आनन्दरामायण में स्पष्ट बताया गया हैं कि समस्त दस अवतारों में श्रीरामावतार ही श्रेष्ठ क्यों?
एक दिन भाईयों, पुत्रों, सीताजी तथा गुरु के साथ श्रीरामचन्द्रजी बैठे थे। प्रसंगवश हर्षित होकर श्रीराम कहने लगे, समस्त ऋषिगण, मेरे सब भाई, दोनों पुत्र, सीता, समस्त मन्त्री और माताएँ सब मेरी बात सुनें।यथा यथाऽवतारेऽस्मिन सुखं भुक्तं हि सीतया।न तथाऽन्येषु सर्वेषु ह्यवतारेषु वै कदा।।आनन्दरामायण राज्यकाण्डम् (उत्तरार्द्धम्) सर्ग २०-२१मैंने इस अवतार में सीता के साथ जितना सुख भोगा है, उतना किसी भी अवतार में नहीं भोगा। श्रीराम ने कहा कि उन्होंने अनेक कारणों से समय-समय पर अवतार लिए हैं, किन्तु उनकी कोई संख्या नहीं है। इतना होने के बाद भी उनके सात अवतार मुख्य हैं। श्रीराम ने अपने अवतारों को इस प्रकार बताया- आज से बहुत दिनों पूर्व महोदधि (समुद्र) में शंखासुर नामक दैत्य हुआ था जो सत्यलोक से चारों वेदों को चुरा ले गया था। उसके लिए उन्होंने मत्स्यरूप धारण किया और उसका वध करके विष्णु रूपधारी बन ग...