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लोकतंत्र को कमजोर करती है अवसरवादी राजनीति-ललित गर्ग- कांग्रेस में लगातार वफादार नेताओं का पलायन जारी है, नये नामों में कांग्रेस के प्रवक्ता गौरव वल्लभ, महाराष्ट्र के जिम्मेदार एवं पूर्व मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष संजय निरुपम, बिहार कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अनिल शर्मा,  निशाना साधने वाले मुक्केबाज विजेंदर, आचार्य प्रमोद कृष्णम हैं, जिन्होंने कांग्रेस को बाय-बाय कर दी है। इन सभी ने कांग्रेस के मुद्दाविहीन होने, मोदी के विकसित भारत के एजेंडे, राहुल गांधी की अपरिपक्व राजनीति एवं कांग्रेस की सनातन-विरोधी होने को पार्टी से पलायन का कारण बताया है। कुछ भी कहे, यह राजनीति में अवसरवाद का उदाहरण है, इस तरह का बढ़ता दौर चिंताजनक है। भारत की राजनीति में दलबदल की विसंगति एवं विडम्बना आजादी के बाद से लगातार देखने को मिलती रही है। पिछले साढ़े सात दशक के भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक पराभव के अक्स गा...
यह संकट किसानी का नहीं सबका है

यह संकट किसानी का नहीं सबका है

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स्पष्ट दिखने लगा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग ने हमारे खेत-खलिहानों में दस्तक दे दी है। जिस गति से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वह आम आदमी के लिये तो कष्टकारी है ही, किसान के लिये ती यह संकट ज्यादा बढ़ा है। इसका सीधा असर खेतों की उत्पादकता पर पड़ रहा है। जिसके मुकाबले के लिये सुनियोजित तैयारी की जरूरत है। किसानों को उन वैकल्पिक फसलों के बारे में सोचना होगा, जो कम पानी व अधिक ताप के बावजूद बेहतर उत्पादन दे सकें। अन्न उत्पादकों को धरती के तापमान से उत्पन्न खतरों के प्रति सचेत करने की जरूरत है, यदि समय रहते ऐसा नहीं होता तो मान लीजिए कि हम आसन्न संकट की अनदेखी कर रहे हैं। यह मसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मुद्दा दुनिया की सबसे बड़ी आबादी की खाद्य शृंखला से भी जुड़ा है। इसमें कोई शक नहीं कि गाहे-बगाहे इस संकट की जद में देश का हर नागरिक आएगा। दरअसल, दुनिया के तापमान पर निगाह रखने वाली...
कंगना बनाम कांग्रेस 

कंगना बनाम कांग्रेस 

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कंगना बनाम कांग्रेस  उत्तराखंड की तरह हिमाचल प्रदेश भी छोटा सा खूबसूरत राज्य है । संयोग है कि दोनों राज्यों में इतने बड़े बड़े धर्मस्थल हैं कि दोनों राज्यों को देवभूमि कहा जाता है । प्रकृति ने इन हिमालयी आभा वाले राज्यों को अपार सौंदर्य से नवाजा है । ये राज्य अध्यात्म , चिंतन , संस्कृति एवम सभ्यता के महान केंद्र हैं । सच कहें तो भारत को ऑक्सीजन देने का बड़ा जिम्मा इन्हीं हिमालयी राज्यों का है । वेद उपनिषद पुराण आदि धर्मग्रंथों के जनक ये दो राज्य कश्मीर , असम और पूर्वोत्तर से मिलकर ज्ञान , तप और साधना के केंद्र हैं । साथ साथ तीर्थाटन एवं पर्यटन के मुख्य आधार रहे हैं । ऐसे में यदि हिमाचल में मंदिरों के गढ़ खूबसूरत मंडी नगर को भाव पूछकर अपमानित किया जाए तो घाव गहरा हो जाता है । इसी क्षेत्र से देश की जानी मानी अभिनेत्री कंगना को उम्मीदवार बनाते ही यदि कोई उनका चित्र डालकर " मंडी मे...
<strong>CLIMATE CHALLENGE – </strong>IS  GLOBAL ZERO EMISSION TARGET

CLIMATE CHALLENGE – IS  GLOBAL ZERO EMISSION TARGET

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N.S.Venkataraman                                                                         ACHIEVABLE ? The State of the Global Climate report by the World Meteorological Organization (WMO) confirmed that the year 2023 was the warmest year on record., with the  global temperature of 1.4 deg.Celsius above pre industrial 1850 -1900 baseline. In a subsequent report  published in March,2024, the World Meteorological Organization said that while the year 2023  capped off the warmest 10-year period on record ,   even hotter temperatures are expected  in the year 2024. It confirmed its fear   that there is a high probability that 2024 will again break the record of 2023. Global temperature rise would inevitably lead to several adverse consequences ...
<strong>पाक से क्यों खफा हैं इस्लामिक मुल्क</strong>

पाक से क्यों खफा हैं इस्लामिक मुल्क

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 आर.के. सिन्हा पाकिस्तान में आजकल सिर्फ अंदरूनी हालात ही खराब नहीं हैं, उसके सामने कई गंभीर  संकट और भी हैं। उसे उसके दो पड़ोसी देश , जो उसकी तरह से ही इस्लामिक देश हैं, उससे सख़्त नाराज हैं। पहले ईरान और अब अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। फिलहाल अफगानिस्तान और पाकिस्तान आमने-सामने हैं। दोनों मुल्कों क बीच सरहद पर झड़प भी  हुई है। झड़प की शुरूआत पाकिस्तान की तरफ से विगत सोमवार को हुई थी। इसके जवाब में, अफगान तालिबान ने भी सीमा पर पाकिस्तानी चौकियों पर गोलीबारी की। ऐसे में सवाल है कि क्या दोनों देश युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? पाकिस्तान के हमलों के बाद तालिबान  ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि अफगानिस्तान की संप्रभुता पर किसी भी तरह के उल्लंघन के गंभीर परिणाम होंगे। इसके साथ ही तालिबान ने पाकिस्तान की नव...
चार सौ पार क्यों?

चार सौ पार क्यों?

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चार सौ पार क्यों?* यूँ तो सुलझे हुए नेता और विचारक सत्ता और प्रतिपक्ष दोनों में ही है। दोनों ख़ेमों में इन दिनों चर्चा का मुद्दा चार सौ पार की जरूरत क्यों? ही है। इसका स्पष्टीकरण देते हुए भाजपा के कर्नाटक से सांसद और पार्टी के वरिष्ठ नेता अनंत कुमार हेगड़े ने कहा कि संविधान को बदलने के लिए पार्टी को 400 सीटों की जरूरत होगी। ‘‘कांग्रेस ने संविधान को विकृत कर दिया है। उसका मूल स्वरूप बदल दिया है। उसने संविधान में अनावश्यक चीजें ठूंस दी हैं। ऐसे कानून बनाए गए हैं जो हिन्दू समुदाय का दमन करते हैं। ऐसे में अगर इस स्थिति को बदला जाना है, अगर संविधान को बदला जाना है, तो वह उतनी सीटों से संभव नहीं है जितनी अभी हमारे पास हैं।’’ हालाँकि भाजपा ने इस बयान से दूरी बना ली है । उसने कहा कि वह अपने सांसद के वक्तव्य का अनुमोदन नहीं करती। मगर एक बात पक्की है, भाजपा में इस तरह के बयान और दावे कोई नई ब...
LIKELY SCENARIO IN INDIA AFTER 2024 ELECTION

LIKELY SCENARIO IN INDIA AFTER 2024 ELECTION

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N.S.Venkataraman With the announcement of the poll schedule for the 2024 parliamentary election, there is palpable excitement and expectation amongst the countrymen  about the shape of things to happen in India after the  results of the election are announced. There is also speculation abroad about the future course of developments in India. With around 970 million people in India registered as voters , the forthcoming 2024 election would go down in history as the largest democratic election exercise in the world.  It is expected that the polls would be conducted with  reasonable level of fairness, dignity  and with people’s enthusiastic  participation , as the process of conducting elections  in India over the last several decades have attaine...
आम चुनाव में अर्जुन की आंख चाहिए

आम चुनाव में अर्जुन की आंख चाहिए

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- ललित गर्ग-लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और चुनाव का माहौल गरमा रहा है। चुनावों की तारीखें घोषित किए जाने के साथ ही जैसी कि उम्मीद थी, सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच तीखी बयानबाजी और तेज हो गई। कौरव रूपी विपक्षी दल एवं पाण्डव रूपी भाजपा के बीच इस चुनाव में असली जंग सत्य और असत्य के बीच है। सत्ता पक्ष और विपक्ष की यह नोक-झोंक ही तो लोकतंत्र की खूबसूरती है, यह जितनी शालीन एवं उग्र होगी, लोकतंत्र का यह महापर्व कुंभ उतना ही ऐतिहासिक एवं खास होगा। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र है और उदार बहुदलीय राजनैतिक प्रणाली का जीवन्त उदाहरण है जिसकी वजह से चुनावों का समय एवं प्रचार विविधतापूर्ण, आक्रामक व रंग-रंगीला होना ही है मगर इसमें कहीं भी कड़वापन, उच्छृंखलता और आपसी रंजिश का पुट नहीं आना चाहिए। इस बार के चुनाव में जहां भाजपा नेतृत्व अगले 20 वर्षों का विजन पेश कर रहा है, वहीं कांग्रेस नेतृत्व इस...
आओ M और चुनाव का धुर्वीकरण करो.!

आओ M और चुनाव का धुर्वीकरण करो.!

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मोदी सरकार को सबसे बड़ा धक्का लगा था जब शाहीन बाग हुआ था। उससे पहले कभी ऐसा कुछ मोदी सरकार के सामने नही आया था। वो भी तब जब CAA ऐसा कानून भी नही था कि उसपर ड्रामा हो। वो तो पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यको के लिए कानून था जिसके लिए यहां के M ने जबरदस्ती की नौटंकी की। खैर, उस समय मोदी सरकार ने कानून लाकर उसे होल्ड पर रख दिया। आखिर मोदी सरकार को हिसाब चुकता करना था। वो हिसाब की बारी आयी है अब। अब आओ और ड्रामा करो... चुनाव को हिन्दू M में बदलो। आखिर भुलक्कड़ हिन्दुओ को याद दिलाओ कि कैसे M सड़को पर दादागिरी करते हैं। बाकी इसका क्या लाभ है उसपर भी चर्चा कर लेते हैं। जो तत्कालिक लाभ दिख रहा है वो ऐसा है कि इससे 2014 से पहले आये लोगों को नागरिकता मिलेगी। बंगाल में मतुआ समाज को इससे सबसे ज्यादा लाभ होगा। ये सब भारत के नागरिक बन सकेंगे। सरकार ने इस बार ये सुनिश्चित किया है कि इसमें राज्य क...
नारी सशक्तिकरण: भ्रम और सत्य

नारी सशक्तिकरण: भ्रम और सत्य

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8 मार्च - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष नारी सशक्तिकरण: भ्रम और सत्य यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि क्रिया-प्रतिक्रिया को आधार बनाकर, नारी सशक्तिकरण की योजना बनाई जाये, तो वह कितनी सशक्त होगी ? महिलाओं के साथ अत्याचार, असमानता और यौन हिंसा के कारण क्या सचमुच निरक्षता, दहेज और कानून की कमजोरी ही है ? समाधान पाने के लिए प्रश्न कीजिए कि हम क्या करें ? भारत में साक्षरों की संख्या बढ़ायें, दहेज के दानव का कद घटायें, अवसर बढ़ाने के लिए नारी आरक्षण बढ़ायें, विभेद और नारी हिंसा रोकने के लिए नये कानून बनायें, सजा बढ़ायें या कुछ और करें ? यदि इन कदमों से बेटा-बेटी अनुपात का संतुलन सध सके, बेटी हिंसा घट सके, हमारी बेटियां सशक्त हो सकें, तो हम निश्चित तौर पर ये करें। किंतु आंकङे कुछ और कह रहे हैं और हम कुछ और। आंकङे कह रहे हैं कि यह हमारे स्वप्न का मार्ग हो सकता है, किन्तु सत्य इससे ...