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जीवन शैली / फिल्में / टीवी

अव्वल आने की होड़ में छात्रों की आत्महत्याएं चिन्ताजनक

अव्वल आने की होड़ में छात्रों की आत्महत्याएं चिन्ताजनक

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अव्वल आने की होड़ में छात्रों की आत्महत्याएं चिन्ताजनक- ललित गर्ग - टॉपर संस्कृति के दबाव एवं अव्वल आने की होड़ में छात्रों के द्वारा तनाव, अवसाद, कुंठा में आत्महत्या कर लेना एक गंभीर समस्या है। यह दुर्भाग्यपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण है कि हमारी छात्र प्रतिभाएं आसमानी उम्मीदों, टॉपर संस्कृति के दबाव व शिक्षा तंत्र की विसंगतियों के चलते आत्मघात की शिकार हो रही हैं। हाल ही में लगातार हो रही छात्रों की दुखद मौतें जहां शिक्षा प्रणाली अतिश्योक्तिपूर्ण प्रतिस्पर्धा पर प्रश्न खड़े करती है, वहीं विचलित भी करती हैं। इनमें राजस्थान स्थित कोटा के नीट के परीक्षार्थी और मोहाली स्थित निजी विश्वविद्यालय में फोरेंसिक साइंस का एक छात्र शामिल था। पश्चिम बंगाल के आई आई टी खड़गपुर में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के तीसरे वर्ष के छात्र मोहम्मद आसिफ कमर का शव उनके हॉस्टल रूम में फंदे से लटका मिला। भुवनेश्वर के कीट म...
“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक इतिहास, एक याद”

“प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक इतिहास, एक याद”

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"प्रेस स्वतंत्रता दिवस: एक इतिहास, एक याद" – प्रियंका सौरभ प्रेस की चुप्पी, रीलों का शोर: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ट्रेंडिंग टैग बन गया। प्रेस स्वतंत्रता दिवस अब औपचारिकता बनकर रह गया है। पत्रकारिता की जगह अब सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स ने ले ली है, जहां सच्चाई की जगह रीलें, और विश्लेषण की जगह व्यूज़ ने कब्जा कर लिया है। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब ब्रांड डील्स और ट्रेंडिंग टैग्स में गुम हो गया है। सवाल पूछना अब खतरा है, और चुप रहना 'सेफ कंटेंट'। आने वाले समय में शायद हमें #ThrowbackToJournalism ट्रेंड करना पड़े। जब प्रेस बोलती थी, और सत्ता थर्राती थी। हर साल 3 मई को जब ‘प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ आता है, तो एक गहरी चुप्पी के साथ यह सवाल भी उठता है कि क्या अब भी पत्रकारिता वाकई स्वतंत्र है? क्या यह दिन अब भी उस निडरता, जिम्मेदारी और सच्चाई का प्रतीक है, जिसे किसी ज़माने में पत्रकारि...
“मैनेजमेंट के मखमली पर्दे के पीछे दम तोड़ती पत्रकारिता”

“मैनेजमेंट के मखमली पर्दे के पीछे दम तोड़ती पत्रकारिता”

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"मैनेजमेंट के मखमली पर्दे के पीछे दम तोड़ती पत्रकारिता" डॉ सत्यवान सौरभ "PR मैनेजमेंट के चंगुल में फंसा आज का कलमकार, मैनेजर जी रहे लग्जरी लाइफ, पत्रकार टूटी बाइक पर" आज की पत्रकारिता एक गहरे संकट से गुजर रही है, जहाँ कलमकार हाशिए पर हैं और PR मैनेजमेंट का बोलबाला है। पत्रकार, जो कभी सच की आवाज थे, अब टूटी बाइक पर सवार होकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, जबकि मैनेजरों की ज़िंदगी लग्जरी में डूबी है। मीडिया संस्थान अब व्यवसायिक लाभ के लिए सच्ची खबरों को नजरअंदाज कर रहे हैं। यह लेख उसी विडंबना को उजागर करता है—जहाँ पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं, बल्कि एक स्क्रिप्टेड तमाशा बनती जा रही है। क्या सच की जगह अब सिर्फ छवि का मैनेजमेंट रह गया है? आजकल के मीडिया और पत्रकारिता के परिवेश में जिस तरह से व्यावसायिकता, ब्रांडेड कंटेंट और PR मैनेजमेंट की छाया बढ़ी है, वह पत्रक...
ऐतिहासिक निर्णय है जातिगत जनगणना

ऐतिहासिक निर्णय है जातिगत जनगणना

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ऐतिहासिक निर्णय है जातिगत जनगणनामृत्युंजय दीक्षितजम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछकर किये गये हिन्दू नरसंहार के बाद जनमानस में उपजे आक्रोष और पाकिस्तान पर कार्यवाही की प्रतीक्षा कर रहा आम जनमानस तथा राजनैतिक दल उस समय हैरान रह गए जब केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का बड़ा निर्णय सुनाया। केंद्र सरकार का यह निर्णय आते ही देश का राजनैतिक विमर्श जातिगत जनगणना पर केन्द्रित हो गया। आमजन यद्यपि यह सोच रहा है कि इस समय जब हम आतंकवादियों के शवों की प्रतीक्षा कर रहे हैं उस समय प्रधानमंत्री जी को ये क्या सूझ पड़ी, किन्तु आश्वस्त है कि प्रधानमंत्री जी ने ऐसा किया है तो अवश्य इसके पीछे कुछ रणनीति होगी। उधर कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन इसे अपनी विजय बताकर प्रसन्नता व्यक्त कर रहा है। कांग्रेस तो इतनी आतुर हो गई कि उसने सोशल मीडिया पर, “सरकार उनकी, सिस्टम हमारा” कैप्शन के ...
टीवी पर लाहौर जीत लिया, ज़मीन पर आँसू बहा दिए

टीवी पर लाहौर जीत लिया, ज़मीन पर आँसू बहा दिए

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टीवी पर लाहौर जीत लिया, ज़मीन पर आँसू बहा दिए— जब राष्ट्रवाद स्क्रीन पर चमकता है और असली ज़िंदगी में धुंधला पड़ जाता है। - प्रियंका सौरभ न्यूज़ चैनल राष्ट्रवाद को एक स्क्रिप्टेड तमाशे की तरह पेश करते हैं। रात में टीवी पर ऐसा माहौल बनाया जाता है मानो भारत ने पाकिस्तान पर हमला कर दिया हो, लेकिन असलियत में कुछ नहीं होता। मीडिया, फिल्मों और चुनावी भाषणों में सर्जिकल स्ट्राइक जैसी सैन्य कार्रवाईयों का खूब प्रचार होता है, जबकि असली शहीदों और उनके परिवारों की पीड़ा को भुला दिया जाता है। सोशल मीडिया पर जब लोग सवाल पूछते हैं, तो उन्हें देशद्रोही कहकर चुप करा दिया जाता है। चुनावों के समय राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर असली समस्याओं जैसे बेरोजगारी और शिक्षा से ध्यान भटका दिया जाता है। यह लेख पाठकों से पूछता है — क्या वे सिर्फ इस दिखावे का हिस्सा बनकर ताली बजाते रहेंगे या असली देशभक्ति दिखाते हुए स...
मजदूर दिवस: एक दिन सम्मान, साल भर अपमान

मजदूर दिवस: एक दिन सम्मान, साल भर अपमान

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मजदूर दिवस: एक दिन सम्मान, साल भर अपमान — प्रियंका सौरभ मजदूर दिवस केवल एक तारीख नहीं, श्रमिकों की मेहनत, संघर्ष और हक की पहचान है। 1 मई को मनाया जाने वाला यह दिन उस आंदोलन की याद है जिसने काम के सीमित घंटे, सम्मानजनक वेतन और श्रम अधिकारों की लड़ाई लड़ी। लेकिन भारत जैसे देशों में मजदूर आज भी असंगठित, असुरक्षित और उपेक्षित हैं। महिला श्रमिकों की स्थिति और भी दयनीय है। एक दिन की प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि से आगे बढ़कर हमें हर दिन श्रमिकों को सम्मान, सुरक्षा और न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा। तभी मजदूर दिवस वास्तव में सार्थक होगा। हर वर्ष 1 मई को मनाया जाने वाला मजदूर दिवस, श्रमिकों के संघर्ष, बलिदान और अधिकारों की रक्षा का प्रतीक है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि समाज की नींव उन हाथों से बनती है जो दिन-रात मेहनत करते हैं। लेकिन क्या हम सच में इन मेहनतकशों को वह सम्मान औ...
आदि शंकराचार्य जयन्ती – 2 मई, 2025

आदि शंकराचार्य जयन्ती – 2 मई, 2025

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आदि शंकराचार्य ने हिन्दू संस्कृति को पुनर्जीवित किया - ललित गर्ग- महापुरुषों की कीर्ति युग-युगों तक स्थापित रहती। उनका लोकहितकारी चिंतन, दर्शन एवं कर्तृत्व कालजयी होता है, सार्वभौमिक, सार्वदैशिक एवं सार्वकालिक होता है और युगों-युगों तक समाज का मार्गदर्शन करता हैं। आदि शंकराचार्य हमारे ऐेसे ही एक प्रकाशस्तंभ हैं जिन्होंने एक महान हिंदू धर्माचार्य, दार्शनिक, गुरु, योगी, धर्मप्रवर्तक और संन्यासी के रूप में 8वीं शताब्दी में अद्वैत वेदांत दर्शन का प्रचार किया था। हिन्दुओं को संगठित किया। उन्होंने चार मठों की स्थापना की, जो भारत के विभिन्न हिस्सों में स्थित हैं। आदि गुरु शंकराचार्य हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखते हैं, उनके विराट व्यक्तित्व को किसी उपमा से उपमित करने का अर्थ है उनके व्यक्तित्व को ससीम बनाना। उनके लिये इतना ही कहा जा सकता है कि वे अनिर्वचनीय है। उन्हें हम धर्मक्रांति एवं सम...
“अजमेर से इंस्टाग्राम तक: बेटियों की सुरक्षा पर सवाल”

“अजमेर से इंस्टाग्राम तक: बेटियों की सुरक्षा पर सवाल”

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"अजमेर से इंस्टाग्राम तक: बेटियों की सुरक्षा पर सवाल" -प्रियंका सौरभ शिक्षा या शिकारी जाल? पढ़ी-लिखी लड़कियों को क्यों नहीं सिखा पाए हम सुरक्षित होना? अजमेर की छात्राएं पढ़ी-लिखी थीं, लेकिन वे सामाजिक चुप्पियों और डिजिटल खतरों से अनजान थीं। हमें यह स्वीकार करना होगा कि शिक्षा सिर्फ डिग्री नहीं, सुरक्षा भी सिखाए। और परवरिश सिर्फ आज्ञाकारी बनाने के लिए नहीं, संघर्षशील और सचेत नागरिक बनाने के लिए होनी चाहिए। हमारी बेटियां फंसती नहीं हैं, फंसाई जाती हैं—और जब तक शिक्षा सिर्फ अंकों तक सीमित रहेगी, ये शिकारी जाल बार-बार बुने जाते रहेंगे। पढ़ी-लिखी लड़कियों को यौन शोषण और ब्लैकमेलिंग के मामलों में इतनी आसानी से कैसे फंसने दिया जाता है? यह सवाल अक्सर तब पूछा जाता है, जब मीडिया में किसी लड़की के साथ यौन शोषण या ब्लैकमेलिंग का मामला सामने आता है। लेकिन यह सवाल गलत है। सही सवाल यह होना च...
वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज

वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज

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वन्य जीवों और पेड़ों के लिए अपनी जान पर खेलता बिश्नोई समाज -डॉ. सत्यवान 'सौरभ' बिश्नोई समाज राजस्थान का एक अनूठा समुदाय है जो सदियों से पेड़-पौधों और वन्य जीवों की रक्षा में अपना जीवन समर्पित करता आया है। यहां की महिलाएं घायल हिरणों को अपने बच्चों की तरह पालती हैं। 1730 में खेजड़ली गांव में अमृता देवी और 363 बिश्नोईयों ने पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। बिश्नोई जीवनशैली 29 नियमों पर आधारित है, जिसमें प्रकृति से गहरा प्रेम निहित है। 'बिश्नोई टाइगर फोर्स' जैसे संगठनों के माध्यम से आज भी यह समाज जीव रक्षा का कार्य करता है। बिश्नोई समाज सच्चे अर्थों में प्रकृति का संरक्षक है। भारत में जब पर्यावरण संरक्षण की बात होती है, तो राजस्थान के बिश्नोई समाज का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। सदियों से यह समाज पेड़-पौधों और वन्य जीवों के संरक्षण में अपनी जान तक न्यौछावर ...
बेतुके बयानों से बचें एवं राजनीतिक सहमति कायम रखें

बेतुके बयानों से बचें एवं राजनीतिक सहमति कायम रखें

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बेतुके बयानों से बचें एवं राजनीतिक सहमति कायम रखें- ललित गर्ग- पहलगाम की बर्बर आतंकी घटना ने भारत की आत्मा पर सीधा हमला किया है, इसमें पाकिस्तान की स्पष्ट भूमिका को देखते हुए देश की एक सौ चालीस करोड जनता चाहती है कि अब पाकिस्तान को सबक सीखाना जरूरी हो गया है, नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया और पाकिस्तान के खिलाफ कठोर एक्शन लेते हुए सिंधु जल को रोकने जैसे पांच कदम उठाये। दोनों ही देशों के बीच युद्ध की स्थिति बनी है, यह पहली बार देखने को मिला है कि इस घटना को लेकर कश्मीर सहित समूचा देश एक दिखाई दे रहा है। ऐसे क्रूर, आतंकी एवं अमानवीय हमले के वक्त में पूरा देश दुख और गुस्से की मनःस्थिति से गुजर रहा है, जम्मू-कश्मीर विधानसभा ने शांति और सांप्रदायिक सद्भाव का एक सशक्त संदेश दिया है। सभी राजनीतिक दल, जाति, वर्ग, धर्म के लोग पाकिस्तान को करारा जबाव देने के लिये मोदी सरकार के हर ...