चिंताजनक है अखबारों और लेखकों की स्थिति
समाचार पत्र और यहां तक कि लेखकों को भी अस्तित्व बचाने के लिए गूगल व फे़सबुक को मात देना होगा। बदहाल होती स्थिति पर सवाल यह है- वे ऐसा कैसे करेंगे? सबसे महत्वपूर्ण कारक है न्यूज़ कैरियर की बढ़ोत्तरी- गूगल, फे़सबुक और बाकी दूसरे। एक तरफ वे किसी अन्य द्वारा उत्पादित समाचार ले लेते हैं और दूसरी तरफ वे समाचार पत्रों की आजीविका-राजस्व को हड़प लेते हैं। इनसे ज्यादा बदतर स्थिति में अखबारों के लिए लिखने वाले लेखक है जो आए दिन पूरी मेहनत करते है लेकिन मेहनताना देखे तो समुंदर में मोती मिल जाए मगर लेखकीय सहयोग नहीं। कारण इंटरनेट पर सामग्री की भरमार के फलस्वरूप अखबार कहीं से भी कुछ उठाते है और चस्पा कर देते है। ऐसे में न लेखक की जरूरत और न ही लेखकीय सहयोग का झंझट। इसी के चलते पत्रकारिता आज शातिर दिमाग वालों के लिए धंधा बन गई है जो पच्चास सौ कॉपी छपवाते है या डिजिटल एडिशन निकाल...