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धर्म

Hindus becoming fanatics?

Hindus becoming fanatics?

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म, सामाजिक
Somebody alleged that Hindus are becoming fanatics which is wrong. My reply to him . I agree fanaticism is wrong and condemnable. But Hindus suffered the loss of Afghanistan, then Pakistan was given on a platter. Then Kashmir, ( a part of that was snatched )and cowards surrendered meekly, when Indian forces begged of Nehru to give them one week more as the final pincer had developed at a great sacrifice of Armed forces(कैंची जैसा), and when any force is able to develop it nothing escapes, but Nehru’s obduracy made army and it had to obey orders. Then Hindus from Kashmir were expelled within 48 hours, leaving their young girls there and all others had to quit.  NOT a word or a single feather fluttered anywhere, because Hindus were under Opium given to them by Gandhi as अहिंसा परमोधर्म ‘ fo...
सनातन धर्म का वास्तविक स्वरूप

सनातन धर्म का वास्तविक स्वरूप

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*धर्म बंधुओ, राष्ट्र के रूप में हमारी समस्या और उसके समाधान पर बहुत कुछ लिखा गया है, लिखा जाता रहेगा। मेरी दृष्टि में सबसे पहले हमें समस्या के पूरे स्कैन, उसकी निष्पत्ति और कारण को भली प्रकार से ध्यान में रखना होगा। तभी इसका समाधान सम्भव होगा।* *आपने पूजा, यज्ञ करते समय कभी संकल्प लिया होगा। उसके शब्द ध्यान कीजिये। ऊँ विष्णुर विष्णुर विष्णुर श्रीमद भगवतो महापुरुषस्य विष्णुराज्ञा प्रवर्तमानस्य श्री ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्री श्वेत वराहकलपे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तेकदेशे पुण्यप्रदेशे ......यह संकल्प भारत ही नहीं सारे विश्व भर के हिंदुओं में लिया जाता है और इसके शब्द लगभग यही हैं। आख़िर यह जम्बूद्वीपे भारत वर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्तेकदेशे है क्या ?* *धर्मबंधुओ! जम्बू द्वीप सम्पूर्ण ...
ईश आराधना में दीपक का स्थान

ईश आराधना में दीपक का स्थान

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ईश्वर की पूजन में सबसे अधिक महत्व दीपक प्रज्ज्वलित करने का होता है। दीपक के बिना किसी भी भगवान की पूजन करना अधूरा कार्य माना गया है। पूजन का दीपक सिर्फ अंधेरे को ही दूर नहीं करता है, वरन् हमारे जीवन में सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। पूजन में शास्त्रोक्त विधि से दीपक लगाने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं तथा उनकी कृपा हम पर बरसना प्रारम्भ हो जाती है। हम प्रायः अपने घर के मंदिर में प्रतिदिन सुबह एवं शाम को भगवान के समीप दीपक प्रज्ज्वलित करते हैं। दीपक जलते ही अनेक प्रकार के वास्तुदोष नष्ट हो जाते हैं। दीपक के प्रज्ज्वलित होने के पश्चात् उसके प्रकाश एवं धुँए से वातावरण शुद्ध होने के साथ अनेक प्रकार के कीटाणुओं से घर मुक्त हो जाता है। विषैले कीटाणुं नष्ट हो जाते हैं। दीपक प्रज्जवलित करने के पूर्व दीपक को पूजन में कैसे रखा जाय इस हेतु विशेष परम्परा है। पूजा के समय दीपक जमीन पर न रखें बल्कि द...
जब हनुमान्जी रचित रामायण को महर्षि वाल्मीकिजी ने सागर में स्थापित करवाया

जब हनुमान्जी रचित रामायण को महर्षि वाल्मीकिजी ने सागर में स्थापित करवाया

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श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंग जब हनुमान्जी रचित रामायण को महर्षि वाल्मीकिजी ने सागर में स्थापित करवाया ''श्री हनुमन्नाटकÓÓ के रचना का काल निर्धारण का कोई निश्चित समय नहीं है किन्तु यह कालजयी रचना संस्कृत साहित्य का अनमोल रत्न है। इस ग्रंथ के अंतिम श्लोक में रचनाकार ने महर्षि वाल्मीकिजी की इसकी रचना की जानकारी दी है ऐसा वर्णित है यथा- रचितमनिलपुत्रेणाऽथ वाल्मीकिनाऽब्घौ निहितममृतबुद्धया प्राङ्महानाटकं यत्। सुमतिनृपतिभोजेनोद्धृतं तत्क्रमेण ग्रथितमवतु विश्वं मिश्रदामोदरेण।। हनुमन्नाटक अंक १४-९६ इस श्लोक के अनुसार इस ग्रंथ को पवनकुमार (श्री हनुमान्जी) ने शिलाओं पर अंकित किया था किन्तु जब महर्षि वाल्मीकिजी ने अपनी रामायण रची तब यह समझकर कि इस अमृत के समक्ष उनकी रामायण को कौन पढ़ेगा? महर्षि वाल्मीकिजी ने श्रीहनुमान्जी से प्रार्थना करके उनकी आज्ञा प्राप्त कर इस ''हनुमन्नाटकÓÓ को समु...
मानवता को सकारात्मक संदेश देते शिवजी के अष्टादश प्रतीक

मानवता को सकारात्मक संदेश देते शिवजी के अष्टादश प्रतीक

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शिवरात्रि में विभिन्न पूजन सामग्री का उपयोग भक्तजन करते हैं विशेषरूप से पुष्प,धतूरा,बिल्वपत्र,बेरफल,आँकड़ा,दूध,दही,शहद आदि का प्रयोग चन्दन, अक्षत, अबीर,गुलाल के साथ किया जाता है। किन्तु हम शिवजी के द्वारा धारण की जाने वाली विभिन्न वस्तुओं के बारे में यदा-कदा ही ध्यान देते हैं। आइये जरा जानते हैं, कि, भक्तों को क्या सन्देश देते हैं ये प्रतीक। 1 गंगा नदी- शिव के शीश पर प्रवाहमान गंगा का अवतरण इस बात की ओर इंगित करता है कि व्यक्ति आवेग की अवस्था को अपने दृढ़ संकल्प के माध्यम से जीवन में संतुलन बनाए रख सकता है। शिव अपने भक्तों के शान्ति प्रदाता हैं। 2 शीश की जटा - भगवान शिव हम सभी जीवधारियों के रक्षक हैं। जटा श्वास - प्रश्वास का सूक्ष्म स्वरूप है। शिव स्वयं व्योमकेश हैं। उनके केश वायुमंडल के प्रतीक हैं। 3 अर्द्धचन्द्र समुद्र - मंथन के समय निकलने वाले विष को शिवजी ने अपने कंठ में धारण कर...
शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

शिवरात्रि और शिवार्चन का महत्व

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भगवान शिव उत्पत्ति,स्थिति तथा संहार के देवता हैं। फाल्गुन मास में आने वाली शिवरात्रि के दिन स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर भक्त यदि ‘‘नमःशिवाय’’ इस पंचाक्षर मंत्र का जाप अनवरत करता है तो उसे उत्तम फल की प्राप्ति होती है। वह मृत्यु पर विजय प्राप्त कर मोक्ष ग्रहण कर लेता है। नारायण जब मायारूपी शरीर धारण कर समुद्र में शयन करते हैं तो उनके नाभि -कमल से पंचमुख ब्रह्मा उत्पन्न होते हैं और वे सृष्टि निर्माण की प्रार्थना करते हैं। भगवान ने पाँच मुखों से पाँच अक्षरों का उच्चारण किया यही शिव वाचक पंचाक्षर मंत्र है। इसके प्रारंभ में ऊँ लगा देने से यह षड़ाक्षर हो गया है। यह मोक्ष, ज्ञान का सबसे उत्तम साधन है। शिव नाम की महिमा अनन्त है। सामान्य मनुष्य तो इनकी महिमा का गुणगान करने में असमर्थ है ही माँ भगवती सरस्वती भी भगवान के गुणों का वर्णन करने में असमर्थ प्रतीत होती है। श्री पुष्पदन्ताचार्य ने शि...
भगवान श्रीकृष्ण की उपासना एवं उसका शास्त्रीय आधार

भगवान श्रीकृष्ण की उपासना एवं उसका शास्त्रीय आधार

धर्म
सारणी १. श्रीकृष्णजन्माष्टमीकी तिथिका महत्त्व २. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन आकाशमें रंगोंके माध्यमसे श्रीकृष्णके विराट रूपके दर्शन होनेकी अनुभूति होना ३. श्रीकृष्णजन्माष्टमी मनानेकी पद्धति ४. श्रीकृष्णजन्माष्टमी उत्सव ५. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रत ६. श्रीकृष्णजन्माष्टमी व्रतसंबंधी उपवास ७. श्रीकृष्णजन्माष्टमीके दिन की जानेवाली पूजाकी विधि ८. पूजाका पूर्वायोजन ९. श्रीकृष्णकी पूजाविधिमें अंतर्भूत कृत्योंका शास्त्राधार १. श्रीकृष्णजन्माष्टमी की तिथि का महत्त्व         भगवान श्रीकृष्ण पूर्णावतार हैं । उनकी श्रेष्ठता, कृतज्ञता शब्दोंमें व्यक्त करना हम जैसे सामान्य व्यक्तियोंके लिए असंभवसी बात है । महाभारत, हरिवंश एवं भागवत अनुसार निश्चित की गई कालगणनाके अनुसार, ईसापूर्व ३१८५ वर्षमें, श्रावण कृष्ण अष्टमीकी मध्यरात्रि, रोहिणी नक्षत्रमें भगवान श्रीकृष्णका जन...
वर्ण व्यवस्था

वर्ण व्यवस्था

धर्म
र्ण व्यवस्था के तहत ब्राह्मण यानि मेधा शक्ति, क्षत्रिय यानि रक्षा शक्ति, वैश्य यानि वाणिज्य शक्ति, शूद्र यानि श्रम शक्ति थी | मेधाशक्ति, रक्षा शक्ति, वाणिज्य शक्ति तथा श्रम शक्ति एक दूसरे की समानंतर और पूरक व्यवस्थाएं थी | यदि पूरे विश्व में इससे कोई अलग व्यवस्था चल रही हो तो बताइए ? क्या कभी आपने विचार नहीं किया कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र जातियां नही वर्ण है ? और यदि जातियां हैं तो कब से हैं ? क्यों हैं ? कैसे हैं ? आश्चर्य है की ये कार्य कितने योजनाबद्ध तरीके से किया गया और ये अहसास भी नहीं होने पाया | मैं आप लोगों से पूछता हूँ ‪मनुस्मृति‬ में क्या इनको ‪जाति‬ लिखा गया है ? लेकिन H H Risley ने मनुस्मृति का हवाला देकर इनको 1901 में जाति बना दिया | दुर्भाग्य देखिए आज इसाइयों (अंग्रेजों) का षड्‍यंत्र ‪संविधान‬ का अंग है | वेदों में ‘शूद्र’ शब्द लगभग बीस बार आया है | ...