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मोदी-विरोध के नाम पर देश-विरोध क्यों?

मोदी-विरोध के नाम पर देश-विरोध क्यों?

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-ललित गर्ग-एक बार फिर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के इरादे से लद्दाख में चारागाह भूमि पर चीनी सेना का कब्जा होने का दावा किया है, निश्चित इस तरह के बयान न केवल सेना के मनोबल को कमजोर करते हैं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता एवं अखण्डता को ध्वस्त करते हैं। राहुल गांधी मोदी-विरोध में कुछ भी बोले, यह राजनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन वे मोदी विरोध के चलते जिस तरह के अनाप-शनाप दावे करते हुए गलत बयान देते हैं, वह उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही दर्शाता है। आखिर कब राहुल एक जिम्मेदार एवं विवेकवान सशक्त नेता बनेंगे?राहुल गांधी ने कथित तौर पर लद्दाख की जमीन पर चीन का कब्जा होने का जो दावा किया गया है, वह जल्दीबाजी में बिना सोच के दिया गया गुमराह करने वाला बयान है, उससे यही पता चलता है कि उन्हें न तो प्रधानमंत्री की बातों पर यकीन है, न रक्षा मंत्री की और न ही विदेश मंत्...
I.N.D.I.A. बनाम एनडीए

I.N.D.I.A. बनाम एनडीए

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वर्ष 2024 में प्रस्तावित आगामी लोकसभा चुनावों के सन्दर्भ में अत्यधिक जोर शोर से राजनीतिक हलचल होनी प्रारम्भ हो गयी है। भारत के अधिकांश राजनीतिक दल दो खेमों में विभाजित हो गए हैं। पहला खेमा भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए है जिसमें 38 पार्टियों का समावेश किया जा रहा है। सम्भावना यह है कि शीघ्र ही यह संख्या बढ़कर 40 तक हो सकती है। दूसरा खेमा कांग्रेस नेतृत्व वाला I.N.D.I.A. है, जिसके अन्तर्गत 26 पार्टियों का समावेश है। ऐसी सम्भावना है कि ज्यों-ज्यों चुनाव का समय पास आता जायेगा, त्यों-त्यों 26 में से 1-2 पार्टियाँ मोदी जी से प्रभावित होकर दूसरे खेमें में पहुँच जाएं। परन्तु इतना निश्चित है कि चुनाव से पूर्व जनता के समक्ष दो लुभावने विकल्प अवश्य प्रस्तुत होंगे। अब ये जनता पर निर्भर करेगा कि वर्ष 2024 के आगामी लोकसभा चुनाव में कौनसे विकल्प को प्राथमिकता देगी। परन्तु इतना अवश्य है कि आगामी लोकसभा च...
कब तक ‘रैगिंग की आंधी’ में बुझेंगे सपनों के दीप?

कब तक ‘रैगिंग की आंधी’ में बुझेंगे सपनों के दीप?

BREAKING NEWS, EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
कब तक 'रैगिंग की आंधी' में बुझेंगे सपनों के दीप? रैगिंग के नाम पर मैत्रीपूर्ण परिचय से जो शुरू होता है उसे घृणित और विकृत रूप धारण करने में देर नहीं लगती।  रैगिंग की एक अप्रिय घटना पीड़ित के मन में एक स्थायी निशान छोड़ सकती है जो आने वाले वर्षों तक उसे परेशान कर सकती है। पीड़ित खुद को शेष दुनिया से बदनामी और अलगाव के लिए मजबूर करते हुए एक खोल में सिमट जाता है। यह उस पीड़ित को हतोत्साहित करता है जो कई आशाओं और अपेक्षाओं के साथ कॉलेज जीवन में शामिल होता है। हालाँकि शारीरिक हमले और गंभीर चोटों की घटनाएँ नई नहीं हैं, लेकिन रैगिंग इसके साथ-साथ पीड़ित को गंभीर मनोवैज्ञानिक तनाव और आघात का कारण भी बनती है। जो छात्र रैगिंग का विरोध करना चुनते हैं, उन्हें भविष्य में अपने वरिष्ठों से बहिष्कार का सामना करना पड़ सकता है। जो लोग रैगिंग के शिकार होते हैं वे पढ़ाई छोड़ सकते ह...
कांग्रेस के नए अध्यक्ष खड़गे की मोदीजी ने संसद में खोल दी पोल?

कांग्रेस के नए अध्यक्ष खड़गे की मोदीजी ने संसद में खोल दी पोल?

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आम तौर पर पीएम मोदी जी को एक मृदुभाषी सज्जन के रूप में कम आंकते रहे हैं, लेकिन हम में से बहुत से लोग यह नहीं जानते, कि जब वह अपने विरोधियों पर टूट पड़ते हैं तो उनकी नाक से खून बहा देते हैं! यहां एक उदाहरण है, जिसे हमारे भ्रष्ट मीडिया द्वारा स्पष्ट कारणों से छुपाया गया... संसद में कांग्रेस के नेता, मल्लिकार्जुन खड़गे एक दलित हैं, जैसा कि सभी जानते हैं, उन्होंने संसद में एक लड़ाकू की हरकतों और "बॉडी लैंग्वेज" के साथ एक सवाल उठाया, वस्तुतः भारी आवाज के साथ चिल्लाकर, अपने अंगों को जोर से हिलाकर और मोदीजी से एक प्रश्न पूछा!? हम दलितों के लिए आपको प्रति परिवार कम से कम एक प्रतिशत भूमि आवंटित करनी चाहिए! लोकसभा में पिन ड्रॉप साइलेंस रहा। सब कुर्सी के किनारे आ गए, कुछ समय के लिए रोका गया मानो वह इसे "नाटकीय" बनाने की प्रतीक्षा कर रहे हों! मोदीजी ने कुछ समय लिया और अपनी सीट स...
पहाड़े याद करके क्या करोगे

पहाड़े याद करके क्या करोगे

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------------------------------------ एक आदरणीय मित्र ने अपने एक आलेख में एक अमेरिकी मित्र के साथ अपने विमर्श को साझा किया है कि आखिर पहाड़े की जरूरत क्यों है जब आपके पास कैलकुलेटर मोबाइल फोन और कंप्यूटर आदि कई इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज हैं जो आपसे ज्यादा शीघ्रता से सारी गणनाएं कर देते हैं . हमारे भारतीय मित्र ने अपने अमेरिकी मित्र से कहा कि अगर जंगल में आपके पास जब कुछ भी ना हो तब क्या करेंगे तो अमेरिकी मित्र ने कहा कि फिर पहाड़े सुनाने किसको हैं जंगल में शेर को तो पहाड़े सुनने से रहा. खैर मेरे मित्र अपने अमेरिकी मित्र के हास्य बोध और तर्कों के कायल हुए और यह उनका निजी अधिकार है .परंतु क्या आपको पता है कि अंकों की गणना हमारे मस्तिष्क को और अधिक धारदार बनती हैं शायद इसीलिए सवैया , पौना , ड्यौढ़ा भी बच्चों को रटवाया जाता था दो एकम दो ,दो दुनी चार ... के साथ साथ. मिथिला की प्राचीन परम्परागत श...
“आखिर इन बातों से कब मिलेगी आजादी ?”

“आखिर इन बातों से कब मिलेगी आजादी ?”

BREAKING NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, सामाजिक
डॉ. अजय कुमार मिश्रादेश को आजाद हुए 76 वर्ष पुरे हो गए और अभी देश ने 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाया है | इन 76 वर्षो में अनेकों अप्रत्याशित बदलाव और उपलब्धियां रही है जिससे देश का प्रत्येक नागरिक अत्यधिक मजबूत हुआ है साथ ही कई बिन्दुओं में हम अंतर्राष्ट्रीय मानकों की भी पूर्ति कर रहें है | राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो आजादी का अमृत काल चल रहा है और चारोतरफ खुशहाली दिखाई पड़ रही है | इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता की वर्तमान केंद्र सरकार ने अनेकों निर्णय लेकर देश को बेहतर करने का कार्य किया है | इसके प्रभाव को अभी महसूस किया जा रहा है | विगत 76 वर्षों में हम यदि बारीकी से आकलन करें तो हम संवेदनहीन हुए है और राजनीतिक विचारधाराओं ने वोट गणित में मुद्दों की बलि चढ़ा दी है |अब आम आदमी पर राजनीतिक प्रभाव इतना गहरा दिखाई पड़ने लगा है की वह बड़ी से बड़ी घटनाओं पर प्रश्न करने के बजाय इस तरह का व्य...
इतिहास का सच है गुलाम नबी का कथन

इतिहास का सच है गुलाम नबी का कथन

TOP STORIES, संस्कृति और अध्यात्म
विजयमनोहरतिवारी पश्चिम की दुनिया ने तो इस सदी में 9/11 का स्वाद चखा और इस्लामी आतंक की शक्ल ठीक से देखी। मगर भारत का चप्पा-चप्पा ऐसे अनगिनत 9/11 से भरा हुआ है। एक ही शहर में कई-कई 9/11 हैं। ये हजार साल में इतनी-इतनी बार हुए हैं कि इंसानी याददाश्त ही चकरा जाए। जिस समय यह अंधड़ चल रहे थे उसी समय 50 से ज्यादा लेखकों के लिखे दस्तावेजों में इनकी भयावता दर्ज है और इन लेखकों में सारे ही मुस्लिम थे। मैंने ये दस्तावेज अनेक बार पढ़े-पलटे हैं और इन घटनाओं को रेखांकित किया है। धर्मांतरण के ब्यौरे ऐसे अपमानजनक हैं कि आज कोई भी आत्मसम्मान वाला व्यक्ति अपने अतीत में झांकने भर से खुदकुशी कर ले। इसलिए कश्मीर में गुलाम नबी आजाद ने जो कहा है, उसे इतिहास की रोशनी में देखिए, किंतु राजनीति की आँख से नहीं। अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) के समय दिल्ली में गुलामों के बाजार में बिकती लड़कियों और महिलाओं ...
विभाजन विभीषिका : षड्यंत्र और संदिग्ध भूमिकाएं

विभाजन विभीषिका : षड्यंत्र और संदिग्ध भूमिकाएं

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~कृष्णमुरारी त्रिपाठी अटलद्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद अंग्रेजों को देश से खदेड़ने के लिए भारत की जनता आर- पार की लड़ाई में आ चुकी थी। राष्ट्रीयता के मन्त्र से दीक्षित स्वातन्त्र्य वीर-वीराङ्गनाएँ राष्ट्र की स्वतन्त्रता प्राप्त कर लेने के लिए उद्यत हो चुके थे। स्वातन्त्र्य वीर सावरकर - नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि की विचार भूमि पर आधारित सशस्त्र क्रान्ति के आन्दोलन से अंग्रेज भयभीत हो चुके थे। इसी बीच जब अंग्रेजों को यह स्पष्टता हो गई कि वे अधिक दिन भारत में शासन नहीं कर सकते हैं। तो वे ब्रिटिश कैबिनेट मिशन के रूप में भारत में हिन्दुस्तानी सरकार की घोषणा के लिए अंग्रेज बाध्य हो गए। इस सम्बन्ध में ध्यातव्य है कि “द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन की कमजोर स्थिति ने भारत में स्वतंत्रता की राह सरल कर दी थी। जल्दी ही भारत के स्टेट सेक्रेटरी, पैथिक लारेंस ने 19 फरवरी 1946 को स्वशासन की ...
विश्व मानवीय दिवस-19 अगस्त, 2023

विश्व मानवीय दिवस-19 अगस्त, 2023

BREAKING NEWS, TOP STORIES, विश्लेषण, सामाजिक
भारत सक्षम है मानवता को बल देने में-ः ललित गर्ग:- विश्व मानवीय दिवस प्रत्येक वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है। मानव मूल्यों के छीजते दौर में इस दिवस की विशेष प्रासंगिकता एवं उपयोगिता है। इस दिवस पर उन लोगों को याद किया जाता है, जिन्होंने मानवीय उद्देश्यों के कारण दूसरों की सहायता के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी। इस दिवस को विश्वभर में मानवीय कार्यों एवं मूल्यों को प्रोत्साहन दिए जाने के अवसर के रूप में भी देखा जाता है। इसको मनाने का निर्णय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्वीडिश प्रस्ताव के आधार पर किया गया। इसके अनुसार किसी आपातकाल की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र देशों द्वारा आपस में सहायता के लिए मानवीय आधार पर पहल की जा सकती है। इस दिवस को विशेष रूप से 2003 में संयुक्त राष्ट्र के बगदाद, इराक स्थित मुख्यालय पर हुए हमले की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाना आरंभ किया गया था जो विश्व में मानवीय क...
भारत जीवन दर्शन के साथ उदित होने की ओर अग्रसर

भारत जीवन दर्शन के साथ उदित होने की ओर अग्रसर

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, संस्कृति और अध्यात्म
अवधेश कुमारहम अंग्रेजों से अपनी मुक्ति का 75 वर्ष पूरा कर चुके हैं। इसे अमृत महोत्सव नाम दिया गया था। जब सूर्य लालिमा के साथ निकल रहा हो और उसका पूर्ण उदय नहीं हुआ हो उसे ही अमृत काल कहते हैं। स्वीकार करना होगा की स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष को अमृत काल नाम देने के पीछे सोच अत्यंत गहरी है। साफ है कि काफी विचार-विमर्श के बाद अमृत काल नाम दिया गया होगा। राजनीति और मीडिया के बड़े वर्ग ने वातावरण ऐसा बना दिया है जिसमें स्वतंत्रत भारत की स्थिति, स्वतंत्रता संघर्ष के सपने, स्वतंत्रता मिलने के समय की परिस्थितियां, नेताओं की भूमिका आदि पर सच बोलना कठिन हो गया है। कौन उसमें से क्या अर्थ निकालकर बवंडर खड़ा कर देगा अनुमान लगाना आज मुश्किल होता है। स्थिति ऐसी बना दी गई है कि आज विभाजनकालीन परिस्थितियों की बात करने से जानकार लोग भी डरने लगे हैं। पता नहीं कौन उन्हें सांप्रदायिक और क्या-क्या घोषित कर देगा...