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26 सितंबर विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस विशेष

26 सितंबर विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस विशेष

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26 सितंबर को प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। वास्तव में इस दिवस को मनाने के पीछे जो कारण और उद्देश्य है वह यह है कि पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़े और अधिकाधिक लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के प्रति प्रोत्साहित किया जाए। अब हम यहां बात करते हैं कि आखिर पर्यावरण स्वास्थ्य से यहां क्या मतलब है ? तो जानकारी देना चाहूंगा कि पर्यावरण स्वास्थ्य का तात्पर्य किसी विशेष क्षेत्र की भौतिक, रासायनिक, जैविक और सांस्कृतिक स्थिति से है। खराब वायु गुणवत्ता, पारिस्थितिक विविधता का नुकसान, रासायनिक असंतुलन आदि जैसे पहलू किसी क्षेत्र के पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पर्यावरणीय स्वास्थ्य के तीन सबसे महत्वपूर्ण प्रकारों में भौतिक पर्यावरण, जैविक पर्यावरण और सांस्कृतिक पर्यावरण शामिल हैं। इन प्रकारों का विश्लेषण करके पर्यावरणीय स्वास्थ्य को मापा जा ...
क्यों मोदी ने संसद पर हमले को किया याद

क्यों मोदी ने संसद पर हमले को किया याद

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 आर.के. सिन्हा भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिये 13 दिसंबर, 2001 काला दिन था। उस दिन देश के दुश्मनों ने हमारे लोकतंत्र के मंदिर को निशान बनाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के विशेष सत्र को संबोधित करते हुए संसद पर हुए उस हमले का उल्लेख करके उन शूरवीरों के प्रति देश की कृतज्ञता को ज्ञापित किया जिनकी बहादुरी के कारण ही संसद भवन के अंदर आतंकी घुस नहीं सके थे। तब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस दिन विपक्षी सांसद राज्यसभा और लोकसभा में हंगामा काट रहे थे। सदन को तत्काल 45 मिनट के लिए स्थगित कर दिया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी संसद से घर की ओर जा चुके थे। हालांकि, उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी समेत अन्य सांसद संसद भवन में ही मौजूद थे। तभी सफेद एंबेसडर कार से जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के पांच आतंकी संसद भवन परिसर ...
एक साथ चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों?

एक साथ चुनाव भारत के लोकतंत्र के लिए हानिकारक क्यों?

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एक साथ चुनावों से देश की संघवाद को चुनौती मिलने की भी आशंका है। एक साथ चुनाव होने से लोकतंत्र के इन विशिष्ट मंचों और क्षेत्रों के धुंधला होने का खतरा है, साथ ही यह जोखिम भी है कि राज्य-स्तरीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों में समाहित हो जाएंगे। अगर लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवाए गए तो ज्यादा संभावना है कि राष्ट्रीय मुद्दों के सामने क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो जाएँ या इसके विपरीत क्षेत्रीय मुद्दों के सामने राष्ट्रीय मुद्दे अपना अस्तित्व खो दें। डॉ सत्यवान सौरभ एक साथ चुनाव का तात्पर्य है कि पूरे भारत में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे, जिसमें संभवतः एक ही समय के आसपास मतदान होगा। एक साथ चुनाव, या "एक राष्ट्र, एक चुनाव" का विचार पहली बार औपचारिक रूप से भारत के चुनाव आयोग द्वारा 1983 की रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था। एक साथ चुनाव कराने के क...
जस्टिन ट्रूडो सम्बन्धों को विद्रूप कर रहे हैं

जस्टिन ट्रूडो सम्बन्धों को विद्रूप कर रहे हैं

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इसमें कोई शक नहीं है कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का अपरिपक्व व्यवहार व दोहरापन दोनों देशों के संबंधों को उस मोड़ पर ले आया है कि भारत को कनाडाई नागरिकों को वीजा देने पर रोक लगानी पड़ी है। खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में भारत की कथित भूमिका को लेकर किया गया प्रलाप निस्संदेह न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि अपरिपक्व राजनय को भी दर्शाता है। वहीं ट्रूडो की राजनीतिक अस्थिरता से अपनी सरकार बचाने की कोशिशों से उत्पन्न हताशा को भी दर्शाता है। दूसरी ओर एक वरिष्ठ भारतीय राजनयिक का निष्कासन सुलगते रिश्तों की ज्वलनशीलता को बढ़ाने वाला ही था। निज्जर हत्या प्रकरण में आधी-अधूरी जांच के बीच में ही निष्कर्ष रचने वाले ट्रूडो की बयानबाजी उनके उतावलेपन को ही उजागर करती है। निस्संदेह वे लगातार अलगाववादियों के हाथों में खेल रहे हैं। जाहिर है कि हमारी एकता-संप्रभुता...
ओबीसी के नाम पर बेवक़ूफ़ बंनाने का ड्रामा

ओबीसी के नाम पर बेवक़ूफ़ बंनाने का ड्रामा

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आंकड़ों का अध्यन करें तो हम पाएंगे कि देश के कुल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग में केवल 5 उप-कुलपति है। अगर रजिस्ट्रार देखें तो पिछड़े समाज के तीन हैं। देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर की तय सीटों की मात्र 4.5 प्रतिशत ही भरी गई हैं। अमूमन यही स्थिति एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर में भी है। सीटों के खाली रहने के साथ-साथ ओबीसी के साथ क्रीमीलेयर का घटिया खेल खेलकर उनको कहीं का भी नहीं छोड़ा जा रहा है जिसकी वजह से उनकी जाति का सर्टिफिकेट तक छिना जा रहा है। छह या आठ लाख की मामूली सीमा से ओबीसी का हक़ मारकर आने वाली पीढ़ियों को पंगु बनाया जा रहा है जबकि अन्य आरक्षित वर्गों में न तो कोई क्रीमीलेयर है न कोई और बाध्यता? जिसकी वजह से इन वर्गों के बड़े-बड़े अफसरों के बच्चे भी पीढ़ियों तक आरक्षण का फायदा उठा पाएंगे। बड़े समाज को पीछे छोड़ हम अपने देश को सशक्त नहीं कर सकते। क्...
ये भारत क्यों छोड़ रहे हैं ?

ये भारत क्यों छोड़ रहे हैं ?

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भारत के सर्वश्रेष्ठ और सबसे मेधावी अब भी विदेशी निगमों में रोजगार को प्राथमिकता दे रहे हैं, तो देश का धनाढ्य वर्ग भी अपनी सरजमीं छोड़ने में पीछे नहीं है। इस साल जून में आई हेनली प्राइवेट वेल्थ माइग्रेशन रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2023 के अंत तक 6500 करोड़पतियों के भारत छोड़ने की संभावना है। ये क्यों भारत छोड़ रहे हैं? हेनली में एक वरिष्ठ पार्टनर घुमा-फिरा कर इसे ‘हाल की और लगातार उथल-पुथल’ बताते हैं। उन्होंने कहा कि महत्त्वपूर्ण बात यह है कि और भी ज्यादा निवेशक सुरक्षा, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तथा जलवायु परिवर्तन के असर के कारण अपने परिवारों को भारत से निकालकर विदेश ले जाने पर विचार कर रहे हैं। ब्रेन-ड्रेन या प्रतिभा पलायन का यह एक पहलू है। पहले सरकारी खर्च पर देश के आला संस्थानों से शिक्षित और योग्य इंजीनियर और प्रबंधन छात्र रोजगार के अवसरों के लिए पश्चिम के देशों ...
14 न्यूज एंकरों का ‘अपराध’ क्या?

14 न्यूज एंकरों का ‘अपराध’ क्या?

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-बलबीर पुंज बीते सप्ताह विपक्षी गठबंधन (आई.एन.डी.आई.ए.) ने विभिन्न न्यूज चैनलों के 14 टीवी एंकरों का बहिष्कार कर दिया। इस गठजोड़ की मीडिया समिति ने टीवी पत्रकारों के नामों की एक सूची जारी करते हुए उनके कार्यक्रमों में अपना प्रतिनिधि नहीं भेजने का निर्णय किया है। क्या विपक्ष— विशेषकर मोदी विरोधियों का यह आचरण केवल एंकरों के बहिष्कार तक सीमित रहेगा? न्यूज चैनलों के राजस्व का एक हिस्सा उन विज्ञापनों से भी आता है, जो उन्हें विभिन्न सरकारों से मिलते है। इस पृष्ठभूमि में देश के 11 राज्यों में आई.एन.डी.आई.ए घटकों की सरकार है। क्या इनकी सरकारें उन चैनलों के विज्ञापनों को रोकेंगे, उसमें कटौती करेंगे या फिर प्रबंधकों पर कार्रवाई (नौकरी से निकालने सहित) करने का दबाव बनाएंगे, जिनसे यह 14 एंकर जुड़े है? मेरा मत है कि देश को तीन किस्तों में स्वतंत्रता मिली है। 15 अगस्त 1947 को खंडित भारत को राजनी...
<strong>नारी का राजनीतिक जीवन भी अमृतमय बने</strong>

नारी का राजनीतिक जीवन भी अमृतमय बने

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  ललित गर्ग  भारतीय संसद के नए भवन के पहले सत्र का श्रीगणेश अनेक दृष्टियों से ऐतिहासिक, यादगार एवं अविस्मरणीय रहा। मंगलवार के शुभदिन अनेक नये अध्याय एवं अमिट आलेख रचे गये, जिनमें सरकार और विपक्ष के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध की दुर्लभ तस्वीर सामने आयी, वहीं ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम 2023’ के रूप में नारी शक्ति के अभ्युदय का नया इतिहास रचा गया। यह सुनकर एवं देखकर अच्छा लगा कि सभी नेताओं ने पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर बाबा साहेब अंबडेकर, पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबू राजेंद्र प्रसाद, अटलविहारी वाजपेयी जैसे सभी महान नेताओं को याद किया, जिन्होंने नया एवं सशक्त भारत बनाने में योगदान दिया।हर राजनीतिक दल महिला उत्थान, उन्नयन एवं विधायी संस्थानों में संतुलित महिला प्रतिनिधित्व के लंबे-चौड़े दावे करते रहे हैं और वादे भी, लेकिन जब समय आता है तो महिलाओं को उनका हक देने में अनेक किन्तु-परन्तु एवं कौताही ह...
आपसी सहयोग व गुणवत्तापूर्ण जीवन शैली द्वारा तनाव से बचाव संभव है: डॉ मनोज तिवारी

आपसी सहयोग व गुणवत्तापूर्ण जीवन शैली द्वारा तनाव से बचाव संभव है: डॉ मनोज तिवारी

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रेलवे सुरक्षा बल, पूर्वोत्तर रेलवे, इज्जतनगर मंडल के जवानों के तनाव प्रबंधन हेतु वरिष्ठ मंडल सुरक्षा आयुक्त, पूर्वोत्तर रेलवे, इज्जतनगर मंडल श्री ऋषि पांडेय के निर्देशन में एक दिवसीय तनाव प्रबंधन व योग कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें जवानों को तनाव से बचाव के उपाय से अवगत कराते हुए मुख्य अतिथि डॉ मनोज कुमार तिवारी, वरिष्ठ परामर्शदाता, ए आर टी सेंटर, एसएस हॉस्पिटल, आईएमएस, बीएचयू, वाराणसी ने जवानों को सम्बोधित करते हुए कहा कि धनात्मक सोच रखकर, कार्य को बोझ नहीं उत्तरदायित्व समझकर करने, नियमित दिनचर्या रखने, उचित आहार लेने, नशा न करके, 7 घंटे गुणवत्तापूर्ण नींद लेकर व नियमित व्यायाम करने से जवान तनाव मुक्त रहकर राष्ट्र सेवा करने में अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकते हैं। डॉ तिवारी ने बताया कि शारीरिक स्वास्थ्य की जांच के साथ-साथ नियमित अंतराल पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण भी कराते रहना चाहिए त...
<strong>संसद का विशेष सत्र सार्थक बहस का माध्यम बने</strong>

संसद का विशेष सत्र सार्थक बहस का माध्यम बने

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-ललित गर्ग- आज संसद में भारतीय संसदीय इतिहास का आठवां विशेष सत्र प्रारंभ हुआ, ऐतिहासिक रूप से देखें तो विशेष सत्र आमतौर पर महत्वपूर्ण विधायी या राष्ट्रीय घटनाओं के उपलक्ष्य में बुलाए गए हैं। संसदीय इतिहास में अब तक संसद के सात विशेष सत्र बुलाए जा चुके हैं जिनमें से तीन बार ऐसे सत्र तब बुलाए गए जब देश ऐतिहासिक उपलब्धियों का जश्न मना रहा था। वहीं दो बार राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए 1977 में तमिलनाडु और नगालैंड में तो 1991 में हरियाणा में विशेष सत्रों का आयोजन किया गया। इस बार 75 साल की संसदीय यात्रा पर चर्चा के लिए मुख्यतः विशेष सत्र बुलाया गये हैं। इस बार का विशेष सत्र संसदीय परम्परा के श्रेष्ठ स्वरूप को उपस्थित करके उसके उत्कर्ष को बढ़ाने और उसे उन्नत-आदर्श बनाने के लिये होना चाहिए, न केवल इस विषय पर गंभीरता से चर्चा होनी चाहिए, बल्कि इस पर चिंतन और मनन भी होना चाहिए। क्योंकि इससे इन्क...