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विवादों के बावजूद बदलती दुनिया में जी-20 देश एक दूसरे पर कितना भरोसा कर पाते है

विवादों के बावजूद बदलती दुनिया में जी-20 देश एक दूसरे पर कितना भरोसा कर पाते है

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जर्मन के बान शहर में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक का 17 फरवरी को समापन हो गया। इस कांफ्रेंस में तमाम राष्ट्रों ने न केवल एक-दूसरे के समक्ष अपने यहां की समस्याओं को रखा बल्कि उनके समाधान के लिए परस्पर सहयोग की अपेक्षा भी की। अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद यह पहली अंतरराष्ट्रीय स्तर की कॉन्फ्रेंस थी। ऐसे में सभी नेताओं की नजर अमेरिका के नए विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन पर टिकी थी। दुनिया जानना चाहती है कि ट्रंप के शासन में अमेरिका की विदेश नीति कहा जाएंगी। हालाकि इस बैठक में सभी देशों के विदेश मंत्रियों ने एक स्वर में उक-दूसरे का सहयोग करने की बात दोहराई। असल में सहयोग की बात तो जरूर की गई लेकिन इसको अमल में लाने का माहौल कहीं से कहीं तक दिखाई नही दिया। इस कांफें्रस में सभी विदेश मंत्री सहयोग शब्द की रट लगाए हुए थे और बार-बार ये शब्द गुंजते हुए सुनाई दे रहा था बावजू...
‘‘क्या हमारी सबसे कीमती चीज ‘‘विश्वव्यापी दृष्टि’’ खो गयी है?’’

‘‘क्या हमारी सबसे कीमती चीज ‘‘विश्वव्यापी दृष्टि’’ खो गयी है?’’

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चीन के सरकारी अखबार ने कहा है कि अगर अमेरिका ने चीन को दक्षिण चीन सागर में आईलैंड बनाने से रोका तो युद्ध होगा। चीन की तरफ से यह बयान अमेरिका के विदेश मंत्री रेक्स टिलरसन की चेतावनी के बाद सामने आया है। टिलरसन ने सीनेट की विदेशी संबंधों से जुड़ी कमिटी के सामने अपनी रणनीति पेश की थी। उन्होंने कहा था हम चीन से कहेंगे कि वह आईलैंड पर निर्माण बंद कर दें। यह गैरकानूनी है। चीन को विवादित दक्षिण चीन सागर खाली कर देना चाहिए। चीनी अखबार ने अपने सम्पादकीय में कहा है यदि अमेरिका दक्षिण चीन सागर में चीन को आने से रोकना चाहता है तो उसे बड़े स्तर पर युद्ध लड़ना होगा। टिलरसन अगर एक बड़ी परमाणु ताकत को उसके इलाकों से निकालना चाहते हैं, तो उन्हें बेहतर न्यूक्लियर पावर रणनीति बनानी होगी। एक समाचार के अनुसार अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी जमीन पर आने वाले क्यूबाई प्रवासियों को एक वर्ष बाद का...
The unbridled audacity of our babus

The unbridled audacity of our babus

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The Indian bureaucracy is notorious for inventing outrageous ways of self-aggrandisement. However, nothing demonstrates its unbridled audacity for disregarding all civilised norms of probity than the disreputable Non Functional Upgrade (NFU) scheme. One must doff one’s hat to the ingenuity of the bureaucracy to loot the nation. Simultaneously, the political leadership needs to be pitied for a total lack of spine to check this blatant delinquency. Bureaucracy rules the roost.   The Sixth Central Pay Commission, in its March 2008 report, recommended introduction of NFU to reward civil servants of 49 ‘Organized Central Group A Civil Services’ with automatic time-bound pay promotions till the Higher Administrative Grade. Subsequently, it was made applicable to the IPS and the Indian...
The promise and pitfalls of urbanization in India

The promise and pitfalls of urbanization in India

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The eye has never seen a place like it,” wrote Persian ambassador Abdur Razzak of Vijayanagara, capital of the Vijayanagara empire, “and the ear was never informed that there existed anything to equal it in the world.” He was writing in 1443, during the long summer of the empire. Other visitors would praise the city’s wealth and prosperity in later years; Domingo Paes, a Portuguese traveller, compared it favourably to the Italian city-states in 1520. A high compliment indeed—the latter, at the height of the Renaissance, were global centres of wealth, commerce and culture. Sailing east along the Mediterranean coast would have brought a traveller like Paes to one of their few rivals, Constantinople (now Istanbul)—in its time the richest and largest city in Europe. The role of cities as engi...
Big Brother is winning

Big Brother is winning

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The clamour for security, accountability and transparency is leading to unfettered increase in the power of states. We are enacting law after law, introducing technology after technology, to render citizens transparent to the state. But at the same time, we are weakening protections and consenting to technologies in a way that makes the state less transparent to us. Totalitarian states often do this against the wishes of their citizens; in our democracy, our consent is being mobilised to put an imprimatur over more control and arbitrariness. And in a fit of distraction, we have come to believe that giving the state more powers will conjure up all the goodies we need. All it will produce is a disciplinarian society more under the state’s control. Just witness the latest exhibit. The Fina...
जंग-ए-आज़ादी का दूसरा सबसे बड़ा बलिदान था तारापुर गोलीकांड

जंग-ए-आज़ादी का दूसरा सबसे बड़ा बलिदान था तारापुर गोलीकांड

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    भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की चर्चा आते ही हमें याद आता है ‘बलिदान’ | मूछों पर ताव देते पंडित चंद्रशेखर आज़ाद, पगड़ी पहने सरदार भगत सिंह, जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की गोलियों से गिरते लोग ये सभी दृश्य कौंधने लगते हैं मन में | एक ऐसा ही रोमांचित कर देने वाला घटनाक्रम आज आपसे साझा करना चाहता हूँ | इतिहास की स्मृति में धुंधला से गए कुछ पन्नों का पुनर्पाठ करना चाहता हूँ ताकि भारत की आन-बान-शान के लिए कुर्बान हो गए उन वीरों का ऋण चूकाने की कोशिश कर सकें | यह कहानी है बिहार के मुंगेर जिला अंतर्गत “ तारापुर थाना “ की, जहाँ 15 फरवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने तिरंगा लहराने निकल पड़े | ब्रिटिश साम्राज्य के  यूनियन जैक की जगह राष्ट्रीय ध्वज “तिरंगा “ फहराने के उन्माद में तारापुर के अमर सेनानियों का दल हाथों में झंडा और होठों पर वंदे मातरम की गूंज लिए आगे बढ़ रहा थ...

“अलिफ़” के अधूरे सबक

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मुस्लिम समाज में शिक्षा की चुनौती जैसे भारी-भरकम विषय को पेश करने का दावा, "लड़ना नहीं, पढ़ना जरूरी है” का नारा और जर्नलिस्ट से फिल्ममेकर बना एक युवा फिल्मकार, यह सब मिल कर किसी भी फिल्म के लिए एक जागरूक दर्शक की उत्सुकता जगाने के लिए काफी हैं. निर्देशक ज़ैगम इमाम के दूसरी फिल्म 'अलिफ'  के साथ ना तो कोई बड़ा बैनर हैं और ना ही बड़ा स्टारकास्ट, इसलिए छोटे बजट से बनी इस फिल्म की विषयवस्तु ही इसकी खूबी हो सकती थी लेकिन दुर्भाग्य से फिल्म अपने विषयवस्तु के भार को झेल नहीं पाती है और एक अपरिपक्व सिनेमा बन कर रह जाती है. कहानी का केंद्र बनारस है जहाँ दोषीपुरा के एक मुस्लिम बहुल बस्ती में हकीम रज़ा का परिवार रहता है. उनका बेटा अली अपने दोस्त शकील के साथ पास के एक मदरसे में हाफ़िज़ (पूरा कुरआन कठंस्थ कर लेना) की पढ़ाई करता है. सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहता है इस बीच हकीम रज़ा की बहन ज़हरा रज़ा जिन्हें दंगों के...

क्या अब विश्व की एक आर्थिक एवं राजनैतिक व्यवस्था बनानी चाहिए?

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चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने साल भर पहले जब पश्चिम एशिया का दौरा किया था। जिनपिंग ने अपनी इस यात्रा के पड़ावों में रियाद और तेहरान के अलावा काहिरा में अरब लीग की बैठक मंे भी वह शामिल हुए थे। चीन अभी तक अपने व्यापारिक हितों के जरिये ही अपनी विदेश नीति को शक्ल देता रहा है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक अखाड़े में उतरने के पीछे दरअसल उसकी आर्थिक मजबूरियां हैं। दलील यह दी गई कि चीन पश्चिम एशिया के तेल व गैस पर बड़े पैमाने पर निर्भर है और इनकी अबाध आपूर्ति के लिए इस क्षेत्र की स्थिरता जरूरी है। यह स्थिरता अब तक अमेरिका की निगरानी की वजह से कायम रही है, और अब चूंकि अमेरिका वहां ग्लोबल पुलिस वाले की भूमिका निभाने को इच्छुक नहीं है, तो चीन को शायद यह लगता है कि उसे अपने आर्थिक हितों के लिए अपनी राजनीतिक उदासीनता छोड़नी ही पड़ेगी। चीन ने कहा कि वह वैश्वीकरण के लक्ष्यों की रक्षा करेगा। वहीं अमेरिका के नये र...
काश! पंच महाभूत भी होते वोटर

काश! पंच महाभूत भी होते वोटर

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पंजाब, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, गोवा और मणिपुर - पांच राज्य, एक से सात चरणों में चुनाव। 04 फरवरी से 08 मार्च के बीच मतदान; 11 मार्च को वोटों की गिनती और 15 मार्च तक चुनाव प्रक्रिया संपन्न। मीडिया कह रहा है - बिगुल बज चुका है। दल से लेकर उम्मीदवार तक वार पर वार कर रहे हैं। रिश्ते, नाते, नैतिकता, आदर्श.. सब ताक पर हैं। कहीं चोर-चैर मौसरे भाई हो गये हैं, तो कोई दुश्मन का दुश्मन का दोस्त वाली कहावत चरितार्थ करने में लगे हैं। कौन जीतेगा ? कौन हारेगा ? रार-तकरार इस पर भी कम नहीं। गोया जनप्रतिनिधियों का चुनाव न होकर युद्ध हो। सारी लड़ाई, सारे वार-तकरार.. षडयंत्र, वोट के लिए है। किंतु वोटर के लिए यह युद्ध नहीं, शादी है। तरह-तरह के वोटर है। जातियां भी वोटर हैं, उपजातियां भी। संप्रदाय, इलाका, गरीबी, अमीरी, जवानी, बुढ़ापा, भ्रष्टाचार.. सभी वोटर की लिस्ट मंे है। पांच साल बाद वोटर का एक बार फिर नंबर आय...
क्यों नहीं नपें माल्या, दाऊद, नदीम

क्यों नहीं नपें माल्या, दाऊद, नदीम

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एक बात सबकी समझ में अब आ ही जाना चाहिए कि अब देश में हजारों करोड़ के घोटाले करने के बाद या गंभीर अपराधों को अंजाम देकर विदेशों में जाकर शरण लेने वाले अब जरूर नपेंगे। उनकी संपत्ति होगी जब्त। यानी शराब कारोबारी विजय माल्या से लेकर, आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी और दाऊद इब्राहिम से लेकर नदीम तक, कोई अपराधी बचेंगा नहीं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में स्पस्ट किया कि देश छोड़कर भागने वाले भगोड़ों पर नकेल कसने के लिए सरकार सख्त और नए कानून लाने पर विचार कर रही है। माल्या से दाऊद हालांकि उन्होंने किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन साफ है कि उनका इशारा माल्या, ललित मोदी और दाउद जैसों पर ही था। पैसे और राजनीतिक रसूख के बल पर कुछ धनपशुओं को लगने लगा था कि उन्हें कोई छेड़ ही नहीं सकता। बैंकों का करीब 9 हजार करोड़ रुपये माल्या के पास बकाया है। देर से ही भले, परन्तु सरकार का ऐसे लोगों के...