतर क्यों?

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विश्व के सभी देशों के शीर्ष नेता आगामी सितंबर 2023 को न्यू यॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासम्मेलन में भाग लेंगे जहां टीवी पर दूसरी संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक भी होगी। टीवी पर प्रथम उच्च स्तरीय बैठक 2018 में हुई थी (जिसमें शामिल होने का सौभाग्य मुझे भी मिला था) जब देशों के शीर्ष नेताओं ने एक "राजनीतिक घोषणा पत्र" जारी करके अनेक वायदे किए थे जो 2022 तक पूरे करने थे। पर इन सभी वायदों पर अधिकांश देशों ने असंतोषजनक प्रगति की है। अब आगामी सितंबर में यही नेता टीबी उन्मूलन हेतु एक नया "राजनीतिक घोषणा पत्र" जारी करेंगे। क्या 2023 का नया घोषणा पत्र जमीनी असलियत में भी बदलेगा या पुराने घोषणापत्र की तरह काग़ज़ों में ही क़ैद रह जाएगा? दुनिया में संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मृत्यु में, सबसे अधिक मृत्यु टीबी से होती है। टीबी गरीब और विकासशील देशों में आज भी सबसे घातक संक्रामक रोग बना हुआ है।...
छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई

छत्रपति शिवाजी की निर्माता-वीरमाता जीजाबाई

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मृत्युंजय दीक्षितबालपन से ही वीरता की प्रतिमूर्ति - मां जीजाबाई, बचपन से ही शस्त्र सञ्चालन सीखना चाहती थीं औरउनके पिता लखूजी जाधवराव ने जो अपनी कन्या से अत्यंत स्नेह करते थे उनकी इस इच्छा को पूरा करने में कोई कोई कसर नहीं छोड़ी । शस्त्र कौशल में निपुण जीजा को उनके भाई रणचंडिका कहते थे । समय आने पर पिता जाधवराव वीर पुत्री जीजाबाई के लिए शूरवीर वर खोजा । वीर बालिका जीजा ही शाह जी की पत्नी और छत्रपति शिवाजी की मां के रूप में विख्यात हुईं।जिस समय जीजाबाई अपने भाईयों के साथ शस्त्र चलाना सीख रही थीं उस समय भारत पर मुगल आक्रमण हो रहा था। मुगल आक्रमणकारी भयानक रूप से हिंसा, मारकाट और लूट पाट कर रहे थे। मुगलों के सैनिक सामान्य हिन्दू जनता पर तरह- तरह के अत्याचार कर रहे थे। चारों ओर से मार काट, महिलाओं के अपहरण तथा शीलभंग, मंदिरों के ध्वंस, लूटपाट व आगजनी की ही सूचनाएं आ रही थीं । मुगलों के अमानवीय ...
महाराणा राजसिंह, मेवाड़ का प्रतिरोध, हसन अली और औरंगजेब :

महाराणा राजसिंह, मेवाड़ का प्रतिरोध, हसन अली और औरंगजेब :

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_____________________________________ औरंगजेब का एक बहुत काबिल सेनानायक और फौजदार था, उसका नाम हसन अली था। हसन अली औरंगजेब की नीच आत्मा का सगा हिस्सा था।वह उसके जितना ही धर्मांध, अत्याचारी और हिन्दू द्वेष से भरा हुआ था। यही हसन अली था जिसने औरंगजेब की काफिरों के सभी मन्दिर ध्वस्त कर दिए जाएं ---- वाले राजाज्ञा (1669 ईस्वी का राज्यादेश) का अनुपालन कराते हुए देश के भीतर स्थित बहुत से महत्वपूर्ण मन्दिर नष्ट करवाए। हसन अली ने ही 1670 ईस्वी में गोकुल जाट द्वारा मथुरा के फौजदार अब्दुन नबी को केशवराय मन्दिर तोड़ने की धृष्टता के समय मार डालने के बाद ---- मथुरा की फौजदारी संभाल कर गोकुल जाट के महाविप्लव को शान्त किया था, गोकुल जाट और उनके परिवारी जनों को बंदी बनाकर औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत किया था, जिसमें गोकुल जाट को बर्बर बादशाह ने आगरा के किले के सामने 40 टुकड़ों में कटवाकर क्रूर ह...
2 जून हिन्दवी स्वराज्य स्थापना दिवस

2 जून हिन्दवी स्वराज्य स्थापना दिवस

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ज्येष्ठ शुक्लपक्ष त्रियोदशी (2 जून) हिन्दवी स्वराज्य स्थापना दिवस भारत में शोषण मुक्त समाज रचना का उद्देश्य था हिन्दवी स्वराज का --रमेश शर्मा छत्रपति शिवाजी महाराज पूरे भारत में स्वत्व स्वाभिमान और आत्मनिर्भर समाज की रचना करना चाहते थे । अपने इस संकल्प को आकार देने के लिये ही आक्रमणकारी सत्ताओं के बीच हिन्दवी स्वराज्य की नींव रखी गई थी ।वह ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रियोदशी विक्रम संवत् 1731 (ईस्वी सन्1674) की तिथि थी जब दक्षिण भारत के रायगढ़ किले में हिन्दवी स्वराज्य यनि हिन्दू पदपादशाही की नींव रखी गई थी । इसी दिन शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ था । उस वर्ष यह तिथि 6 जून को थी । इस वर्ष यह तिथि 2 जून को पड़ रही है । इसलिये इस वर्ष वर्षगाँठ का यह आयोजन 2 जून से होगा । यह स्वाभिमान उत्सव कहीं एक सप्ताह सप्ताह तो कहीं पूरे पन्द्रह दिन चलता है । चूँकि शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक उत्सव...
बदल रही है कश्मीर की फिज़ा

बदल रही है कश्मीर की फिज़ा

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-बलबीर पुंज जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में तीन दिवसीय (22-24 मई) जी-20 पर्यटन कार्यसमूह की तीसरी बैठक हुई। यह घटनाक्रम कश्मीर के संदर्भ में इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि जी-20 समूह वैश्विक आर्थिकी में 85 प्रतिशत, व्यापार में 75 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी रखता हैं। डल झील के निकट आयोजित भव्य कार्यक्रम में यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सहित 29 देशों के 60 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सोचिए, जो क्षेत्र अगस्त 2019 तक— केवल मजहब केंद्रित आतंकवाद, पाकिस्तान समर्थित अलगाववाद, उन्मादी भीड़ द्वारा सेना के काफिले पर आए दिन होने वाले पथराव, जिहादियों को स्थानीय लोगों द्वारा समर्थन और भारत-हिंदू विरोधी नारों के लिए कुख्यात था, वहां विश्व के सबसे बड़े बहुदेशीय बैठकों में से एक का सफल आयोजन हुआ है। आखिर यह सब कैसे संभव हुआ? भारत ने जी-20 बैठक के माध्यम से कश्मीर में हो रहे...
<strong>क्यों भारत को चाहिएं कई सुधा मूर्ति</strong>

क्यों भारत को चाहिएं कई सुधा मूर्ति

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क्या पैसे वाले मनुष्यता में नहीं करते यकीन या क्यों भारत को चाहिएं कई सुधा मूर्ति आर.के. सिन्हा श्रीमती सुधा   नारायणमूर्ति की शख्सियत से कोई बिना प्रभावित हुये नहीं रह सकता। उन्होंने अपने पति एन. नारायणमूर्ति को अपनी कंपनी खोलने के लिए अपने प्रिय गहने तक बेच डाले थे। उन्होंने पति को पैसे देकर उन्हें प्रेरित किया कि वे अपने हिस्से के आकाश को छू लें। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सास सुधा मूर्ति जब कोई बात कहती हैं तो उसके पीछे उनके जीवन भर का अनुभव और दर्शन छिपा होता। उन्होंने कुछ दिन पहले एक टीवी के कार्यक्रम में उन लोगों को प्यार-प्यार में कसा जिनके लिए जीवन में  पैसा ही सब कुछ होता है। इस तरह के लोग पैसे के आगे शेष सभी चीजों को गौण ही मानते हैं। ये उन स्त्रियों को भी दोयम दर्जे का ही मानते हैं जो साड़ी या सवार-कमीज पहनती हैं। सुधा जी ने इस बाबत अपने साथ घटी एक सच्...
बागेश्वर बाबा का जादू

बागेश्वर बाबा का जादू

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एक पच्चीस वर्ष का युवा कथावाचक बिहार जैसे राज्य में आता है और दूसरे ही दिन आठ से दस लाख की भीड़ उमड़ पड़ती है, तो यह सिद्ध होता कि अब भी इस देश की सबसे बड़ी शक्ति उसका धर्म है। मैं यह इसलिए भी कह रहा हूँ कि इसी बिहारभूमि पर किसी बड़े राजनेता की रैली में 50 हजार की भीड़ जुटाने के लिए द्वार द्वार पर गाड़ी भेजते और पैसे बांटते हम सब ने देखा है। वैसे समय में कहीं दूर से आये किसी युवक को देखने के लिए पूरा राज्य दौड़ पड़े, तो आश्चर्य होता है। मेरे लिए यही धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का सबसे बड़ा चमत्कार है।वह दस लाख की भीड़ किसी एक जाति की भीड़ नहीं है, उसमें सभी हैं। बाभन-भुइंहार हैं, तो कोइरी कुर्मी भी... राजपूत हैं तो बनिया भी, यादव भी, हरिजन भी... यह वही बिहार है जहां हर वस्तु को जाति के चश्मे से देखने की ही परम्परा सी बन गयी है। उस टूटे हुए बिहार को एक युवक पहली बार में इतना बांध देता है, ...
<em>मजहब न पूछो अपराधी का</em>

मजहब न पूछो अपराधी का

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-बलबीर पुंज समाज का एक वर्ग, फिल्म 'द केरल स्टोरी' का अंधाधुंध विरोध कर रहा है। तमिलमाडु में जहां सत्तारुढ़ दल द्रमुक के दवाब में प्रादेशिक सिनेमाघरों ने इस फिल्म का बहिष्कार किया, तो प.बंगाल में ममता सरकार द्वारा इसपर प्रतिबंध लगाने के बाद फिल्म देख रहे दर्शकों को सिनेमाघरों से पुलिस घसीटते हुए बाहर निकाल दिया। विरोधियों की मुख्य तीन आपत्तियां है। पहली— यह 'काल्पनिक' लव-जिहाद को स्थापित करने का प्रयास है। दूसरी—केरल में मतांतरित मुस्लिम महिलाओं के आतंकी संगठनों से जुड़ने का आंकड़ा, अतिरंजित है। तीसरा— यह फिल्म इस्लाम/मुस्लिम विरोधी है। 'लव-जिहाद' शब्दावली विरोधाभासी है। इसमें 'जिहाद' का अर्थ 'मजहब हेतु युद्ध' है, तो 'लव' निश्छल-निस्वार्थ भावना। वास्तव में, यह षड्यंत्र प्रेम के खिलाफ ही जिहाद है, क्योंकि इसके माध्यम से स्वयं को इस्लाम से प्रेरित कहने वाले समूह, छल-बल से गैर-मुस्लिम ...
गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में विश्व को राह दिखाता भारत

गरीबी उन्मूलन के क्षेत्र में विश्व को राह दिखाता भारत

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भारत में विशेष रूप से कोरोना महामारी के बीच एवं इसके बाद केंद्र सरकार द्वारा गरीब वर्ग के लाभार्थ चलाए गए विभिन्न कार्यक्रमों के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। विशेष रूप से प्रधानमंत्री गरीब अन्न कल्याण योजना के अंतर्गत देश के 80 करोड़ नागरिकों को मुफ्त अनाज की जो सुविधा प्रदान की गई है एवं इसे कोरोना महामारी के बाद भी जारी रखा गया है, इसके परिणामस्वरूप देश में गरीब वर्ग को बहुत लाभ हुआ है। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत में गरीबी के अनुमान पर एक वर्किंग पेपर जारी किया है। इस वर्किंग पेपर में अलग अलग मान्यताओं के आधार पर भारत में गरीबी को लेकर अनुमान व्यक्त किए गए हैं। इस वर्किंग पेपर के अनुसार, हाल ही के समय में भारत में 1.2 करोड़ नागरिक अतिगरीबी रेखा के ऊपर आ गए हैं। वर्ष 2022 में विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए एक अन्य प्रतिवेदन के अनुसार, वर्ष 2011 में भारत में ...
दवा को टक्कर देता भारतीय आहार

दवा को टक्कर देता भारतीय आहार

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कोरोना दुष्काल के दौरान और उसके बाद पूरी दुनिया इस बात को लेकर हैरत में थी कि सघन आबादी वाले और अपर्याप्त चिकित्सा सुविधा वाले देश भारत में कोरोना दुष्काल के बीच और उसके बाद मृत्यु दर कम कैसे रही? इसके विपरीत कम आबादी वाले संपन्न व पर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं वाले देशों में मौत का आंकड़ा कहीं ज्यादा रहा। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च अर्थात‍् आईसीएमआर के एक जर्नल ने हाल ही इस रहस्य को उद्घाटित किया है, इसे कई देशों ऑन साझा भी किया है। संसार के कई देशों के वैज्ञानिक अब इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि भारतीय व्यंजन स्वाद के साथ तमाम चिकित्सीय गुणों से भरपूर हैं, लेकिन विडंबना यही है कि भारत में विदेशी शासन के लंबे दौर ने ऐसी दासता की मानसिकता को जन्म दिया कि हम अपनी समृद्ध परंपरा व खानपान को छोड़कर विकृतियां पैदा करने वाली खाद्य शृंखला को अपना रहे हैं। हम अपनी विरासत पर तब गर्व करते है...