Shadow

धर्म

शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

addtop, EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
भगवान शिव उत्पत्ति,स्थिति तथा संहार के देवता हैं। फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि के दिन स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर भक्त यदि ‘‘नमःशिवाय’’ इस पंचाक्षर मंत्र का जाप अनवरत करता है तो उसे उत्तम फल की प्राप्ति होती है। वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर मोक्ष ग्रहण कर लेता है। नारायण जब मायारूपी शरीर धारण कर समुद्र में शयन करते हैं तो उनके नाभि -कमल से पंचमुख ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और वे सृष्टि निर्माण की प्रार्थना करते हैं। भगवान ने पाँच मुखों से पाँच अक्षरों का उच्चारण किया यही शिव वाचक पंचाक्षर मंत्र है। इसके प्रारंभ में ऊँ लगा देने से यह षड़ाक्षर हो गया है। यह मोक्ष, ज्ञान का सबसे उत्तम साधन है। शिव नाम की महिमा अनन्त है। सामान्य मनुष्य तो इनकी महिमा का गुणगान करने में असमर्थ है ही माँ भगवती सरस्वती भी भगवान के गुणों का वर्णन करने में असमर्थ प्रतीत होती है। श्री पुष्पदन्ताचार्य ने शि...
भगवान श्रीकृष्ण की उपासना एवं उसका शास्त्रीय आधार

भगवान श्रीकृष्ण की उपासना एवं उसका शास्त्रीय आधार

धर्म
सारणी १. श्रीकृष्णजन्माष्टमीकी तिथिका महत्त्व २. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन आकाशमें रंगोंके माध्यमसे श्रीकृष्णके विराट रूपके दर्शन होनेकी अनुभूति होना ३. श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनानेकी पद्धति ४. श्रीकृष्णजन्माष्टमी उत्सव ५. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत ६. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतसंबंधी उपवास ७. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन की जानेवाली पूजाकी विधि ८. पूजाका पूर्वायोजन ९. श्रीकृष्णकी पूजाविधिमें अंतर्भूत कृत्योंका शास्त्राधार १. श्रीकृष्णजन्माष्टमी की तिथि का महत्त्व         भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं । उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दोंमें व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियोंके लिए असंभवसी बात है । महाभारत, हरिवंश एवं भागवत अनुसार निश्चित की गई कालगणनाके अनुसार, ईसापूर्व ३१८५ वर्षमें, श्रावण कृष्ण अष्टमीकी मध्यरात्रि, रोहिणी नक्षत्रमें भगवान श्रीकृष्णका जन...
वर्ण व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था

धर्म
र्ण व्यवस्था के तहत ब्राह्मण यानि मेधा शक्ति, क्षत्रिय यानि रक्षा शक्ति, वैश्य यानि वाणिज्य शक्ति, शूद्र यानि श्रम शक्ति थी | मेधाशक्ति, रक्षा शक्ति, वाणिज्य शक्ति तथा श्रम शक्ति एक दूसरे की समानंतर और पूरक व्यवस्थाएं थी | यदि पूरे विश्व में इससे कोई अलग व्यवस्था चल रही हो तो बताइए ? क्या कभी आपने विचार नहीं किया कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र जातियां नही वर्ण है ? और यदि जातियां हैं तो कब से हैं ? क्यों हैं ? कैसे हैं ? आश्चर्य है की ये कार्य कितने योजनाबद्ध तरीके से किया गया और ये अहसास भी नहीं होने पाया | मैं आप लोगों से पूछता हूँ ‪मनुस्मृति‬ में क्या इनको ‪जाति‬ लिखा गया है ? लेकिन H H Risley ने मनुस्मृति का हवाला देकर इनको 1901 में जाति बना दिया | दुर्भाग्य देखिए आज इसाइयों (अंग्रेजों) का षड्‍यंत्र ‪संविधान‬ का अंग है | वेदों में ‘शूद्र’ शब्द लगभग बीस बार आया है | ...
नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी

नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी

धर्म
*🥀रहस्यों की खान है,विशाल नाग पर्वत* *🥀शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि शनीउडियार* *🥀 सुग्रीव ने यही की मूलनारायणी की आराधना* *🥀मूलनारायण ने त्रिपुरासुन्दरी की तपस्या से प्राप्त की अलौकिक सिद्धियां* *🥀नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी* *राजेन्द्रपन्त'रमाकांत* चिटगल,गंगोलीहाट(पिथौरागढ़) त्रिपुरा देवी/सनीउडियार/हवनतोली/बेरीनाग/बागेश्वर।जनपद बागेश्वर का सनीउडियार आध्यात्म जगत में प्राचीन काल से ही काफी प्रसिद्ध है।कभी शाण्डिल ऋषि की तपस्या का केन्द्र रहा यह पावन क्षेत्रं आज आध्यात्मिक पहचान के लिए छटपटा रहा है।सनीउडियार का उडियार ही सनीउडियार की पहचान है।उडियार का तात्पर्य पर्वतीय भाषा में छोटी गुफा से है। शाडिल्य ऋषि की तपस्या का केन्द्र रही यह गुफा दुर्दशा का शिकार ही नही बल्कि गुमनाम है।कई स्थानीय वाशिदों को भी इस गुफा के बारे में ज...
पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी

पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी

धर्म
*🥀आया सावन झूम के भाग , *🥀हरेला पर्व व श्रावण.की शुभकामनाएं* *🥀जयजयजागेश्वर* *🥀पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी* राजेन्द्रपन्त‘रमाकान्त’ .हिमालय के पवित्र क्षेत्र में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव का परम कल्याणकारी धाम माना जाता है, भगवान शिव के पृथ्वी पर पिण्डी स्वरूप में अवतरित होने की घटना सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में घटी है। यह स्थान आदिकाल से पूज्यनीय रहा है। पृथ्वी की करुण गाथा व गहन वेदना को दूर करने के लिए ही सर्वप्रथम शिव इस वसुंधरा में जागेश्वर में ही प्रकट व अवतरित हुए। दारूकानन ;जागेश्वर क्षेत्र में भगवान शिव के प्रकट होने की कथा बड़ी रहस्यभरी है। यहीं से उन्होंने कैलाश खण्ड, केदारखण्ड, पातालखण्ड, काशीखण्ड, रेवाखण्ड, नागखण्ड सहित अनेकों रूपों में अपनी लीलाओं का विस्तार किया, यह समूचा क्षेत्र शिव का विचरण स्थल माना जाता है। यहां स्थित नागेश का ज्योतिर्लिंग...
अज़ान पर फिजूल की बहस

अज़ान पर फिजूल की बहस

धर्म
अज़ान को लेकर हमारे टीवी चैनलों और अखबारों में फिजूल की बयानबाजी हो रही है। यदि सिने-गायक सोनू निगम ने कह दिया कि सुबह-सुबह मस्जिदों से आनेवाली तेज आवाजें उन्हें तंग कर देती हैं और यह जबरिया धार्मिकता ठीक नहीं तो इसमें उन्होंने ऐसा क्या कह दिया कि उन्हें इस्लाम का दुश्मन करार दे दिया जाए और उन्हें गंजा करनेवाले को दस लाख रु. का इनाम देने की घोषणा कर दी जाए। क्या लाउडिस्पीकर पर जोर-जोर से चिल्लाना इस्लाम है? इस्लाम का जन्म हुआ तब कौनसे लाउडस्पीकर चल रहे थे? सच्ची प्रार्थना तो वही है, जो मन ही मन की जाती है। ईश्वर या अल्लाह बहरा नहीं है कि उसे कानफोड़ू आवाज़ में सुनाया जाए। शायद इसीलिए कबीर ने कहा है: कांकर-पाथर जोडि़ के मस्जिद लई चुनाय। ता चढि़ मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय।। माना कि अज़ान अल्लाह के लिए नहीं, उसके बंदों के लिए होती है याने ज़ोर-ज़ोर से आवाज इसीलिए लगाई जाती है कि सोते ह...
नियति एवं कर्मों  का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह

नियति एवं कर्मों का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया कलर्स टीवी चैनल पर रात 9 बजे ''शनै:-शनै: कर्म फल दाता शनिÓÓ का धरावाहिक-कई सीरियलों में से एक अलग ही प्रकार की अनूठी छाप छोडने वाला टीवी सीरियल हैं। हालांकि उक्त कथा पूर्णतया काल्पनिक कथा यात्रा पर टिकी हुई है। फिर भी उक्त कहानी के माध्यम से नियति एवं कर्मों का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह और कर्म फल एवं कर्म सन्तुलन का देवता शनि नागरिक समाज में एक जिज्ञासु प्रवृति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के कारण इस सीरियल को दर्शक देखे बिना नहीं रह सकते हैं। वर्तमान में यह अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है कि कैसे नियति को कर्म के माध्यम से बदला जा सकता है। धीरे - धीरे शनि ने क्योंकि शनि, देवों के देव महादेव का सृजन मात्र ही नहीं था, बल्कि यूं कहिए कि कर्म - ज्ञान और चेतना ना केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित था और हैं। उसके माध्य से व्यवहारिकता में उतानरने को प्रेरित करने...
एक अनूठा त्यौहार है अक्षय तृतीया

एक अनूठा त्यौहार है अक्षय तृतीया

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
गणि राजेन्द्र विजय - अक्षय तृतीया भारतीय संस्कृृति एवं परम्परा का एक अनूठा एवं इन्द्रधनुषी त्यौहार है। न केवल जैन परम्परा में बल्कि सनातन परम्परा में यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, इस त्यौहार के साथ-साथ एक अबूझा मांगलिक एवं शुभ दिन भी है, जब बिना किसी मुहूर्त के विवाह एवं मांगलिक कार्य किये जा सकते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक ढांचांे में ढली अक्षय तृतीया परम्पराओं के गुलाल से सराबोर है। रास्ते चाहे कितने ही भिन्न हों पर इस पर्व त्यौहार के प्रति सभी जाति, वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय और धर्मों का आदर-भाव अभिन्नता में एकता प्रिय संदेश दे रहा है। अक्षय तृतीया तप, त्याग और संयम का प्रतीक पर्व है। इसका सम्बन्ध आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव के युग और उनके कठोर तप से जुड़ा हुआ है। जैन इतिहास और परम्परा में चली आ रही वर्षीतप की साधना और प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ का पारणा निस्संदेह ढेर सारे तथ्यों को उद्घाटित...