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साहित्य संवाद

क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप भारी पड़ रहा है?

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भारत सरकार के भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (आईसीएमआर) ने 2 जुलाई 2020 को कहा था कि 15 अगस्त 2020 (स्वतंत्रता दिवस) तक कोरोना वायरस रोग (कोविड-19) से बचाव के लिए वैक्सीन के शोध को आरंभ और समाप्त कर, उसका "जन स्वास्थ्य उपयोग" आरंभ किया जाए. क्योंकि यह फरमान भारत सरकार के सर्वोच्च चिकित्सा शोध संस्था से आया था, इसलिए यह अत्यंत गंभीर प्रश्न खड़े करता है कि क्या विज्ञान पर राजनैतिक हस्तक्षेप ने ग्रहण लगा दिया है? भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद ने अगले दिन ही स्पष्टीकरण दिया कि उसने यह पत्र इस आशय से लिखा था कि वैक्सीन शोध कार्य में कोई अनावश्यक विलम्ब न हो. परन्तु सबसे बड़े सवाल तो अभी भी जवाब ढूंढ रहे हैं. पिछले सप्ताह एक संसदीय समिति को विशेषज्ञों ने बताया कि वैक्सीन संभवत: 2021 में ही आ सकती है (15 अगस्त 2020 तक नहीं). विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामी...

साइकल्स फॉर चेंज से लौटेगी अब साइकिल

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कोरोना काल में साइकिल का क्रेज आये दिन बढ़ रहा है। अब लॉकडाउन के कारण बदली जीवन शैली और पर्यावरण के प्रति लोग अधिक जागरूक हो रहे हैं।तभी तो साइकिल की खरीदारी भी बढ़ रही है। आज युवाओं के अलावा इंजीनियर, प्रोफेसर, डॉक्टर, रिटायर कर्मचारी और प्रोफेशनल लोग भी सेहत बढ़ाने के लिए साइकिल की खरीदारी करने लगे हैं। कोरोना संकट के दौर में परिवहन के लिए साइकिल मुफीद साधन है। इस काल में साइकिल की सवारी सस्ती और सुलभ होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिहाज से भी मुफीद है। पर हमारी सरकारों ने नगर नियोजन में साइकिलों के बारे में बहुत कम सोचा है। आधुनिक चमक-दमक के पीछे भागने वाला भारतीय मध्य वर्ग वैसे भी साइकिलों पर चलना हेठी समझता है. पर आज अब कोरोना काल में साइकिल बहुत सारी समस्याओं का समाधान है। दरअसल, हमारी सोच ही अभिजात वर्ग की तरह हो चली है। हम सड़कों का निर्माण कार य...
स्वामी विवेकानन्द थे भारतीयता की संजीवनी बूंटी

स्वामी विवेकानन्द थे भारतीयता की संजीवनी बूंटी

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महापुरुषों की कीर्ति किसी एक युग तक सीमित नहीं रहती। उनका मानवहितकारी चिन्तन एवं कर्म कालजयी होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता है। स्वामी विवेकानंद हमारे ऐसे ही एक प्रकाश-स्तंभ हैं, वे भारतीय संस्कृति एवं भारतीयता के प्रखर प्रवक्ता, युगीन समस्याओं के समाधायक, अध्यात्म और विज्ञान के समन्वयक एवं आध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देने वाले एक महामनीषी युगपुरुष थे। जिन्होंने 4 जुलाई 1902 को महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए थे। स्वामी विवेकानन्द का संन्यास एवं संतता संसार की चिन्ताओं से मुक्ति या पलायन नहीं था। वे अच्छे दार्शनिक, अध्येता, विचारक, समाज-सुधारक एवं प्राचीन परम्परा के भाष्यकार थे। काल के भाल पर कुंकुम उकेरने वाले वे सिद्धपुरुष हंै। वे नैतिक मूल्यों के विकास एवं युवा चेतना के जागरण हेतु कटिबद्ध, मानवीय मूल्यों के पुनरुत्थान के सजग ...
जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है, समझ लीजिये कि वह खुदा से उतनी ही दूर है! – प्रेमचंद

जो आदमी दूसरी कौम से जितनी नफरत करता है, समझ लीजिये कि वह खुदा से उतनी ही दूर है! – प्रेमचंद

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8 अक्टूबर - कथा-सम्राट प्रेमचंद की पुण्य तिथि पर शत शत नमन!   महान लोग वाकई महान होते है हिन्दी जगत के महान लोकप्रिय लेखक मंुशी प्रेमचंद की मानव जाति सदैव ऋणी रहेगी। उन्हें परवाह थी तो बस अपनी कलम की धार की, न फटे जूतों की न ही गरीबी से तंग हाल की। वह साहित्य को सच्चाई के धरातल पर उतारने वाले तथा आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह और उपन्यास सम्राट थे। इस साहित्य जगत के महान सम्राट के जीवन की शुरूआत गरीबी से नंगे पाँव हुई थी। प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी केनिकट लमही गाँव में हुआ था। उनकी माता का नाम श्रीमती आनन्दी देवी व पिता का नाम मुंशी अजायबराय था। उनके पिता लमही में डाकमुंशी थे। प्रेमचंद 7 साल के थे तभी उन्होंने लालपुर के मदरसा में शिक्षा प्राप्त करना शुरू किया। मदरसा में प्रेमचंद ने मौलवी से उर्दू और फारसी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। अंग्रेजी, दर्शन, फारसी और ...
For national pride give prominence to Bhaaratiya Bhasha

For national pride give prominence to Bhaaratiya Bhasha

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Are we free? We can consider ourselves free only when we break the shackles placed on our culture, language, mind and economy by colonialism, Marxism, religious fundamentalism and pseudo secularism. Only when we contribute to a greater Bhaarat and a better humanity, can we claim to be free. None are more hopelessly enslaved than those who falsely believe they are free. ~ Johann Wolfgang von Goethe Centuries of slavery gave us so much INFERIORITY COMPLEX that adoring, trusting, serving the FOREIGNERS has become the "way of life" of Hinduus who take pride in being "nishkam sewaks" of their colonial masters. This has ruined the gene quality of the Hinduu nation in Bhaarat to an immeasurable extent. Bhaaratiya people like the imposition of a foreign language English but oppose spreading of...
सूचना क्रांति के फायदे

सूचना क्रांति के फायदे

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जहां एक तरफ भारत के समाचार टीवी चैनल सतही, ऊबाऊ, भड़काऊ, तथ्यहीन व सनसनीखेज समाचारों और कार्यक्रमों से देश की जनता कासमय बर्बाद कर रहे हैं, उनका ध्यान असली मुद्दों से हटाकर फालतू की बहसों में उलझा रहे हैं। वहीं सूचना क्रांति का एक लाभ भी हुआ है। भारतऔर विदेश के अनेक टीवी चैनलों ने अनेक तथ्यात्मक और ऐतिहासिक सीरियल बनाकर दुनियाभर के दर्शकों को प्रभावित किया है। इन सीरियलों सेहर पीढ़ी के दर्शक का खूब ज्ञानबर्द्धन हो रहा है। मनोरंजन तो होता ही है। यहां मैं कुछ उन सीरियलों का जिक्र करना चाहूंगा, जिन्होंने मुझ जैसेगंभीर दर्शक को भी आकर्षित किया है। वह भी तब जबकि मैं सबसे कम टीवी देखने वालों में हूं। इस श्रृंखला में एक महत्वपूर्णं सीरियल है, जिसने मेरे दिल और दिमाग पर गहरा असर डाला, वो है ‘बुद्ध’। भगवान गौतम बुद्ध की जीवनी परआधारित इस सीरियल को हर आयु का व्यक्ति पसंद करेगा और उसे भारत की उस दिव...
अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

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देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। अब केन्द्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होने वाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं होनी चाहिए। अब वो दिन दूर नहीं है जब केन्द्रीय विद्लाय के ध्येय वाक्य पर भी सवाल खड़े किए जाएंगे। केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना तब हुई जब कि मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ईशावास्योपनिषद के श्लोक “हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्, तत्त्वं पूषन्नपातृणु सत्यधर्माय दृष्टये” से ही केन्द्रीय विद्यालयों का ध्ययेवाक्य“तत्वंपूषण अपावर्णु” को चुना जिसका अर्थ होता है सत्य जो अज्ञान के पर्दे से ढंका है उसपर से अज्ञान का पर्दा उठा दो। इस प्रार्थना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई है। अब ...
History and Literature: A comparative analysis

History and Literature: A comparative analysis

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What is History, how it is different from Literature, their inter-relation and how our Ramayana and Mahabharata are not just part of history but history themselves, and not literature: Explains Abhinav Shankar Anikul_ *===========================* What the history terms gruesomely, dismissively & witheringly otherwise; the literature treats in a generous, lenient & commiserative manner. In a way we see a strange paradox between these two here, but perhaps naturally so. Equally ironic is that today when it is a standard practice to look into literature while caricaturing the history, difficult to say how much of this paradox is acoounted while doing so. The History follows it's own simple & plain rules for describing things. It is utilitarian in it's basic purpose. It belie...
राजस्थान का अनुपम व्याख्यान

राजस्थान का अनुपम व्याख्यान

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एक रिपोर्ट : द्वितीय अनुपम स्मृति (19 दिसम्बर, 2018) कथाओं को खंगालने का वक्त लेखक: अरुण तिवारी   ''दबे पांव उजाला आ रहा है। फिर कथाओं को खंगाला जा रहा है। धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा  है।''   ये शब्द, अंश हैं कानपुर में जन्मे यशस्वी कवि यश मालवीय की एक कविता के। तिथि थी, 19 दिसम्बर, 2018। अवसर था, हरित स्वराज संवाद द्वारा आयोजित द्वितीय अनुपम स्मृति का। इन शब्दों का उल्लेख कर रही थीं श्रीमती रागिनी नायक। रागिनी नायक यानी अनुपम फूफा जी की भतीजी, जनसत्ता और सहारा समय जैसे अखबारों में संपादन दायित्व निभा चुके...सकारात्मक पत्रकारिता के पैरोकार श्री मनोहर नायक की पुत्री और कांग्रेस की प्रवक्ता।   रागिनी जी, श्री अनुपम मिश्र जी का परिचय परोस रही थीं। चंद लम्हे, चंद जज्बात और चंद आंसुओं में वह वो सब बयां कर रही थीं, जो कुछ उन्होने अनुपम जी के पारिवार...
रामानुजन की कोहनी की कहानी

रामानुजन की कोहनी की कहानी

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कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज की लाइब्रेरी के किसी कोने में लगभग 50 वर्षों तक पड़े रहने वाले रहस्यमय गणितीय समीकरणों के कुछ पन्ने 'धूल जम जाने' के मुहावरे को सही अर्थों में चरितार्थ कर रहे थे। काली स्याही से हड़बड़ी में लिखे गए रहस्यमय गणितीय समीकरणों वाले उन लगभग 130 पन्नों को पहली नजर में देखने पर निरर्थक समझा जाता था। वर्ष 1976 में पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के गणितज्ञ डॉ जॉर्ज एंड्रयूज की नजर एक दिन उन पन्नों पर अचानक पड़ गई और जब उनमें लिखे हुए गणितीय रहस्यों का खुलासा हुआ तो दुनिया चमत्कृत हो गई। इन पन्नों के बारे में ही भौतिक विज्ञानी फ्रीमैन डायसन ने कहा था कि "फूल, जो रामानुजन के बगीचे में पके हुए बीजों से उगे हैं।" इन पन्नों में ही वे गणितीय समीकरण छिपे थे, जिन्हें मशहूर भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने मॉक थीटा नाम दिया था। वर्ष 1920 में रामानुजन ने इन समीकरणों को अपनी...