
बिना ठोस वायदों का चुनाव
5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में इस बार कई नई नई बातें दिख रही हैं। मसलन चुनाव को कम खर्चे वाला बनाने की कोशिशों को देखें तो दिखने में तो धूमधाम जरूर कम हो गई लेकिन प्रशिक्षित चुनाव प्रबंधन एजंसियों पर खर्चा इतना बढ़ गया कि इस मामलेे में हालत पहले से ज्यादा खराब है। होर्डिंग बैनर और गली गली में लाउडस्पीकर से प्रचार इस बार कम नजर आता है। लेकिन चुनाव प्रबंधकों के नियुक्त मानव संसाधनों की भरमार दिखने लगी है। कुछ राजनीतिक दलों के वास्तविक कार्यकर्ताओं में तो इसी बात को लेकर बेचैनी है। ये कार्यकर्ता वर्षों और महीनों से पार्टी के प्रचार में इसीलिए लगे रहते हैं कि चुनाव के दौरान उन्हें काम मिलेगा। अब उन्हें सिर्फ चुनाव सभाओं में भीड़ जमा करने का काम मिलता है और वो भी अपनी पार्टी के नेताओं की तरफ से नहीं बल्कि चुनाव प्रबंधन कंपनियों के मैनेजरों के जरिए।
चुनावी खर्चे के बाद दूसरी नई बात यह है क...