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साहित्य संवाद

चिंताजनक है अखबारों और लेखकों की स्थिति

चिंताजनक है अखबारों और लेखकों की स्थिति

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समाचार पत्र और यहां तक कि लेखकों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा। बदहाल होती स्थिति पर सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे? सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे। एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा उत्पादित समाचार ले लेते हैं और दूसरी तरफ वे समाचार पत्रों की आजीविका-राजस्व को हड़प लेते हैं। इनसे ज्यादा बदतर स्थिति में अखबारों के लिए लिखने वाले लेखक है जो आए दिन पूरी मेहनत करते है लेकिन मेहनताना देखे तो समुंदर में मोती मिल जाए मगर लेखकीय सहयोग नहीं।  कारण इंटरनेट पर सामग्री की भरमार के फलस्वरूप अखबार कहीं से भी कुछ उठाते है और चस्पा कर देते है। ऐसे में न लेखक की जरूरत और न ही लेखकीय सहयोग का झंझट। इसी के चलते पत्रकारिता आज शातिर दिमाग वालों के लिए धंधा बन गई है जो पच्चास सौ कॉपी छपवाते है या डिजिटल एडिशन निकाल...
क्या आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) से कुछ बदलाव होगा ?

क्या आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) से कुछ बदलाव होगा ?

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सारे देश आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की चर्चा हो रही है। मौजूदा लहर इसकी परीक्षा की घड़ी है। जब भी कोई तकनीकी लहर पहली बार आती है तो हममें से कुछ लोग इसकी तारीफ करने लगते हैं जबकि कुछ लोग यह सोचने लगते हैं कि आखिर ये लोग इन बातों में अपना और हमारा समय क्यों खराब कर रहे हैं। उसके बाद जब वह तकनीकी लहर जोर पकड़ जाती है तो हममें से विचारशील लोगों के मन में एक तरह की चिंता घर करने लगती है। एआई से जुड़ी तकनीकी लहर (चैटजीपीटी उसका एक आरंभिक उदाहरण है) की बात करें तो इस समय वह दूसरे चरण में है जहां विचारक और नीति निर्माता नीतिगत निर्देश देने और विशेषज्ञ समितियां गठित करने में व्यस्त हैं।ताजा मामला अमेरिका का है जहां कुछ दिन पहले राष्ट्रपति जो बाइडन ने ऐसा ही एक निर्देश दिया। चूंकि यह निर्देश अमेरिका से आया था यानी एक ऐसे देश से जिसे तकनीकी लहरों को अपनाने में अग्रणी माना जाता है, इसलिए उसे ...
भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए प्रयासरत है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

भारत को पुनः विश्व गुरु बनाने के लिए प्रयासरत है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ

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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न देशों के बीच चल रही रस्साकच्छी, रूस यूक्रेन के बीच पिछले लम्बे समय से लगातार चल रहे युद्ध एवं पिछले एक माह से भी अधिक समय से पूर्व प्रारम्भ हुए हम्मास इजराईल युद्ध के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी मंडल की बैठक दिनांक 5 नवम्बर 2023, रविवार, को प्रातः 9 बजे भुज, गुजरात में प्रारम्भ हुई। बैठक का शुभारम्भ परम पूज्य सर संघचालक डॉक्टर मोहन जी भागवत और सर कार्यवाह श्री दत्तात्रेय जी होसबाले ने भारत माता के चित्र के समक्ष पुष्पांजलि अर्पित करके किया। बैठक में देश भर से संघ की दृष्टि से 45 प्रांतो एवं 11 क्षेत्रों के माननीय संघचालक, कार्यवाह, प्रचारक, अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य तथा कुछ विविध संगठनों के अखिल भारतीय संगठन मंत्रियों सहित लगभग 382 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।  उक्त बैठक में संघ शताब्दी की दृष्टि से कार्य विस्तार के लिए बनी योजन...
<strong>जीवन को आसान बनाने की उपयोगिता सोच</strong>

जीवन को आसान बनाने की उपयोगिता सोच

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विश्व उपयोगिता दिवस- 10 नवम्बर, 2023- ललित गर्ग-सरल को जटिल बनाना आम बात है लेकिन जटिल को सरल, अद्भुत रूप से सहज बनाना, यही रचनात्मकता है। इसी रचनात्मक सोच को विकसित करने के लिये विश्व उपयोगिता दिवस मनाया जाता है। इस दिन का उद्देश्य प्रयोज्यता, प्रयोज्य इंजीनियरिंग, सार्वभौमिक प्रयोज्यता, उपयोगकर्ता-केंद्रित डिजाइन और बेहतर काम करने वाली चीजों के बारे में आम उपयोगकर्ता की जिम्मेदारी के मूल्यों को बढ़ावा देना एवं उनमें सावधानी, सतर्कता एवं जागरूकता पैदा करना ही इस दिवस का उद्देश्य है। आज प्रौद्योगिकी एवं तकनीकी का युग है, नित-नयी उपभोग वस्तुओं, पदार्थों एवं सेवाओं का संसार विकसित हो रही, जिसमें प्रौद्योगिकी का सहजता एवं सरलता से उपयोग करना बहुत कठिन है। एक सेल फोन दरवाजे की घुंडी की तरह उपयोग में आसान होना चाहिए। शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, सरकार, संचार, मनोरंजन, कार्य और अन्य क्षेत्रों के ल...
रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार।

रंगत खोते हमारे सामाजिक त्यौहार।

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बाजारीकरण ने सारी व्यवस्थाएं बदल कर रख दी है। हमारे उत्सव-त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे। शायद इसीलिए प्रमुख त्योहार अपनी रंगत खोते जा रहे हैं और लगता है कि त्योहार सिर्फ औपचारिकताएं निभाने के लिए मनाये जाते हैं। किसी के पास फुरसत ही नहीं है कि इन प्रमुख त्योहारों के दिन लोगों के दुख दर्द पूछ सकें। सब धन कमाने की होड़ में लगे हैं। गंदी हो चली राजनीति ने भी त्योहारों का मजा किरकिरा कर दिया है। हम सैकड़ों साल गुलाम रहे। लेकिन हमारे बुजुर्गों ने इन त्योहारों की रंगत कभी फीकी नहीं पड़ने दी। आज इस अर्थ युग में सब कुछ बदल गया है। कहते थे कि त्योहार के दिन न कोई छोटा। और न कोई बड़ा। सब बराबर। लेकिन अब रंग प्रदर्शन भर रह गये हैं और मिलन मात्र औपचारिकता। हम त्योहार के दिन भी हम अपनो से, समाज से पूरी तरह नहीं जुड़ पाते। जिससे मिठाइयों का स्वाद कसैला हो गया है। बात तो हम पूरी धरा का अंधेरा दूर क...
सोशल मीडिया के ये स्याह पहलु

सोशल मीडिया के ये स्याह पहलु

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सोशल मीडिया के नशे को नियंत्रित करने व बड़ी तकनीकी कंपनियों को जवाबदेह बनाने की मांग भारत समेत पूरी दुनिया में उठ रही है। मानसिक स्वास्थ्य को लेकर विश्व्व्यापी चिंताये आकार लेने लगी हैं। भारत में भी सोशल मीडिया के नशे के युवाओं के सिर चढ़कर बोलने पर गाहे-बगाहे चिंता जतायी जाती है। इसकी वजह से जहां एक ओर उनकी एकाग्रता भंग होती है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं भी परेशान करने वाली हैं। देश में कई ऐसे मामले खबरों की सुर्खियां बने हैं, जब इस लत से रोकने वाले अभिभावकों पर किशोरों द्वारा प्राणघातक हमले किये गये। अब सोशल मीडिया के स्रोत संयुक्त राज्य अमेरिका के दर्जनों राज्यों ने युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को कथित रूप से नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाकर फेसबुक व इंस्टाग्राम की स्वामित्व वाली कंपनी मेटा पर मुकदमें दर्ज कराये हैं। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि एक नशे की लत के रूप ...
पंचांग में चंद्रमा की गणितीय गणना का महत्व

पंचांग में चंद्रमा की गणितीय गणना का महत्व

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पंचांग का महत्व अब भी है और इसी के अनुसार आमजन आज भी अपने कार्यक्रम तय करते हैं - राजू रंजन प्रसाद- पंचांग (पांच अंग ) संस्कृत भाषा का शब्द है, जो ‘तिथि’, ‘वार’, ‘नक्षत्र’, ‘योग’ तथा ‘करण’ को संकेतित करता है। ‘तिथि’, दिनांक अर्थात् तारीख बताती है तो ‘वार’, दिन (यथा रविवार, सोमवार आदि) द्योतित करता है। ‘नक्षत्र’ बतलाता है कि चंद्रमा, तारों के किस समूह में है तथा ‘योग’ इस बात की जानकारी देता है कि सूर्य और चंद्रमा के भोगांशों का योग क्या है। ‘तिथि’ के आधे हिस्से को ‘करण’ कहा गया है। आजकल जो पंचांग हमें उपलब्ध हैं उनमें उपर्युक्त पांच चीजों के अतिरिक्त भी, यथा अंग्रेजी तारीख, दिनमान (अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच की अवधि), चंद्रमा के उदय और अस्त का समय, तथा चुने हुए दिनों पर आकाश में ग्रहों की स्थिति आदि के साथ फलित ज्योतिष की बहुत-सी बातें लिखी रहती हैं।आजकल पंचांग इ...
भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है

भारतीय सनातन संस्कृति का विस्तार भारतीय समाज ही कर सकता है

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ललित गर्ग - हुरुन इंडिया रिच लिस्ट 2023 के मुताबिक, अरबपति उद्यमियों की संख्या देश में बढ़कर 1319 हो गई है। लेकिन बड़ी बात यह कि पिछले पांच साल में एक हजार करोड़ से अधिक की संपत्ति वाले लोगों का आंकड़ा 76 फीसदी बढ़ गया है। निश्चित ही भारत की आर्थिक प्रगति एक सुखद संकेत है, साल 2047 तक विकासशील देशों के वर्ग से निकलकर भारत विकसित देश हो जायेगा। एक दशक में भारत दसवें नंबर की अर्थव्यवस्था से तरक्की करके दुनिया की पांचवीं आर्थिक महाशक्ति बन गया। अनुमान हैं दो साल के अंदर हम तीसरी आर्थिक शक्ति बन जाएंगे। इन उल्लेखनीय आर्थिक उपलब्धियों के बीच चिन्तनीय मुद्दा अमीरी गरीबी का बढ़ता फासला एवं गरीबों की दुर्दशा का होना है। अमीर अधिक अमीर हो रहे हैं और गरीब अधिक गरीब, यह एक गंभीर चुनौती है। पांच राज्यों में विधानसभा एवं अगल वर्ष लोकसभा में यह चुनावी मुद्दा बनना चाहिए, पर कोई भी राजनीतिक दल यह नहीं कर प...
नारों से नहीं आचरण से बचेगा सनातन हिंदू धर्म

नारों से नहीं आचरण से बचेगा सनातन हिंदू धर्म

TOP STORIES, धर्म, विश्लेषण, साहित्य संवाद
-विनीत नारायणजब से सोशल मीडिया घर-घर पहुँचा है सब ने अपने परिवारों और मित्रों के ह्वाट्सऐप ग्रुप बना लिए हैं।जिनमें पारिवारिक समाचार से लेकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर रात-दिन बहस चलती रहती है।हमारे परिवार के भी चार पीढ़ी के सदस्य, जो भारत सहित दुनिया के कई देशों में रहते हैं, ऐसे ग्रुप केसदस्य हैं। हमारे इस समूह में तीन ख़ेमे बटे हुए हैं; पहला जो मोदी जी के अंधभक्त हैं। दूसरा जो हिंदुत्व केघोर समर्थक हैं और तीसरा वो जो ईश्वर में तो आस्था रखते हैं परंतु हिंदू रीति रिवाजों या मंदिर जाने मेंउनकी श्रद्धा नहीं है।आजकल टीवी मीडिया में रोज़ाना जिस तरह का धार्मिक उन्माद पैदा किया जाता है उसे देख करप्रभावित हुए हमारे इस समूह में चौथी पीढ़ी के एक युवा ने पिछले दिनों एक पोस्ट डाली, जिसमें उसनेलिखा कि, “हमें भी अपना सनातनी ईको-सिस्टम बनाना चाहिए।” उसकी यह पोस्ट मुझे बहुत रोचकलगी। मैंने पल...
धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

धर्मों विश्वस्य जगतः प्रतिष्ठा”

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भारत के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि आठ सौ वर्षों के निरन्तर आक्रमण के परिणाम स्वरूप हमारी चिन्तन प्रक्रिया बदल गई है। हम एक हजार वर्ष पूर्व जिन शब्दों को जिन अर्थों में ग्रहण करते थे आज ग्रहण कर पाने में असमर्थ हैं। इनमें एक सबसे महत्वपूर्ण शब्द धर्म है। अब्राहमिक मजहबों के आक्रमणों के फलस्वरूप हमने धर्म को मजहब के पर्याय के रूप में प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। वास्तविकता तो यह है कि उनके यहाँ धर्म जैसी कोई परिकल्पना है ही नहीं। धर्म एक वृहत्तर और व्यापक परिकल्पना है। धर्म परलोक पर आधारित नहीं लोक पर आधारित होता है। धर्म स्वयं के लिए ही नहीं सबके लिए होता है। धर्म की महत्ता उसकी व्यापकता पर निर्भर करती है। धर्म का कर्म स्वयं से प्रारम्भ होकर समष्टि में विलीन होता है। जो कर्म सभी के लिए और सबका है वही धर्म है। धर्म की क्रिया मरने के बाद स्वर्ग के लिए नहीं जीते जी लोक के लिए हो...