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ईश्वरीय शक्ति का अद्भुत चमत्कार है श्रमिकों का सुरक्षित बाहर निकलना!

ईश्वरीय शक्ति का अद्भुत चमत्कार है श्रमिकों का सुरक्षित बाहर निकलना!

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, धर्म
मृत्युंजय दीक्षितउत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले के पास सिलक्यारा सुरंग में 17 दिन से फंसे आठ राज्यों के 41 कर्मवीरों को 17 दिन बाद सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है । इस खतरनाक हादसे और फिर कर्मवीरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए जिस प्रकार आपरेशन जिंदगी चलाया गया अदभुत जीवटता का कार्य है। श्रमिकों को सुरंग से बाहर निकालने के लिए चलाये जा रहे अभियान पर भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व की दृष्टि थी । अंततः भारत के 140 करोड़ लोगों की प्रार्थना और विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के श्रम और अनथक प्रयासों का सकारात्मक प्रतिफल मिला और 17 दिन बाद सभी कर्मवीरों के घरों में खुशियों के दीप जलाये गये । सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकालने की यह घटना एक बहुत ही महत्वपूर्ण है और अध्ययन किये जाने योग्य है।इस घटना का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि जहां विदेशी मशीनों ने ने भी साथ छोड़ दिया और परिस...
टहनियों तक जाये बिना सर्वोत्तम फल नहीं मिलेगा।

टहनियों तक जाये बिना सर्वोत्तम फल नहीं मिलेगा।

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“मंजिल मिल ही जाएगी भटकते हुए ही सही, गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं।” लोग नई चीजें हासिल करने के बजाय आसान चीजों में लग जाते हैं। लोग नई चीजों का आविष्कार करने या अपना खुद का स्टार्टअप बनाने के बजाय और सुरक्षित नौकरियों में चले जाते हैं। इसके अलावा, डर से आत्मविश्वास और अपने ऊपर भरोसे की कमी भी हो सकती है। जो व्यक्ति लगातार डर के साथ जी रहे हैं, वे अपनी क्षमताओं पर संदेह करते हैं और जोखिम लेने के साथ आने वाली चुनौतियों के लिए खुद को तैयार नहीं पाते हैं। सिडनी बॉक्सिंग डे टेस्ट में सचिन तेंदुलकर पहली पारी में अपनी कम क्षमता के कारण नहीं बल्कि ऑफ स्टंप के बाहर की गेंद के डर के कारण आउट हुए। अगली पारी में उन्होंने किसी भी ऑफ स्टंप से बाहर की गेंद को न खेलने का जोखिम उठाने के लिए मानसिक रूप से तैयारी की और इसके परिणामस्वरूप ऐतिहासिक दोहरा शतक बनाया। -प्रियंका सौरभ 13वीं...
क्रिकेट की ये दीवानगी कहाँ ले जायेगी ?

क्रिकेट की ये दीवानगी कहाँ ले जायेगी ?

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-विनीत नारायण23 साल के राहुल ने कोलकाता में आत्महत्या कर ली। वो क्रिकेट के विश्व कप में भारतीय टीम की हार का सदमाबर्दाश्त नहीं कर सका। ये तो एक उदाहरण है। देश के अन्य हिस्सों में दूसरे नौजवानों ने हार के सदमे को कैसे झेलाइसका पूरा विवरण उपलब्ध नहीं है। यह सही है कि अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में अपने देश की टीम के साथदेशवासियों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं और इसलिए जब परिणाम आशा के विपरीत आते हैं तो उस खेल के चाहनेवाले हताश हो जाते हैं। खेलों में हार जीत को लेकर अक्सर प्रशंसकों के बीच हाथापाई या हिंसा भी हो जाती है।इसके उदाहरण हैं, दक्षिणी अमरीका के देश जहां फुटबॉल के मैच अक्सर हिंसक झड़पों में बदल जाते हैं। यूरोप औरअमरीका में भी लोकप्रिय खेलों के प्रशंसकों के बीच ऐसी वारदातें होती रहती हैं।अंतर्राष्ट्रीय खेलों में इसकी संभावना कम रहती है क्योंकि वहाँ खेलने वाली टीमों में जो बाहर से आती...
वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल

वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल

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वैदिक शिक्षा : एक बेहतरीन पहल* इसे भारत का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि आजादी के बाद देश में वैदिक ज्ञान को शिक्षा प्रणाली में समुचित स्थान नहीं मिल पाया है जिसका नतीजा समाज में नैतिक मूल्यों में आ रही गिरावट है। कहने को वेदों को शिक्षा प्रणाली से जोडऩे के लिए 100 करोड़ रुपए की परियोजनाएं बनाई गई हैं। यह धनराशि केंद्र सरकार द्वारा दी जा रही है। गौरतलब है कि वैदिक शिक्षा पर आधारित बोर्ड से दसवीं और बारहवीं कक्षा पास करने वाले छात्र अब उच्च शिक्षा के लिए किसी भी कॉलेज में दाखिला लेने के पात्र होंगे। इसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसे उच्च शिक्षण संस्थान भी शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण निर्णय सरकार द्वारा नामित निकाय, एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (एआईयू) द्वारा लिए गए निर्णय पर आधारित है। वैदिक शिक्षा सांस्कृतिक दृष्टि पर बल देती थी।इसके मुताबिक शिक्षित व्यक्ति को साहित्य, कला, संगीत आदि की ...
क्यों नहीं अभिभावकों को सरकारी स्कूलों पर भरोसा ?

क्यों नहीं अभिभावकों को सरकारी स्कूलों पर भरोसा ?

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हालिया अध्ययन ने पुष्टि की है कि शिक्षा की खराब गुणवत्ता के कारण माता-पिता को सरकारी स्कूलों पर भरोसा नहीं है और वे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाना पसंद करते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें ट्यूशन और अन्य फीस पर काफी अधिक खर्च करना पड़े। आज देश भर के सरकारी स्कूल गरीबों और अशिक्षितों के बच्चों का सहारा बन गए, जहां उन्हें नौकरशाही और शिक्षक संघों की दया पर रहना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप इन स्कूलों के लिए स्थापित मानकों-पाठ्यपुस्पुतकों की गुणवत्ता और प्रासंगिकता, विद्यार्थियों की उपलब्धियों का निरीक्षण का विकास थम गया। आज नब्बे प्रतिशत से ज्यादा सार्वजर्वनिक खर्च की राशि भारतीय स्कूलों में अध्यापकों के वेतन और प्रशासन पर ही खर्च होती है। फिर भी विश्व में बिना अनुमति अवकाश लेने वाले अध्यापकों की संख्या भारत में सबसे अधिक है। हमारे स्कूलों में अध्यापक आते ही नहीं हैं और चार में...
पाकिस्तान में ‘सिख-मुस्लिम भाईचारा’ नारे का सच

पाकिस्तान में ‘सिख-मुस्लिम भाईचारा’ नारे का सच

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-बलबीर पुंज "सतगुरु नानक प्रगट्या, मिटी धुंध जग चानन होया, कलतारण गुरु नानक आया..." आगामी 27 नवंबर को पूरा विश्व— विशेषकर सिख, श्री गुरु नानक देवजी (1469-1539) का 555वां प्रकाश उत्सव मनाएंगे। जब सिख समाज इस पर्व की तैयारियों में जुटा है, तब विभाजन के बाद पाकिस्तान के हिस्से गए श्री करतारपुर साहिब गुरुद्वारा की मर्यादा भंग होने का समाचार सामने आया है। बकौल मीडिया रिपोर्ट, गुरुद्वारा परिसर में शराब और मांसाहार व्यंजन युक्त पार्टी हुई थी, जिसका एक वीडियो भी वायरल है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति सहित अन्य सिख संगठनों ने इसकी निंदा की है। इसी पृष्ठभूमि में जब पंजाब विधानसभा के अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवा 20 नवंबर को करतारपुर साहिब गए, तब वहां उपस्थित मुख्य ग्रंथी गोबिंद सिंह ने गुरुद्वारा परिसर में पार्टी की खबरों को ‘शरारती तत्वों द्वारा फैलाई गई अ...
सरकार अब तो दवा नीति बनाईये

सरकार अब तो दवा नीति बनाईये

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण
कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में व्यथित करने वाली यह स्थिति बनी है कि जिन जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को सरकार को प्राथमिकता के आधार पर संवदेनशील ढंग से सुलझाना चाहिए, उन पर कोर्ट को पहल करनी पड़ रही है। ऐसे तमाम मुद्दों के साथ अब ऑनलाइन दवा बिक्री का मुद्दा भी जुड़ गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को सख्त लहजे में कहा कि सरकार के लिये यह आखिरी मौका है। वह आठ हफ्ते के बीच ऑनलाइन दवा बिक्री नीति बनाए। इस मुद्दे को लंबे समय से लटकाने पर क्षुब्ध कोर्ट ने चेताया कि यदि सरकार ने नीति समय पर नहीं बनायी तो इस विभाग को देख रहे संयुक्त सचिव को आगामी चार मार्च को अदालत में जवाब देने आना पड़ेगा। दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने नाराजगी जतायी कि इस नीति को बनाने के लिये सरकार के पास पर्याप्त ...
लुप्त हो रहीं हैं भारतीय भाषाएँ

लुप्त हो रहीं हैं भारतीय भाषाएँ

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-विनीत नारायणहम लोग जो ख़ुद को पढ़ा-लिखा समझते हैं कितने ही मामलों में हम कितने अनपढ़ हैं इसका एहसास तबहोता है जब हम किसी विद्वान को सुनते हैं। ऐसा ही अनुभव पिछले हफ़्ते हुआ जब बड़ौदा से आए प्रोफेसरगणेश एन देवी का व्याख्यान सुना। प्रो देवी के व्याख्यान आजकल दुनिया के हर देश में बड़े चाव से सुने जारहे हैं। उनका विषय है भाषाओं की विविधता और उस पर मंडराता संकट। इस विषय पर उन्होंने दशकोंशोध किया है। भाषा, संस्कृति और जनजातीय जीवन पर वे 90 से ज़्यादा पुस्तकें लिख चुके हैं। भाषाओं परउनके गहरे शोध का निचोड़ यह है कि भारत सहित दुनिया भर में क्षेत्रीय भाषाएँ बहुत तेज़ी से लुप्त होतीजा रही हैं। इससे लोकतंत्र पर ख़तरा मंडरा रहा है। कारण भाषाओं की विविधता और उससे जुड़े समाजऔर पर्यावरण की विविधता से लोग सशक्त होते हैं। पर जब उनकी भाषा ही छिन जाती है तो उनकेसंसाधन, उनकी पहचान और उनकी लोकतांत्रिक ताक़त ...
39 करोड़ मरीज, हर साल 30 लाख मौतें, सांसों की इस घातक बीमारी के लिए कौन जिम्मेवार?

39 करोड़ मरीज, हर साल 30 लाख मौतें, सांसों की इस घातक बीमारी के लिए कौन जिम्मेवार?

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क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) एक ऐसी बीमारी है जो हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रही है। वहीं अनुमान है कि दुनिया की पांच फीसदी आबादी इस बीमारी से पीड़ित है By Lalit Maurya  निम्न और मध्यम आय वाले देशों में क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) के 30 से 40 फीसदी मामलों के लिए धूम्रपान जिम्मेवार है; फोटो: आईस्टॉक क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज (सीओपीडी) एक ऐसी बीमारी है जो हर साल 30 लाख से ज्यादा लोगों की जान ले रही है। वहीं अनुमान है कि 39.2 करोड़ लोग यानी दुनिया की करीब पांच फीसदी आबादी इस बीमारी का शिकार है। इनमें से तीन-चौथाई वो हैं जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रह रहे हैं। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इस बीमारी की सबसे बड़ी वजह क्या है?      विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक ध...
भारतीय अर्थ जगत में स्वत्व बोध के परिणाम दिखाई देने लगे हैं

भारतीय अर्थ जगत में स्वत्व बोध के परिणाम दिखाई देने लगे हैं

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, समाचार
भारतीय अर्थव्यवस्था आज न केवल विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गई है बल्कि विश्व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गई है। वर्ष 1980 में चीन द्वारा लागू किए गए आर्थिक सुधारों के चलते चीन की अर्थव्यवस्था भी सबसे तेज गति से दौड़ी थी और चीन के आर्थिक विकास में बाहरी कारकों (विदेशी व्यापार) का अधिक योगदान था परंतु आज भारत की आर्थिक प्रगति में घरेलू कारकों का प्रमुख योगदान है। भारत का घरेलू बाजार ही इतना विशाल है कि भारत को विदेशी व्यापार पर बहुत अधिक निर्भरता नहीं करनी पड़ रही है। वैसे भी, वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों, विकसित देशों सहित, की आर्थिक स्थिति आज ठीक नहीं है एवं इन देशों के विदेशी व्यापार सहित इन देशों के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर भी कम हो रही है। भारत के आर्थिक विकास की वृद्धि दर तेज करने के सम्बंध में घरेलू कारकों में भारत के नागरिकों द्वार...