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आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?

आखिर क्यूं बरी हो जाते हैं गंभीर मामलों के दोषी?

BREAKING NEWS, TOP STORIES, घोटाला, विश्लेषण
देश का जूडिशरी सिस्टम अभी भी तेज गति से काम नहीं कर रहा है जिसका रिज्लट अपराधियों के बरी हो जाने के तौर पर सामने आता है। अदालत में जो केस जितना अधिक लंबा चलता है उससे लोगों की रूचि खत्म होती जाती है। यदि कोई बड़ा मामला होता है और उस केस में अदालत से फैसले के लिए सिर्फ तारीख ही तारीख मिलती रहती है तो उस केस से लोगों का दिलोदिमाग हट जाता है। कई बार मुद्द्ई टूट जाते हैं। इसमें कई बार पुलिस की टीमें भी दोषी होती है, वो देर से चार्जशीट फाइल करती है, इस वजह से कोर्ट में तारीख मिलती रहती है। वकील भी मामलों में देरी से फैसला करवाने के लिए जिम्मेदार होते हैं वो केस को लंबित करते चले जाते हैं। यदि पुलिस पर्याप्त सबूतों के साथ केस फाइल करे और अदालत जल्द फैसला सुनाने पर आमदा हो तो आरोपी छूटने नहीं पाएंगे। *-प्रियंका सौरभ* देश में जूडिशरी और पुलिसिंग की लचर व्यवस्था के चलते ही कई गंभीर से गं...
भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

भाजपा के मुकाबले विपक्षी गठबंधन

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अवधेश कुमारबेंगलुरु से राजधानी दिल्ली तक विपक्ष और भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन की मोर्चाबंदी की पहली गुंज संसद के सत्र में सुनाई पड़ रही है। यह लोकसभा चुनाव के राजनीतिक युद्ध की पूर्व प्रतिध्वनियां हैं। वैसे विपक्ष द्वारा इंडिया नाम रखने के साथ यूपीए की अंत्येष्टि हो गई। पटना बैठक तक गठबंधन की कोशिशों में विपक्ष आगे दिख रहा था। इस तरह माहौल थोड़ा एकपक्षीय था। बेंगलुरु बैठक के पूर्व मीडिया की सुर्खियां यही थी कि 17 दलों का समूह बढकर 26 का हो गया। इसमें ऐसा लग रहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा पीछे रह गई है। 26 के मुकाबले 38 दलों को इकट्ठा कर भाजपा ने विपक्ष के इस प्रचार का जवाब दे दिया कि उसके साथ कोई दल आना नहीं चाहता। वैसे पटना बैठक के तुरंत बाद महाराष्ट्र में राकांपा के विधायकों के बहुमत का शरद पवार से अलग होकर सरकार में शामिल होने का निर्णय ही यह बताने के लिए पर्य...
<strong>मुकदमों के बोझ से झुकी अदालतें एवं जटिल होता जीवन</strong>

मुकदमों के बोझ से झुकी अदालतें एवं जटिल होता जीवन

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-ः ललित गर्ग:- लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक न्यायपालिका इन दिनों काफी दबाव में है। उस पर मुकदमों का अंबार लगा हुआ है। देश के सर्वोच्च न्यायालय से लेकर विभिन्न अदालतों में मुकदमों का बोझ इस कदर हावी है कि न्याय की रफ्तार धीमी से धीमी होती जा रही है। अदालतों पर बढ़ते बोझ की समस्या की तस्वीर आंकड़ों के साथ पेश की जाए तो आम आदमी न्याय की आस ही छोड़ बैठेगा। साफ है कि एक ओर तो न्यायपालिका पर मुकदमों का बोझ लदा है, दूसरी ओर उसके जरूरत भर न्यायाधीश भी नहीं हैं। देश की न्याय प्रक्रिया को यदि दुरुस्त करना है तो एक साथ दो मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। देश के छोटे-बड़े सभी न्यायालयों में लगभग 5 करोड़ मुकदमे पैंडिंग हैं। कई तो 30-30 वर्षों से चल रहे हैं। संबंधित मर-खप गया, कई विदेश चले गये, कईयों को लापता घोषित कर दिया गया। न्याय में विलम्ब करना न्याय से इन्कार करना होता है। न्यायाधीशों पर ...
<strong>नौकरीशाही पर सत्तापक्षी होने का आरोप</strong>

नौकरीशाही पर सत्तापक्षी होने का आरोप

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-ललित गर्ग- लोकतंत्र के प्रमुख स्तंभों में से एक कार्यपालिका लगातार प्रश्नों के घेरों में रहती रही है, आजादी के अमृतकाल में भी कार्यपालिका के भ्रष्ट, लापरवाह एवं गैरजिम्मेदार होना नये भारत-सशक्त भारत की सबसे बड़ी बाधा है। नेताओं और नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की आए दिन आने वाली खबरें यही बताती हैं कि केंद्रीय एजेंसियां डाल-डाल हैं तो भ्रष्टता का जाल पात-पात। विडम्बना तो यह है कि नेतृत्व करने वाली ताकतें भ्रष्टाचार में लिप्त है। मद्रास हाईकोर्ट की हाल ही में की गयी टिप्पणी नौकरशाहों की उस प्रवृत्ति को उजागर करने वाली है जिसमें वे सत्ताधारी दलों का पिछल्लगू बनकर काम करते हैं। तमिलनाडु के पूर्व सीएम एके पलानीस्वामी के खिलाफ हाईवे निविदा के मामले में नए सिरे से जांच के सरकार के आदेश को रद्द करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि संविधान लागू होने के 73 साल बाद कड़वी हकीकत यह है कि कार्यपालिका ने अपनी स्व...
बज गयी 2024 की रणभेरी

बज गयी 2024 की रणभेरी

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विनीत नारायणपक्ष और विपक्ष अपने-अपने हाथी, घोड़े, रथ और पैदल तैयार करने में जुट गये हैं। दिल्ली और बैंगलुरु में दोनोंपक्षों ने अपना अपना कुनबा जोड़ा है। जहां नए बने संगठन ‘इंडिया’ में 25 दल शामिल हुए हैं वहीं एनडीए 39दलों के साथ आने का दावा कर रहा है। अगर इन दावों की गहराई में पड़ताल करें तो बड़ी रोचक तस्वीर सामनेआती है।पिछले चुनाव में एनडीए में अब शामिल हुए इन 39 दलों को मिले वोट जोड़ें तो इस गठबंधन को देश भर में23 से 24 करोड़ के बीच वोट मिले थे। जबकि ‘इंडिया’ के मौजूदा गठबंधन को 26 करोड़ वोट मिले थे। पर येवोट इतने सारे दलों में आपसी मुक़ाबले के कारण बंट गये। जिससे इनकी हार हुई। अगर ये गठबंधन ईडी,सीबीआई व आईटी की धमकियों के बावजूद एकजुट बना रहता है और मुक़ाबला आमने-सामने का होता है तोजो परिणाम आयेंगे वो स्पष्ट हैं।दूसरा पक्ष ये है कि जहां एनडीए आज 60 करोड़ भारतीयों पर राज कर रही है वहीं ...
<strong>मानसून सत्र व्यर्थ नहीं, अर्थपूर्ण ढंग से चले</strong>

मानसून सत्र व्यर्थ नहीं, अर्थपूर्ण ढंग से चले

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-ः ललित गर्ग:- मानसून सत्र दोनों सदनों में सुचारुरूप से चले इसके लिये सर्वदलीय बैठक में सहमति भले ही बनी हो, लेकिन अब तक के अनुभव के अनुसार यह सत्र भी हंगामेदार ही होना तय है। भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिए विपक्ष ने ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस (इंडिया)’ नाम के नए गठबंधन की घोषणा कर दी है। नए गठबंधन के नेता संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी में लगे हैं। मानो विपक्षी दलों ने प्रण कर लिया है कि वह इस सत्र को भी सुगम तरीके से नहीं चलने देगा। मानसून सत्र 20 जुलाई से शुरू होने जा रहा है और यह 11 अगस्त को खत्म होगा। इस दौरान संसद के दोनों सदनों की कुल 17 बैठकें रखी गई हैं। एक ओर जहां सत्ता पक्ष अहम विधेयकों को पारित करने की कोशिश में है, वहीं दूसरी ओर विपक्ष मणिपुर हिंसा, रेल सुरक्षा, महंगाई, यूनिफॉर्म सिविल कोड और अडाणी मामले पर जेपीसी गठित करने क...
<em>मणिपुर समस्या…</em>

मणिपुर समस्या…

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वो लोग जो मणिपुर का रास्ता नहीं जानते…* पूर्वोत्तर के राज्यों की राजधानी शायद जानते हो लेकिन कोई दूसरा शहर का नाम तक नहीं बता सकते उनके ज्ञान वर्धन के लिए पोस्ट… क्योंकि फ्रांस वीडियो चर्चा के बाद इनको बहुत पेट में मरोड़ उठा था मणिपुर को लेकर… एक इतिहास: जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पूर्वोत्तर के ओर भी कदम बढ़ाए जहाँ उनको चाय के साथ तेल मिला… उनको इस पर डाका डालना था…उन्होंने वहां पाया कि यहाँ के लोग बहुत सीधे सरल हैं और ये लोग वैष्णव सनातनी हैं… परन्तु जंगल और पहाड़ों में रहने वाले ये लोग पूरे देश के अन्य भाग से अलग हैं तथा इन सीधे सादे लोगों के पास बहुमूल्य सम्पदा है… अतः अंग्रेज़ों ने सबसे पहले यहाँ के लोगों को देश के अन्य भूभाग से पूरी तरह काटने को सोचा… इसके लिए अंग्रेज लोग ले आए इनर परमिट और आउटर परमिट की व्यवस्था… इसके अंतर्गत कोई भी इस इलाके में आने से पहले परमिट बनवाएगा औ...
रोबोटिक्स और एटोमिक हथियारों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग घातक !

रोबोटिक्स और एटोमिक हथियारों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग घातक !

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विज्ञान और प्रौद्योगिकी ने मानव को अब तक बहुत सी सुविधाएं प्रदान की हैं। विज्ञान मानव के लिए वरदान भी साबित हुआ है तो वहीं दूसरी ओर विज्ञान मानव जाति के लिए अभिशाप भी साबित हुआ है। आज हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(कृत्रिम बुद्धि)के युग में सांस ले रहे हैं। जी हां ,आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि कृत्रिम बुद्धि। दूसरे शब्दों में यदि हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(कृत्रिम बुद्धि)को समझना चाहें तो हम यह बात कह सकते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) यानी कि कृत्रिम बुद्धि मशीनों द्वारा मानव संज्ञानात्मक(कॉग्निटिव) प्रक्रियाओं का अनुकरण है। यह प्रक्रियाओं को स्वचालित(ऑटोमेटिक )करता है और आईटी सिस्टम में संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग (मानव विचार प्रक्रियाओं का अनुकरण) को लागू करके मानव बुद्धि को अनुकरण करना इसका लक्ष्य है। सरल शब्दों में यह बात कही जा सकती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कि कृत्रिम बुद्धि ...
क्या सीमा हैदर पाकिस्तानी जासूस है?

क्या सीमा हैदर पाकिस्तानी जासूस है?

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-बलबीर पुंज गत 17-18 जुलाई को पाकिस्तान से नेपाल के रास्ते भारत आई सीमा हैदर, उसके प्रेमी सचिन मीणा और सचिन के पिता नेत्रपाल से उत्तरप्रदेश एटीएस ने गहन पूछताछ की। आलेख लिखे जाने तक, तीनों पुलिस की गिरफ्त में है। संदेह है कि 27 वर्षीय सीमा पाकिस्तानी जासूस है, जिसे 22 वर्षीय प्रेमी सचिन और उसके पिता ने अवैध शरण दी। क्या सीमा, पाकिस्तान से भेजी गई प्रशिक्षित जासूस है या फिर जैसा कि दावा किया जा रहा है कि वो कई खतरे उठाकर हुए हजारों मील का सफर करते हुए तीन देशों को पार करके अपनी मोहब्बत को पाने के लिए भारत आई है? सचिन-सीमा की प्रेम कहानी पर संदेह होना— स्वाभाविक है। यह सर्वविदित है कि पाकिस्तान अपनी कुटिल नीति— 'भारत को हजारों घाव देकर मौत के घाट उतारना' के अंतर्गत कई प्रपंचों पर काम कर रहा है। इसमें वह मजहब के नाम पर भारत में कुछ स्थानीय लोगों का सहयोग पाकर जिहादी 'स्लीपर सेल्स' को स...
आतंकवाद के लिए हथियार बनते ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म

आतंकवाद के लिए हथियार बनते ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म

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डिजिटल युग में आतंकवादी युवाओं की कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें अपने गुट में शामिल होने के लिए आकर्षित करने के लिए साइबरस्पेस का उपयोग कर रहे हैं। मुद्दे की गहरी समझ और बेहतर समाधान विकसित करने के लिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित कट्टरपंथ के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना। इन कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धनराशि सुनिश्चित करना, खुफिया बलों की क्षमता का विकास करना और कट्टरपंथ, विशेषकर आभासी कट्टरपंथ से निपटने के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण करना। राज्य पुलिस की क्षमता का विकास, क्योंकि वे रक्षा की पहली पंक्ति हैं। बढ़ते कट्टरपंथ का बेहतर ढंग से मुकाबला करने के लिए राज्य पुलिस बलों को केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ अच्छे सहयोग से काम करने की जरूरत है। डॉ सत्यवान सौरभ कट्टरवाद द्वारा कोई व्यक्ति या समूह राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक यथास्थिति के विरोध में त...