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हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है?

हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है?

BREAKING NEWS, EXCLUSIVE NEWS, साहित्य संवाद
हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है? भारत ने स्थानीय भाषाओं में निवेश नहीं किया है, चाहे वह उच्च गुणवत्ता वाली स्कूली शिक्षा हो या कला और साहित्य में निवेश हो। यदि हम आज यह निवेश करते हैं, तो हमारी सभी भाषाएँ फल-फूलेंगी, साथ ही उन पर हमारा गर्व भी होगा। जब तक हम यह निवेश नहीं करेंगे, शिक्षित पीढ़ी अंग्रेजी बोलती रहेगी और अपनी स्थिति को बढ़ावा देगी और भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करेगी। हिन्दी निश्चय ही एक समृद्ध और सुन्दर भाषा है। यह न केवल साहित्य के कारण बल्कि भाषा की सुंदरता से भी समृद्ध है। यह न केवल दोस्तों (तू, तेरा आदि) के साथ अनौपचारिक होने की स्वतंत्रता देती है, बल्कि एक बड़े/वरिष्ठ (आप, आपका) को भी सम्मान देती है-जो कुछ भाषाओं, विशेष रूप से अंग्रेजी में दिखाई नहीं देता है। -प्रियंका सौरभ किसी भी भाषा की सुंदरता उसके उपयोगकर्ता के कौशल में निहित ...
तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन

तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन

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 तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन या कूड़े के पहाड़ों से शहरों को मिलेगा छुटकारा आर.के. सिन्हा आप जब राजधानी दिल्ली से गाजीपुर के रास्ते उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करते हैं तब कचरे का काला स्याह डरावना पहाड़ दिखाई देता है। इसे जो शख्स पहली बार देखता है उसे तो यकीन ही नहीं होता कि दरअसल ये कचरे का पहाड़ है। आज के दिन आपको देश के प्रायः सभी शहरों में कचरे के ढेर दिखाई दे जाएंगे।  ये उस भारत की कतई बेहतर तस्वीर पेश नहीं करते जो दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और जिसके आईटी सेक्टर की ताकत का सारा संसार लोहा मान चुका है। उस भारत के शहरों में कूड़े के ढेर लगे हों, यह तो शर्म की बात कही जाएगी। देखिए, छोटे-बड़े सभी शहरों और महानगरों को कचरे से मुक्ति तो दिलावानी ही होगी। कुछ साल पहले तक तो सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं, सभी सार्वजनिक स्...
विश्व भाषा की ओर बढ़ती हिन्दी की भारत में उपेक्षा क्यों?

विश्व भाषा की ओर बढ़ती हिन्दी की भारत में उपेक्षा क्यों?

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हिंदी दिवस, 14 सितबंर, 2022 पर विशेषविश्व भाषा की ओर बढ़ती हिन्दी की भारत में उपेक्षा क्यों?  - ललित गर्ग-विश्व भाषा बनने की ओर हिन्दी के बढ़ते कदम भारत के लिये एक बड़ी उपलब्धि है। हिन्दी  विश्व भाषा बनने की समस्त अर्हताएं एवं विशेषताएं स्वयं में समाये हुए है। हिन्दी स्वयं में अपने भीतर एक अन्तर्राष्ट्रीय जगत छिपाये हुए हैं। आर्य, द्रविड, आदिवासी, स्पेनी, पुर्तगाली, जर्मन, फ्रेंच, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, चीनी, जापानी, सारे संसार की भाषाओं के शब्द इसकी विश्वमैत्री एवं वसुधैव कुटुम्बकम वाली प्रवृत्ति को उजागर करते हैं। विश्व में हिंदी भाषी करीब 70 करोड़ लोग हैं। यह तीसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इस समृद्ध एवं वैश्विक गरिमा वाली भाषा का हिन्दी दिवस  प्रत्येक 14 सितबंर को मनाया जाता है। देश की आजादी के पश्चात 14 सितंबर, 1949 को भारतीय संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को अंग्रेजी...
लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज*

लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज*

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लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज* ब्रिटेन, विश्व के सर्वाधिक खुशहाल देशों में से एक है। अतीत में एक छोटे से देश ब्रिटेन का झण्डा संसार के सभी स्थानों पर फहराया जाता था और सम्पूर्ण विश्व उसके आगे नतमस्तक था। ब्रिटिश शासक, अपने अधीन देशों से उनकी बहुमूल्य सम्पदा को लूटकर ब्रिटिश राजकोष में भरते थे। ब्रिटेन देश, जहाँ पर सम्पूर्ण विश्व से लूटे हुए धन का अर्जन किया जा रहा हो, उसका खुशहाल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। परन्तु लूट के धन से प्राप्त की गई खुशहाली सदैव ही अस्थायी होती है एवं परिश्रम के फलस्वरूप प्राप्त की गई खुशहाली स्थायी होती है। ब्रिटिश राज्य आज इसी समस्या का सामना कर रहा है। कंजर्वेटिव पार्टी के प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन की त्रुटिपूर्ण नीतियों के कारण जनता का विरोध असहनीय हो गया था। अतः राष्ट्र को सुचारू रूप से चलाने हेतु पार्टी के लिए ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री चुनना...
भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां।

भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां।

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भारत में बढ़ते साइबर अपराध और बुनियादी ढांचे में कमियां। 'पुलिस' और 'सार्वजनिक व्यवस्था' राज्य सूची में होने के कारण, अपराध की जांच करने और आवश्यक साइबर इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने का प्राथमिक दायित्व राज्यों का है। हालांकि भारत सरकार ने सभी प्रकार के साइबर अपराध से निपटने के लिए गृह मंत्रालय के तहत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र की स्थापना सहित कई कदम उठाए हैं, लेकिन बुनियादी ढांचे की कमी को दूर करने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। चूंकि पारंपरिक अपराध के साक्ष्य की तुलना में इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य प्रकृति में पूरी तरह से भिन्न होते हैं, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से निपटने के लिए मानक और समान प्रक्रियाएं निर्धारित करना आवश्यक है। प्रत्येक जिले या रेंज में एक अलग साइबर-पुलिस स्टेशन स्थापित करना, या प्रत्येक पुलिस स्टेशन में तकनीकी रूप से योग्य कर्मचारी, आवेदन, उपकरण और बुनियादी ढांचे के परीक्षण ...
गायों की हो रही है दुर्दशा

गायों की हो रही है दुर्दशा

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गायों की हो रही है दुर्दशा भारतीय संस्कृति में जिस गाय को 'मां' की संज्ञा दी गई है, उसका ऐसा हश्र लम्पी बीमारी से पहले कभी नहीं हुआ। गायों की दुर्दशा को लेकर अब सिर्फ जिनके घर गाय है वो ही चिंतित हैं। क्या गाय बचाने की जिम्मेवारी सिर्फ पशुपालन विभाग की ही बनती है, बाकी समाज केवल तमाशा देखे। आज तथाकथित गौभगत और गाय के नाम पर लूटकर खाने वाले चाहे वो कोई भी हो लगभग गायब है। (इक्का-दुक्का को छोड़कर) मृत गायों को खुले में फेंकने से संक्रमण तेजी से फेल रहा है। कहीं यह महामारी न बन जाए। क्योंकि मृत गायों की दुर्गंध और प्रदूषण से आस-पास के लोगों में भी अन्य बीमारियां फ़ैल रही है। 'एक शाम, गायों के नाम' पर करोड़ों रुपए लेने वाले और गाय के ठेकेदार बागङबिल्ले सब कहाँ छुप गए? आखिर गायों की हो रही है दुर्दशा? गाय रो-रो कर पूछ रही है, कहां गए वह गौ सेवक? कहां गई वह राजनीतिक पार्टियां जो मेरे नाम पर सरक...
क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है?

क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है?

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क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है? खेलों में बढ़ते दुर्व्यवहार और असहिष्णुता के लिए एक ही कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, सामाजिक जागरूकता की कमी और खेल भावना की समझ में कमी, बढ़ती असहिष्णुता और नफरत इसके पीछे मुख्य कारण है। जब खेल को दो विरोधियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के रूप में देखा जाता है, तो राष्ट्रवाद और धार्मिकता की मजबूत धारणा व्यक्तियों को धार्मिक दुर्व्यवहार के लिए प्रेरित कर सकती है। उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान क्रिकेट मैच का परिणाम अक्सर दोनों ओर से गाली-गलौज को आकर्षित करता है। पाकिस्तान का तो खास तौर पर हर विरोधी टीम के साथ व्यवहार निचले दर्जे से भी नीचे का है, हार को खेल के अंग के रूप में स्वीकार करने के लिए धैर्य और नैतिक शक्ति के गुणों का होना बहुत जरूरी है। हर संभव विकल्प का उपयोग करके जीतने के लिए तत्काल संतुष्टि और हताशा गलत परिणाम लाती...
कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

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नई दिल्ली में कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ आज के इस ऐतिहासिक कार्यक्रम पर पूरे देश की दृष्टि है, सभी देशवासी इस समय इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। मैं इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन रहे सभी देशवासियों का हृदय से स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं। इस ऐतिहासिक क्षण में मेरे साथ मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्री हरदीप पुरी जी, श्री जी किशन रेड्डी जी, श्री अर्जुनराम मेघवाल जी, श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी, श्री कौशल किशोर जी, आज मेरे साथ मंच पर भी उपस्थित हैं। देश के अनेक गणमान्य अतिथि गण, वह भी आज यहां उपस्थित हैं। साथियों, आजादी के अमृत महोत्सव में, देश को आज एक नई प्रेरणा मिली है, नई ऊर्जा मिली है। आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। आज जो हर तरफ ये नई आभा दिख रही है, वो नए भारत के आत्मविश्वास की आभा है। गुलामी का प्रतीक...
आत्महत्या की घटनाओं का बढ़ना बदनुमा दाग

आत्महत्या की घटनाओं का बढ़ना बदनुमा दाग

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विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस- 10 सितंबर, 2022आत्महत्या की घटनाओं का बढ़ना बदनुमा दाग  ललित गर्ग बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं एक ऐसा बदनुमा दाग है जो हमारे तमाम विकास एवं शिक्षित होने के दावों को खोखला करता है। आत्महत्या शब्द जीवन से पलायन का डरावना सत्य है जो दिल को दहलाता है, डराता है, खौफ पैदा करता है, दर्द देता है। इसका दंश वे झेलते हैं जिनका कोई अपना आत्महत्या कर चला जाता है, उनके प्रियजन, रिश्तेदार एवं मित्र तो दुःखी होते ही हैं, सम्पूर्ण मानवता भी आहत एवं शर्मसार होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में भारत में 1.39 लाख लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से लगभग 45 फीसदी लोग तनाव, अवसाद, बायपोलर डिसऑर्डर, सिजोफ्रेनिया जैसी समस्याओं का सामना कर रहे थे। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि आत्महत्या के प्रमुख कारणों में तनाव, हिंसा, अवसाद, निराशा, नकारात्मकता सहित अन्य मानसिक समस्याएं, गंभीर रोगों के च...
समुद्र में भारत का डंका*

समुद्र में भारत का डंका*

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समुद्र में भारत का डंका* *डाॅ. वेदप्रताप वैदिक* भारत की नौसेना ने आइएनएस विक्रांत नामक विमानवाहक पोत को समुद्र में उतारकर सारी दुनिया में भारत की शक्ति का डंका बजा दिया है। भारत के पास पहले भी एक विमानवाहक पोत था लेकिन वह ब्रिटेन से लिया हुआ था लेकिन यह विमानवाहक पोत खुद भारत का अपना बनाया हुआ है। इस समय ऐसे पोतों का निर्माण गिनती के आधा दर्जन देश ही कर पाते हैं। उन्हें सारी दुनिया महाशक्ति राष्ट्र ही कहती है। भारत के इस विक्रांत ने उसे अमेरिका, चीन, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी की तरह महाशक्ति राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा किया है। यह उपलब्धि उतनी ही बड़ी है, जितनी अटलबिहारी वाजपेयी के जमाने में हुई परमाणु विस्फोट की थी लेकिन इसमें और उसमें इतना फर्क है कि पोखरन के उस विस्फोट के समय लगभग सभी परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बुरी तरह से बौखला गए थे और पाकिस्तान भी भारत की नकल पर उतारु ह...