भौतिकता की चाह में पीछे छूटते रिश्ते
एक अजीब सी दौड़ है ये ज़िन्दगी, जीत जाओ तो कई अपने पीछे छूट जाते हैं और हार जाओ तो अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं। रिश्तों के प्रति इंसान को जागरूक होना चाहिए तथा रिश्तों की अहमियत को पहचाना चाहिए। जो रिश्तों के अर्थ को समझ सकता है। वहीं रिश्तों को निभा सकता है। जीवन दो-ढाई दशक पहले तक कई मायनों में बहुत ही सादगी भरा और दिखावे से कोसों दूर और वास्तविकता के बहुत पास होता था। तब मनुष्यता के जितने गुण सोचे और तय किए गए हैं, वे सब आसपास के परिवेश के दिख जाते थे। लेकिन आज सरलता और सहजता से दूर दिखावे और स्वार्थ से भरा हुआ जीवन ही ज्यादातर लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है। इसमें वयस्क या बुजुर्गों की तो दूर, हमने बच्चों तक को नहीं छोड़ा है। आजकल लोग अपने ख़ुशी में कम खुश और दुसरों की दुख में ज़्यादा खुश होने लगें हैं।
-प्रियंका सौरभ
आजकल की भागदौड की जिंदगी...