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ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का

ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का

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ये देश है, सड़क दुर्घटनाओं का* वैसे तो यह एक विकास और स्वास्थ्य संबंधी विषय है, पर डेढ़ लाख मौतों के बाद भी भारत में अभी भी इसे महज कानून-व्यवस्था का मामला माना जाता है | इस विषय पर आई अधिकारिक जानकारी भी चौकानें वाली है |राष्ट्रीय अपराध आंकड़ा ब्यूरो (एनसीआरबी) से आई जानकारी के अनुसार वर्ष २०२१ में लगभग १ लाख ५५ व्यक्तियों की मौत सड़क दुर्घटनाओं में हुई है। सडक दुर्घटनाओ में घायलों की संख्या अधिक यानी लाख ७१ हजार रही, भारत में कुल सड़क दुर्घटनाओं की गिनती ४ लाख से ऊपर है।हर वर्ष राष्ट्रीय अपराध आंकड़ा ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट का जिक्र बस एक खबर की तरह ली जाती है इसके बाद शेष पूरे वर्ष इस पर नाममात्र या किसी प्रकार की सार्वजनिक चर्चा नहीं होती। जबकि सरकार भरपूर कर वसूल करती है | ब्यूरो की इस रिपोर्ट में राज्य-वार आंकड़े और विस्तृत जानकारी में दुर्घटनाओं में शामिल वाहनों की किस्में भ...
17 सितंबर को होगा 75 दिवसीय सागर स्वच्छता अभियान का समापन

17 सितंबर को होगा 75 दिवसीय सागर स्वच्छता अभियान का समापन

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आजादी के अमृत वर्ष के अवसर पर 05 जुलाई को शुरू हुए 75 दिवसीय सागर स्वच्छता अभियान का समापन 17 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय तटीय स्वच्छता दिवस’ के अवसर पर हो रहा है। महासागरों की स्वच्छता के महत्व को रेखांकित करने और उसके बारे में जागरूकता के प्रचार-प्रसार के लिए शुरू किये गए ‘स्वच्छ सागर, सुरक्षित सागर’ नामक इस अभियान के समापन से जुड़े कार्यक्रम एक साथ देश के 75 समुद्र तटों पर आयोजित किए जाएंगे। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह मुंबई में स्वयं समापन कार्यक्रम का नेतृत्व करेंगे। देश की 7500 किलोमीटर लंबी तटरेखा से कचरा हटाने के लिए शुरू किए गए इस अभियान को विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियों का समर्थन मिला है...
हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है?

हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है?

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हिंदी के मुकाबले अंग्रेजी बोलते समय इतनी पॉलिश क्यों दिखाई देती है? भारत ने स्थानीय भाषाओं में निवेश नहीं किया है, चाहे वह उच्च गुणवत्ता वाली स्कूली शिक्षा हो या कला और साहित्य में निवेश हो। यदि हम आज यह निवेश करते हैं, तो हमारी सभी भाषाएँ फल-फूलेंगी, साथ ही उन पर हमारा गर्व भी होगा। जब तक हम यह निवेश नहीं करेंगे, शिक्षित पीढ़ी अंग्रेजी बोलती रहेगी और अपनी स्थिति को बढ़ावा देगी और भारतीय भाषाओं की उपेक्षा करेगी। हिन्दी निश्चय ही एक समृद्ध और सुन्दर भाषा है। यह न केवल साहित्य के कारण बल्कि भाषा की सुंदरता से भी समृद्ध है। यह न केवल दोस्तों (तू, तेरा आदि) के साथ अनौपचारिक होने की स्वतंत्रता देती है, बल्कि एक बड़े/वरिष्ठ (आप, आपका) को भी सम्मान देती है-जो कुछ भाषाओं, विशेष रूप से अंग्रेजी में दिखाई नहीं देता है। -प्रियंका सौरभ किसी भी भाषा की सुंदरता उसके उपयोगकर्ता के कौशल में निहित ...
तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन

तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन

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 तो शहरों के कूड़े के ढेर बनेंगे अब ग्रीन जोन या कूड़े के पहाड़ों से शहरों को मिलेगा छुटकारा आर.के. सिन्हा आप जब राजधानी दिल्ली से गाजीपुर के रास्ते उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश करते हैं तब कचरे का काला स्याह डरावना पहाड़ दिखाई देता है। इसे जो शख्स पहली बार देखता है उसे तो यकीन ही नहीं होता कि दरअसल ये कचरे का पहाड़ है। आज के दिन आपको देश के प्रायः सभी शहरों में कचरे के ढेर दिखाई दे जाएंगे।  ये उस भारत की कतई बेहतर तस्वीर पेश नहीं करते जो दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है और जिसके आईटी सेक्टर की ताकत का सारा संसार लोहा मान चुका है। उस भारत के शहरों में कूड़े के ढेर लगे हों, यह तो शर्म की बात कही जाएगी। देखिए, छोटे-बड़े सभी शहरों और महानगरों को कचरे से मुक्ति तो दिलावानी ही होगी। कुछ साल पहले तक तो सिर्फ पर्यटन स्थल नहीं, सभी सार्वजनिक स्...
लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज*

लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज*

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लिज ट्रस के मस्तिष्क पर कांटो का ताज* ब्रिटेन, विश्व के सर्वाधिक खुशहाल देशों में से एक है। अतीत में एक छोटे से देश ब्रिटेन का झण्डा संसार के सभी स्थानों पर फहराया जाता था और सम्पूर्ण विश्व उसके आगे नतमस्तक था। ब्रिटिश शासक, अपने अधीन देशों से उनकी बहुमूल्य सम्पदा को लूटकर ब्रिटिश राजकोष में भरते थे। ब्रिटेन देश, जहाँ पर सम्पूर्ण विश्व से लूटे हुए धन का अर्जन किया जा रहा हो, उसका खुशहाल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। परन्तु लूट के धन से प्राप्त की गई खुशहाली सदैव ही अस्थायी होती है एवं परिश्रम के फलस्वरूप प्राप्त की गई खुशहाली स्थायी होती है। ब्रिटिश राज्य आज इसी समस्या का सामना कर रहा है। कंजर्वेटिव पार्टी के प्रधानमंत्री बोरिस जान्सन की त्रुटिपूर्ण नीतियों के कारण जनता का विरोध असहनीय हो गया था। अतः राष्ट्र को सुचारू रूप से चलाने हेतु पार्टी के लिए ब्रिटेन का नया प्रधानमंत्री चुनना...
देश में कई ट्रॉमा सेंटर होने चाहिए

देश में कई ट्रॉमा सेंटर होने चाहिए

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देश में कई ट्रॉमा सेंटर होने चाहिए *विनीत नारायण टाटा समूह के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की एक सड़क दुर्घटना में हुई मृत्यु से देश भर में सड़क सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं। सड़क दुर्घटना में चोटिल व्यक्ति को यदि समय पर प्राथमिक उपचार मिल जाए तो अधिकतर मामलों में घायल व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। साइरस मिस्त्री की मृत्यु के बाद एक ओर जहां सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने एक आदेश जारी किया है जिसके तहत अब से कार में पीछे बैठने वाले अगर सीट बेल्ट नहीं लगाएँगे तो उनका भी चालान होगा। वहीं सड़क सुरक्षा को लेकर अन्य कई सवाल भी उठने लग गए हैं। इनमें से अहम है देश में ट्रॉमा सेंटर्स की भारी कमी का होना। ट्रॉमा सेंटर एक ऐसा अस्पताल होता है जो ऊँचाई से गिरने, सड़क दुर्घटना, हिंसा आदि जैसे हादसों में घायल रोगियों की प्राथमिक चिकित्सा व देखभाल के लिए विशेष स्टाफ़ से ...
गायों की हो रही है दुर्दशा

गायों की हो रही है दुर्दशा

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गायों की हो रही है दुर्दशा भारतीय संस्कृति में जिस गाय को 'मां' की संज्ञा दी गई है, उसका ऐसा हश्र लम्पी बीमारी से पहले कभी नहीं हुआ। गायों की दुर्दशा को लेकर अब सिर्फ जिनके घर गाय है वो ही चिंतित हैं। क्या गाय बचाने की जिम्मेवारी सिर्फ पशुपालन विभाग की ही बनती है, बाकी समाज केवल तमाशा देखे। आज तथाकथित गौभगत और गाय के नाम पर लूटकर खाने वाले चाहे वो कोई भी हो लगभग गायब है। (इक्का-दुक्का को छोड़कर) मृत गायों को खुले में फेंकने से संक्रमण तेजी से फेल रहा है। कहीं यह महामारी न बन जाए। क्योंकि मृत गायों की दुर्गंध और प्रदूषण से आस-पास के लोगों में भी अन्य बीमारियां फ़ैल रही है। 'एक शाम, गायों के नाम' पर करोड़ों रुपए लेने वाले और गाय के ठेकेदार बागङबिल्ले सब कहाँ छुप गए? आखिर गायों की हो रही है दुर्दशा? गाय रो-रो कर पूछ रही है, कहां गए वह गौ सेवक? कहां गई वह राजनीतिक पार्टियां जो मेरे नाम पर सरक...
क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है?

क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है?

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क्या खेल में जीतना ही सब कुछ है और सभी का अंत है? खेलों में बढ़ते दुर्व्यवहार और असहिष्णुता के लिए एक ही कारण को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, सामाजिक जागरूकता की कमी और खेल भावना की समझ में कमी, बढ़ती असहिष्णुता और नफरत इसके पीछे मुख्य कारण है। जब खेल को दो विरोधियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के रूप में देखा जाता है, तो राष्ट्रवाद और धार्मिकता की मजबूत धारणा व्यक्तियों को धार्मिक दुर्व्यवहार के लिए प्रेरित कर सकती है। उदाहरण के लिए, भारत और पाकिस्तान क्रिकेट मैच का परिणाम अक्सर दोनों ओर से गाली-गलौज को आकर्षित करता है। पाकिस्तान का तो खास तौर पर हर विरोधी टीम के साथ व्यवहार निचले दर्जे से भी नीचे का है, हार को खेल के अंग के रूप में स्वीकार करने के लिए धैर्य और नैतिक शक्ति के गुणों का होना बहुत जरूरी है। हर संभव विकल्प का उपयोग करके जीतने के लिए तत्काल संतुष्टि और हताशा गलत परिणाम लाती...
आजादी की मज़ेदार नौटंकी

आजादी की मज़ेदार नौटंकी

EXCLUSIVE NEWS, राष्ट्रीय
*आजादी की मज़ेदार नौटंकी* *डॉ वेदप्रताप वैदिक* प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सेंट्रल विस्टा’ का उद्घाटन करते समय सबसे ज्यादा जोर इस बात पर दिया कि वे देश की गुलाम मानसिकता को खत्म करने का काम कर रहे हैं। इसमें शक नहीं कि जॉर्ज पंचम की जगह सुभाष बाबू का शानदार पुतला खड़ा करना अत्यंत सराहनीय कदम है और पूरे ‘इंडिया गेट’ इलाके का नक्शा बदलना भी अपने आप में बड़ा काम है। इस क्षेत्र में बने नए भवनों से सरकारी दफ्तर बेहतर ढ़ग से चलेंगे और नई सड़कें भी लोगों के लिए अधिक सुविधाजनक रहेंगी। इस सुधार के लिए नरेंद्र मोदी को आनेवाली कई पीढ़ियों तक याद रखा जाएगा। लेकिन राजपथ का नाम ‘कर्तव्यपथ’ कर देने को मानसिक गुलामी के विरुद्ध संग्राम कह देना कहां तक ठीक है? पहली बात तो यह कि राजपथ शब्द हिंदी का ही है। दूसरा, यह सरल भी है, कर्तव्य पथ के मुकाबले। यदि प्रधानमंत्री ने पहली बार शपथ लेते हुए खुद को देश का ‘प...
कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ

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नई दिल्ली में कर्तव्य पथ के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ आज के इस ऐतिहासिक कार्यक्रम पर पूरे देश की दृष्टि है, सभी देशवासी इस समय इस कार्यक्रम से जुड़े हुए हैं। मैं इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बन रहे सभी देशवासियों का हृदय से स्वागत करता हूं, अभिनंदन करता हूं। इस ऐतिहासिक क्षण में मेरे साथ मंत्रिमंडल के मेरे साथी श्री हरदीप पुरी जी, श्री जी किशन रेड्डी जी, श्री अर्जुनराम मेघवाल जी, श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी, श्री कौशल किशोर जी, आज मेरे साथ मंच पर भी उपस्थित हैं। देश के अनेक गणमान्य अतिथि गण, वह भी आज यहां उपस्थित हैं। साथियों, आजादी के अमृत महोत्सव में, देश को आज एक नई प्रेरणा मिली है, नई ऊर्जा मिली है। आज हम गुजरे हुए कल को छोड़कर, आने वाले कल की तस्वीर में नए रंग भर रहे हैं। आज जो हर तरफ ये नई आभा दिख रही है, वो नए भारत के आत्मविश्वास की आभा है। गुलामी का प्रतीक...