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क्या आप भी जाएंगे कुंभ में स्नान के लिए ?

क्या आप भी जाएंगे कुंभ में स्नान के लिए ?

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क्यों करोड़ों श्रद्धालु जुड़ते हैं कुंभ  से ? आर.के. सिन्हा महाकुंभ का शुभारंभ हो चुका है। पौष पूर्णिमा पर पहला स्नान विगत 13 जनवरी को हुआ। देश के कोने-कोने से भक्त प्रयागराज आ रहे हैं। विदेशी श्रद्धालु भी बड़ी तादाद में कुंभ में स्नान करने पहुंच रहे हैं। क्या आप भी महाकुंभ में स्नान करने जाएंगे? अगर आप जा रहे हैं, तो आप अपने को भाग्यशाली मान सकते हैं। आपको यहां कई तरह के धार्मिक अनुष्ठान होते हुए दिखाई देंगे।  जैसे कि यज्ञ, हवन, और कीर्तन। ये अनुष्ठान वातावरण को शुद्ध करते हैं और श्रद्धालुओं को भगवान के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त करने का अवसर देते हैं। कुंभ मेला एक धार्मिक और आध्यात्मिक अनुभव है जो लोगों को भगवान के करीब लाता है। यह एक ऐसा समय है जब लोग अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं और मोक्ष की प्राप्ति कर सकते हैं। यह भारत की सांस्कृतिक विविध...
आखिर कौन है ‘गंगा’ का गुनहगार?

आखिर कौन है ‘गंगा’ का गुनहगार?

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भारत जैसे धर्मपरायण देश में गंगा गायत्री और गाय पवित्रता और शुचिता के अंतिम मापदंड माने जाते हैं। समग्र लोक इससे जुड़ा है।ऐसे में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की टिप्पणी जिसमें कहा गया है कि प्रयागराज में गंगा का पानी इतना प्रदूषित हो गया है कि वह आचमन करने लायक भी नहीं रह गया है। हमारे नागरिक सरोकार और धार्मिक चिंता को बढ़ाने वाला है। कुछ ही माह बाद यानी जनवरी 2025 की पौष पूर्णिमा से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। कुंभ मेले की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और अखाड़ों की सक्रियता बढ़ गई है। महाकुंभ को लेकर देश ही नहीं विदेश में भी खूब चर्चा होती है। यदि गंगाजल की गुणवत्ता को लेकर ऐसे ही सवाल उठते रहे तो देश-दुनिया में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। सवाल इस बात को लेकर भी उठेंगे कि विभिन्न सरकारों द्वारा शुरू की गई अनेक महत्वाकांक्षी व भारी-भरकम योजनाओं के बावजूद गंगा को साफ करने में...
नवरात्रि से इतर रामलीला का विस्तार हो

नवरात्रि से इतर रामलीला का विस्तार हो

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नवरात्रि महोत्सव शक्ति साधना के अतिरिक्त पूरे देश में रामलीला की सशक्त पहचान है। हमारे दैनिक जीवन, परम्पराओं, रीति-रिवाजों और जीवन मूल्यों पर देवी-देवताओं का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। इस अवधि में इन देवी-देवताओं की आस्था का अभिकेन्द्र भगवान श्रीराम रहे हैं। तीन अक्तूबर से शारदीय नवरात्र शुरू हो गए॰थे,जो सम्पूर्णता की ओर है । इस दौरान देश के विभिन्न कस्बों और गांवों में रामलीला का मंचन भी हुआ। जिसमें भगवान श्रीराम की जीवन यात्रा का नाटकीय रूप से प्रस्तुतीकरण किया जाता है। हर जगह रामलीला में स्थानीय कलाकार पारम्परिक वेशभूषा धारण करके रामायण के पात्रों को जीवंत करते हैं। इस लोक नाट्य रूप में मंचित रामलीला में गीत, संगीत, नृत्य और संवाद के माध्यम से भगवान राम की कथा का मंचन किया जाता है। यह रामलीला लोगों को भगवान राम के आदर्श जीवन की स्मृति दिलाती है और समाज को धर्म और मर्यादा ...
संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआ

संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआ

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संसद में कांग्रेस का हिंदू व संविधान विरोधी चेहरा बेनकाब हुआराहुल गांधी का बयान हिंदुओं के विरुद्ध बड़े षड्यंत्र का संकेत !मृत्युंजय दीक्षितप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राजग गठबंध सरकार के तीसरे कार्यकाल के प्रथम संक्षिप्त संसद सत्र का समापन हो चुका है । नियमानुसार इस सत्र में माननीय राष्ट्रपति जी ने लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों को संयुक्त रूप से संबोधित किया । ये सत्र विपक्ष और मुख्यतः कांग्रेस के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। दस वर्षों के बाद कांग्रेस को नेता प्रतिपक्ष बनने का अवसर मिला है। संसदीय परम्परा में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद एक बहुत ही जिम्मेदरी का पद होता है और कांग्रेस ने ये जिम्मेदारी अपने नेता राहुल गांधी को दी । राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि अब राहुल गांधी एक सदन के अंदर और बाहर एक परिपक्व राजनेता की तरह व्यहार करेंगे विभिन्न मुद्दों पर गम्भीरता के स...
aastha

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आस्था का सैलाब मनुष्य एक धार्मिक प्राणी है, इसीलिए वह अपनी धर्मांधता के वशीभूत होकर निर्णय लेता है। जब धर्मभीरू भक्तों की आस्था अतिश्यता में परिवर्तित हो जाती है, तो उसके दुष्परिणाम भी प्रकट होने प्रारम्भ हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने के लिए कौन उत्तरदायी है? यह एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि हम किसी को भी इस परिस्थिति का एकमात्र उत्तरदायी नहीं कह सकते। परन्तु इससे साधारण जनता ही सबसे अधिक प्रभावित होती है, क्योंकि उस भोलीभाली जनता को कुछ स्वार्थी तत्वों के द्वारा स्वयं के आर्थिक लाभ हेतु गुमराह कर दिया जाता है, धर्मांधता की अतिशयता एक प्रकार के पागलपन कारण बन जाती है। ऐसी धर्मांधता मुख्यतः हिन्दु और मुस्लिम धर्म के अनुयायियों में देखने मिलती है। फलस्वरूप मन्दिर व मस्जिदों में त्योहारों के अवसर पर जनता का सैलाब इस विश्वास के साथ एकत्रित हो जाता है कि इन धार्मिक स्थलों पर अल्हाह अथ...
श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

श्री अयोध्या धाम में नवनिर्मित प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारतीय समाज को एक किया है

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22 जनवरी 2024 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से लिखा जाएगा क्योंकि इस दिन श्री अयोध्या धाम में प्रभु श्रीरामलला के विग्रहों की एक भव्य मंदिर में समारोह पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई थी। इस प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में पूरे देश से धार्मिक, राजनैतिक एवं सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के शीर्ष नेतृत्व तथा समस्त मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूजनीय संत महात्माओं की गरिमामय उपस्थिति रही थी। इससे निश्चित ही यह आभास हुआ है कि प्रभु श्रीराम मंदिर ने भारत में समस्त समाज को एक कर दिया है। यह भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारम्भ का संकेत माना जा सकता है।     सामान्यतः किसी भी भवन का ढांचा नीचे से ऊपर की ओर जाता दिखाई देता है परंतु प्रभु श्रीराम मंदिर के बारे में यह कहा जा रहा है कि प्रभु श्रीराम का यह मंदिर जैसे ऊपर से बनकर आया है और पृथ्वी पर स्थापित कर दिया ...
मूर्तिपूजा क्यों ?

मूर्तिपूजा क्यों ?

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"क्या मूर्ति मंदिरों में भगवान बसते हैं?? जो मूर्ति अपनी रक्षा नहीं कर सकती, वो हमारी रक्षा क्या करेगी..?? जो लोग मंदिरों में मूर्तियों में आस्था नहीं रखते, क्या भगवान उनके नहीं हैं?? क्या मंदिरों में पूजा पाठ करने से ही भगवान मिलते हैं?? क्या भगवान मंदिरों से बाहर नहीं हैं?? जो हमारे ही भीतर हैं, उसे मूर्ति मंदिरों में खोजना, फूल चढ़ाना, कपड़े पहनाना, आरती उतारना... ये सब क्या मात्र एक पाखंड और दिखावा नहीं है.....??" मंदिरों पर ऐसी "वैज्ञानिक" बातें हमारे विरोधी करते हैं तो समझ भी आता है, लेकिन जब कोई हिन्नू होकर ही ऐसी बातें करता है, और फिर खुद को उन्नत और होशियार भी समझता है, तो केवल आश्चर्य ही होता है.... आज कितने ही हिन्नू बड़े गर्व के साथ ASI की रिपोर्ट सब जगह शेयर करने में लगे हैं कि"ज्ञानवापी परिसर में हनुमान जी, गणेश जी, विष्णुजी, नंदी जी, शिवलिंग की मूर्तियां प्राप्त ह...
राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से समस्त भारत हुआ राममय

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा से समस्त भारत हुआ राममय

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अयोध्या से आर.के. सिन्हा अयोध्या में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा भब्य रूप से सम्पन्न हो गई। संत समाज के अलावा पूरे विश्व से मात्र लगभग ढाई - तीन हज़ार चुनिंदा लोगों को आमंत्रित किया गया था जिसमें सौभाग्य से मैं सपत्नीक आमंत्रित था ।यह सबों के लिये जीवन के एक दुर्लभ क्षण के रूप में याद रखा जाएगा। यह कल्पना से परे अविस्मरणीय दृश्य रहा। अयोध्या के राम मंदिर में अभिजीत मुहूर्त में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूरे विधि - विधान के साथ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई। इसके साथ ही सारा देश सारा देश राममय हो गया।पूरे देश क्या विश्व भर के राम भक्तों के मन में भावनाओं की अनंत आनंद के हिलोरें हैं। भावनाओं की अभिव्यक्ति में शब्द सक्षम या पर्याप्त नहीं हैं। कश्मीर में बर्फ से ढकी ऊंची चोटियों से लेकर कन्याकुमारी में धूप से सराबोर समुद्र तटों तक,राम नाम की गूंज ने पूरे भारत में भक्ति का माहौल बना द...
श्रीराम के निमंत्रण को ठुकराने की अपरिपक्व राजनीति

श्रीराम के निमंत्रण को ठुकराने की अपरिपक्व राजनीति

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-ललित गर्ग- रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी एवं इंडिया गठबंधन के अन्य दलों ने शामिल नहीं होने का निर्णय लेकर जहां अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है, वहीं भारत के असंख्य लोगों की आस्था एवं विश्वास को भी किनारे करते हुए आराध्य देव भगवान श्रीराम को राजनीतिक रंग देने की कुचेष्ठा की है। भले ही यह भारतीय जनता पार्टी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्चस्व का अनुष्ठान है, लेकिन लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रतिष्ठा देते हुए कांग्रेस को ऐसे राजनीतिक निर्णय लेने से दूर रहते हुए समारोह में भाग लेना चाहिए था। राम मंदिर के निमंत्रण को ठुकराना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और आत्मघाती फैसला है। ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने खुद अपनी जमीन को खोखला करने की ठान रखी है। विनाशकाले विपरीत बुद्धि! निश्चित ही कांग्रेस अब भारत की बहुसंख्यक जन...
<strong>धरती की सुरक्षा निहित है श्रीराम के प्रकृति-प्रेम में</strong>

धरती की सुरक्षा निहित है श्रीराम के प्रकृति-प्रेम में

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- ललित गर्ग -अयोध्या में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीराम मन्दिर का उद्घाटन 22 जनवरी, 2024 को करेंगे, निश्चित ही श्रीराम के इस पांच सौ वर्ष के टेंटवास के वनवास से स्व-मन्दिर में स्थापित होने की घटना वास्तविक दीपावली एवं खुशी का अवसर है, जिससे भारत एक नये युग में प्रवेश करेगा। जितनी आस्था एवं भक्ति से जन-जन ने श्रीराम के प्रति भक्ति एवं आस्था व्यक्त की है, उतनी ही आस्था एवं संकल्प से अब हर व्यक्ति को श्रीराम के आदर्शों को अपने जीवन में उतारना होगा, स्वयं को श्रीराममय एवं प्रकृतिमय बनाना होगा। श्रीराम के  चौदह वर्ष के वनवास से हमें पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा मिलती है। जन्म, बचपन, शासन एवं मृत्यु तक उनका सम्पूर्ण जीवन प्रकृति-प्रेम एवं पर्यावरण चेतना से ओतप्रोत है। आज देश एवं दुनिया में पर्यावरण प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन ऐसी समस्याएं हैं जिनका समाधान श्रीराम के प्रकृति प्रेम एवं पर्यावर...