भारत न बने अमेरिकी मोहरा
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आजकल भारत और अमेरिका के बीच जैसा प्रेमालाप चल रहा है, मेरी याददाश्त में कभी किसी देश के साथ भारत का नहीं चला। शीतयुद्ध के घनेरे बादलों के दौरान जवाहरलाल नेहरु और सोवियत नेता ख्रुश्चोफ और बुल्गानिन के बीच भी नहीं। इसका कारण शायद यही समझा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की मोहिनी ने डोनाल्ड ट्रंप को सम्मोहित कर लिया है। यह समझ नहीं, भ्रम है। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में व्यक्तिगत संबंधों की भूमिका बहुत सीमित होती है। उसका संचालन राष्ट्रहितों के आधार पर होता है। इस समय ट्रंप प्रशासन चीन के घुटने टिकवाने के लिए कमर कसे हुआ है। इसीलिए वह भारत के प्रति जरुरत से ज्यादा नरम दिखाई पड़ रहा है।
उसने कोविड-19 के लिए चीन को सारी दुनिया में सबसे ज्यादा बदनाम किया। उसने चीन के विरुद्ध यूरोपीय संघ और आग्नेय एशिया के राष्ट्रों को लामबंद किया। अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में चीन को धमकाने के लिए एक प्रस्ताव भी लाया गया।...