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बुनियादी सुविधाओं से जूझते सरकारी स्कूल

बुनियादी सुविधाओं से जूझते सरकारी स्कूल

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बुनियादी सुविधाओं से जूझते सरकारी स्कूल (निजी स्कूलों का बढ़ता कारोबार और बंद होते सरकारी स्कूल देश में एक समान शिक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है, उदाहरण के लिए हरियाणा जैसे विकसित राज्य की सरकार अभी सरकारी स्कूली शिक्षा को खत्म करने की चिराग योजना लाई है. अगर आप सरकारी स्कूलों में बच्चे पढ़ाएंगे तो 500₹ आपको भरने हैं, प्राइवेट में पढ़ाएंगे तो 1100₹ सरकार आपके बच्चे की फीस के भरेगी. ये किसे प्रमोट किया जा रहा है? सरकारी स्कूली शिक्षा को या प्राइवेट को?) -सत्यवान 'सौरभ' पिछले तीन दशकों में, भारत ने हर गांव में एक स्कूल बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। किसी भी समुदाय में चलो, चाहे वह कितना भी दूरस्थ क्यों न हो, और यह संभव है कि आप एक सरकारी स्कूल देखेंगे। करीब 11 लाख प्राथमिक विद्यालयों के साथ, हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी स्कूल प्रणाली है। लिंग, जाति या धर्म के बावजूद, स्कूल ...
ज़मानत क़ानून में सुधार की ज़रूरत

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ज़मानत क़ानून में सुधार की ज़रूरत *रजनीश कपूर गर्मियों की छुट्टियों के बाद जहां एक दिन में 44 फ़ैसले सुना कर सुप्रीम कोर्ट ने अपने इतिहास में एक नया रिकोर्ड बनाया वहीं ज़मानत के क़ानून में सुधार को लेकर केंद्र सरकार को एक नया क़ानून बनाने पर विचार करने को भी कहा। न्यायमूर्ति संजय किशन कौल व न्यायमूर्ति एमएम सुंद्रेश की बेंच वाली कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि “भारत को कभी भी एक पुलिस स्टेट नहीं बनना चाहिए, जहां जांच एजेंसियां औपनिवेशिक युग की तरह काम करें।” इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने जमानत याचिकाओं के निपटारे के लिए समय-सीमा की जरूरत को भी दोहराया है। कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई कि महिला क़ैदियों के साथ लगभग एक हज़ार बच्चों को भी जेलों में रहना पड़ रहा है। ये बच्चे बड़े हो कर अपराधी बनेंगे इस बात के अंदेशे से इन्कार नहीं किया जा सकता। क़ानून में यह बात स्पष्ट रूप से लिखी...
शेरों के बहाने हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक

शेरों के बहाने हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक

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शेरों के बहाने हंगामा, विपक्ष की दहशत का प्रतीक  (क्या भारत के प्रतीक चिन्ह को एक राजनीतिक मुद्दा बनाना सही है? अगर मेरी व्यक्तिगत राय पूछें तो शेरों के खुले मुहं को दिखाना एक बहुत अच्छी बात है. ये शेर हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं. शांति हमारी आत्मा में बसी है लेकिन बदलते दौर में अग्रेशन दिखाना भी बहुत जरुरी है. क्योंकि आज के पॉलिटिकल और शक्तिशाली होते युग में हम केवल शांति के दूत बनकर नहीं रह सकते. हम चारों तरफ दुश्मनों से घिरे हुए हैं इसलिए राष्ट्र के अग्रेशन को दिखाना बहुत जरूरी है. यह भारत की एग्रेसिव विदेश नीति का प्रतीक  भी हो सकते हो सकते हैं ताकि दुश्मन इस देश की तरफ नजर करने से पहले हजार बार सोचे.) -प्रियंका 'सौरभ' अशोक स्तंभ संवैधानिक रूप से भारत सरकार ने 26 जनवरी 1950 को राष्ट्रीय प्रतीक के तौर पर अपनाया था. इसे शासन, संस्कृति और शांति का सबसे बड़ा प्रतीक माना गया है. ल...
आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए

आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए

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आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए आर.के. सिन्हा अब देश की सभी प्रमुख आईटी कंपनियां अपने मार्च-जून तिमाही के नतीजों का ऐलान करना चालू कर देंगी। यह भी तय है कि करीब-करीब सभी के मुनाफे और कुल जमा कारोबार में निश्चित वृद्धि होगी। कोरोना काल के बाद सभी भारतीय आईटी कंपनियां अब अपनी  पूरी क्षमताओं के साथ काम कर रही हैं। उन्हें देश-विदेश से नए-नए आर्डर भी मिल रहे हैं। ये सभी भारतीय आई.टी. कम्पनियां कोरोना काल में आई सुस्ती की भरपाई करने में लगी हुई हैं। कोरोना के दौर में सभी क्षेत्रों में काम की रफ्तार प्रभावित हुई थी। पर अब कोरोना के भय को कारोबारी दुनिया पीछे छोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ रही है। अब ठोस संकेत मिल रहे हैं कि भारत की चार सबसे प्रमुख आई टी सेक्टर की कंपनियां क्रमश: टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल  टेक्नोलॉजी जब अ...
धार्मिक भावनाओं पर दोहरी राजनीति

धार्मिक भावनाओं पर दोहरी राजनीति

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धार्मिक भावनाओं पर दोहरी राजनीति  श्री शंकर शरण (लेखक: राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं) काग्रेस नेता शशि थरूर का यह कथन चर्चा में है कि 'हमारा यह हाल हो गया है कि धर्म-मजहब के किसी पक्ष पर कुछ भी कहने पर कोई न कोई भावना आहत होने का दावा कर नाराज होने लगता है।' तृणमूल नेत्री महुआ मोइत्रा द्वारा देवी काली के बारे में दिए गए बयान के संदर्भ में उन्होंने यह भी कहा कि 'ऐसी बातें सहजता से लेनी चाहिए, क्योंकि इसके पीछे किसी को चोट पहुंचाने का भाव नहीं रहता।' थरूर की बात सही है। समस्या यह है कि उन जैसे अधिकांश नेता और बौद्धिक तब चुप रह जाते हैं, जब मामला इस्लामी प्रसंगों का होता है। तब अभिव्यक्ति के सहज अधिकार पर दोहरापन झलकता है, जो सबसे बड़ा संकट है। लोग किसी चोट से अधिक उस पर शासन और बुद्धिजीवियों के दो तरह के रुख दिखाने से अधिक क्षुब्ध होते हैं। महुआ मोइत्रा के पक्ष मे...
नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत

नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत

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नेडी के बाद अब आबे को भी याद रखेगा भारत आर.के. सिन्हा भारत के परम मित्र और हितैषी जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की जापान के एक छोटे से शहर में रेलवे स्टेशन के बाहर लगभग सौ लोगों की एक छोटी सी सभा को संबोधित करते हुए 8 जुलाई को गोली मारकर हत्या की दिल दहलाने वाली घटना ने अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एक. कैनेडी की 22 नवंबर,1963 को डलास हुई में हत्या की यादें ताजा कर दी हैं। कैनेडी की तरह भारत अब शिंजो आबे को भी सदैव अपने एक सच्चे मित्र के रूप में याद रखेगा। अजीब इत्तिफाक है कि भारत को चाहने वाले दो देशों के शिखर नेताओं का अंत इतने भयावह रूप में हुआ। निश्चित रूप से शिंजो आबे के आकस्मिक निधन से भारत-जापान संबंधों का एक मजबूत स्तंभ गिर गया है। वे जापान के प्रधानमंत्री के रूप में चार बार भारत आए। उन्हें भारत ने भी दिल खोलकर प्रेम-सम्मान दिया। जिस विरासत को सहेजकर रखने की जिम्मेदारी आबे को...
क्या भारत का विपक्ष बुढ्ढा हो चुका है?*

क्या भारत का विपक्ष बुढ्ढा हो चुका है?*

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क्या भारत का विपक्ष बुढ्ढा हो चुका है?* भारत देश की स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ, जिसके अन्तर्गत कांग्रेस पार्टी के पंडित जवाहर लाल नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और कांग्रेस पार्टी लगभग 50 वर्षो तक सत्ता में रही। कांग्रेस के स्थायित्व का प्रमुख कारण प्रारम्भ में विपक्ष का कमजोर होना था। कांग्रेस के सत्ताकाल में ही भारत दो टुकड़ों में विभाजित हुआ, जिसके अन्तर्गत पाकिस्तान का जन्म हुआ। उस समय विपक्ष मजबूत होता तो शायद पाकिस्तान नहीं बनता। विपक्ष को स्वयं को सशक्त करने में 50 वर्ष व्यतीत हुए। इस अवधि में विपक्षी दलों में अनेकों बार बिखराव भी हुआ परन्तु उसने पुनः स्वयं को एकजुट किया। अथक प्रयासों के पश्चात भाजपा एक सुदृण विपक्ष के रूप में उभरी। पूर्व में भाजपा ने अपना अस्तित्व स्थापित करने हेतु अन्य दलों का सहयोग लिया, परन्तु वर्तमान समय में भाजपा स्व...
अस्पताल-जनित संक्रमण से बचाने के लिए नया सॉल्यूशन

अस्पताल-जनित संक्रमण से बचाने के लिए नया सॉल्यूशन

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अस्पताल-जनित संक्रमण से बचाने के लिए नया सॉल्यूशन नई दिल्ली, 08 जुलाई (इंडिया साइंस वायर): अस्पतालों में उपयोग होने वाले स्वास्थ्य देखभाल परिधान (स्क्रब, गाउन, डॉक्टर कोट, रोगी के वस्त्र आदि) में सूक्ष्म रोगजनक होते हैं, जो बीमारी का कारण बन सकते हैं। कपड़े की नरम और छिद्रयुक्त सतह हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस, और कवक के पनपने एवं उनके प्रसार के लिए अनुकूल होती है। इन रोगजनकों को साफ करने या हटाने के बार-बार किये जाने वाले प्रयासों के बावजूद, वे समय के साथ कपड़ों से चिपके रहते हैं, और संक्रमण फैलाते रहते हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), दिल्ली द्वारा इन्क्यूबेटेड स्टार्टअप मेडिकफाइबर और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने एक प्रभावी सॉल्यूशन विकसित किया है, जिससे अस्पतालों में चिकित्सकों, कर्मचारियों, एवं मरीजों को रोगजनकों के संक्रमण से रहित ...
बहुसंख्य समाज अपमान के घूंट कब तक पीता रहेगा?

बहुसंख्य समाज अपमान के घूंट कब तक पीता रहेगा?

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बहुसंख्य समाज अपमान के घूंट कब तक पीता रहेगा?-ललित गर्ग-हमारे देश के कुछ समूहों, वर्गों, राजनीतिक-गैर राजनीतिक संगठनों एवं सम्प्रदायों में राष्ट्रवाद का अभाव ही अनेक समस्याओं की जड़ है। इसी से धार्मिक उन्माद बढ़ रहा है, इसी से कभी नुपूर शर्मा तो कभी महुआ मोइत्रा के बयानों पर विवाद खड़े हो रहे हैं। डॉक्यूमेंट्री फिल्म ’काली’ के पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाकर एक धर्म-विशेष की भावनाओं को आहत करने की कुचेष्टा भी इसी राष्ट्रभावना के अभाव का परिणाम है। अक्सर हिन्दू देवी-देवताओं का उपयोग दुर्भावना से करते हुए उन्हें स्मोक करते हुए दिखाना हो या मांसाहार के प्रचार के रूप में उनका उपयोग किया जाना हो। कभी चप्पलों तक में उनकी तस्वीरों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। कभी टी-शर्ट तो कभी महिलाओं के वस्त्रों में उनका उपयोग भद्दे, घटिया एवं सिद्धान्तहीन लाभ एवं धर्म-विशेष की आस्था को आहत करने की ...
आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए

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आईटी पेशेवरों के नौकरी छोड़ते रहने की वजह समझिए आर.के. सिन्हा अब देश की सभी प्रमुख आईटी कंपनियां अपने मार्च-जून तिमाही के नतीजों का ऐलान करना चालू कर देंगी। यह भी तय है कि करीब-करीब सभी के मुनाफे और कुल जमा कारोबार में निश्चित वृद्धि होगी। कोरोना काल के बाद सभी भारतीय आईटी कंपनियां अब अपनी  पूरी क्षमताओं के साथ काम कर रही हैं। उन्हें देश-विदेश से नए-नए आर्डर भी मिल रहे हैं। ये सभी भारतीय आई.टी. कंपनियां कोरोना काल में आई सुस्ती की भरपाई करने में लगी हुई हैं। कोरोना के दौर में सभी क्षेत्रों में काम की रफ्तार प्रभावित हुई थी। पर अब कोरोना के भय को कारोबारी दुनिया पीछे छोड़ते हुए तेजी से आगे बढ़ रही है। अब ठोस संकेत मिल रहे हैं कि भारत की चार सबसे प्रमुख आई टी सेक्टर की कंपनियां क्रमश: टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस), इंफोसिस, विप्रो और एचसीएल  टेक्नोलॉजी जब अपने नतीजे घोषित करेंगी ...