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साहित्य संवाद

संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

संबंधों के बीच पिसते खून के रिश्ते

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 आज हम में से बहुतों के लिए खून के रिश्तों का कोई महत्त्व नहीं। ऐसे लोग संबंधों को महत्त्व देने लगे हैं। और आश्चर्य की बात ये कि ऐसा उन लोगों के बीच भी होने लगा है जिनका रिश्ता पावनता के साथ आपस में जोड़ा गया है। वैसे तो हमारे सामाजिक संबंधों और सगे रिश्तों में खूनी जंग का एक लंबा इतिहास रहा है। पर पहले इस प्रकार की घटनाएं राजघरानों के आपसी स्वार्थों के टकराने तक सीमित रहती थीं। लेकिन अब यह मुद्दा और भी गंभीर हो गया है, क्योंकि अब छोटे-छोटे निजी स्वार्थों को लेकर रक्त संबंधों अथवा नातेदारी संबंधों की बलि चढ़ाने में आमजन भी शामिल हो गए हैं। वर्तमान की इस सच्चाई को प्रस्तुत करने में कोई हिचक नहीं कि तकनीकी मूल्यो, पूंजी के जमाव, आक्रामक बाजार, सूचना तकनीकी के साथ में सोशल मीडिया से बढ़ती घनिष्ठता जैसे कारकों के फैलाव के सामने परिवार, समुदाय तथा इनमें समाहित...
काव्य की उपेक्षिताएं: भारतीय जीवन दृष्टि

काव्य की उपेक्षिताएं: भारतीय जीवन दृष्टि

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रवीन्द्रनाथ का निबंध काव्य की उपेक्षिताएं पढ़ रहा था। प्रिय भाई शिव कुमार ने अपनी वाल पर लगाया है। उस निबंध के केन्द्र में रामायण की पात्र उर्मिला है। कविवर मानते हैं कि आदिकवि ने उर्मिला के साथ न्याय नहीं किया। वे अत्यंत भावुक होकर सोचते हैं और भावुकता उन्हें आत्ममुग्धता के तट पर ले जाती हैं-जहां उन्हें यह अनुभव होता है कि जो वाल्मीकि नहीं देख सके, वह मैं देख पा रहा। मैं तो अश्रुपात के साथ बहा जा रहा! साहित्य की भावभूमि स्वतंत्र होती है। वहां कोई बंधन नहीं होता। कवि, नाटककार और उपन्यासकार अपनी दृष्टि से पात्रों को गढ़ते हैं। भवभूति की सीता वाल्मीकि की सीता से भिन्न हैं। अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। किन्तु रामायण के संदर्भ महत्वपूर्ण क्या है? उसके प्रतिपाद्य क्या हैं? रामायण के अनेकानेक छोटे-बड़े पात्र अमर हैं। किन्तु उनकी कोई स्वतंत्र सत्ता महाभारत के पात्रों की तरह नहीं है। वे सभी ...
विराट अध्ययनशीलता, प्रशान्त विवेक और निर्भय सर्जना: श्री गुरूदत्त जी

विराट अध्ययनशीलता, प्रशान्त विवेक और निर्भय सर्जना: श्री गुरूदत्त जी

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-प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज (30 सितम्बर 2023 को भारतीय धरोहर द्वारा आयोजित स्वर्गीय गुरूदत्त जी के सम्मान समारोह में दिये गये वक्तव्य का सार)पितृपक्ष के इस प्रथम दिन में हमारे पूज्य पितरों को श्रद्धांजलि देने की परंपरा के क्रम में भारतीय धरोहर ने संस्कृति की रक्षा के लिये किये गये पुरूषार्थी लोगों के सम्मान समारोह का एक क्रम चलाया है, जिसमें आज स्वर्गीय श्री गुरूदत्त जी को श्रद्धांजलि देेते हुये गौरव का अनुभव हो रहा है। वार्षिक सम्मान पितृपक्ष में ही दिया जाये, ऐसी कोई परंपरा नहीं है परंतु इस बार का संयोग जो जुट गया है, वह स्वयं में प्रसन्नता की बात है। भारतीय धरोहर के सभी न्यासियों और संरक्षकों तथा अधिकारियों और कार्यकर्ताओं सहित सभी आयोजकों कों साधुवाद। 1945-50 ईस्वी के बाद हिन्दी में जो भी प्रसिद्ध लेखक हुये उनमें विज्ञान के विधिवत अध्येता दो ही प्रसिद्ध हैं, स्वर्गीय श्री गुरूदत्...
संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है।

संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है।

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हम आए रोज देखते है कि कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है, और कैसे भी कर सकता है। लेकिन सभ्य पुरुष को यह अधिकार नहीं है, उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट का उपयोग करना होगा। यहां बात उन पुरुषों की भी है जो सरेआम कहीं भी खड़े होकर कुत्तों की तरह ऐसा कृत्य करते है उन्हे पुरुष होने का महत्व अपने जीवन में उतारना होगा। क्या वो अपने घर की बहन बेटियों के सामने भी ऐसे ही करते है। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा। तभी वो वास्तविक आधुनिक कहलाने की हकदार है। *-डॉ. सत्यवान सौरभ* हमारा जीवन और व्यवहार ही नहीं ये सम्पूर्ण सृष्टि नियमों में बंधी है। अगर वो नियम टूटेंगे तो परिणाम विपरीत ही होंगे। किसी अज्ञात ने कहा है कि जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्...
बिहार में जाति जनगणना के जो परिणाम आए हैं, उससे क्या सीख मिलती है?

बिहार में जाति जनगणना के जो परिणाम आए हैं, उससे क्या सीख मिलती है?

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बिहार में जाति जनगणना के जो परिणाम आए हैं, उससे क्या सीख मिलती है?उससे ये सीख मिलती है कि हिन्दू शून्य हैं और मुसलमान 17 प्रतिशत। हिन्दू कहाँ हैं? कहाँ हैं हिन्दू? भूमिहार 2.86% हैं, ब्राह्मण 3.66% हैं, राजपूत 3.45% हैं, कुर्मी 2.87% हैं, कोइरी 4.2% हैं, यादव 14.26% हैं। हिन्दू तो हैं ही नहीं। हाँ, मुसलमान ज़रूर 17% हैं। आप शुरू होगा इन्हें लड़ाने का असली खेल। जो जातियाँ जनसंख्या में कम रह गई हैं, उनका नरसंहार भी होगा तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। जिन जातियों के लोगों की जनसंख्या कम है, वो किसी पर झूठा आरोप भी लगा दें तो पूरा का पूरा सिस्टम कार्रवाई में लग जाएगा। लालू-नीतीश अब तुष्टिकरण की हद पार करने वाले हैं। बिहार में हैं अगर आप तो सावधान रहिए, या फिर बिहार छोड़ दीजिए। कम से कम बच्चों को बाहर ही भेज दीजिए। बिहार अब रहने लायक नहीं रहा। यहाँ अब राजनीति का एक नया अध्याय लिखा जा रहा...
शाकाहार-क्रांति से ही नयी विश्व-संरचना संभव

शाकाहार-क्रांति से ही नयी विश्व-संरचना संभव

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विश्व शाकाहार दिवस- 1 अक्टूबर, 2023- ललित गर्ग-बढ़ती बीमारियां के कारण जीवन की कम होती सांसों ने इंसान को शाकाहारी बनने के लिये विवश किया है, सत्य भी यही है कि शाकाहार एक उन्नत जीवनशैली है, निरापद खानपान है। न केवल बुद्धिजीवी बल्कि आम व्यक्ति भी अब शाकाहारी जीवन प्रणाली को अधिक आधुनिक, प्रगतिशील और वैज्ञानिक मानने लगे हैं एवं अपने आपको शाकाहारी कहने में प्रगतिशील व्यक्ति होने का गर्व महसूस करते हैं। शाकाहार को बल एवं प्रोत्साहन देने के लिये ही विश्व शाकाहार दिवस, प्रतिवर्ष 1 अक्टूबर को पूरे विश्व में मनाया जाता है। यह 1977 में उत्तरी अमेरिकी शाकाहारी समाज का स्थापना दिवस है और 1978 में अंतर्राष्ट्रीय शाकाहारी संघ द्वारा ‘शाकाहार से खुशी, करुणा और जीवन-वृद्धि की संभावनाओं को बढ़ावा देने’ के लिये इसका समर्थन किया था, यह शाकाहारी जीवन शैली के नैतिक, पर्यावरणीय, स्वास्थ्य और मानवीय लाभों के ब...
कृषि-क्रांति एवं खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के महानायक

कृषि-क्रांति एवं खाद्यान्न आत्मनिर्भरता के महानायक

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- ललित गर्ग - भारत में कृषि-क्रांति के जनक, विश्व खाद्य पुरस्कार पाने वाले पहले व्यक्ति, कृषि में नवाचार के ऊर्जाघर एवं कृषि विज्ञानी डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन का देह से विदेह हो जाना एक स्वर्णिम युग की समाप्ति है, एक अपूरणीय क्षति हैं। भारत को अन्न के अकाल से मुक्त कर अन्न का भंडार बनाने वाले इस कृषि-युगपुरुष के अवदान इतने बहुमुखी और दीर्घायुष्य है कि वे सदिया तक कृतज्ञ राष्ट्र की धमनियों एवं स्मृतियों में जीवित रहेंगे। वे अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गये हैं कि भारतीय कृषि एवं वैश्विक खाद्य के संकट उभरने का नाम नहीं लेंगे। ‘कृषि क्रांति आंदोलन’ के वैज्ञानिक नेता के रूप में उनके अवदानों की शुरुआत 1943 के भीषण दुर्भिक्ष के दौरान हुई, जब चावल के एक-एक दाने के लिये लाखों लोगों ने दम तोड़ दिया था। इस घोर मानवीय त्रासदी एवं  संकट ने केरल विश्वविद्यालय के इस अठारह वर्षीय युवा स्वामीनाथन मे...
हिंदू हृदय सम्राट – अशोक सिंघल

हिंदू हृदय सम्राट – अशोक सिंघल

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27 सितंबर (जन्म जयंती) पर विशेष-मृत्युंजय दीक्षित27 सितम्बर 1926 को जन्मे राष्ट्रवादी विचारधारा के वाहक, श्री राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन के माध्यम से बहुसंख्यक हिंदू समाज को स्वाभिमान से खड़ा करने वाले विश्व हिंदू परिषद के संस्थापक अशोक सिंघल नेअपना जीवन हिंदू समाज के लिए खपा दिया। अशोक जी के व्यक्तित्व व उनके ओजस्वी विचारों का ही परिणाम है कि आज हिंदू समाज में सामाजिक समरसता का भाव दिखलायी पड़ रहा है। संत समाज व विभिन्न अखाड़ा परिषदों को एक मंच पर लाने का दुष्कर कार्य अशोक जी से ही संभव हो सका। यह उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि आज देश का बहुसंख्यक समाज अपने आप को गर्व से हिंदू कहना चाहता है।अशोक सिंघल ने देश, समाज, हिंदू संस्कृति और संस्कार के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। उन्होने श्री रामजन्मभूमि की मुक्ति तथा उस पर श्री राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलनों की झड़ी लगा दी। जनसभाओं व का...
भारत : पर्याप्त रोजगार नहीं

भारत : पर्याप्त रोजगार नहीं

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सरकारी आँकड़े भले ही कुछ भी कहें देश में बीते वर्षों में अच्छे वेतन वाले नियमित रोजगार हासिल नहीं हुए। सन 1983 और 2019 के बीच गैर कृषि रोजगारों की हिस्सेदारी में करीब 20 प्रतिशत का इजाफा हुआ,परंतु नियमित वेतन वाले रोजगार केवल तीन प्रतिशत ही बढ़े। संगठित क्षेत्र में यह इजाफा दो फीसदी से भी कम था। देश के लिए सबसे बड़ी नीतिगत चुनौतियों में से एक यही रही है “युवाओं और बढ़ती श्रम योग्य आबादी के लिए रोजगार की व्यवस्था करना”। सन 1980 के दशक के मध्य से ही हमारी आर्थिक वृद्धि में तेजी आ रही है लेकिन रोजगार की स्थिति में कोई वांछित बदलाव नहीं आ रहा है।कुछ पहलुओं में सुधार हुआ है। सरकार के रोजगार सर्वेक्षण और स्वतंत्र आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययन रोजगार संबंधी नतीजों की ढांचागत खामियों को समय-समय पर रेखांकित करते रहे हैं। हाल ही में आई अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की एक नई रिपोर्ट ...
आईना नहीं, चेहरे बदलिए जनाब !

आईना नहीं, चेहरे बदलिए जनाब !

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“बहिष्कार और असहयोग” हाल ही में यह दोनों पुराने शब्द भारत की राजनीति में फिर तेज़ी से उछले हैं। देश में बने नए राजनीतिक गठबंधन ‘इंडिया’ गठबंधन ने घोषणा की है कि वह मीडिया के कुछ एंकरों का बहिष्कार करेगा । उनका तर्क है कि कुछ समाचार चैनलों के एंकर यानी कार्यक्रम के प्रस्तोता सरकारी प्रचार के काम में इस तरह लगे हुए हैं कि निर्भयता और निष्पक्षता के पत्रकारीय दायित्व को छोड़ बैठे हैं। ऐसे मीडिया को उन्होंने ‘गोदी मीडिया’ नाम दिया है। 14 एंकरों के नाम लेकर कहा गया है कि वे निर्बाध रूप से भाजपा सरकार के पक्ष में हवा बनाने का काम कर रहे हैं। वैसे यह आरोप अपने आप में नया नहीं है। अर्से से कुछ चैनलों पर ‘सरकारी’ होने की बात कही जाती रही है। इससे ऐसे चैनलों पर कुछ असर नहीं लग रहा। मीडिया की भूमिका सवालों के घेरे में यदा-कदा आती रही है। पत्रकारिता से हमेशा यह अपेक्षा रही है कि वह विवेकपूर्ण त...