यूट्यूबर्स,राजनीति और चुनाव
पांचों राज्यों में चुनावी भविष्यवाणी करने में कितने यूट्यूबर्स लुढ़क गये थे। ‘हीरो से जोकर बन जाने की कहावत भी दोहराई गई । जिन्होंने प्रोफेशनल पत्रकारिता जैसे क्षेत्र में स्वयं को सदी का महानायक मान लिया था, अब मुंह चुराये फिर रहे हैं। फ़िर भी, कुछ ने देह झाड़कर स्क्रीन को फेस करना शुरू कर दिया है। नहीं करेंगे, तो डॉलर का मिलना बंद हो जाएगा।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जो यूट्यूबर, स्तंभ लेखक और पत्रकार जिस एक दल के लिए ‘कसीदाकारी’ कर रहे थे, उनमें से बहुतों ने परिणाम के तुरंत बाद, उस दल की रणनीति को ही कोसना शुरू कर दिया था। बहस ख़ुद उनके द्वारा सतही सूचनाओं के खिलवाड़ पर नहीं हो रही है। जो गोदी में नहीं बैठे हैं, वो क्या कुछ परोसते रहे? इस सवाल पर बहस होना चाहिए। लोकसभा चुनाव तक यदि उसी ढर्रे पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर सूचनाओं को परोसा गया,तो जो लोग सेटेलाइट टेलीविज़न को छोड़कर म...