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Tag: न्यायपालिका में भ्रष्टाचार कोई नई बात नहीं

पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी

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पाक के खिलाफ कूटनीतिक एवं रणनीतिक दबाव जरूरी-ललित गर्ग- पाकिस्तान की पहचान एक ऐसे देश के रूप में है जो कमजोर है, असफल है, कर्ज में डूबा है, अपने नागरिकों के हितों की रक्षा करने में नाकाम है, आतंक की नर्सरी एवं प्रयोगशाला है, ढहती अर्थव्यवस्था है, इन बड़ी नाकामियों को ढ़कने के लिये ही वह कश्मीर का राग अलापता रहा है, वहां के नेता एवं सैन्य अधिकारी तमाम जर्जरताओं एवं निराशाओं के बावजूद आज भी हिन्दू और भारत विरोध को ढ़ाल बनाकर ही अपनी सत्ता मजबूत करते रहे हैं। लेकिन अब उसका चेहरा इतना बदनुमा बन गया है कि उसने धर्म के नाम पर निर्दोष एवं बेगुनाह लोगों का खून बहाना शुरु कर दिया है। भारत ही नहीं, दुनिया में आतंक को फैलाने में अपनी जमीन, संसाधन एवं ताकत का प्रयोग खुलेआम करना शुरु कर दिया है, यह उसकी बौखलाहट ही है, यह उसकी निराशा ही है, यह उसकी विकृत सोच ही है। इस घिनौनी सोच का पर्दापाश पहलगाम क...
पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू

पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू

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पहलगाम : अब भारत की पारी शुरू पहलगाम का आतंकी हमला हताशा में किया गया एक ऐसा कुकृत्य है, जिस पर हमेशा की तरह सुई पाकिस्तान की तरफ घूमती है। खुद आतंकवाद का दंश झेल रहा एक देश सरकारी और तैयार आतंकियों के जरिये भारत को बार-बार गहरे जख्म देने की नापाक नीति पर चल रहा है। पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित लश्कर-ए-तैयबा के एक संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट ने पर्यटकों पर हुए इस कायरतापूर्ण हमले की जिम्मेदारी ली है। इस दुखद घटना ने वर्ष 2008 में दुस्साहसपूर्ण ढंग से मुंबई और भारत को हिलाकर रख देने वाले लश्कर-ए-तैयबा द्वारा रचे गए नरसंहार की याद दिला दी है। यह महज संयोग नहीं कि यह हमला 26/11 के आरोपी तहव्वुर राणा के भारत प्रत्यर्पण और पाक सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर के भारत विरोधी बयान के बीच हुआ है। मुनीर ने पिछले हफ्ते ही कश्मीर को अपने देश की ‘गले की नस’ बताकर 22 अप्रैल के हमले की भयावहता की जमीन तैया...
“डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें”

“डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें”

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"डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें" -डॉ. सत्यवान सौरभ "क्लासरूम से कॉर्पोरेट तक: उच्च शिक्षा और उद्योग के बीच की दूरी""डिग्री से दक्षता तक: शिक्षा प्रणाली को उद्योग से जोड़ने की चुनौती""डिग्री नहीं, दक्षता चाहिए: नई अर्थव्यवस्था की नई ज़रूरतें""कुशल भारत की कुंजी: उद्योग अनुरूप विश्वविद्यालय शिक्षा" वर्तमान में, उच्च शिक्षा प्रणाली उद्योग की तेजी से बदलती आवश्यकताओं से मेल नहीं खाती, जिसके परिणामस्वरूप अधिकांश स्नातक रोजगार के लिए अपर्याप्त होते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, केवल 45.9% स्नातक ही रोजगार योग्य हैं, जबकि तकनीकी क्षेत्र में भी यह आंकड़ा बहुत कम है। विश्वविद्यालयों को अपने पाठ्यक्रमों को नियमित रूप से उद्योग के विशेषज्ञों से समीक्षा कराना चाहिए, ताकि छात्रों को भविष्य की नौकरी के लिए तैयार किया जा सके। इसके अलावा, शिक्षा में मानवीय मूल्यों, सॉफ्ट स...
उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय 

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उपराष्ट्रपति बनाम उच्चतम न्यायालय  उप राष्ट्रपति जी ने सुप्रीम कोर्ट को बहुत कायदे से धोया है.. पूरा पढ़िए और समझिए कि कैसे उनको उनकी औक़ात दिखाई। 1. "आप राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते!" – राष्ट्रपति देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है, कोई अदालत का क्लर्क नहीं। 2. "अनुच्छेद 145(3) कहता है – संवैधानिक व्याख्या के लिए कम-से-कम 5 जज!" – फिर यह तीन जजों की फौज संविधान पर भाषण क्यों दे रही है? 3. "राष्ट्रपति को परमादेश देना सीधे-सीधे संविधान का अपमान है!" – क्या अब जज राष्ट्रपति से ऊपर हो गए? 4. "अनुच्छेद 142 अब 24×7 परमाणु मिसाइल बन गया है!" – हर चीज़ में 142 लगाओ और फैसला सुना दो, यही नया खेल है क्या? सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति और राज्यपालों को बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय किये जाने पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने नाराजगी जताई है. उन्होंने कहा कि हम ऐसी स्थिति...
देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए

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देश की नवीन प्रतिभाओं के लिए नीति बनाइए आँकड़े सामने है कि बीते साल विदेश जाने वाले छात्रों की संख्या में 25 प्रतिशत की कमी आई है। इसमें भी अमेरिका जाने वाले छात्रों की संख्या में 36 और कनाडा जाने वाले छात्रों की संख्या में 34 प्रतिशत की कमी आई है। यही स्थिति ब्रिटेन की भी है। आंकड़े वर्ष 2024 के हैं। निश्चित तौर पर जब ट्रंप काल में उखाड़-पछाड़ के दौर के आंकड़े सामने आएंगे, तो वे ज्यादा चौंकाने वाले होंगे। एक समय था कि छात्रों में परदेस जाकर पढ़ाई करने का जुनून उफान पर था। हर साल मां-बाप खून-पसीने की कमाई से और अपना पेट काटकर बच्चों को पढ़ने के लिये विदेश भेज रहे थे। कहीं-कहीं तो खेत बेचकर और घर गिरवी रखकर बच्चों को विदेश पढ़ाने के लिए भेजने के मामले भी प्रकाश में आए। देश में बैंकों से एजुकेशन लोन मिलने की सुविधा ने भी छात्रों की विदेश यात्रा को सुगम बनाया। हर साल लाखों छात्र...
भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज

भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज

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भगवान महावीर: भारतीय संस्कृति का सूरज-ललित गर्ग- प्रत्येक वर्ष हम भगवान महावीर की जन्म-जयन्ती मनाते हैं। महावीर जयन्ती मनाने का अर्थ है महावीर के उपदेशों को जीवन में धारण करने के लिये संकल्पित होना, महावीर बनने की तैयारी करते हुए देश एवं दुनिया में अहिंसा, शांति, करूणा, प्रेम, सह-जीवन को साकार करना। शांतिपपूर्ण, उन्नत एवं संतुलित समाज निर्माण के लिए जरूरी है महावीर के बताये मार्ग पर चलना। सफल एवं सार्थक जीवन के लिये महावीर-सी गुणात्मकता को जन-जन में स्थापित करना। कोरा उपदेश तक महावीर को सीमित न बनाएं, बल्कि महावीर को जीवन का हिस्सा बनाएं, जीवन में ढालें। भगवान महावीर एक युग प्रवर्तक, कालजयी महापुरुष थे। उन्होंने एक क्रांति द्रष्टा के रूप में मानवजाति के हृदय में नवीन चेतना का संचार अपने जीवन-अनुभवों, उपदेशों, शिक्षा और सिद्धांतों के द्वारा किया। भगवान महावीर सामाजिक क्रांति के शिखर पुर...
जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम

जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम

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जजों की संपत्ति का प्रकटीकरण पारदर्शिता की ओर कदम-ललित गर्ग- न्यायपालिका पर जनता का भरोसा लोकतंत्र का अहम आधार है। न्यायिक प्रणाली में किसी संदेह की गुंजाइश नहीं रहे, इसके लिये न्यायपालिका में अधिक पारदर्शिता, जबावदेही एवं निष्पक्षता की जरूरत है, इसके लिये सर्वोच्च न्यायालय से निचली अदालतों तक के न्यायाधीशों को संपत्ति सार्वजनिक करने जैसे कदम उठाए जाने की अपेक्षा आजादी के अमृतकाल में तीव्रता से की जा रही थी, ताकि न्यायपालिका की पारदर्शिता को लेकर उठने वाले संदेह दूर हो सकें, यह मुद्दा जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कथित तौर पर जली हुई नोटों की गड्डी मिलने जैसी घटनाओं और उनसे उपजे विवादों के बाद गंभीर सार्वजनिक विमर्श का बन गया था। जनचर्चाओं एवं आदर्श राष्ट्र-निर्माण की अपेक्षाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा सार्वजनिक करने पर जो सहमति जताई है, वह सही दिशा...
वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्ति

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वक्फ़ के आतंक और लूट से मिली गरीब मुसलमानों को मुक्तिमृत्युंजय दीक्षितस्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संसदीय इतिहास में हुई सबसे लंबी बहस के बाद ऐतिहासिक वक्फ़ संशोधन विधेयक -2025 पारित हुआ, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और अधिसूचना जारी होने के बाद अब यह कानून बन चुका है। कुछ लोग इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं जहाँ केंद्र सरकार ने एक कैविएट दाखिल करते हुए कहा है कि बिना उसकी बात सुने कोर्ट कोई फैसला न सुनाए। वक्फ़ संशोधन कानून बन जाने के बाद भी उस पर पक्ष और विपक्ष की राजनीति का दौर जारी है। संसद में बहस व संसदीय गणित में हार जाने के बाद मुस्लिम तुष्टिकरण में संलिप्त ऐसे -ऐसे संगठन याचिकाएं लेकर जा रहे हैं जो राष्ट्रद्रोह के अंतर्गत प्रतिबंधित हैं या उनके खिलाफ राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के तहत मुकदमे चल रहे हैं। यह समाचार पुष्ट होने के साथ ही कि सरकार संसद के बजट सत्र में ही वक्फ़ विधेयक पारित...
जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट

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प्रियंका सौरभ जंगलों पर छाया इंसानों का आतंक: एक अनदेखा संकट हाल ही में एक प्रमुख अखबार की हेडलाइन ने ध्यान खींचा—“शहर में बंदरों और कुत्तों का आतंक।” यह वाक्य पढ़ते ही एक गहरी असहजता महसूस हुई। शायद इसलिए नहीं कि खबर गलत थी, बल्कि इसलिए कि वह अधूरी थी। सवाल यह नहीं है कि जानवर शहरों में क्यों आ गए, बल्कि यह है कि वे जंगलों से क्यों चले आए? हम जिस "आतंक" की बात कर रहे हैं, वह वास्तव में प्रकृति का प्रतिवाद है—उस दोहरी मार का नतीजा जो हमने जंगलों और वन्यजीवों पर एक लंबे अरसे से चलाया है। विकास के नाम पर हमने जंगलों को काटा, नदियों को मोड़ा, और पहाड़ों को तोड़ा। वन्यजीवों के लिए न तो रहने की जगह छोड़ी, न भोजन का साधन। जब उनका प्राकृतिक निवास उजड़ गया, तब वे हमारी बस्तियों की ओर बढ़े। और अब, जब वे हमारी छतों, गलियों और पार्कों में दिखते हैं, तो हम उन्हें ‘आतंकी’ करार देते हैं। यह नजरिय...
इतनी हिंसा – कारण?

इतनी हिंसा – कारण?

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इतनी हिंसा – कारण? राकेश दुबे देश में बढ़ती भौतिक विलासिता की चकाचौंध और सोशल मीडिया का जिंदगी में बढ़ता दखल, पारिवारिक-सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर रहा है। संबंधों में तकरार और फिर नृशंस तरीके से हत्या जैसे मामलों ने देश को झकझोर कर रख दिया है। मेरठ की मुस्कान ने अपने प्रेमी साहिल के साथ मिलकर अपने पति सौरभ राजपूत की हत्या कर दी। ऐसे ही मुजफ्फरनगर की पिंकी ने अपने आशिक के लिए अपने पति अनुज को जहर पिलाकर मार दिया। रिश्तों में हत्या का ऐसा ही प्रकरण बेंगलुरू में देखने को मिला, वहां के हुलीमावु क्षेत्र में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी की हत्या करके उसकी बॉडी को सूटकेस में भर दिया। देश के अलग-अलग शहरों में हो रही ऐसी हत्याओं ने देश की जनता को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया। आखिर यह सिलसिला कहां जकर थमेगा? इन घटनाओं ने सोचने-समझने के लिए मजबूर कर दिया है कि आखिर यह देश किस दिशा...