ओबीसी के नाम पर बेवक़ूफ़ बंनाने का ड्रामा
आंकड़ों का अध्यन करें तो हम पाएंगे कि देश के कुल केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अन्य पिछड़ा वर्ग में केवल 5 उप-कुलपति है। अगर रजिस्ट्रार देखें तो पिछड़े समाज के तीन हैं। देश के केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर की तय सीटों की मात्र 4.5 प्रतिशत ही भरी गई हैं। अमूमन यही स्थिति एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर में भी है। सीटों के खाली रहने के साथ-साथ ओबीसी के साथ क्रीमीलेयर का घटिया खेल खेलकर उनको कहीं का भी नहीं छोड़ा जा रहा है जिसकी वजह से उनकी जाति का सर्टिफिकेट तक छिना जा रहा है। छह या आठ लाख की मामूली सीमा से ओबीसी का हक़ मारकर आने वाली पीढ़ियों को पंगु बनाया जा रहा है जबकि अन्य आरक्षित वर्गों में न तो कोई क्रीमीलेयर है न कोई और बाध्यता? जिसकी वजह से इन वर्गों के बड़े-बड़े अफसरों के बच्चे भी पीढ़ियों तक आरक्षण का फायदा उठा पाएंगे। बड़े समाज को पीछे छोड़ हम अपने देश को सशक्त नहीं कर सकते। क्...