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साहित्य संवाद

अनुवाद एक सेतु है

अनुवाद एक सेतु है

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हर भाषा का अपना एक अलग मिज़ाज होता है,अपनी एक अलग प्रकृति होती है जिसे दूसरी भाषा में ढालना या फिर अनुवादित करना असंभव नहीं तो कठिन ज़रूर होता है।भाषा का यह मिज़ाज इस भाषा के बोलने वालों की सांस्कृतिक परम्पराओं,देशकाल-वातावरण,परिवेश,जीवनशैली,रुचियों,चिन्तन-प्रक्रिया आदि से निर्मित होता है।अंग्रेजी का एक शब्द है ‘स्कूटर’। चूंकि इस दुपहिये वाहन का आविष्कार हमने नहीं किया,अत: इससे जुड़ा हर शब्द जैसे: टायर,पंक्चर,सीट,हैंडल,गियर,ट्यूब आदि को अपने इसी रूप में ग्रहण करना और बोलना हमारी विवशता ही नहीं हमारी समझदारी भी कहलाएगी । इन शब्दों के बदले बुद्धिबल से तैयार किये संस्कृत के तत्सम शब्दों की झड़ी लगाना स्थिति को हास्यास्पद बनाना है।आज हर शिक्षित/अर्धशिक्षित/अशिक्षित की जुबां पर ये शब्द सध-से गये हैं। स्टेशन,सिनेमा,बल्ब,पावर,मीटर,पाइप आदि जाने और कितने सैकड़ों शब्द हैं जो अंग्रेजी भाषा के ...
क्यों पतियों को बीवी ‘नो-जॉब’ पसंद है ?

क्यों पतियों को बीवी ‘नो-जॉब’ पसंद है ?

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 इस पुरूष प्रधान समाज में महिलाओं को घर के अंदर समेटने का तरीका है उन्हें नौकरी न करने देना। पितृसत्ता के गुलाम लोगों को लगता है कि नौकरी करने अगर बहू घर के बाहर जाएगी, उसके हाथ में पैसे होंगे तो वो घर वालों को कुछ समझेगी नहीं। इसके पीछे की भावना होती है कि लड़की इंडिपेंडेंट होगी। वो अपने लिए खुद फैसले लेंगी और इससे उसपर उनका अधिकार कम होगा। लड़कियों और बहुओं को घर की इज्ज़त का नाम देकर घर में उनका जमकर शोषण किया जाता है। कई पुरुषों में यह सोच हावी है कि महिलाएं नौकरी करेंगी तो उनकी मोबिलिटी अधिक होगी, संपर्क अधिक बढ़ेगा। घर से बाहर निकल कर बाहर के पुरुषों से बात करेंगी। यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है। पुरुषों को लगता है कि नौकरी करने पर महिलाएं उन पर आश्रित नहीं रहेंगी। वो खुद फैसले ले सकेंगी, उनकी चलेगी नहीं। इसलिए वो नौकरीपेशा महिलाओं को नहीं पसंद करते। -डॉ सत्यवान सौरभ ...
<strong>सावन यानी शिव को रिझाने का समय</strong>

सावन यानी शिव को रिझाने का समय

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आर.के. सिन्हा सावन का पहला सोमवार बीती 10 जुलाई को पूरी आस्था के साथ मनाया गया। देशभर के शिवालयों में सुबह चार बजे से बारह बजे रात्रि तक तमाम भक्त आते रहे। सूरज की पहली किरण फूटने से पहले ही भक्तों  का तांता मंदिरों में लग गया था। शिव का जीवन ही इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति से तालमेल स्थापित कर ही जीवन में सुख-शांति, सरलता, सादगी, शौर्य, योग, अध्यात्म सहित कोई भी उपलब्धि हासिल की जा सकती है। आषाढ़ मास से ही वर्षा ऋतु की शुरूआत होती है। श्रावण मास आते-आते चारों तरफ हरियाली छा जाती है। यह सभी के मन को लुभाने वाली होती है। श्रावण मास में प्रकृति का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चारों तरफ बसंत ऋतु ही छाई हुई है। संंसार के प्राणियों में नई उमंग व नव जीवन का प्रसार होने लगता है। प्रकृति की अनुपम छठा को देखकर भ...
क्या भाजपा को “भ्रष्टाचार” पर कुछ कहने का अधिकार है?

क्या भाजपा को “भ्रष्टाचार” पर कुछ कहने का अधिकार है?

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जब आप किसी की ओर एक उँगली दिखाते ते है, तो तीन उँगलियाँ आपकी और होती है यह उक्ति मौजूदा हालात में भाजपा पर काफी सटीक बैठती है। विपक्षी नेताओं पर सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई किसी से छिपी नहीं है। भ्रष्टाचार में संलिप्त कई नेता भाजपा में शामिल हुए और उनसे जुड़े मामलों पर ताला लग गया। अब तो यहाँ तक कहा जाने लगा है कि भाजपा उस वाशिंग मशीन की तरह है, उसमें जो भी जाता है उसके सारे दाग धुल जाते हैं। जिन पर घोटाले के कई बड़े आरोप हैं और उसके बावजूद जांच एजेंसियों की ओर से उन्हें क्लीन चिट मिली हुई है। महाराष्ट्र सरकार में अजित पवार समेत कई नेताओं के शामिल होने के बाद से बवाल मचा हुआ है। भाजपा ने भ्रष्टाचार का आरोप झेल रहे अजित पवार और दूसरे विधायकों को महाराष्ट्र सरकार में शामिल करवा कर पक्षपात करने और केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग करने का मौका विपक्षी दलों को दे दिया। विपक्षी नेताओं द्व...
जिन्होंने डीयू को बनाया महान शिक्षा का मंदिर

जिन्होंने डीयू को बनाया महान शिक्षा का मंदिर

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आर.के. सिन्हा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दिल्ली यूनिवर्सिटी के शताब्दी समारोहों के अंत में मौजूद रहना इस बात की गवाही है कि यह  कितना खास शिक्षण संस्थान है। महात्मा गांधी 12 अप्रैल, 1915 को पहली बार दिल्ली आए। उनके साथ कस्तूरबा गांधी जी भी थीं। उनका सेंट स्टीफंस कालेज के प्रिंसिपल सुशील कुमार रुद्रा ने स्वागत किया। वे रुद्रा साहब के कॉलेज परिसर में बने आवास में ही ठहरे। वह कश्मीरी गेट स्थित कॉलेज इमारत अब भी है। अब भी सेंट स्टीफंस कॉलेज प्रिंसिपल के कक्ष में एक बड़ी सी ग्रुप फोटो लगी है,जो गांधी जी की उस यात्रा की याद दिलाती है। गांधी जी उसके बाद भी यहां आते  रहे। वे जब भी यहां आये तो उनका सेंट स्टीफंस और हिंदू कॉलेज के छात्रों और अध्यापकों ने स्वागत किया। हालांकि वे जब पहली बार दिल्ली आये थे तब दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना तक नहीं हुई थी। तब तक यहां के...
हाथी मेरे साथी विनीत नारायण

हाथी मेरे साथी विनीत नारायण

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बचपन से हम विशालकाय हाथियों को देख कर उत्साहित और आह्लादित होते रहे हैं। काज़ीरंगा, जिम कोर्बेट,पेरियार जैसे जंगलों में हाथी पर चढ़ कर हम सब वन्य जीवन देखने का लुत्फ़ उठाते आये हैं। जयपुर में आमेर काक़िला देखने भी लोग हाथी पर चढ़ कर जाते हैं। सर्कस में रिंग मास्टर के कोड़े पर आज्ञाकारी बच्चे की तरह बड़े-बड़ेहाथियों के करतब करते देख बच्चे-बूढ़े दंग रह जाते हैं। धनी लोगों के बेटों की बारात में हाथियों को सजा-धजा करनिकाला जाता है। मध्य युग में हाथियों की युद्ध में बड़ी भूमिका होती थी। देश के तमाम धर्म स्थलों में और कुछशौक़ीन ज़मीदाराना लोगों के घरों में भी पालतू हाथी होते हैं। दक्षिण भारत के गुरुवयूर मंदिर में 60 हाथी हैं जोपूजा अर्चना में भाग लेते हैं।आजतक मैं भी सामान्य लोगों की तरह गजराज के इन विभिन्न रूपों और रंगों को देख कर प्रसन्न होता था। परपिछले हफ़्ते मेरी यह प्रसन्नता दो घंटे में क...
दृढ़ता और संतोष, खुशियों के स्त्रोत

दृढ़ता और संतोष, खुशियों के स्त्रोत

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मनुष्य के रूप में हम उस पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो हमारे पास नहीं है, और जो हमारे पास है उसे नज़रअंदाज़ करते हैं या यहाँ तक कि अनदेखा भी करते हैं। आज बहुत से लोग सोचते हैं कि जीवन एक दौड़ है जहाँ आपको हर चीज़ में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। हम शायद एक शानदार कार, एक बड़ा घर, बेहतर कमाई वाली नौकरी, या अधिक पैसा चाहते हैं। जैसे ही हम एक चीज़ हासिल कर लेते हैं, अगली चीज़ की दौड़ शुरू हो जाती है। बहुत से व्यक्ति अपने द्वारा प्राप्त की गई हर उपलब्धि के लिए आभारी होने के लिए एक मिनट का भी समय नहीं निकालते हैं। वे जो दूरी तय कर चुके हैं, उस पर पीछे मुड़कर देखने के बजाय, जो दूरी बची है उसे तय करने के लिए खुद को आगे बढ़ाते हैं। और कुछ मामलों में, यह तब होता है जब महत्वाकांक्षा लालच बन जाती है। -डॉ सत्यवान सौरभ दृढ़ता आत्मा की दृढ़ता है, विशेषकर कठिनाई में। यह सदाचार की खोज में निरंतरता प्...
गीता प्रैस को पुरस्कार पर राजनीति ठीक नहीं !

गीता प्रैस को पुरस्कार पर राजनीति ठीक नहीं !

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हाल ही में गीता प्रेस गोरखपुर गांधी शांति पुरस्कार मिलने की वजह से चर्चा में है। भारत सरकार ने समाज की सेवा करने के लिए गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार देने का निर्णय लिया है, यह बहुत ही काबिले तारिफ कदम है क्यों कि आजादी के बाद से गीता प्रेस हमारे देश की सनातन परंपराओं, हमारी संस्कृति की गरिमा को बनाए रखते हुए लगातार विभिन्न धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन कर बहुत ही शानदार कार्य कर रही है। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में हमारे देश के संस्कृति मंत्रालय ने यह घोषणा की है कि 2021 का गांधी शांति पुरस्कार गीता प्रेस, गोरखपुर को " अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान" के लिए दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि इस पुरस्कार में एक करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार, एक प्रशस्ति पत्र, एक पट्टिका और एक उत्तम पारंपरिक हस्तशिल...
<strong>गीता प्रेस रूपी उजालों पर राजनीति क्यों?</strong>

गीता प्रेस रूपी उजालों पर राजनीति क्यों?

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-ः ललित गर्ग:- आजादी के अमृतकाल में स्व-संस्कृति, स्व-पहचान एवं स्व-धरातल को सुदृढ़ता देने के अनेक अनूठे उपक्रम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार में हो रहे हैं, उन्हीं में एक है भारत सरकार द्वारा एक करोड़ का गांधी शांति पुरस्कार सौ साल से सनातन संस्कृति की संवाहक रही गीता प्रेस, गोरखपुर देने की घोषणा। 1800 पुस्तकों की अब तक 92 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित करने वाले गीता प्रेस को इस पुरस्कार के लिये चुना जाना एक सराहनीय एवं सूझबूझभरा उपक्रम है। यह सम्मान मानवता के सामूहिक उत्थान, धर्म-संस्कृति के प्रचार-प्रसार, अहिंसक और अन्य गांधीवादी तरीकों से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन की दिशा में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया है। लेकिन विडम्बना है कि ऐसे मानवतावादी उपक्रमों को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता है। हर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से राजनीतिक दलों और नेताओं को कितना फायदा या ...
देशों के शीर्ष नेताओं की कथनी और करनी में अंतर क्यों?

देशों के शीर्ष नेताओं की कथनी और करनी में अंतर क्यों?

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विश्व के सभी देशों के शीर्ष नेता आगामी सितंबर 2023 को न्यू यॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासम्मेलन में भाग लेंगे जहां टीवी पर दूसरी संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक भी होगी। टीवी पर प्रथम उच्च स्तरीय बैठक 2018 में हुई थी (जिसमें शामिल होने का सौभाग्य मुझे भी मिला था) जब देशों के शीर्ष नेताओं ने एक "राजनीतिक घोषणा पत्र" जारी करके अनेक वायदे किए थे जो 2022 तक पूरे करने थे। पर इन सभी वायदों पर अधिकांश देशों ने असंतोषजनक प्रगति की है। अब आगामी सितंबर में यही नेता टीबी उन्मूलन हेतु एक नया "राजनीतिक घोषणा पत्र" जारी करेंगे। क्या 2023 का नया घोषणा पत्र जमीनी असलियत में भी बदलेगा या पुराने घोषणापत्र की तरह काग़ज़ों में ही क़ैद रह जाएगा? दुनिया में संक्रामक रोगों के कारण होने वाली मृत्यु में, सबसे अधिक मृत्यु टीबी से होती है। टीबी गरीब और विकासशील देशों में आज भी सबसे घातक संक्रामक रोग बना हुआ है।...