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Welcome launch of Lucknow Municipal Bond should be adopted by other cities and public-sector-undertakings of the center and the states

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It refers to Lucknow Municipal Bonds of total issue-value of rupees 200 crores under Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation (AMRUT) scheme with lucrative interest-rate 8.5 percent of 10-year maturity being oversubscribed by 4.5 times just on opening issue by UP Chief Minister at Bombay Stock Exchange. Over-subscription was evident because no other government-security presently gives such high return. Even though similar bonds are to be issued by civic bodies of other cities in UP, other states should also follow the same for developing infrastructure rather than depending on public-exchequer of center and states, or hiking tax-dose. Union Ministry of Housing and Urban Development should write to states for issuing such bonds by their civic bodies. Such long-term bonds wi...
मिलावट, औषधि और संतत्व के लेबल

मिलावट, औषधि और संतत्व के लेबल

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भारत का आयुर्वेद भारत के धर्मगुरु कभी विश्व में भारत की साख हुआ करते थे | आज यह सब वैश्विक प्रश्न चिन्ह की जद में हैं | दुःख की बात यह है की संतत्व के नाम पर बाज़ार खड़ा हो गया है और संतत्व व्यापार बन गया है | आपको भी इस खबर ने विचलित किया होगा है देश की नामी कंपनियों का जीवन रक्षक माने जाने वाला शहद मिलावटी है। इससे ज्यादा विचलित करने वाली बात यह है कि इनमे से कई कम्पनी के कर्ता-धर्ता अपने को व्यापारी की जगह संत कहते हैं | अन्य उत्पादों की बात छोड़ भी दें, यह बात ज्यादा परेशान करने वाली  है कि प्राकृतिक रूप से बनने वाली  शहद के ७७  प्रतिशत नमूनों में मिलावट पायी गई है। कितनी बड़ी यह है कि कोरोना महामारी के दौर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये शहद का उपयोग किया जाता रहा है। विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं और घरेलू उपचार में भी शहद का खूब उपयोग होता रहा है। सदियों से लोग घरेलू इलाज के लिये शहद...

कोरोना पर नियन्त्रण आप की भी जिम्मेदारी है

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कोरोना महामारी से व्याप्त संकट का अंत किसी भी रूप में होता हुआ प्रतीत नहीं हो रहा है। अभी तक कुछ अनसुलझे प्रश्न हैं, यथा - वैक्सीन कब तक आयेगी, उसके कोविड-19 महामारी पर क्या प्रभाव होंगे। ये बहुत बड़े यक्ष प्रश्न विश्व के समक्ष हैं। आज सभी के मन में यह भय व्याप्त है कि इस वैक्सीन के दूरगामी परिणाम मनुष्य जाति के लिए हानिकारक न हों, क्योंकि किसी भी वैक्सीन को साधारण जनता में प्रयोग करने से पूर्व 15-16 वर्ष अथवा उससे भी अधिक समय इसके परिणामों का निष्कर्ष निकालने में लग जाता है। कोरोना को समाप्त करने का दायित्व सरकार व वैक्सीन का ही नहीं अपितु जनता का भी बहुत अधिक है।  आज सम्पूर्ण विश्व इससे त्रस्त है। इस महामारी का प्रकोप अब विश्व में पुनः बढ़ रहा है। विश्व के कई देशों में पुनः लाॅकडाउन की स्थिति उत्पन्न हो चुकी है। भारत में दिल्ली, मुम्बई जैसे शहर पुनः लाॅकडा...

क्या इस आदेश से पुलिस में कुछ बदलेगा ?

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देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस थानों में कैमरे लगाने का निर्देश यूँ ही नहीं दिए हैं |आम लोगों के प्रति पुलिसकर्मियों के व्यवहार के मामले  आये दिन सुनने को मिलते हैं । पुलिसिया रवैये को लेकर कुछ शिकायतें आम हैं। जैसे एफआईआर नहीं लिखना, थाने में लोगों से दुर्व्यवहार करना, हिरासत में लिए गए आरोपी के साथ लॉकअप में अमानवीय सुलूक करना आदि। स्थिति यहाँ तक है कोई पुलिस अफसर सादे कपड़े में किसी थाने में पहुंच जाए, तो उसके मन में भी उसके साथ बदतमीजी न हो इसकी आशंका बनी रहती है |सर्वोच्च न्यायालय का देश भर के पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी लगाने का निर्देश दिया, पुलिस सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है । बशर्ते इस पर ईमानदारी से अमल हो | ये कैमरे पुलिस स्टेशन के तमाम आम और खास जगहों पर लगाए जाने के आदेश दिए गये हैं |इतना ही नहीं, अदालत ने यह भी कहा है कि इन कैमरों की रिकॉर्डिंग १८  महीनो...

उच्च शिक्षा स्वभाषाओं में ?

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शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने आज घोषणा की है कि उनका मंत्रालय उच्च शिक्षा में भारतीय भाषा के माध्यम को लाने की कोशिश करेगा। बच्चों की शिक्षा भारतीय भाषाओं या मातृभाषाओं के माध्यम से हो, यह तो नई शिक्षा-नीति में कहा गया है और कोठारी आयोग की रपट में भी इस नीति पर जोर दिया गया था। 1967 में इंदिरा सरकार के शिक्षा मंत्रियों डाॅ. त्रिगुण सेन, श्री भागवत झा आजाद और प्रो. शेरसिंह तथा बाद में डाॅ. मुरली मनोहर जोशी ने भी शिक्षा में भारतीय भाषाओं को बढ़ाने की भरपूर कोशिश की थी लेकिन हमारी सरकारें, चाहे वे भाजपा या कांग्रेस या जनता दल की हों, शिक्षा का भारतीय भाषाकरण करने में विफल क्यों रही हैं ? इसलिए विफल रही हैं कि उन्हें बाल तो सिर पर उगाने थे लेकिन वे मालिश पांव पर करती रहीं। पांव पर मालिश याने बच्चों को मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाना तो अच्छा है लेकिन वे ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते हैं, अंग्रेज...

अपनी मौत के फरमान पर खुद के दस्तखत

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पूरा भारत भाषा भूषा भोजन व्यवहार से अलग-अलग जोन में बांटा जा सकता है |हर जोन की अपनी मिट्टी, मौसमों का क्रम और जैव विविधता अलग होने से मानव का व्यवहार भी पृथक है । बदलते परिवेश के कारण  कुछ जरूरी, नए पेड़ों की प्रजातियां जो अलग- अलग प्रवासी कबीले परदेस से अपने साथ कुछ नया लाते गये | जिससे भारत विविधता का एक समूह बन गया | इस समय उत्तर भारत के मैदानों में हवा का प्रदूषण अपने चरम पर जा रहा है। सांस लेना दूभर, आंखों में तकलीफ, छोटे बच्चे और दमे के मरीजों हालत हमेशा की तरह खराब हो रही है। सरकारी दबाव और स्व नियंत्रण से इस बार दीपावली पर पटाखे चलाना कम हुआ, पर प्रदूषण के स्रोत उससे कहीं बड़े और गहरे  हैं। अफसोस कि वे सीधे उस सरकारी विकास के खाके से जुड़ी हुई हैं जो हर माल के अतिरिक्त उत्पादन और गैर जरूरी खपत से जुड़ा हुआ है। खेती भी उसके दायरे में आ गई और अस्वस्थ हुई है। गुजरात और राजस्थान में...

अनियोजित शहरीकरण एवं गांवों की उपेक्षा के खतरे

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कोरोना की उत्तरकालीन व्यवस्थाओं पर चिन्तन करते हुए बढ़ते पर्यावरण एवं प्रकृति विनाश को नियंत्रित करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए, इसके लिये बढ़ते शहरीकरण को रोकना एवं गांव आधारित जीवनशैली को बल देना होगा। भले ही शहरीकरण को आर्थिक और सामाजिक वृद्धि का सूचक माना जाता है। लेकिन अनियंत्रित शहरीकरण बड़ी समस्या बन रहा है। भारत में तो शहरीकरण ने अनेक समस्याएं खड़ी कर दी हैं, आम जनजीवन न केवल स्वास्थ्य बल्कि जीवनमूल्यों की दृष्टि से जटिल होता जा रहा है। आर्थिक विकास भी इसी कारण असंतुलित हो रहा है। ऐसे में जब कोरोना जैसे अभूतपूर्व संकट के दौरान बेतरतीब जीवनशैली से भरे शहर अचानक डराने लगे तब हमारे गांवों ने ही शहरी लोगों पनाह दी। इसलिए यह आवश्यक है कि ऐसी योजनाएं बनाई जाएं जिससे गांवों में शहरों जैसी सुविधाएं उपलब्ध हो सकें ताकि शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों को ह...
एमएसपी की जगह किसान को अगर अपनी फसल का मनमाना दाम चाहिए तो उनको ये काम करने पड़ेंगे

एमएसपी की जगह किसान को अगर अपनी फसल का मनमाना दाम चाहिए तो उनको ये काम करने पड़ेंगे

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१) सामान्यतः देश को जितनी आवश्यकता है उससे दोगुना अनाज उगाया जा रहा है। ऐसे में अनाज गोदामों में सड़ता है व शराब बनाने वाली कम्पनियाँ उनको सस्ते में ख़रीद लेती हैं। बेहतर हो कि किसान कम मात्रा में उगाए किंतु अच्छी गुणवत्ता का अनाज उगाए व ज़ेविक कृषि की ओर बढ़े तो उसको अपनी फसल के दाम मनचाहे मिलने शुरू हो जाएँगे। क्योंकि ऐसे अनाज की माँग अधिक होगी व आपूर्ति काम तो दाम बढ़ेंगे। २) किसान देश में मांसाहार पर प्रतिबंध लगाने अथवा सीमित करने की माँग करे क्योंकि इसके कारण लोग अनाज कम खाते हैं व किसान का अनाज सस्ते में बिकता है। मांसाहार पर प्रतिबंध लगने से अनाज की माँग बढ़ जाएगी व दाम भी। ३) किसान नक़दी फसलें, फल व सब्ज़ी का उत्पादन बढ़ाए जो उसको अतिरिक्त आमदनी करवाएँगे। इसके साथ ही पूर्व की तरह गाय , भेंस आदि दूध देने वाले पशुओं का पालन पुन शुरू करें जो उनकी सेहत भी सुधरेगा और आमदनी भी। ४) छोट...

डीआरडीओ की ‘क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल’ का सफल परीक्षण

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नई दिल्ली, 19 नवंबर (इंडिया साइंस वायर): देश के रक्षा तंत्र की मजबूती और शक्ति संतुलन के लिए अत्याधुनिक आयुध संसाधनों का विकास वर्तमान समय की एक आवश्यकता है। वैश्विक व्यवस्था में आते सतत् बदलावों के बीच यह महत्वपूर्ण है कि भारत रक्षा-आयुध के क्षेत्र में अपनी आत्मनिर्भरता बढ़ाए। रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के वैज्ञानिक निरंतर इस दिशा में कार्य कर रहे हैं। एक ताजा घटनाक्रम में डीआरडीओ के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ‘क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल’ (क्यूआरएसएएम) प्रणाली का सफल उड़ान परीक्षण किया गया है। यह परीक्षण ओडिशा तट पर एकीकृत परीक्षण रेंज, चांदीपुर से किया गया है। परीक्षण के दौरान ‘क्विक रिएक्शन सरफेस टू एयर मिसाइल’ (क्यूआरएसएएम) प्रणाली ने हवाई लक्ष्य का सटीक रूप से पता लगाया और सफलतापूर्वक उस लक्ष्य को निर्धारित समय में मार ग...

A treatment for ‘Retinitis Pigmentosa’ could be in the offing

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New Delhi, Nov 19 (India Science Wire): In a significant development in the area of ophthalmology, a team of New Delhi-based researchers has come out with a finding that shows the possibility for a cure for the progressively irreversible retinal degenerative disease which causes partial or complete blindness. Presently, there is no cure for the disease. Current modules of treatment offer only symptomatic relief. Some recent studies across the world have shown that cell therapy could be of help. However, it is difficult to find an accessible and abundant source of stem cells using minimally invasive techniques for this purpose. Besides, there is a lot of safety and ethical issues surrounding the use of stem cells. Scientists have been toying with the alternative idea of using monoc...