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धर्म

नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी

नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी

धर्म
*🥀रहस्यों की खान है,विशाल नाग पर्वत* *🥀शांडिल्य ऋषि की तपोभूमि शनीउडियार* *🥀 सुग्रीव ने यही की मूलनारायणी की आराधना* *🥀मूलनारायण ने त्रिपुरासुन्दरी की तपस्या से प्राप्त की अलौकिक सिद्धियां* *🥀नागराजों के आराध्य पुंगीश्वर महादेव के दर्शन वैद्यनाथ व महाकाल से है दस गुना फलदायी* *राजेन्द्रपन्त'रमाकांत* चिटगल,गंगोलीहाट(पिथौरागढ़) त्रिपुरा देवी/सनीउडियार/हवनतोली/बेरीनाग/बागेश्वर।जनपद बागेश्वर का सनीउडियार आध्यात्म जगत में प्राचीन काल से ही काफी प्रसिद्ध है।कभी शाण्डिल ऋषि की तपस्या का केन्द्र रहा यह पावन क्षेत्रं आज आध्यात्मिक पहचान के लिए छटपटा रहा है।सनीउडियार का उडियार ही सनीउडियार की पहचान है।उडियार का तात्पर्य पर्वतीय भाषा में छोटी गुफा से है। शाडिल्य ऋषि की तपस्या का केन्द्र रही यह गुफा दुर्दशा का शिकार ही नही बल्कि गुमनाम है।कई स्थानीय वाशिदों को भी इस गुफा के बारे में ज...
पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी

पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी

धर्म
*🥀आया सावन झूम के भाग , *🥀हरेला पर्व व श्रावण.की शुभकामनाएं* *🥀जयजयजागेश्वर* *🥀पृथ्वी पर सबसे पहले जागेश्वर में प्रकट हुई शिव पिण्डी* राजेन्द्रपन्त‘रमाकान्त’ .हिमालय के पवित्र क्षेत्र में स्थित जागेश्वर धाम भगवान शिव का परम कल्याणकारी धाम माना जाता है, भगवान शिव के पृथ्वी पर पिण्डी स्वरूप में अवतरित होने की घटना सर्वप्रथम इसी क्षेत्र में घटी है। यह स्थान आदिकाल से पूज्यनीय रहा है। पृथ्वी की करुण गाथा व गहन वेदना को दूर करने के लिए ही सर्वप्रथम शिव इस वसुंधरा में जागेश्वर में ही प्रकट व अवतरित हुए। दारूकानन ;जागेश्वर क्षेत्र में भगवान शिव के प्रकट होने की कथा बड़ी रहस्यभरी है। यहीं से उन्होंने कैलाश खण्ड, केदारखण्ड, पातालखण्ड, काशीखण्ड, रेवाखण्ड, नागखण्ड सहित अनेकों रूपों में अपनी लीलाओं का विस्तार किया, यह समूचा क्षेत्र शिव का विचरण स्थल माना जाता है। यहां स्थित नागेश का ज्योतिर्लिंग...
अज़ान पर फिजूल की बहस

अज़ान पर फिजूल की बहस

धर्म
अज़ान को लेकर हमारे टीवी चैनलों और अखबारों में फिजूल की बयानबाजी हो रही है। यदि सिने-गायक सोनू निगम ने कह दिया कि सुबह-सुबह मस्जिदों से आनेवाली तेज आवाजें उन्हें तंग कर देती हैं और यह जबरिया धार्मिकता ठीक नहीं तो इसमें उन्होंने ऐसा क्या कह दिया कि उन्हें इस्लाम का दुश्मन करार दे दिया जाए और उन्हें गंजा करनेवाले को दस लाख रु. का इनाम देने की घोषणा कर दी जाए। क्या लाउडिस्पीकर पर जोर-जोर से चिल्लाना इस्लाम है? इस्लाम का जन्म हुआ तब कौनसे लाउडस्पीकर चल रहे थे? सच्ची प्रार्थना तो वही है, जो मन ही मन की जाती है। ईश्वर या अल्लाह बहरा नहीं है कि उसे कानफोड़ू आवाज़ में सुनाया जाए। शायद इसीलिए कबीर ने कहा है: कांकर-पाथर जोडि़ के मस्जिद लई चुनाय। ता चढि़ मुल्ला बांग दे, बहरा हुआ खुदाय।। माना कि अज़ान अल्लाह के लिए नहीं, उसके बंदों के लिए होती है याने ज़ोर-ज़ोर से आवाज इसीलिए लगाई जाती है कि सोते ह...
नियति एवं कर्मों  का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह

नियति एवं कर्मों का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया कलर्स टीवी चैनल पर रात 9 बजे ''शनै:-शनै: कर्म फल दाता शनिÓÓ का धरावाहिक-कई सीरियलों में से एक अलग ही प्रकार की अनूठी छाप छोडने वाला टीवी सीरियल हैं। हालांकि उक्त कथा पूर्णतया काल्पनिक कथा यात्रा पर टिकी हुई है। फिर भी उक्त कहानी के माध्यम से नियति एवं कर्मों का फल देने वाला न्याय प्रिय ग्रह और कर्म फल एवं कर्म सन्तुलन का देवता शनि नागरिक समाज में एक जिज्ञासु प्रवृति और आध्यात्मिक दृष्टिकोण के कारण इस सीरियल को दर्शक देखे बिना नहीं रह सकते हैं। वर्तमान में यह अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है कि कैसे नियति को कर्म के माध्यम से बदला जा सकता है। धीरे - धीरे शनि ने क्योंकि शनि, देवों के देव महादेव का सृजन मात्र ही नहीं था, बल्कि यूं कहिए कि कर्म - ज्ञान और चेतना ना केवल ज्ञान प्राप्त करने तक सीमित था और हैं। उसके माध्य से व्यवहारिकता में उतानरने को प्रेरित करने...
एक अनूठा त्यौहार है अक्षय तृतीया

एक अनूठा त्यौहार है अक्षय तृतीया

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
गणि राजेन्द्र विजय - अक्षय तृतीया भारतीय संस्कृृति एवं परम्परा का एक अनूठा एवं इन्द्रधनुषी त्यौहार है। न केवल जैन परम्परा में बल्कि सनातन परम्परा में यह एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, इस त्यौहार के साथ-साथ एक अबूझा मांगलिक एवं शुभ दिन भी है, जब बिना किसी मुहूर्त के विवाह एवं मांगलिक कार्य किये जा सकते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक ढांचांे में ढली अक्षय तृतीया परम्पराओं के गुलाल से सराबोर है। रास्ते चाहे कितने ही भिन्न हों पर इस पर्व त्यौहार के प्रति सभी जाति, वर्ग, वर्ण, सम्प्रदाय और धर्मों का आदर-भाव अभिन्नता में एकता प्रिय संदेश दे रहा है। अक्षय तृतीया तप, त्याग और संयम का प्रतीक पर्व है। इसका सम्बन्ध आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव के युग और उनके कठोर तप से जुड़ा हुआ है। जैन इतिहास और परम्परा में चली आ रही वर्षीतप की साधना और प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभनाथ का पारणा निस्संदेह ढेर सारे तथ्यों को उद्घाटित...
“अहिंसा परमो धर्मः,  धर्महिंसा तदैव च: l  अर्थात – अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है  और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.

“अहिंसा परमो धर्मः, धर्महिंसा तदैव च: l अर्थात – अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उस से भी श्रेष्ठ है.

धर्म
1."Ahimsa Paramo Dharma" is Sanskrit phrase that was popularized by Mahatma Gandhi and is often repeated by many leaders to demonstrate the universality of Ahimsa. Loosely translated, the entire phrase means that non-violence is the topmost duty to the extent that it supersedes all other duties. For someone who holds this true, it means that there is no selective application of ahimsa...it must be applied in every case and in all matters. This universal sense leads to an unconditional and unilateral abandonment of violent resistance, under any and all circumstances (as in the philosophy of Buddhists and Jains, and teaching by M K Gandhi). . 2. Gandhi made ahimsa (non-violence) the cornerstone of his philosophy and practice and spoke of it as constituting the essence of Hinduism. Wh...
साम्प्रदायिक सद्भाव एक मृग मरीचिका

साम्प्रदायिक सद्भाव एक मृग मरीचिका

addtop, धर्म
क्या गांधी जी का देश बताने वाले साम्प्रदायिक सद्भावना की बात करके कभी उस सौहार्द को बना पाएं या गांधी जी भी कभी उस मृग मरीचिका को खोज पायें ? अनेक महापुरुषों के कथनों से भी यही सत्य छलकता रहा कि हिन्दू- मुस्लिम एकता संभव नहीं अर्थात साम्प्रदायिक सद्भाव कहने व सुनने में अच्छा लगता है पर इसकी दूरी अनन्त है। पाकिस्तान के जनक मोहम्मद अली जिन्नाह ने भी कहा था कि हिन्दू मुस्लिम दो अलग अलग विचारधाराएं है और इनका एक साथ रहना संभव नहीं। जब मुसलमान जिहादी दर्शन का अनुसरण करेंगें और गैर मुस्लिमों पर अत्याचार या उनकी धार्मिक आस्थाओं पर निरंतर आघात करते रहेँगेँ तो कब तक कोई अपने अस्तित्व की रक्षा में उनके विरोध से बचता रहेगा ? अतः ये कैसे कहा जा सकता है कि हमारा देश सदियों से सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल रहा है ? इतिहास को झुठलाया नहीं जा सकता । भारत के कौने कौने में आप मुगलो की बर्बरता के निशान आज भी द...
सात शरीर,सात जगत और सात चक्र

सात शरीर,सात जगत और सात चक्र

धर्म
आत्मा के सात शरीर होते हैं और जिन जिन परमाणुओं से वे सातों शरीर निर्मित होते हैं,उन्ही-उन्ही परमाणुओं से सात लोकों का भी निर्माण हुआ है जो निम्न लिखित हैं--1. *स्थूल परमाणु(physical atom)* से स्थूल शरीर(physical body)की रचना होती है और वह स्थूल जगत(physical world) में इसी शरीर से रहती है। इसी प्रकार सभी परमाणु, सभी शरीर और सभी लोकों को समझना चाहिए।----1 *स्थूल या भौतिक या पार्थिव(physical)*2. *वासना या प्रेत (ether)*3. *सूक्ष्म या प्राण(astral)*4. *मनोमय(mental)*5. *आत्म(spiritual)*6. *ब्रह्म(cosmic)*7. *निर्वाण(bodiless)।*इन सातों लोकों से मनुष्य के सातों शरीरों का सम्बन्ध होता है जिनके प्रवेश द्वारा मानव शरीर में सात चक्र के रूप में विद्यमान होते हैं।  ये चक्र प्रवेश के द्वार होने के साथ साथ शक्ति के केंद्र और पदार्थों के केंद्र भी होते हैं।1. *भौतिक शरीर* और भौतिक जगत का सम्बन्ध पृथ्वी...
हिन्दू पंचांग

हिन्दू पंचांग

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म
हिन्दू पंचांग हिन्दू समाज द्वारा माने जाने वाला कैलेंडर है। इसके भिन्न-भिन्न रूप मे यह लगभग पूरे नेपाल और भारत मे माना जाता है। पंचांग (पंच + अंग = पांच अंग) हिन्दू काल-गणना की रीति से निर्मित पारम्परिक कैलेण्डर या कालदर्शक को कहते हैं। पंचांग नाम पाँच प्रमुख भागों से बने होने के कारण है, यह है- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण। इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में १२ महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में १५ दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में २७ नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं। १२ मास का एक वर्ष और ७ दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व...
खटिक जाति का इतिहास

खटिक जाति का इतिहास

धर्म
खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राहमण जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था। आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, ‘खटिटक’। मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति के ब्राहमणों ने ही उनका प्रतिकार किया। राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी। मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम उनका सामना करते थे। तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे। तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटिक सैनिकों की हत्या करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की। (पढ़िये मेरे पिछले पोस्ट “भारत में इस्लामी आक्रम...