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श्रीराम मंदिर ‘राष्ट्र मंदिर’ शिलान्यास के 03 वर्ष

श्रीराम मंदिर ‘राष्ट्र मंदिर’ शिलान्यास के 03 वर्ष

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म
प्रणय विक्रम सिंह आज का दिन भारत की आस्था, अस्मिता, स्वाभिमान और गौरव की पुनर्स्थापना का दिवस है। काल के कपाल पर मानव सभ्यता के सांस्कृतिक पुनर्जागरण के कालजयी प्रतीक के रूप में अंकित आज के दिन ही 03 वर्ष पूर्व श्रीरामजन्मस्थान पर भव्य-दिव्य राम मंदिर ‘राष्ट्र मंदिर’ का शिलान्यास हुआ था। यह सामान्य दिवस नहीं है, इसके लिए तो पांच शताब्दियों का अविराम संघर्ष, ‘अहिल्या’ सदृश प्रतीक्षा एवं घायल जटायु के समान आर्तनाद करती सांस्कृतिक चेतना की आहत हुंकार युगों से बांट जोह रही थी। पुत्र रक्त में नहाई हुई धर्मनगरी अयोध्या, आज सकल आस्था के केंद्र प्रभु श्रीरामलला के भव्य-दिव्य मंदिर निर्माण की गतिशीलता से स्वयं के संघर्ष को सुफलित होती देख रही है। आज आस्था के प्रांजल भाव से प्रेरित आत्मोत्सर्ग की अपरिमित भक्त शृंखलाओं की अकथनीय 'त्याग ऋचाएं' राम नगरी अयोध्या के उल्लासित वातावरण में स्प...
भारत, विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति

भारत, विश्व की तीसरी आर्थिक शक्ति

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-बलबीर पुंज बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक दावा किया। उन्होंने 26 जुलाई को दिल्ली स्थित 'भारत मंडपम' का उद्घाटन करते हुए कहा, "मैं देश को... विश्वास दिलाता हूं कि हमारे तीसरे कार्यकाल में भारत, शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में पहुंच कर रहेगा और ये मोदी की गारंटी है।" स्वतंत्र भारत के इतिहास में जो आजतक नहीं हुआ, क्या वह अगले कुछ वर्षों में संभव है या फिर यह दावा मात्र चुनावी जुमला है? मई 2014 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग सरकार आई, तब भारत— विश्व की दसवीं बड़ी अर्थव्यवस्था थी। तब देश का आर्थिक आकार अर्थात् सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी)— लगभग दो ट्रिलियन डॉलर था, जो जून 2023 में बढ़कर पौने चार ट्रिलियन डॉलर हो गया। इन नौ वर्षों में भारत, दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया। यह उपलब्धि इसलिए बड़ी और सकारात्मक है, क्योंकि स्वतंत्र भारत को एक ट्रिलिय...
ज्ञानवापी मामले में योगी आदित्यनाथ ने मीडिया से बात की तो बात दूर तक चली गई !

ज्ञानवापी मामले में योगी आदित्यनाथ ने मीडिया से बात की तो बात दूर तक चली गई !

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बात करने से पहले यह बता दें कि योगी के गुरु गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ ने तीन दशक पूर्व क्या मांग की थी ? उन्होंने कहा था कि ग्यारहवीं शताब्दी के बाद भारत में एक एक कर 3000 मंदिर तोड़कर मस्जिदें बनाई गई हैं !मुस्लिम समाज इनमें से यदि अयोध्या , मथुरा , काशी पर अपना दावा छोड़ दे तो बाकी मंदिरों की बात सदा सदा के लिए बंद कर दी जाएगी !ऐसा करने पर देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच ऐसा सौहार्द कायम होगा जिसकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! महंत अवैद्यनाथ की बात का देश भर के साधु संतों और अन्य धर्माचार्यों ने एक सुर से समर्थन किया । विश्व हिंदू परिषद के मार्गदर्शक मंडल ने ऐसा प्रस्ताव भी पारित कर दिया । अशोक सिंहल ने तो इसे अभियान ही बना लिया । कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उसी मांग को आगे बढ़ाते हुए कहा कि मुस्लिम समाज को खुद ही ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ को सौंप देन...
अभिषेक राजपूत को पहले गोली मारी, फिर गला काट कर पत्थर से कुचला।

अभिषेक राजपूत को पहले गोली मारी, फिर गला काट कर पत्थर से कुचला।

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मुस्लिम आबादी की तालिबानी हिंसा /फिर तो भारत बनेगा मुस्लिम देश =================== आचार्य विष्णु हरि सरस्वती अभिषेक राजपूत को पहले गोली मारी, फिर गला काट कर पत्थर से कुचला। अभिषेक राजपूत हिन्दुत्व का प्रहरी था। मिठाई दुकानदार शक्ति सैनी की हत्या दुकान से खीच कर की गई फिर लाश को चौराहे पर फेका गया। 2500 हजार से अधिक हिन्दू महिलाओं और बच्चों को बंधक बना कर छेड़छाड़ किया गया, उन्हें ंिहंसा का शिकार बनाया गया। यह स्थिति हरियाणा के मेवात क्षेत्र के नूंह की है। नूंह की तालिबानी मुस्लिम हिंसा को राष्टीय मीडिया ने दबा दिया, क्योंकि प्रताड़ित और शिकार होने वाले हिन्दू थे और गुनहगार व हिंसक मुस्लिम आबादी थी। अब तो अपने देश में हिन्दू अपने पर्व-त्यौहार मनाने पर मारे जा रहे हैं। यह तालिबानी मुस्लिम हिंसा रूकने वाली नहीं है, भारत भी आज न कल तालिबान का अफगानिस्तान बन कर रहेगा। भारत को मुस्लिम देश...
सांसदों और विधायकों के लिए ‘नो वर्क- नो पे’ की नीति लागू की जाए

सांसदों और विधायकों के लिए ‘नो वर्क- नो पे’ की नीति लागू की जाए

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केवल राजनेताओं को ही मजा क्यों लेना चाहिए? हम संसद में गतिरोध, व्यवधान देख रहे हैं और यह चलन बढ़ रहा है। राजनेता हमारे पैसे पर सवार हैं, अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर रहे हैं, अपने निहित स्वार्थ के लिए संसद का कामकाज बंद कर रहे हैं, उन्हें बर्बाद किए गए समय के लिए पैसे का दावा करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। वेतन कटौती के साथ-साथ, उन्हें सत्र के दौरान मिलने वाली सभी सुविधाओं और सुविधाओं के भुगतान के लिए उत्तरदायी बनाया जाना चाहिए। व्यवधान और विवाद करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। यदि कोई अपने काम में ईमानदार नहीं है, तो उसे भुगतान क्यों किया जाएगा। उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। सत्र के दौरान संसद अस्सी दिनों तक चलती है। प्रत्येक दिन मात्र छह घंटे काम होता है। अगर संसद पर होने वाले कुल सालाना खर्च को ध्यान में रखें तो सदन चलाने में हर मिनट का 2.5 लाख रुपए खर्च आता है। किसी भी तरह, प...
31 जुलाई 1940 : क्रान्तिकारी ऊधमसिंह का बलिदान

31 जुलाई 1940 : क्रान्तिकारी ऊधमसिंह का बलिदान

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लंदन जाकर जनरल डायर को गोली मारी थी --रमेश शर्मा क्रान्ति कारी ऊधमसिंह को लंदन में 31 जुलाई 1940 को फांसी दी गई थी । सरदार ऊधमसिंह ने लंदन जाकर उस जनरल डायर को गोली से उड़ा दिया था जिसके आदेश पर जलियाँवाला बाग में निहत्थे लोगों की लाशें बिछा दी गईं थी । ऊधमसिंह उस हत्या कांड के चश्मदीद थे । उनके सामने ही वैशाखी के लिये एकत्र निर्दोष भारतीयों का दमन हुआ था । उन्होंने इसका बदला लेने की ठानी और जीवन भर उसी लक्ष्य पूर्ति में लगे रहे । उन्हे जनरल डायर को मारकर ही चैन मिला ।सरदार ऊधमसिंह का जन्म 26 दिसम्बर 1899 को संगरूर जिले के गाँव सनाम में हुआ था । उनका परिवार काम्बोज के नाम से जाना जाता था । उनके एक बड़े भाई भी थे जिनका नाम मुक्ता सिंह था । परिवार आराम से चल रहा था कि 1907 में किसी बीमारी से माता पिता दोनों की मृत्यु हो गई । बड़े भाई यद्यपि बहुत बड़े न थे फिर उन्होंने ऊधम सिंह को संभा...
मुंशी प्रेमचन्द की 144वीं जयन्ती – 31 जुलाई 2023

मुंशी प्रेमचन्द की 144वीं जयन्ती – 31 जुलाई 2023

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कलम को औजार बना लेने वाले प्रेमचन्द- ललित गर्ग- मुंशी प्रेमचंद की साहित्यकार, कहानीकार और उपन्यासकार के रूप में चर्चा इसलिये होती है कि उनकी कहानियां-उपन्यास जीवंत, अद्भुत एवं रोमांचकारी हैं, लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि उनके वास्तविक जीवन की घटनाएं उससे भी अधिक विलक्षण, प्रेरक एवं अविस्मरणीय हैं। वे अपनी जिन्दगी की किताब के किरदारों में कहीं अधिक सशक्त, साहसी, आन्दोलनकारी एवं प्रेरणादायी रहे हैं। बनारस के लमही में 31 जुलाई 1880 को पैदा हुए इस महान् लेखक-कहानीकार-पत्रकार ने अपनी रचनाओं के लिए ब्रिटिश हुकूमत की सजा भी भोगी, लेकिन पीछे नहीं हटे, अपना नाम भी बदला। उनकी पत्रकारिता भी क्रांतिकारी थी, लेकिन उनके पत्रकारीय योगदान को लगभग भूला ही दिया गया है। जंगे-आजादी के दौर में उनकी पत्रकारिता ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध ललकार की पत्रकारिता थी। वे समाज की कुरीतियों एवं आडम्बरों पर प्रहार करते...
UNRESOLVED  QUERY ON ORIGIN AND END OF LIFE

UNRESOLVED  QUERY ON ORIGIN AND END OF LIFE

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N.S.Venkataraman                                                                       Ever since the world happened and humans came into existence ( does anyone know when it was?) , men and women  have been enquiring  as to from where human , animal , bird and other creatures have come into the world and where they would go after their life process. While extraordinary developments have  happened over the last several centuries in science, technology , medicine and other areas, no one has been  able to  explain the origin and end of life with clarity.  Scientists may say that humans and animals happen due to chemical reactions in the womb of the mother and  humans , animals and other creatures  disappear due to the decay of the c...
मणिपुर : सियासी रोटियां न सेंकी जाएं

मणिपुर : सियासी रोटियां न सेंकी जाएं

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बलबीर पुंज मणिपुर में दो महिलाओं के साथ जो हुआ, वह अक्षम्य है। परंतु क्या यह भारत के संदर्भ में अपवाद है? क्या भारत या शेष विश्व के किसी भूक्षेत्र में ऐसी बीभत्सता पहली बार हुई है? क्या कोई दावा कर सकता है कि इस पिशाची घटना के बाद ऐसे मामले रुक जाएंगे? कटु सत्य तो यह है कि महिलाओं से इस प्रकार का असहनीय आचरण अक्सर इसलिए होता है, क्योंकि जिन लोगों (अधिकांश राजनीतिक) पर इस प्रकार की नारकीय घटना को रोकने का दायित्व है, वे मूलत: बेईमान और तुच्छ मानसिकता से ग्रस्त है। मणिपुर मामले में समाज का एक वर्ग इसलिए गुस्सा नहीं है, क्योंकि 4 मई को दो महिलाओं के साथ जो कुछ हुआ, वह बहुत शर्मनाक था, बल्कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि उन्हें इस घटना पर सियासी रोटियां सेकने और भारत को कलंकित करने का अवसर मिल गया है। मणिपुर में जो काली इबारत लिखी गई, वह दुर्भाग्य से देश के अन्य भागों में भी किसी न किसी र...
सर्वसेवा संघ: सत्य और झूठ

सर्वसेवा संघ: सत्य और झूठ

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- प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज महात्मा गांधी की मृत्यु के तत्काल बाद गांधी जी के प्रति श्रद्धाभाव रखने वाले और उनके आंदोलन से जुड़े सभी लोगों की एक बैठक हुई जिसमें स्वयं जवाहरलाल नेहरू, यू.एन. ढेबर, आचार्य विनोबा भावे आदि शामिल थे। इसमें गांधीजी की स्मृति में रचनात्मक कार्य जारी रखने के लिये एक गांधी स्मारक निधि के संग्रह का निर्णय लिया गया। वह निधि शासन में विराजमान श्ीार्ष लोगों की प्रेरणा से समाज से संचित हुई और वह एक बड़ी रकम हो गई। उससे गांधी स्मारक निधि एवं गांधी शांति प्रतिष्ठान नामक शोध केन्द्र का संचालन प्रारंभ हुआ। बाद में निधि की देशभर में लगभग 12 प्रमुख शाखायें हो गईं। जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई सहित अनेक महत्वपूर्ण नगरांे में हैं। शासन ने सब जगह उनके लिये भूमि एवं भवन सुलभ कराये। जो आज भी चल रहे हैं।इन्हीं लोगों ने निर्णय लिया कि रचनात्मक कार्यकर्ताओं का एक अलग संग...