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तीर्थों की भीड़ संभालें !

तीर्थों की भीड़ संभालें !

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, समाचार
-विनीत नारायणप्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री योगी जी ने हिन्दू तीर्थों के विकास की तरफजितना ध्यान पिछले सालों में दिया है उतना पिछली दो सदी में किसी ने नही दिया था। ये बात दूसरी हैकि उनकी कार्यशैली को लेकर संतों के बीच कुछ मतभेद है। पर आज जिस विषय पर मैं अपनी बात रखनाचाहता हूँ उससे हर उस हिन्दू का सरोकार है जो तीर्थाटन में रुचि रखता है। जब से काशी, अयोध्या,उज्जैन व केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थलों पर मोदी जी ने विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया है, तब से इनसभी तीर्थों पर तीर्थयात्रियों का सागर उमड़ पड़ा है। इतनी भीड़ आ रही है कि कहीं भी तिल रखने कोजगह नही मिल रही।इस परिवर्तन का एक सकारात्मक पहलू ये है कि इससे स्थानीय नागरिकों की आय तेज़ी से बढ़ी है औरबड़े स्तर पर रोजगार का सृजन भी हुआ है। स्थानीय नागरिक ही नहीं बाहर से आकार भी लोगों ने इनतीर्थ नगरियों में भारी...
मोदी-विरोध के नाम पर देश-विरोध क्यों?

मोदी-विरोध के नाम पर देश-विरोध क्यों?

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-ललित गर्ग-एक बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के इरादे से लद्दाख में चारागाह भूमि पर चीनी सेना का कब्जा होने का दावा किया है, निश्चित इस तरह के बयान न केवल सेना के मनोबल को कमजोर करते हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता एवं अखण्डता को ध्वस्त करते हैं। राहुल गांधी मोदी-विरोध में कुछ भी बोले, यह राजनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वे मोदी विरोध के चलते जिस तरह के अनाप-शनाप दावे करते हुए गलत बयान देते हैं, वह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है। आखिर कब राहुल एक जिम्मेदार एवं विवेकवान सशक्त नेता बनेंगे?राहुल गांधी ने कथित तौर पर लद्दाख की जमीन पर चीन का कब्जा होने का जो दावा किया गया है, वह जल्दीबाजी में बिना सोच के दिया गया गुमराह करने वाला बयान है, उससे यही पता चलता है कि उन्हें न तो प्रधानमंत्री की बातों पर यकीन है, न रक्षा मंत्री की और न ही विदेश मंत्...
I.N.D.I.A. बनाम एनडीए

I.N.D.I.A. बनाम एनडीए

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वर्ष 2024 में प्रस्तावित आगामी लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ में अत्यधिक जोर शोर से राजनीतिक हलचल होनी प्रारम्भ हो गयी है। भारत के अधिकांश राजनीतिक दल दो खेमों में विभाजित हो गए हैं। पहला खेमा भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए है जिसमें 38 पार्टियों का समावेश किया जा रहा है। सम्भावना यह है कि शीघ्र ही यह संख्या बढ़कर 40 तक हो सकती है। दूसरा खेमा कांग्रेस नेतृत्व वाला I.N.D.I.A. है, जिसके अन्तर्गत 26 पार्टियों का समावेश है। ऐसी सम्भावना है कि ज्यों-ज्यों चुनाव का समय पास आता जायेगा, त्यों-त्यों 26 में से 1-2 पार्टियाँ मोदी जी से प्रभावित होकर दूसरे खेमें में पहुँच जाएं। परन्तु इतना निश्चित है कि चुनाव से पूर्व जनता के समक्ष दो लुभावने विकल्प अवश्य प्रस्तुत होंगे। अब ये जनता पर निर्भर करेगा कि वर्ष 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में कौनसे विकल्प को प्राथमिकता देगी। परन्तु इतना अवश्य है कि आगामी लोकसभा च...
कब तक ‘रैगिंग की आंधी’ में बुझेंगे सपनों के दीप?

कब तक ‘रैगिंग की आंधी’ में बुझेंगे सपनों के दीप?

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कब तक 'रैगिंग की आंधी' में बुझेंगे सपनों के दीप? रैगिंग के नाम पर मैत्रीपूर्ण परिचय से जो शुरू होता है उसे घृणित और विकृत रूप धारण करने में देर नहीं लगती।  रैगिंग की एक अप्रिय घटना पीड़ित के मन में एक स्थायी निशान छोड़ सकती है जो आने वाले वर्षों तक उसे परेशान कर सकती है। पीड़ित खुद को शेष दुनिया से बदनामी और अलगाव के लिए मजबूर करते हुए एक खोल में सिमट जाता है। यह उस पीड़ित को हतोत्साहित करता है जो कई आशाओं और अपेक्षाओं के साथ कॉलेज जीवन में शामिल होता है। हालाँकि शारीरिक हमले और गंभीर चोटों की घटनाएँ नई नहीं हैं, लेकिन रैगिंग इसके साथ-साथ पीड़ित को गंभीर मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात का कारण भी बनती है। जो छात्र रैगिंग का विरोध करना चुनते हैं, उन्हें भविष्य में अपने वरिष्ठों से बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग रैगिंग के शिकार होते हैं वे पढ़ाई छोड़ सकते ह...
कांग्रेस के नए अध्यक्ष खड़गे की मोदीजी ने संसद में खोल दी पोल?

कांग्रेस के नए अध्यक्ष खड़गे की मोदीजी ने संसद में खोल दी पोल?

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आम तौर पर पीएम मोदी जी को एक मृदुभाषी सज्जन के रूप में कम आंकते रहे हैं, लेकिन हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते, कि जब वह अपने विरोधियों पर टूट पड़ते हैं तो उनकी नाक से खून बहा देते हैं! यहां एक उदाहरण है, जिसे हमारे भ्रष्ट मीडिया द्वारा स्पष्ट कारणों से छुपाया गया... संसद में कांग्रेस के नेता, मल्लिकार्जुन खड़गे एक दलित हैं, जैसा कि सभी जानते हैं, उन्होंने संसद में एक लड़ाकू की हरकतों और "बॉडी लैंग्वेज" के साथ एक सवाल उठाया, वस्तुतः भारी आवाज के साथ चिल्लाकर, अपने अंगों को जोर से हिलाकर और मोदीजी से एक प्रश्न पूछा!? हम दलितों के लिए आपको प्रति परिवार कम से कम एक प्रतिशत भूमि आवंटित करनी चाहिए! लोकसभा में पिन ड्रॉप साइलेंस रहा। सब कुर्सी के किनारे आ गए, कुछ समय के लिए रोका गया मानो वह इसे "नाटकीय" बनाने की प्रतीक्षा कर रहे हों! मोदीजी ने कुछ समय लिया और अपनी सीट स...
“आखिर इन बातों से कब मिलेगी आजादी ?”

“आखिर इन बातों से कब मिलेगी आजादी ?”

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डॉ. अजय कुमार मिश्रादेश को आजाद हुए 76 वर्ष पुरे हो गए और अभी देश ने 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है | इन 76 वर्षो में अनेकों अप्रत्याशित बदलाव और उपलब्धियां रही है जिससे देश का प्रत्येक नागरिक अत्यधिक मजबूत हुआ है साथ ही कई बिन्दुओं में हम अंतर्राष्ट्रीय मानकों की भी पूर्ति कर रहें है | राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो आजादी का अमृत काल चल रहा है और चारोतरफ खुशहाली दिखाई पड़ रही है | इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता की वर्तमान केंद्र सरकार ने अनेकों निर्णय लेकर देश को बेहतर करने का कार्य किया है | इसके प्रभाव को अभी महसूस किया जा रहा है | विगत 76 वर्षों में हम यदि बारीकी से आकलन करें तो हम संवेदनहीन हुए है और राजनीतिक विचारधाराओं ने वोट गणित में मुद्दों की बलि चढ़ा दी है |अब आम आदमी पर राजनीतिक प्रभाव इतना गहरा दिखाई पड़ने लगा है की वह बड़ी से बड़ी घटनाओं पर प्रश्न करने के बजाय इस तरह का व्य...
विश्व मानवीय दिवस-19 अगस्त, 2023

विश्व मानवीय दिवस-19 अगस्त, 2023

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भारत सक्षम है मानवता को बल देने में-ः ललित गर्ग:- विश्व मानवीय दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है। मानव मूल्यों के छीजते दौर में इस दिवस की विशेष प्रासंगिकता एवं उपयोगिता है। इस दिवस पर उन लोगों को याद किया जाता है, जिन्होंने मानवीय उद्देश्यों के कारण दूसरों की सहायता के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। इस दिवस को विश्वभर में मानवीय कार्यों एवं मूल्यों को प्रोत्साहन दिए जाने के अवसर के रूप में भी देखा जाता है। इसको मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीडिश प्रस्ताव के आधार पर किया गया। इसके अनुसार किसी आपातकाल की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र देशों द्वारा आपस में सहायता के लिए मानवीय आधार पर पहल की जा सकती है। इस दिवस को विशेष रूप से 2003 में संयुक्त राष्ट्र के बगदाद, इराक स्थित मुख्यालय पर हुए हमले की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाना आरंभ किया गया था जो विश्व में मानवीय क...
17 अगस्त 1909 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मदन लाल ढींगरा का बलिदान

17 अगस्त 1909 : सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मदन लाल ढींगरा का बलिदान

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लंदन में अंग्रेज अधिकारी वायली को गोली मारी थी --रमेश शर्मा स्वत्व और स्वाभिमान रक्षा के लिये क्राँतिकारियों ने केवल भारत की धरती पर ही अंग्रेज अधिकारियों को गोली मारकर मौत की नींद नहीं सुलाया अपितु लंदन में भी क्रूर अंग्रेजों के सीने में गोली उतारी है । क्राँतिकारी मदन लाल ढींगरा ऐसे ही क्राँतिकारी थे जिन्होंने लंदन में भारतीयों का अपमान करने वाले अधिकारी वायली के चेहरे पर पाँच गोलियाँ मारकर ढेर कर दिया था ।सुप्रसिद्ध क्राँतिकारी मदनलाल धींगरा का जन्म 18 सितंबर 1883 को पंजाब प्राँत के अमृतसर नगर में हुआ था । परिवार की पृष्ठभूमि सम्पन्न और उच्च शिक्षित थी । पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और आर्यसमाज से जुड़े थे । पर स्थानीय अंग्रेज अधिकारियों के भी विश्वस्त माने जाते थे । जबकि माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों में रची बसी थीं । वे आर्यसमाज के प्रवचन आयोजनों में नियमित श्र...
बंटवारा जो हम भूले नहीं

बंटवारा जो हम भूले नहीं

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-बलबीर पुंज बीते मंगलवार (15 अगस्त) भारत ने अपना 77वां स्वाधीनता दिवस हर्षोल्लास के साथ मनाया। निसंदेह, यह दिन भारतीय इतिहास का एक मील का पत्थर है। परंतु इसके साथ विभाजन की दुखद स्मृति भी जुड़ी हुई है। विश्व के इस भूक्षेत्र का त्रासदीपूर्ण बंटवारा, कोई एकाएक या तत्कालीन मुस्लिम समाज के किसी तथाकथित उत्पीड़न का परिणाम नहीं था। इसके लिए उपनिवेशी ब्रितानियों के साथ जिहादी मुस्लिम लीग और भारत-हिंदू विरोधी वामपंथियों ने अपने-अपने एजेंडे की पूर्ति हेतु एक ऐसा वैचारिक अधिष्ठान तैयार किया था, जिसने कालांतर में भारत को तीन टुकड़ों में विभाजित कर दिया। यह देश में पिछले 100 वर्षों की सबसे बड़ी सांप्रदायिक घटना थी। दुर्भाग्य से इसकी विषबेल खंडित भारत में अब भी न केवल जीवित है, साथ ही वह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखंडता के लिए चुनौती भी बन हुई है। भारतीय उपमहाद्वीप में पाकिस्तान कैसे उभर...
कृत्रिम बौद्धिक शक्ति और भारत

कृत्रिम बौद्धिक शक्ति और भारत

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विश्व में जिस चैट जीपीटी का बोलबाला है, वो चैट जीपीटी ने इन्सान को इतनी कृत्रिम बौद्धिक शक्ति प्रदान करती है| जिससे संकट दिख रहा है कि शायद मानव को अब मौलिक चेतना और बौद्धिक विकास की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। जब हर प्रश्न का जवाब गढ़ा-गढ़ाया चैट जीपीटी पर हो तो मानव अपनी बुद्धि को कष्ट क्यों देगा? अब चैट जीपीटी नेताओं को उनके भाषण, कवियों को उनकी कविताओं के उचित शब्द, नाटकों के संवाद और अध्यात्म के नये शब्द सुझा और समझा सकती है। संकट पैदा हो गया कि अगर ऐसा हो गया तो प्रखर चेतना वाले इन्सान क्या हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? क्या उनकी मौलिक सृजनात्मक प्रतिभा के मुकाबले में यह यांत्रिक असाधारण क्षमता अवरोध बनकर खड़ी हो जाएगा| जैसे किंडल के आगमन ने पुस्तक की उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये थे। तब लगने लगा था कि अब पुस्तक का अस्तित्व मिट जायेगा व पत्र-पत्रिकाएं भी अप्रासंगिक हो जाएंगी जबकि ...