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समस्याओं के अंधेरों में आत्म-निर्भरता का उजाला

समस्याओं के अंधेरों में आत्म-निर्भरता का उजाला

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भारत इस समय न केवल कोरोना महासंकट से जूझ रहा है, बल्कि सीमाओं पर बढ़ रही युद्ध की आशंकाओं, बढ़ती बेरोजगारी, अस्त-व्यस्त व्यापार, आसमान छूती महंगाई आदि चैतरफा समस्याओं से संघर्षरत है। इन्हीं समस्याओं का पूर्वानुमान लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की योजना प्रस्तुत की है, यही एक रास्ता है जो हमें इन और ऐसी तमाम समस्याओं से बचा सकता है। भारत जितना आर्थिक दृष्टि से ताकतवर बनेगा, उतना ही चीन, पाकिस्तान, नेपाल आदि आंख दिखाने एवं दादागिरी करने वाले राष्ट्रों को माकूल जबाव मिलेगा, वे निस्तेज होंगे और भारत की ओर आंख उठाने का दुस्साहस नहीं कर पायेंगे। बड़ी सचाई है कि भारत मजबूत है, संकटों से लड़ने की ताकत उसमें हैं। पाकिस्तान की नासमझी को छोड़ दे तो कोरोना महामारी से कराह रही मानवता को चीन एवं भारत से इस समय सर्वश्रेष्ठ अक्लमंदी की उम्मीद है। दोनों देश इस अपेक्षा को महसूस भी ...
मत बांटों सेना को प्रांत या मजहब के नाम पर

मत बांटों सेना को प्रांत या मजहब के नाम पर

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भारत-चीन के बीच हालिया निहत्थे संघर्ष में हमारे शूरवीरों ने दुश्मन सेना की कमर तोड़ी। उनके पराक्रम को पूरी दुनिया ने देखा। लद्दाख की गलवान घाटी में तक़रीबन 14 हजार फुट की ऊंचाई पर हुए संघर्ष में शहीद हुए भारतीय फ़ौजी बिहार रेजिमेंट के 16वीं बटालियन के थे। उनमें से ज्यादातर बिहार और झारखण्ड से थे। पर वे सभी देश की सीमाओं की रक्षा के लिए लड़ रहे थे। पर देखने में यह आ रहा है कि कुछ संकुचित मानसिकता के लोग बिहार रेजिमेंट का मतलब बिहार समझ रहे हैं। उन शूरवीरों पर तो सारे भारतवासियों को गर्व है। शहीद हुए योद्धा तो वैसे भी देश के अलग-अलग राज्यों से थे। बिहार रेजीमेंट को जो लोग बिहार से जोड़ रहे हैं, वे भारतीय सेना के अखिल भारतीय चरित्र के साथ घोर अन्याय कर रहे हैं। भारतीय सेना को धर्म,जातिया प्रांत से बांटने वालों को करारा जवाब देने की जरूरत है। इन्हें कौन बताए कि बिहार रेजीमेंट में सिर्फ बिहारी ...
राष्ट्रधर्म के जुझारु कर्मयोद्धा थे डॉ. मुखर्जी

राष्ट्रधर्म के जुझारु कर्मयोद्धा थे डॉ. मुखर्जी

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  डॉश्यामाप्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि मंगलवार -23 जून, 2020 भारतीय जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सच्चे अर्थों में मानवता के उपासक, राष्ट्रीयता के समर्थक और सिद्धान्तवादी थे। जब कभी भारत की एकता, अखण्डता एवं राष्ट्रीयता की बात होगी तब-तब डॉ॰ मुखर्जी द्वारा राष्ट्रजीवन में किये गए योगदान की चर्चा अवश्य होगी। डॉ॰ मुखर्जी जम्मू कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आजम) अर्थात् प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ॰ मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। ...
चीन छेड़ेगा तो भारत इसबार छोड़ेगा नहीं

चीन छेड़ेगा तो भारत इसबार छोड़ेगा नहीं

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भारत-चीन के बीच गलवान घाटी में हुई तीखी खूनी झड़प के बाद चीन को अब समझ में आ गया है कि अब उसका पाला 2020 के नये भारत से पड़ा है। भारत अपनी एक-एक इंच भूमि के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार है। भारत के 20 शूरवीर शहीद अवश्य हुए पर चीनी सैनिकों के हमले के बाद तत्काल जवाबी कारवाई में उन्होंने चीन को भारी क्षति पहुंचाई। 43 से अधिक चीनी जवान उनके कमांडिंग ऑफिसर समेत मारे गए। झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतिक्रिया को ध्यान से देखने और समझने की जरूरत है । बड़े ठंढे दिमाग से नपे-तुले शब्दों में उन्होंने कहा कि भारतीय सैनिकों की शहादत बेकार नहीं जाएगी। भारतीय सैनिक मारते हुए मरे हैं। यानी प्रधानमंत्री का कहना था कि केवल भारतीय सैनिकों का ही नुक़सान नहीं हुआ है। उनके वक्तव्य को समझने की जरूरत है। संदेश साफ दे दिया गया है कि अब भारत किसी हालत में 1962 की तरह पीछे नहीं हटेगा। चीन की द...
लॉकडाउन में शिक्षा: अवसर और चुनौतियां

लॉकडाउन में शिक्षा: अवसर और चुनौतियां

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मार्च के दूसरे सप्ताह में, देश भर की राज्य सरकारों ने कोरोनवायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक उपाय के रूप में स्कूलों और कॉलेजों को अस्थायी रूप से बंद करना शुरू कर दिया था। आज दो महीने के बाद भी कोई निश्चितता नहीं है कि स्कूल फिर से कब खुलेंगे। स्पष्ट है कि वर्तमान शैक्षिक सत्र पारंपरिक रूप से स्थापित मानदंडों के आधार पर पूरा नहीं किया जा सकता है तब नीति नियंताओं ने इसके दूरगामी असर का अनुमान लगा लिया था और वैकल्पिक मॉडल पर काफी पहले कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। आज अध्ययन एवं अध्यापन के डिजिटल स्वरूप को मान्यता प्रदान की गई है। कक्षा में आमने-सामने के संप्रेषण का स्थान इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप आदि पर आभासी कक्षाओं ने ले ली है। जूम, सिसको वेब एक्स, गूगल क्लासरूम, टीसीएस आयन डिजिटल क्लासरूम आदि ने लोकप्रियता के आधार पर शिक्षा जगत में अपना-अपना स्थान बनाना प्रारंभ कर दिया है। शिक्षा क्षेत...
तनातनी के माहौल में भारत की भूमिका

तनातनी के माहौल में भारत की भूमिका

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महामारी को लेकर अमेरिका, चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन के बीच चल रही जुबानी जंग में हर रोज कुछ न कुछ नया शामिल जो जाता है. इस लड़ाई को आगे बढ़ाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख को एक चेतावनी भरा पत्र लिखा, लेकिन इसका जवाब उन्हें चीन की तरफ से मिला. चीनी विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के पत्र को ‘संकेतों, शायद, किंतु-परंतु’ से भरा हुआ बताया और यह भी कहा कि अमेरिका जनता को गुमराह करने के लिए इस तरह के हथकंडे अपना रहा है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने डोनाल्ड ट्रंप के पत्र पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘अमेरिका अपनी जिम्मेदारी को सीमित करने और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रति अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों पर सौदेबाजी के लिए चीन को मुद्दा बना रहा है. लेकिन अमेरिका ने गलत लक्ष्य चुना है’. कोरोना महामारी ने अमेरिका में काफी कहर बरपाया है. 90,000 से अधिक...
धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

धर्म स्थलों का धन क्या विकास में लगे?

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जब से कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ है तब से अपनी जान बचाने के अलावा दूसरा सबसे महत्वपूर्ण चर्चा का विषय वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर है। हर आदमी खासकर व्यापारी, कारखानेदार और मजदूर अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। अर्थव्यवस्था के इस तेजी से पिछड़ जाने के कारण प्रधान मंत्री और मुख्यमंत्रीगण तक सार्वजनिक रूप से आर्थिक तंगी, वेतन में कटौती, सरकारी खर्च में फिजूल खर्च रोकना और जनता से दान देने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में सबका ध्यान भारत के धर्म स्थलों में जमा अकूत दौलत की तरफ भी गया है। बार-बार यह बात उठाई जा रही है कि इस धन को धर्म स्थलों से वसूल कर समाज कल्याण के या विकास कार्यों में लगाया जाए। आरोप लगाया जा रहा है कि भारी मात्रा में जमा यह धन, निष्क्रिय पड़ा है। या इसका दुरुपयोग हो रहा है। कुछ सीमा तक उपरोक्त आरोप में दम हो सकता है। पर इस धन को सरकारी तंत्र के हाथ में दिए जाने के बहुतसे लोग श...
देश कब समझेगा रील और ऱीयल दुनिया के नायकों का अंतर

देश कब समझेगा रील और ऱीयल दुनिया के नायकों का अंतर

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  अभी हाल ही में देश के दो रीयल और रील लाइफ के नायकों के संसार से विदा होने पर जिस तरह की प्रतिक्रिया देश में देखने को मिलीं वह सबकों हैरान करने वाली थी। पहले सशक्त अभिनेता और पीकू, लंच बॉक्स, पान सिंह तोमर जैसी बेहतरीन फिल्मों में अपने यादगार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले इरफान खान और उसके बाद राज कपूर के छोटे बेटे ऋषि कपूर की मृत्यु पर देश में जिस तरह की शोक की लहर उमड़ी वह निश्चित रूप से अभूतपूर्व और अप्रत्याशित मानी जाएगी ऋषि कपूर ने अपने लगभग आधी सदी लंबे फिल्मी सफर में बॉबी, मुल्क,  लैला-मजनूं जैसी दर्जनों उम्दा फिल्मों में नायक का रोल निभाया । हालांकि वे बीच-बीच में अपने कुछ विवादास्पद बयानों के कारण खबरों में भी आ जाते थे। तो भी यह तो  मानना ही होगा कि वे एक लोकप्रिय सितारें थे। पर इन दोनों के दिवंगत होने के फौरन बाद कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए सेन...
तबलीगी जमात की कालिमा को धोने के उपक्रम

तबलीगी जमात की कालिमा को धोने के उपक्रम

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कोरोना कहर से समूचा भारत संकट में है और इस संकट को तबलीगी जमात ने बढ़ा दिया, इसकी गलती से कोरोना संक्रमण पीड़ितों व मौतों की संख्या बढ़ी है। जमात के अमीर मौलाना साद की इस अक्षम्य गलती से न केवल संपूर्ण भारतीय मुस्लिम समाज को गंभीर संकट में डाला बल्कि साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आपसी सद्भावना की भारतीय सांझा-संस्कृति को भी धुंधलाया। जबकि देश का एक बड़ा मुस्लिम समुदाय इस संकट की घड़ी में देश के साथ खड़ा है, अपने-अपने स्तर पर सेवा, सहयोग एवं सहायता के उपक्रम कर रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने भी हाल ही में स्वीकार किया है कि मुस्लिम समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो सरकार के निर्देशों का पालन कर रहा है, जमात के लोगों की खोज करने में प्रशासन की मदद कर रहा हैं। उन्होंने मुस्लिम समाज में तबलीगी जमात के सदस्यों का विरोध होने की भी सराहना की। भारत का एक बड़ा मुस्लिम वर्ग कोरोना...