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आनंद महिंद्रा जी, इस दोगलेपन की वजह क्या है?

आनंद महिंद्रा जी, इस दोगलेपन की वजह क्या है?

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आनंद महिंद्रा जी, इस दोगलेपन की वजह क्या है? क्रिकेट मैच के दौरान कमर्शियल ब्रेक में क्लब महिंद्रा के दो एड बार-बार चल रहे हैं। इसके एक एड में टीचर बच्चों से पूछती है कि बताओ बच्चो, वर्ल्ड की Second Longest Wall कहां पर है? इसके जवाब में एक छोटा बच्चा हाथ खड़ा करता है और कहता है कि राजस्थान के कुंभलगढ़ में…इसके बाद वो कुंभलगढ़ के बारे में और बहुत सारी बातें बताने लगता है। उसकी जानकारी सुन सारी क्लास हैरान हो जाती है और उसी हैरानी में क्लास टीचर भी उससे पूछती है कि तुम्हें ये सब बातें कैसे पता लगीं? जिसके जवाब में बच्चा इतराते हुए एक तरफ गर्दन फेंककर बताता है…मेरे पापा क्लब महिंद्रा के मेंबर जो हैं! इसी तरह के एक और एड में जब एक छोटी बच्ची बताती है कि वो इस बार गर्मियों की छुट्टियों में केरल, गोवा और हिमाचल गई और फिर वो बताती है कि मेरे पापा क्लब महिंद्रा के मेंबर है। जिस पर दूसरा बच्चा कह...

अन्नदाता आंदोलनरत है क्यों?

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देश का अन्नदाता खेत की जगह सड़क पर आंदोलनरत है।यदि राजनीति और अन्य दुराग्रहों को नजरअंदाज कर दें तो देश के लिये अन्न उगाने वाले किसानों का अपनी मांगों के लिये सड़क पर आना दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जायेगा। भले ही 2020-21 में हुए लंबे किसान आंदोलन के दौरान होने वाली हिंसक घटनाओं और लाल किले प्रकरण के मद्देनजर केंद्र व हरियाणा सरकार सख्ती दिखा रही हो, लेकिन फिर किसानों के लिये मार्ग में भारी-भरकम अवरोध लगाने और कीलें बिछाने की कार्रवाई को अच्छा नहीं कहा जा सकता है। निस्संदेह,प्रशासन के सामने कानून-व्यवस्था का प्रश्न होता है और ऐसे आंदोलन के दौरान अराजक तत्वों की दखल का अंदेशा बना रहता है। आम नागरिकों की सुरक्षा के मद्देनजर ऐसे उपाय जरूरी हो सकते हैं मगर सवाल यह है कि ऐसी स्थिति आती ही क्यों है? प्रश्न यह है कि समय रहते किसानों के जायज मुद्दों पर संवेदनशील पहल क्यों नहीं हुई ? तीन कृषि कान...
प्रेम के नाम पर अश्लीलता बढ़ाता वेलेंटाइन्स डेए विरोध की नहीं जागरूकता की है जरूरत !

प्रेम के नाम पर अश्लीलता बढ़ाता वेलेंटाइन्स डेए विरोध की नहीं जागरूकता की है जरूरत !

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डॉ अजय कुमार मिश्राकतंरंलातउपेीतं/हउंपसण्बवउ इंग्लैंड और फ़्रांस से शुरू हुआ प्रेम का प्रतीक वेलेंटाइन्स डे आज दुनियां में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है खासकर युवाओं में तेजी से न केवल पकड़ मजबूत हुई है बल्कि अनेकों ऐसे बच्चे भी मिल जायेगे जिन्हें वास्तव में इसके सरोकार में शामिल नहीं होना चाहिएए पर वो लोग और तन्मयता से जुड़े है द्य इस दिन कार्डए फूलए चॉकलेट और उपहारों को देने के साथ दृ साथ प्यार का इजहार किया जाता है द्य कई परिवर्तनों के दौर से गुजरता हुआ यह अब बाजारवाद का शिकार हो गया है और ग्लोबल कंपनियां इसे इस तरह प्रोमोट कर रही है की प्यार के इजहार का इससे नायब दिन कोई नहीं हो सकता द्य आधुनिकता के इस रंग में अब वेलेंटाइन्स डे सात दिनों के रंग का स्वरुप ले चुका है जिसमे प्रत्येक दिन कुछ अलग होता है और अंतिम स्वरुप 14 फरवरी को पूरा होता है द्य प्रत्येक वर्ष यह 14 फरवरी को मनाय...
तालिबानी हिंसा से कैसे बचेगी देवभूमि

तालिबानी हिंसा से कैसे बचेगी देवभूमि

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
सभ्य देश में हलद्वानी जैसी हिंसा है अस्वीकार्य आचार्य विष्णु हरि सरस्वती हलद्वानी हिंसा के संदेश बहुत ही डरावने हैं, अमानवीय है, विखंडनकारी है, संविधान और कानून के शासन के लिए प्रतिकूल है, सामानंतर सरकार के प्रतीक है, गुडागर्दी के प्रतीक है, चोरी और सीनाजारी की कहानी कहती है, तालिबानी हिंसा की कॉपी लगती है, तालिबानी हिंसा की आहट सुनाई देती है। ऐसी हिंसा पर सिर्फ उत्तराखंड की सरकार को ही चिंतन की जरूरत नहीं है, ऐसी हिंसा पर पूरे देश को चिंता करने की जरूरत है, न्यायालयों को भी चिंता करने की जरूरत है। ऐसी हिंसा के नियंत्रण पर ठोस नीति बनाने की जरूरत है। सबसे बडी बात यह है कि ऐसी हिंसा सिर्फ अचानक घटती नहीं है बल्कि इसके पीछे साजिश होती है, तैयारी होती है, हिंसा के लिए जरूरी हथियार और ज्वलनशील पदार्थ एकत्रित किये जाते हैं, हिंसक मानसिकता का बीजारोपण कर हिंसा के लिए वातावरण तैयार...
पुस्तकों का मेला क्यों है अलबेला

पुस्तकों का मेला क्यों है अलबेला

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-ललित गर्ग - इंसान की ज़िंदगी में विचारों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। वैचारिक क्रांति एवं विचारों की जंग में पुस्तकें सबसे बड़ा हथियार है। लेकिन यह हथियार जिसके पास हैं, वह ज़िंदगी की जंग हारेगा नहीं। जब लड़ाई वैचारिक हो तो पुस्तकें हथियार का काम करती हैं। पुस्तकों का इतिहास शानदार और परम्परा भव्य रही है। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मार्गदर्शक हैं। पुस्तकें सिर्फ जानकारी और मनोरंजन ही नहीं देती बल्कि हमारे दिमाग को चुस्त-दुरुस्त रखती हैं। आज डिजिटलीकरण के समय में भले ही पुस्तकों की उपादेयता एवं अस्तित्व पर प्रश्न उठ रहा हो लेकिन समाज में पुस्तकें पुनः अपने सम्मानजनक स्थान पर प्रतिष्ठित होंगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। पुस्तकों पर छाये धुंधलकों को दूर करने के लिये एवं पुस्तक की प्रासंगिकता को नये पंख देने की दृष्टि से लेखक, पुस्तक प्रेमी और प्रकाशकों का ’महाकुंभ’ यानी नई दिल्ली विश्व प...
राम मंदिर आंदोलन के आधार स्तम्भ- भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी

राम मंदिर आंदोलन के आधार स्तम्भ- भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी

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“जहाँ राम का जन्म हुआ था, मंदिर वहीँ बनायेंगे”- संकल्प की सिद्धि के अजेय योद्धामृत्युंजय दीक्षितभारतीय जनता पार्टी के संस्थापक नेता, श्री राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के महानायक तथा अपनी रथ यात्राओं के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी को देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल के रूप में प्रतिस्थापित में अहम भूमिका निभाने वाले महारथी श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भारत रत्न का सम्मान करोड़ों रामभक्तों का भी सम्मान है।आज संपूर्ण भारत ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में सनातन संस्कृति की जो लहर चल रही है उसके आधार स्तम्भ भी कहीं न कहीं आडवाणी जी ही हैं। भारतरत्न लालकृष्ण आडवाणी का राजनैतिक जीवन अत्यंत शुचितापूर्ण रहा है जिसे एक बार सुषमा स्वराज ने सदन में “ राजनैतिक जीवन में शुचिता की पराकाष्ठा” कहकर व्याख्यायित किया था। विरोधियों द्वारा अपने ऊपर छल पूर्वक हवाला रैकेट में सम्मिलित होने का आरोप लगाए जाने पर उन्होंने ...
खाली हाथ बजट …..

खाली हाथ बजट …..

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 स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक सुधार की जरूरत। 2024 का अंतरिम बजट प्रशासनिक रवायत है क्योंकि पूर्ण बजट तो जुलाई में आएगा‚ जिस पर नई सरकार का रिपोर्ट कार्ड़ स्पष्ट नजर आएगा। व्यवसायों को फलने-फूलने के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने, पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने और समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्ग के उत्थान की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि विकास न्यायसंगत, टिकाऊ और हरित हो, विकास की गुणवत्ता पर ध्यान दें। सरकार को बड़ी-बड़ी योजनाओं पर ध्यान देने की बजाय स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है। हालांकि ये गरीबों के लिए महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, लेकिन यह इस तथ्य से दूर नहीं है कि स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा बजट बेहद अपर्याप्त हैं, भले ही ये सेवाएं खराब बुनियादी ढांचे, भारी रिक्तियों और अपर्याप्...
<em>कैरियर द्वन्द : युवा मौत का मार्ग</em>

कैरियर द्वन्द : युवा मौत का मार्ग

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राकेश दुबे *कैरियर द्वन्द : युवा मौत का मार्ग* भारत के सामने इससे बड़ा विरोधाभास नहीं हो सकता।जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ‘परीक्षा पर चर्चा’ कार्यक्रम में देश के करोड़ों छात्र-छात्राओं, शिक्षकों व अभिभावकों से दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम व वर्चुअल संवाद के जरिये परीक्षा भय से मुक्त होने की बात कर रहे थे, देश के कई भागों से छात्रों के आत्महत्या करने की खबरें आ रही थीं। जाहिर है अभिभावक व शिक्षक इन बच्चों के मानसिक द्वंद्व व वास्तविक दिक्कतों को नहीं समझ पा रहे हैं, जिसके चलते इन बच्चों को मौत को गले लगाना अंतिम विकल्प नजर आ रहा है। निश्चित रूप से परीक्षा का भय इस कदर बच्चों पर हावी है कि उन्हें लगने लगता है कि परीक्षा में असफलता के बाद जीवन में कुछ शेष नहीं रहेगा। प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में इन तमाम चुनौतियों को संबोधित किया। उन्होंने गहरी बात कही कि– ‘बच्चों के रिप...
नीतीश कुमार: कोई कारण होगा

नीतीश कुमार: कोई कारण होगा

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राज्य
* रजनीश कपूर ‘कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं कोई बेवफ़ा नहीं होता।’ मशहूर शायर बशीर बद्र का यह शेर देश की राजनीति में हुए हालिया बदलाव पर एकदम सही बैठता है। बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदल कर यह बात सिद्ध कर दी है कि या तो ‘इंडिया’ गठबंधन ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया या ‘एनडीए’ गठबंधन ने उन्हें कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से ले लिया। राजनैतिक गलियारों में इस बात को लेकर काफ़ी अटकलें लग रहीं हैं कि नीतीश कुमार के इस कदम के पीछे का कारण क्या हो सकता है। कारण जो भी हो 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले ही वोटरों को काफ़ी हलचल दिखाई दे रही है। बिहार में जो कुछ भी हुआ उसके पीछे के कारणों में जहां एक ओर ‘इंडिया’ गठबंधन में न होने वाले समझौते हैं। वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ गठबंधन के कुछ नेताओं में किसी न किसी तरह का ‘ख़ौफ़’ भी है। उन नेताओं को लगता है कि...
<strong>सशक्त भारत का आधार है कानूनों का सरलीकरण</strong>

सशक्त भारत का आधार है कानूनों का सरलीकरण

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-ः ललित गर्ग:- सुप्रीम कोर्ट की हीरक जयन्ती एक अवसर है भारतीय न्याय प्रणाली की कमियां पर मंथन करते हुए उसे अधिक चुस्त, त्वरित एवं सहज सुलभ बनाना। मतलब यह सुनिश्चित करने से है कि सभी नागरिकों के लिये न्याय सहज सुलभ महसूस हो, वह आसानी से मिले, जटिल प्रक्रियाओं से मुक्त होकर सस्ता हो। इस दृष्टि से यह अकल्पित उपलब्धियों से भरा-पूरा अवसर भारत न्याय प्रक्रिया को एक नई शक्ति, नई ताजगी, और नया परिवेश देने वाला साबित हो रहा है। क्योंकि आजादी के अमृतकाल में पहुंचने तक भारत की न्याय प्रणाली अनेक कंटिली झाड़ियों में उलझी रही है। भारतीय न्यायिक व्यवस्था का छिद्रान्वेषण करें तो हम पाते हैं कि न्यायाधीशों की कमी, न्याय व्यवस्था की खामियाँ और लचर बुनियादी ढाँचा जैसे कई कारणों से न्यायालयों में लंबित मुकदमों की संख्या बढ़ती जा रही है तो वहीं दूसरी ओर न्यायाधीशों व न्यायिक कर्मचारियों पर काम का बोझ बढ़त...